अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 42) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

“ओह तुम तो डर ही गई। ऐसा क्या है इस डायरी में।” विनया के गोरा मुखड़े को पूर्णतः सफेद होते देख मनीष कहता है।

नहीं कुछ नहीं, विनया के डायरी छीनने के प्रयास में डायरी मनीष के हाथ से छूट कर फिर से नीचे गिर गई। जब टीके विनया नीचे झुकती, मनीष झुक कर गिरने के क्रम में खुल गए पन्ने के साथ डायरी उठाता है और उसे अपने आगे कर लेता है।

“देख फिज़ा में धवल चाॅंदनी रातें” डायरी के उस पन्ने पर लिखे इस प्रथम पंक्ति को मनीष बुदबुदा ही रहा था कि विनया कमरे का द्वार खोल तेजी से बाहर भाग गई और रुकी अंजना के कमरे में जाकर, जहां अंजना और संपदा कंबल ओढ़े तकिया का टेक लगाए धीरे धीरे बातें कर रही थी।

विनया के कमरे से बाहर जाते जाते मनीष ने विनया की डायरी के उस पृष्ठ की चांद पंक्तियां बुदबुदाई और दरवाजे की ओर विनया की बाहर जाते देख पहले आश्चर्य से और फिर चितवन पर आई एक मधुर मुस्कान के साथ उन पंक्तियों का स्वागत करता प्रतीत हुआ। अभी तक जो मनीष गमजदा सा अपने माथे पर हाथ रखे लेटा हुआ था, अब उन पंक्तियों से उसका गमजदा मन, हृदय गुनगुनाने पर मजबूर हो गया।

देख फिज़ा में धवल चाॅंदनी रातें,

प्यार  ने  बिछा  दी  हैं सौगातें,

हृदय की हाॅं जुबान पर आ गई,

लुभा  गई सनम तेरी हर बातें।

डायरी के पन्नों की शानदार लफ्जों में उकेरी गई भावनाओं ने मनीष को आश्चर्यचकित कर दिया था। चंद पंक्तियों ने जैसे उसकी आत्मा को छू लिया था। अभी तक मनीष के दिल को विनया की तरफ से आया हुआ इकरार कोई का संदेश नहीं मिला था, उसे लगता था कि विनया भी उसे पसंद करती है, ये महज उसका भ्रम ना हो। लेकिन इन पंक्तियों की सौगात पाकर उसका दिल सहज होकर विनया की स्वीकारोक्ति पर झूम उठा था। 

मनीष ने विनया की दिशा में देखते हुए एक मधुर मुस्कान के साथ कहा, “तुम्हारी रचनाएं हकीकत के रंगों में रंगी हुई हैं। यह डायरी तुम्हारे भावनाओं का सुंदर संग्रह है।”

मनीष के लिए यह डायरी डूबते को तिनके का सहारा सी लगी, जिसने उनके बीच एक नया और गहरा संबंध बना दिया। इस साझेदारी ने न केवल उनके अंतर्निहित भावनाओं को साझा करने का एक माध्यम प्रदान किया बल्कि उन्हें एक-दूसरे की समझ को समझने में मदद करने में भी सहायक हुआ।

“भाभी, ऐसे कहां से भागती आ रही हैं। सांस ले लीजिए।” कमरे में हांपती हुई विनया को देख संपदा बैठे बैठे ही कहती है।

“क्या हो गया बेटा, मनीष ने कुछ कहा क्या?” 

“मम्मी, तुम भी क्या!” संपदा ऑंखें मटका कर अंजना को देखती उठ कर विनया का हाथ पकड़ कर बिठाती हुई कहती है।

“भैया ने फिर कोई सरप्राइज़ प्लान कर लिया क्या भाभी।” संपदा मुस्कुराती हुए कहती है।

“नहीं वो मैंने यूंही सपना।” विनया बात बनाती हुई कहती है।

“कैसा सपना भाभी मीठा या खट्टा।” संपदा चिढ़ाती हुई कहती है।

“ये बताइए, आप लोग टीबी, बीमारी कुछ ऐसी ही बातें कर रही थी ना।” विनया बारी बारी से अंजना और संपदा को देखती हुई चर्चा को बदलती हुई पूछती है।

“एक बात बताइए भाभी, सब कुछ ठीक हो रहा हो या लग रहा हो। तो बुरी बातें बार बार याद क्यों आती रहती है। हम जब भी चर्चा करते हैं, पहले मन दुखाने वाली बातें ही क्यूं याद आती हैं।” संपदा अपने घुटनों के बल बैठती हुई कहती है।

“हूं ये तो बड़ी समस्या है। इसका जवाब है जो खाना हम खाते हैं, वो अगर नहीं पचा तो हमें याद रहता है कि हमने क्या खाया था, लेकिन यदि वो पच गया तो हमें याद करना पड़ता है कि हमने क्या खाया था। यही चीज यादों के साथ भी है, जो बातें हमें दुःखी करने वाली होती है, वो दिमाग में रखी रह जाती हैं अर्थात् दिमाग उसे पचा नहीं पाता है और जब तब उगलता रहता है और खुशनुमा अहसास मन का पचा हुआ भोजन है तो वो तभी उगलता है, जब वैसी परिस्थिति सामने हो।” विनया सविस्तार बताती जाती है।

“क्या बात है भाभी, पिछले जन्म में तपस्विनी थीं आप क्या भाभी। हर प्रश्न का उत्तर देने के लिए मानो तैयार रहती हैं।” संपदा विनया के उत्तर से प्रभावित होकर कहती है। विनया की इस व्याख्या ने दोनों को अचरज में डाल दिया और इस अनूठी तुलना के माध्यम से एक गहरा संदेश दोनों के मन में उतरता चला गया।

“अब आप दोनों बताइए, यहां क्या चल रहा था।” विनया दोनों की चलती बातों को जानने के लिए उत्सुक थी।

संपदा विनया के सवाल पर एक गहरी सांस लेती है और कहती है, “आज जब हमलोग घर पर नहीं थे भाभी, तब मम्मी और पापा के बीच पिछली घटनाएं, जिसने सभी को एक दूसरे से दूर कर दिया था, उस पर चर्चा हुई थी। यूं तो पापा शर्मिंदा हैं और मम्मी के अनुसार मम्मी ने उन्हें माफ कर दिया है लेकिन मम्मी उन्हीं बातों को याद कर दुःखी हो रही हैं।” 

“लेकिन हुआ क्या था, ये तो बताइए।” विनया कहती है।

“क्या करोगी जानकर बेटा, दिल ही दुखेगा तुम्हारा।” अंजना जो अब तक चुप थी, विनया से कहती है। “हो सकता तुम्हारे मन में पापा जी के प्रति वो इज्जत ना रह जाए, जो अभी है।” अंजना विनया की ओर देखकर कहती है।

“आप चिंता नहीं कीजिए माॅं, जो जैसा है वैसा ही रहेगा। मैं भी जानना चाहती हूं कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि आप चारों में इतना बिखराव हो गया। जबकि आपकी एलबम की तस्वीरें आपकी सुखद पलों को व्यक्त करती हैं।” विनया के बोलने में अंजना के लिए आश्वासन था।

“ठीक है बेटा”, बोलकर अंजना रुकती है और फिर अतीत की उन परछाइयों की पकड़ती कहना प्रारंभ करती है, “उन दिनों मेरी तबियत थोड़ी नासाज रहती थी। लगातार खांसी के कारण कोई कार्य करना, बोलना दूभर हो जाता था। संयोग बच्चों की छुट्टियां थी, तो हमने इन्हें ननिहाल भेज दिया और मेरा प्रारंभ हुआ डॉक्टर का चक्कर। शहर के लगभग सभी चिकित्सकों ने देख लिया, कई टेस्ट हो गए, कहीं कुछ नहीं निकला। इसकी दादी मुझे खांसते देख और इस कारण काम में ढिलाई देख दिन भर मुझे और मेरे मायके वालों को कोसती रहती थी। फिर उनसे रहा नहीं गया तो दोनों बेटियों को भी उन्होंने बुला लिया और तीनों ने मिलकर मुझे टीबी का मरीज घोषित कर दिया। जबकि रिपोर्ट्स में कुछ नहीं था। लेकिन उन्होंने मेरी खांसी को मेरे खिलाफ उपयोग किया और तुम्हारे पापा जी के मन में तीनों ने मिलकर बीमार पत्नी का पति होने की ग्लानि भरती गई। मैं मानती हूं कि इसमें ज्यादा दोष तुम्हारे पापा जी की है, वो कोई बच्चे नहीं थे कि उनके कान में कोई अनाप शनाप डाल दे। उनके सामने डॉक्टर, डॉक्टर का रिपोर्ट सब कुछ उपलब्ध था, फिर भी वो कान के कच्चे बन गए। यही सभी ने बच्चों के साथ किया। बच्चों को मुझसे दूर रखने के लिए सबने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया। इनके ननिहाल से आने के बाद यहां की स्थिति काफी बिगड़ चुकी थी। पिता और दादा, दादी, बुआ के लाडले तो दोनों थे ही, उनकी बातें सुन सुन कर मुझसे विलग भी होते चले गए। तभी द्रौपदी का भी चीरहरण तभी हुआ था, जब अपने ही दुश्मन बन गए थे और जो विशेष थे, वो भी बिन बोले सिर झुकाए दुश्मनों के पक्ष में हो गए थे।” बोलती हुई अंजना का चित्त विचलित हो उठा और उसकी आवाज ने उसका साथ छोड़ दिया और वो चुप हो गई।” 

इस समय कमरे की चुप्पी ऐसी थी जैसे अभी अभी कोई बवंडर यहां से गुजरा हो और सब कुछ खुद में विलीन करता चला गया हो। जैसे कोई बड़ा हादसा हाल ही में हुआ हो और उसकी बिखरन छांटी जा रही हो। चुप्पी इतनी भारी थी कि हर कोने से हवा की सांय सांय बिना किसी ध्वनि के सुनी जा सकती थी। सभी के चेहरे पर द्वंद्व का एक अजीब सा भाव आच्छादित था, जैसे वे अभी कुछ और सोच रहे हों, पर उनकी आँखों में कुछ और हो रहा हो, जिसे वे कह नहीं पा रहे थे। अब यह स्थिति एक ठहरे हुए क्षण की तरह सन्नाटा में बदल चुकी थी, जो तीनों को एक साथ एक ही मंच पर बांधती सी लग रही थी।

इस अहसनीय चुप्पी को तोड़ते हुए विनया ने पूछा, “और आपने कोई प्रतिकार नहीं किया और आपके मायके वाले”….

“यही तो गलती हो गई बेटा, मैंने भी सबके रुख को देखकर चुप्पी ही साध लिया। ना पति से कोई शिकायत और ना ही अपने बच्चों को ही अपनी ममता में बांधने का प्रयत्न किया। मुझे तो महसूस होने लगा था कि मेरी जिंदगी श्यामपट्ट सी हो गई है, जिस पर किसी ने लिखी हुई सुंदर इबारत को मिटा कर आड़ी तिरछी रेखाएं खींच दी हो और मैं उस आड़ी तिरछी रेखा को अपनी किस्मत मानने की भूल कर बैठी। यही गलतियां हम स्त्रियां अक्सर कर देती हैं। जब अपनी परेशानियों को सामान्य मान लेती हैं। इस प्रकार की भूलें हमें सच्चाई से दूर ले जाती हैं और हम अपनी क्षमताओं को समझने में विफल हो जाती हैं। इस अनजान चुप्पी के पीछे हमारी सोचों का सामंजस्य बिगड़ जाता है और हम अपने आत्मसमर्पण के साथ स्वयं को खो बैठती हैं। इससे हमारा संबंध और भी दूर हो जाता है और हम अपने प्रियजनों से भी दूर हो जाती हैं, जिससे शान्ति और सुख की भावना हमारे जीवन से हटती चली जाती है और उस समय मायके वालों के लिए डोली पर विदा होकर अर्थी पर ही दिखो वाला सिद्धांत था तो उनसे कुछ कहना बेकार ही था।” अंजना विनया के सवाल पर आत्मविश्लेषण करती हुई कहती है।

“बेटा तुम्हारी मम्मी ने सही ही कहा, तुम कृष्ण सी सारथी बनकर ही हमारे घर आई हो। तुमने इस घर को जिस तरह थामा, मेरे बच्चों को जिस तरह उचित अनुचित का ज्ञान कराया और फिर से सबको बिना किसी नकारात्मकता के साथ एक दूसरे के करीब ले आई।” अंजना दो पल रुक कर भावावेश में विनया के दोनों हाथ पकड़ कर अपने ऑंखों से लगाती है।

“ये मेरा भी तो घर है ना माॅं।” विनया अंजना के और करीब खिसकती हुई कहती है।

“तो मम्मी, अब मान में कि आपने पापा को माफ कर दिया।” संपदा भी अंजना की ओर खिसकती हुई कहती है।

“बेटा सत्य तो ये है कि माफ करने की इच्छा तो बिल्कुल नहीं है लेकिन विनया जैसी सारथी हो तो हमारे लिए भी झुकना बनता है और बेटा कल को तुम्हारी भी शादी होगी और कई रिश्ते सामने होंगे, कुछ सुलझे होंगे और कुछ उलझे होंगे। कोशिश यही करना कि उन उलझे रिश्तों को प्यार रूपी सलाइयों पर डाल कर सुलझाया जाए।” अंजना संपदा को समझाती हुई कहती है।

“लेकिन दीदी, मैं ये भी कहूंगी कि कई बार कई रिश्ते खुद ही सुलझना नहीं चाहते हैं तो प्रयास करने के बाद उनके पीछे अपनी ऊर्जा खर्च नहीं कीजिएगा बल्कि रचनात्मक कार्य में अपनी ऊर्जा लगा कर प्रसन्न रहने की आवश्यकता पर जोर दीजिएगा और हम हमेशा आपके साथ खड़े मिलेंगे, ये याद रखिएगा।” विनया अंजना की बातों को आगे बढ़ाती हुई कहती है। उसके शब्दों में संजीवनी होती हैं, जो समझदारी और सामंजस्य की मिसाल देती हैं, और ये दिखाती हैं कि किसी भी संबंध को सुधारने के लिए सही दिशा में कदम बढ़ाना महत्वपूर्ण है।

बातें करती संपदा और विनया खिसकती खिसकती अंजना के अगल बगल में लेट गई। दोनों की पलकें नींद से झपकने लगी थी और दोनों अंजना की ओर करवट लेकर स्वप्न लोक की ओर प्रस्थान कर गईं। लेकिन अंजना की इस रात की नींद उड़ गई थी। उसके मन में बिखरे कई जज्बात करवट ले रहे थे और बंद ऑंखों में चलचित्र की भांति एक एक कर उसके आगे मंडरा रहे थे। उनमें से कई जज्बात सिर उठाने की कोशिश करते हुए विभिन्न प्रकार के सवाल भी अंजना से कर रहे थे और अंजना उनके सवालों का कोई सिरा पकड़ नहीं पा रहा था। संपदा और विनया की सवालों ने उसके अंदर एक चिंगारी भड़का दी थी। वह अपनी भावनाओं में फांसी उनके सवालों के जवाब ढूंढ़ने का प्रयास कर रही थी। 

अंजना ने अपने मन के विचारों को सजाना शुरू किया और उसने तय किया कि वह खुद को पहचानेगी, अपने रिश्तों को समझेगी और उन्हें सुधारने का साहस करेगी। उसने अपनी कठिनाइयों का सामना करने का निर्णय लिया और अपनी मानवीयता को नई ऊँचाइयों तक ले जाने का संकल्प किया।

उसकी मन की गहराईयों से उभरती हुई नई उम्मीदों और दृष्टिकोणों के साथ अंजना ने रात भर के विचारों को दिनचर्या में समाहित करने का निर्णय लिया। इन्हीं उधेरबुन में खुद को तलाशती अंजना का मन में अब शांति ने घर बनाना प्रारंभ कर दिया था, क्योंकि वह अब अपने जीवन को सही दिशा में प्रवृत्त करने के लिए कदम बढ़ा रही थी।

सुबह के साथ एक नई अंजना ने अपने परिवार और अपने आत्म-समर्पण के साथ नए आरंभ की शुरुआत करने के लिए तैयार थी और उसने बारी बारी से विनया और संपदा को देखते हुए महसूस किया कि जीवन में उड़ान छोटी ही क्यों ना हो, उस उड़ान के साथ नई ऊँचाइयों को छूने का सुख अद्वितीय होता है। सोचती अंजना को बैठक से खटर पटर की आवाज आती मालूम पड़ी और वो उठकर आहिस्ते से दोनों के बीच से निकल कर बैठक की ओर बढ़ गई।

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