अन्त:करण की पीड़ा – पुष्पा जोशी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : ‘साहब आपने जो काम दिया था, वह मैंने पूरा कर दिया।’ रामलाल ने आकर चेतन कुमार से कहा।’तो वे उठकर बैठ गए।आज रविवार था और कोर्ट की छुट्टी थी, अत: वे उठने के बाद फिर आराम कुर्सी पर कुछ आराम करने के लिए लेट गए थे। उन्होंने उत्सुकता से रामलाल की और देखा तो वह बोला-

‘आपका भतीजा आपके गाँव के पास जो शहर है, वहाँ दसवीं कक्षा में पढ़ रहा है। मैंने स्कूल के ट्रस्टी से मिलकर उसकी फीस, कॉपी, किताब,लेपटॉप और उसके रहने खाने की व्यवस्था करवा दी है। और उनसे कह दिया है कि इसका सारा खर्च आपके खाते में डलवा देंगे। बस उसे मालुम न पढ़े कि यह पैसा कौन भेज रहा है।

ट्रस्टी बहुत खुश हुए उन्होंने आपके लिए एक पत्र भी भेजा है। उनका कहना है कि बालक बहुत प्रतिभाशाली है, आपने उसका खर्चा उठाकर बहुत पुण्य का काम किया है।’ चेतन बाबू ने कहा ‘अच्छा वह खत मुझे दे ,और मेरे लिए एक कप चाय बनाकर ला।’ खत हाथ में लेकर वे बुदबुदा रहै थे, मैंने पुण्य का काम किया, तेरा तुझको अर्पण में कौनसा पुण्य हुआ? खत वे पढ़ भी नहीं पाएं ऑंखें ऑंसुओं से भींग गई थी। उन्हें अपना परिवार याद आया।

दो भाइयों का परिवार। छोटा सा परिवार, छोटा सा गॉंव। पिता कैलाश नाथ कृषक थे, खेती बाड़ी करते। बड़ा भाई राजन भी पिता के साथ खेती करता था। दोनों की मेहनत रंग लाई और कमाई अच्छी होने लगी छोटे भाई चेतन को स्कूल में भर्ती कराया। सोचा चेतन अच्छा पढ़ लिख लेगा तो घर की हालत सुधर जाएगी।

आए दिन गाँव में सरकार की नई- नई योजनाए बनती, पर जानकारी के अभाव में ये उसका लाभ नहीं ले पाते थे।चेतन ने शहर में जाकर बी.ए. की परीक्षा पास की और लॉ कॉलेज में प्रवेश लिया। घर पर सभी उसकी पढ़ाई पर ध्यान देते उसकी भोली भाली, भाभी दुलारी उसे गरम-गरम खाना बनाकर खिलाती।जब वह शहर जाता तो लड्डू,मठरी, अचार, पापड सब साथ में बांध कर देती।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

एक रिश्ता – के कामेश्वरी

उसके दो बच्चे थे, गोपाल और पारो उनसे कहती तुम्हारे काका जब काला कोट पहन कर वकील बनेंगे  तो तुम्हें नये कपड़े, मिठाई सबकुछ मिलेगा। उस भोली को क्या मालुम था कि मिठाई तो अलग रही, खाने के भी लाले पड़ जाऐंगे। चेतन कुमार लालची प्रवृत्ति का था। उसे शहर में अपना ऑफिस जमाना था।

ऑफिस खरीदना फिर उसमें किताबों की व्यवस्था  करना। महत्वाकांक्षा बढ़ी, मन में लालच आया और झूठ बोलकर अपने पिता और भाई के अंगूठे लगवा कर सारी जमीन अपने नाम करवा ली। माता- पिता इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर सके और चल बसे। जमीन बेचकर ऑफिस की व्यवस्था कर ली।

लोग उसकी निंदा करते उसे सुनना अच्छा नहीं लगता इसलिए गाँव से दूर,महानगर में बस गया। ऊँचा ऊँचा और….   ऊँचा… उठने की चाहत में उसने जमीर की आवाज सुनी ही नहीं। शादी कर ली, दो बच्चे विदेश मे बस गए।पत्नी का देहांत हो गया। अकेले रह गए…..  चेतन कुमार, हाइकोर्ट जज! न्याय मूर्ति !!

आज लोग उनके आगे न्याय की फरियाद लेकर आते हैं।कई मामले ऐसे आते कि उनकी ऑंखें नम हो जाती। इसलिए नहीं कि वे बहुत भावुक व्यक्ति थे, वरन इसलिए कि उनका अतीत, उनके कर्म उन्हें धिक्कारते थे। ।एक छोटे से गॉंव से महानगर के हाइकोर्ट जज बनने के सफर में उसने ,उसके अपनो के साथ कितना अन्याय  किया यह आत्मग्लानि उसे हर पल परेशान करती है।

इस आत्मग्लानि के बोझ से बचने के लिए,उन्होंने अपने घर में काम करने वाले रामलाल जिसका गाँव उसके गाँव के पास था, से कहा कि वो  गाँव में जाकर तलाश करके आए। पिछलीबार जब वो गया था तो उसने बताया था कि हालत बहुत खराब है, आपके भाई का निधन हो गया है और आपकी भाभी बड़ी मुश्किल से मजदूरी करके  गोपाल को पढा़ रही है।

चेतन तभी से बहुत परेशान रहता था। जिन अंगूठे के निशान लगाकर उसने अपनी प्रगति का रास्ता बनाया था, वे जैसे उसे चिड़ा रहै थे। उसे लगता था कि उसकी ऊंची कुर्सी के चारों तरफ एक खाई है जिसमें वह धंसता चला जा रहा है। उसकी नींद उड़ गई थी। रात को चौंक कर उठ जाता। वह इस आत्मग्लानि के भाव से बाहर आना चाहता था।

उसका दिल करता कि दौड़कर अपने गॉंव चले जाए और गोपाल और पारो‌ को अपने सीने से लगा ले और कहै बेटा मैं हूँ ना तुम्हारा काका….. फिर मन में विचार आता किस मुंह से जाऊँ मैं उनके पास? कैसा काका हूँ मैं ? स्वार्थ में अंधा होकर मैंने उनके मुख का निवाला छीन लिया।
चेतन ने सोच लिया था कि मुझसे बहुत बड़ा गुनाह हुआ है, उसकी कोई मॉफी नहीं है, मगर मैं इन बच्चों के जीवन में  खुशियाँ लाकर रहूँगा।गोपाल ने बारहवीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। बाद मैं आइ. टी में बी.ई. की परीक्षा पास की उसकी नौकरी उसी शहर में लगी जहाँ उसका काका चेतन रहता था। उसकी पढ़ाई का सारा खर्चा चेतन ने उठाया।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

दो चेहरा -नीलम सौरभ

दुलारी हमेशा कहती कि कोई देव पुरूष है, जिसने मेरे बेटे की पढाई में मदद की। चेतन ने रामलाल की मदद से एक अच्छा रिश्ता देखकर पारो का विवाह भी करवाया। सारा खर्च अज्ञात व्यक्ति के रूप में चेतन ने किया। वह उसके परिवार में सुखी थी। चेतन कभी-कभी चुपके से जाकर गोपाल को देख आता। ऑंखें नम हो जाती। गोपाल ने एक फ्लेट ले लिया था और अपनी माँ को भी साथ ले आया। चेतन को पता चला तो तड़प उठा भाभी के चरणों में गिरने के लिए।

रात भर सो नहीं पाया, अकेले घबराहट बड़ी तो कागज पर अपने भाव लिखता चला गया और फिर ऐसा सोया कि उठा ही नहीं। सुबह रामलाल ने देखा खत पढ़ा। कुछ समझ नहीं पाया क्या करे?दोनों बेटे विदेश में । खबर लगते ही लोगों की भीड़ जमा हो जाएगी। वह जानता था कि गोपाल और उसकी माँ इसी शहर है।

एक निर्णय लिया और सबसे पहले उन्हें खबर दी । उनसे यही कहा कि साहब आपसे क्षमा मांगने की इच्छा मन में लिए चले गए। वह खत उसने गोपाल के हाथ में दे दिया। खत सुनकर दुलारी की रूलाई फूट गई। वह चेतन के घर गई उसका सिर अपनी गोदी में रखकर कहने लगी लाला मुझे इतना पराया कर दिया। एक बार बोलकर तो देखते।

उसके ऑंसू रूक नहीं रहैं थे। गोपाल ने कहा- ‘माँ काका मुझे कई बार देखने आए पर मैं उन्हें पहचान नहीं पाया।’ रामलाल ने कहा ‘बेटा बाबूजी हमेशा तुम्हारी चिन्ता करते थे। वे यहाँ रहते थे, मगर तुम सब पर उनकी नजर रहती थी। तुम्हें याद करके रोते थे। बेटा उन्होंने अपनी कसम दी थी, मगर आज उसे तोड़ रहा हूँ।

बेटा तुम्हारी पढ़ाई का खर्च ट्रस्टी से कहकर बाबूजी ने किया। पारो की शादी का खर्च बाबूजी ने किया। मैंने कई बार कहा‌ कि आप गाँव जाकर उनसे मिल लो पर वे कभी गाँव आ नहीं पाए। क्यों नहीं आ पाए? कारण मुझे नहीं मालुम। बस इतना जानता हूँ कि वे आप सबको बहुत प्यार करते थे ।

मैं प्रार्थना करता हूँ कि उनका अन्तिम कर्म आप करें। निक्की बाबा और विक्की बाबा को खबर की है, उन्हें आने में समय लगेगा।’   खबर लगते ही लोगों की भीड़ लग  गई। चेतन बाबू का अन्तिम चालचलावा, गोपाल ने किया किसी के ऑंसू थम नहीं रहै थे। जिन्दगी कभी कभी ऐसे रंग दिखाती है हम कल्पना भी नहीं कर सकते। एक आत्मग्लानि ने चेतन बाबू को अपने परिवार से मिलने ही नहीं दिया। वे उसे अपने साथ ले दुनियाँ से कूच कर गए।

प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!