पूनम सड़क पर बेतहाशा भागती हुई आ रही थी। पीछे पीछे उसकी 5 वर्षीय बेला बेटी भाग रही थी। बेला, मम्मी रुको, मम्मी रुको चिल्लाती जा रही थी। पूनम को इतना भी होश नहीं था कि वह सड़क पर भाग रही है और उसके पीछे उसकी बेटी भाग रही है ऐसा ना हो कि उसकी बेटी को कोई चोट लग जाए।
भागते भागते पूनम जोर से किसी से टकराई और गिर पड़ी। उसे किसी की दो बाजुओं ने सहारा देकर उठाया। तब तक बेला भी वहां पहुंच चुकी थी। पूनम ने देखा कि उसे उठाने वाले दो हाथ किसी किन्नर के है। उसे उसकी शक्ल जानी पहचानी लगी। दिमाग पर उसने जोर डाला तब उसे याद आया कि यह तो उसी की क्लास में पढ़ती थी और इसका नाम रेवती था। तब उसे पता नहीं था कि रेवती किन्नर है।
रेवती ने भी उसे पहचान लिया था। रेवती ने उससे पूछा-“तुम पूनम हो ना, ऐसे सड़क पर होश खोकर कहां भागी जा रही हो? और यह शायद तुम्हारी बेटी है जो तुम्हारे पीछे पीछे भाग रही थी।”
पूनम कोई जवाब ना दे सकी और फूट-फूट कर रोने लगी।
रेवती ने उसे कहा-“पूनम, अगर तुम्हें ठीक लगे तो तुम मेरी खोली में चल सकती हो, वहां बैठकर हम आराम से बात कर सकते हैं।”
पूनम चुपचाप रेवती के पीछे पीछे बेला को लेकर चल पड़ी। वहां पहुंचकर रेवती ने उसे पानी पिलाया और उससे रोने का कारण पूछा।
पूनम-“रेवती, मैं 2 दिन के लिए अपने मायके गई थी। पीछे से बेला के पापा ने आत्महत्या कर ली। मुझे कुछ नहीं पता कि उन्होंने ऐसा क्यों किया। मैं अभी अस्पताल से ही भागी भागी आ रही थी। डॉक्टर साहब ने बताया कि-“पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में मेरे पति राकेश के शरीर में जहर पाया गया है। मैं यह सुनकर बहुत परेशान हो गई और मुझे बेला का भी ध्यान नहीं रहा। मुझे यकीन ही नहीं हो रहा कि राकेश ऐसा कर सकते हैं।”
रेवती-“पूनम अब तुम खुद को और अपनी बेटी को संभालो। आगे क्या करना है सोचो। जो होना था हो चुका उसे बदला नहीं जा सकता।”
पूनम-“मैं पता लगाकर रहूंगी कि मेरे पति ने आत्महत्या क्यों की?”फिर आंसू पोंछ ते हुए बोली, रेवती अपने बारे में तो कुछ बताओ। तुम तो बहुत अच्छे घर से थी अब इस हाल में कैसे?”
रेवती-“मेरे माता पिता ने मेरे किन्नर होने की बात सबसे छुपाई थी। मेरे बड़े होने पर यह राज खुल गया और मुझे किन्नर वाला जीवन जीना पड़ा जबकि मुझे यह कुछ भी पसंद नहीं है। मैंने किसी तरह 12वीं कक्षा तक तो पढ़ाई कर ली किंतु मैं यह नाच गाकर लोगों से पैसे लेना पसंद नहीं करती हूं। पूनम, मेरा जीवन तो मानो दिशाहीन हो गया है।”
पूनम और रेवती दोनों ने एक दूसरे के दुख को जाना और समझा। दोनों ने एक दूसरे की सहायता करने का मन बना लिया था।
पूनम ने रेवती से कहा-“रेवती, क्या तुम मेरी मदद करोगी। रेवती के सहमति जताने पर पूनम ने अपनी बेटी की देखभाल उसके ऊपर छोड़ दी और स्वयं
अपने पति के ऑफिस के सामने वाली बिल्डिंग में जो ऑफिस था वहां नौकरी के लिए अपना बायोडाटा दे दिया और खुशकिस्मती से उसे वहां एक नौकरी मिल भी गई, हालांकि वह नौकरी उसकी पढ़ाई के हिसाब से बहुत कम थी पर उन्होंने सोचा कि मुझे अपने पति की आत्महत्या का कारण ढूंढ निकालना है
इसीलिए जो नौकरी है वही सही है। उसने वहां नौकरी करते करते अपने पति के ऑफिस की एक सहयोगी नीलम से दोस्ती कर ली और बातों बातों में उससे अपने पति की परेशानी का कारण जानने की कोशिश की।
उसके पति की सहयोगी नीलम ने उसे बताया कि -“हमारे बॉस ,राकेश नाम के आदमी को कंपनी में घोटाला करने के लिए मजबूर कर रहे थे। राकेश ने जब घोटाला करने से मना कर दिया तो उन्होंने उसकी काम की एनुअल रिपोर्ट खराब करने की धमकी दी।
राकेश तब भी नहीं डरा और उसने करोड़ों का घोटाला करने से साफ मना कर दिया। तब बॉस ने सचमुच उसकी रिपोर्ट खराब कर दी और राकेश की नौकरी चली गई। उसने परेशान होकर आत्महत्या कर ली।”
पूनम को जानकारी तो मिल गई लेकिन उसके पास उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं था। तब उसने सोचा कि जो हुआ सो हुआ। अब मुझे अपने जीवन के साथ साथ रेवती का जीवन भी सुधारना है और अपनी बेटी को पाल पोस कर बड़ा भी करना है इसीलिए उसमें अपने गहने और अपना घर बेच दिया और रेवती के साथ मिलकर, अपना एक रेस्टोरेंट् खोला। रेस्टोरेंट खूब चल निकला और कुछ ही वर्षों में बहुत प्रसिद्ध हो गया।
रेवती के जीवन को दिशा मिल चुकी थी लेकिन पूनम अभी भी बेचैन रहती थी। तब एक दिन उसने अखबार में उसी ऑफिस के एक और व्यक्ति की आत्महत्या की खबर पढ़ी। लेकिन इस बार उस व्यक्ति को डॉक्टर ने बचा लिया था। वह तुरंत उस व्यक्ति मोहन से मिलने गई
और उससे पूरी बात पूछी। मोहन ने पूरा हाल कह सुनाया और उसकी कहानी राकेश से मिलती जुलती थी। पूनम ने मोहन को बॉस के खिलाफ रिपोर्ट करने के लिए प्रेरित किया। मोहन भी अपने बॉस को सजा दिलवाना चाहता था। अच्छी बात यह थी
कि मोहन के पास बॉस की बातों की मोबाइल में रिकॉर्डिंग थी। पुलिस ने बॉस को गिरफ्तार कर लिया और मोहन और राकेश दोनों को आत्महत्या के लिए उकसाने के जुर्म में, और घोटाला करने के लिए उकसाने के जुर्म में लंबी सजा हुई।
इतने वर्षों बाद आज पूनम ने चैन की सांस ली थी। अब उसे लग रहा था कि मेरे पति को इंसाफ मिल चुका है। इन सब मुश्किल हालात में हर समय रेवती उसके साथ खड़ी थी और पूनम सोच रही थी कि दुख के समय में अपने भी साथ छोड़ देते हैं और रेवती के साथ मेरा कैसा “अनोखा रिश्ता” है जोकि सब रिश्तो से बढ़कर है।
मौलिक गीता वाधवानी दिल्ली
Kuch bhi
Rubbish!