यूँ तो संदीप काफी पहले से ही परेशान था,पर कुछ न कर पा सकने की मानसिकता और साहस की कमी उस में हीन भावना भरती जा रही थी।संदीप एक मेधावी छात्र था,हमेशा टॉप करता,खूब मेहनत करके वह अपनी स्थिति को कायम रखना चाहता था।पर वह देख और समझ रहा था कि देवकीनंदन सर
उनसे पढ़ने वाले छात्रों के पक्ष में उन्हें उनकी मेरिट से अधिक खुद तो मार्क्स देते ही,अन्य अध्यापकों से भी दिलवाते।इससे संदीप को कुंठा तब होती जब मौज मस्ती में रहने वाले छात्र लगभग उसके समकक्ष मार्क्स पाते।अबकि बार तो हद हो गयी एक नये नये आये छात्र के मार्क्स उससे ही अधिक कर दिये गये।
संदीप ने अपनी और संबंधित छात्र की परीक्षा सम्बंधित कापियों के पुनर्निरीक्षण कराने हेतु प्रार्थनापत्र दिया। इस पर विद्यालय की ओर से ऑब्जेक्शन आया कि आप दूसरे छात्र की कापी का पुनर्निरीक्षण नही करा सकते। संदीप ने अपनी आवाज को अंतिम सिरे तक पहुचाने के लिये कमर कस ली
और सीधे उस छात्र और अध्यापक देवकीनंदन जी की पक्षपात करने की शिकायत प्रधानाचार्य और डीआईओएस से कर दी।जांच हुई,दोनो छात्रों की परीक्षा कापियो की पुनः जांच अन्य आचार्य से करायी गयी।जिसमे चौकाने वाले तथ्य सामने आये।दूसरे छात्र को मार्क्स वास्तव में बिना सब प्रश्न हल किये हुए भी दिये गये थे।
देवकीनंदन जी को निलंबित कर दिया गया।दूसरे छात्र की उम्र और भविष्य को देखते हुए उसकी दुबारा परीक्षा आयोजित की गई।संदीप को प्रथम तो घोषित किया ही गया,साथ ही प्रार्थना स्थल पर प्रधानाचार्य महोदय द्वारा समस्त छात्रों के बीच उसकी प्रसंशा करते हुए उसे प्रसंशा पत्र भी दिया गया।
अन्याय के विरुद्ध लड़ाई लड़ने का पुरुस्कार संदीप को इस रूप में मिलेगा,इसकी कल्पना भी उसने नही की थी।
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
मौलिक एवम अप्रकाशित
*#आवाज उठाना* मुहावरे पर आधारित लघुकथा: