अनमोल धन….!-विनोद सिन्हा “सुदामा”

माँ कुछ खाने को दो बेटे वैभव की आवाज सुनते ही सुनंदा का ध्यान भंग हुआ.!बस थोड़ी देर बेटा चावल पक जाने दे तुरंत देती हूँ कहते ही सुनंदा के आँखों में आँसू आ गए….पर बच्चे से छीपा लिया क्योंकि उसे पता था कि बेटे से वह अपना दर्द नहीं बांट सकती परस्थितियाँ जो बदल गयी थी..इधर..

मुन्नी किनारे पड़ी बोतल से दूध पी रही थी…

हालांकि सुनंदा जानती थी कि इंसान परिस्थितियों का दास होता है पर कहते हैं कि दुनिया में वही इंसान सदा खुश रहता है जो स्वयं को परिस्थितियों के अनुसार ढाल लेता है या फिर परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना लेता है सीधे लफ्जों में कहा जाय तो जैसा देश वैसा भेष.।

सबकुछ छीन जाने का दुख तो था परंतु वह ख़ुश थी स्वयं को समयानुसार अपने छोटे से घर में सुव्यस्थित कर….

कल तक जहाँ उसके पास हर सुख सुविधा थी.

अपने पति और बच्चों के साथ ऐशोआराम की जिंदगी व्यतीत कर रही थी आज समय के बेहरम थपेरों ने उससे सबकुछ छीन लिया था..


कल जहाँ उसके पति ओमकार ने उसे सबकुछ मुहय्या करवाया आज बुरे समय में उसने अपने पति का साथ देकर पत्नी धर्म निभाया था…एक बार भी  सुनंदा ने अपने पति से नहीं पूछा कि क्यूँँ आप अपने भाईयों के खातिर अपना सबकुछ छोड़ कर यहाँ ले आये मुझे.। उसने एक बार भी जानने की कोशिश नहीं की… जिन्हें बच्चों की तरह पाला पोषा बड़ा किया क्यूँ छीन लिया हमसे सबकुछ.। क्या यही दस्तुर है,क्या अपनी मरती सौतेली माँ से किया वादा इतना अहम था कि इक पल को भी अपने बच्चों के बारे में नहीं सोचा और सबकुछ सौंप आएं अपने सौतेले भाईयों को…

उम्र भर उन लोगों का देखभाल करते रहें…कभी खुद के बारे में नहीं सोचा…जब वह ब्याह कर आयी थी तो तो ओमकार ने बताया था कि जब पिता जी की मृत्यु हुई थी तब दोनों भाईयों का उम्र महज सात आठ साल की थी और बहन रीमा पाँच साल की….सभी छोटे थे..फिर एक साल बाद माँ भी गुजर गयी…माँ जाते जाते उनका हाँथ मेरी हाँथों में रखकर वचन लिया था कि मैं इन सभी का देखभाल करूँगा…

ओमकार जी के पिता कहा करते थे कि  बड़ा भाई पिता से कम नहीं होता…बल्कि पिता के समान जहाँ तक पिता के जैसा ही होता है…उसे हर मोड़ पर जिंदा रहते या पिता के मरनोप्रांत पिता के ही फर्ज का निर्वहन करना होता है..

अतः ओमकार अपने पिता के कहे…पर उम्र भर अपना फर्ज निभाते रहें…सुनंदा ने भी ओमकार का खूब साथ दिया…हर काम में हर फैसले में …

कभी कुछ नहीं कहा…


वो सोचती थी इन मासूमों पर क्या बीती होगी.. कितनी दुश्वारियां, परेशानियों का सामना करना पड़ा होगा इन्हें इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है…

लेकिन सच तो सच था उनके हर अच्छे कर्मों का नतीजा उनको पुस्तैनी घर निकाला मिला था…

उनके दोनों सौतेले भाईयों ने धोखे से सारा जायदाद हड़प लिया था और ओमकार ने चुपचाप सबकुछ छोड़ दिया एक बार भी नहीं पूछा भाईयों ने ऐसा क्यों किया..क्या कमी रह गयी थी…बस उसे और बच्चों को लेकर सब  छोड़ घर से निकल गए….सुनंदा ने भी सबकुछ हंस कर स्वीकार कर लिया था क्योंकि उसे पता था कि उसके बच्चें और पति ही उसके अनमोल धन हैं.।

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