अनकही – डॉ. पारुल अग्रवाल : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : पूरे घर में साज सज्जा का काम बहुत जोर-शोर से चल रहा था। कल दिव्या और उसके पति आदित्य की शादी की पच्चीस वर्षगांठ है। पूरे घर में उत्सव का माहौल था।घर के सभी कोने और चप्पे-चप्पे को सुंदर और खुशबूदार फूलों से सजाया जा रहा था पर दिव्या के मन का एक कोना आज भी वीरान पड़ा था।

उसकी ही शादी की वर्षगांठ है पर ससुराल में सबका रवैया बहुत ही उपेक्षापूर्ण था।चारों ननदें अपने परिवारों के साथ तीन-चार दिन पहले ही आ गई थी। बाकी रिश्तेदार भी धीरे-धीरे आ रहे थे।हालांकि वो उस घर की अकेली बहू थी पर उसको आयोजन की सारी तैयारियां,यहां तक की आने वाले मेहमानों को क्या उपहार देना है,

क्या खाने की व्यवस्था होनी है जैसी बातों से दूर ही रखा गया था। उसकी चारों ननदें भी अपनी मां के कमरे में घुसकर खूब बातों का तड़का लगाने में लगी होती अगर वो कभी उनके बीच पहुंच भी जाती तो उनके व्यवहार से ऐसा लगता मानो किसी ने उनके रंग में भंग डाल दिया हो।

वैसे उसके लिए ये कोई नई बात नहीं थी ये सब देखते और सहन करते करते तो उसकी जिंदगी ही बीत गई थी। 

घर में सभी कामों के लिए नौकर-चाकर हैं।कई बार तो दिव्या को अपना महत्व उनसे भी कम लगता।इस तरह की उपेक्षा दिव्या को अंदर तक तोड़ जाती। पूरी दुनिया में कोई भी नहीं था जिससे वो अपने मन के जज़्बात साझा कर पाती पर शादी से पहले से ही दिव्या को डायरी लिखने की आदत थी वो ही उसकी हमराज और सखी थी।

शादी के बाद भी दिव्या का उससे नाता नहीं छूटा था। वो जब भी समय मिलता अपने दिल पर लगे उपेक्षा के घावों को उसमें लिखकर मन हल्का कर लेती।

आज भी घर में होने वाले बड़े आयोजन जिसका वो महत्वपूर्ण हिस्सा थी पर सबके लिए फिर भी अनचाही थी उससे बचने के लिए वो अपने कमरे में आ गई। वो ये सब बातें अपनी डायरी रूपी सखी के साथ बांटने को आतुर थी पर आज पता नहीं वो भी कहां छिपी हुई थी।

वो तो उसको बहुत संभालकर रखती थी इसलिए गायब होने का तो सवाल ही नहीं था। वो अभी अपनी डायरी रूपी सखी को ढूंढ ही रही थी कि उसकी निगाह अपनी शादी की एल्बम पर पड़ गई। एल्बम को देखते ही उसको अपनी बीती ज़िंदगी का बहुत कुछ याद आ गया।

आठ साल की थी जब उसके माता पिता और छोटा भाई एक दुर्घटना में चल बसे थे। वो तो संयुक्त परिवार था इसलिए उसके सर की छत नहीं छीनी पर माता-पिता जैसा प्यार कोई कहां कर पाता है। उसके पालन पोषण की जिम्मेदारी ताऊजी और ताई जी पर आ गई।

ताऊ जी तो फिर भी उससे सहानभूति रखते थे पर ताईजी की जबान अंगारे उगलती थी। वो तो घर में बूढ़ी दादी भी थी जो अकेले में स्नेह बरसाने में कमी ना रखती थी पर ताई जी की कड़वी जबान के आगे वो भी बेबस हो जाती थी। माता-पिता के जाने के बाद उसका एडमिशन भी सरकारी स्कूल में करवा दिया गया।

स्कूल से आने के बाद वो सारा दिन घर के कामों में लगी रहती बचपन तो जैसे खत्म ही हो गया था। वो नन्ही सी जान फिर भी अधरों पर मुस्कान रखकर अपनी दुनिया में खुश रहती। कभी बहुत उपेक्षित भी होती तो डॉयरी में लिखकर अपने मन को हल्का कर लेती। शाम को दादी के साथ मंदिर में जाकर अपनी मधुर आवाज़ में भजन गाने का भी उसका प्रतिदिन का नियम था। 

ऐसे ही समय बीत रहा था एक दिन मंदिर में आदित्य की दादी भी कुछ पूजा पाठ के बहाने पंडित जी से मिलने आई थी। जैसे ही उन्होंने दिव्या की मधुर आवाज़ में भजन सुने वो मंत्रमुग्ध हो गई। उन्होंने पंडित जी से दिव्या के बारे में सब कुछ पता किया और उसके घर का पता लिया।

वो अगले ही दिन आदित्य का रिश्ता लेकर दिव्या के घर पहुंच गई। असल में आदित्य की पहली पत्नी शादी के दो साल बाद ही डेंगू हो जाने से काफ़ी इलाज़ करवाने के बाद भी चल बसी थी। उसके जाने के बाद आदित्य का एक साल का बेटा अंश अकेला हो गया था।

उन्हें अपने पोते के लिए ऐसी लड़की की तलाश थी जो संस्कारी हो और उनके परपोते को सगी मां का प्यार दे सके। उनको दिव्या को देखकर अपनी तलाश पूरी होते हुए दिख रही थी पर वो अभी मात्र अठारह वर्ष की थी।

आदित्य उससे दस वर्ष बड़ा था और एक बच्चे का पिता था। दिव्या शादी के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी अभी वो कॉलेज में ही पहुंची थी पर इतने बड़े घर से रिश्ता आने से घर पर सब इस शादी के पक्ष में ही थे।

दिव्या की दादी उसके मन की बात समझ रही थी उन्होंने उसको प्यार से समझाया कि बेटा मेरा भी अब कुछ भरोसा नहीं है। मेरे सामने ही तेरे साथ ऐसा व्यवहार होता है तो पीछे कैसा होगा? अभी तो कम से कम मेरे को इतना सुकून तो रहेगा कि मेरी लाडो शहर के इतने बड़े नामी परिवार की बहू बन रही है।

इस तरह से समझाकर उन्होंने दिव्या की शादी के लिए हां करवा दी। इस तरह दिव्या आदित्य की दुल्हन से ज्यादा अंश की मां के रूप में इस घर में आ गई। 

घर में आते ही उसकी चारों ननद और सास ने बड़ी कुटिल मुस्कान और तानों की बौछार से उसका स्वागत किया। कई रस्में जिसमें एक बक्सा खुलवाई की रस्म भी होती है जिसमें मायके से लाए उपहार भाभी ननद को देती है, उसमें उसकी चारों ननद ने उसके लाए हुए समान को बड़ी व्यंग्यात्मक हंसी के साथ सभी रिश्तेदारों के सामने ये कहते हुए कि ऐसे कपड़े तो हमारे नौकर-चाकर भी ना पहनें हाथ भी नहीं लगाया था।

सासू मां ने भी अपनी बेटियों का पूरा साथ दिया था। सभी रिश्तेदारों के बीच दिव्या अपने नए घर में भी उपेक्षा का शिकार हो गई थी। वो तो वहां पर दादी ने किसी तरह सबको डांट लगाकर बाकी रस्में पूरी कराई थी। सबकी उपेक्षापूर्णं नजरें तो वो झेल भी गई थी पर पति आदित्य का व्यवहार भी उसके प्रति ज्यादा अच्छा नहीं था।

शादी की पहली ही रात को आदित्य ने दिव्या को स्पष्ट कर दिया था कि वो इस घर में दादी की वजह से और अंश की मां के रूप में आई है। दुनिया की नज़रों में वो उसकी पत्नी ज़रूर रहेगी पर असल जीवन में वो आदित्य से कोई अपेक्षा ना ही रखे तो अच्छा रहेगा। ये बात अलग थी कि वो उसके शरीर पर अपना पति धर्म निभाना नहीं भूला था।

आगे भी कभी घर में कोई त्यौहार या उत्सव आता तब दिव्या अगर कुछ करना भी चाहती तो उसको कहकर रोक दिया जाता कि उसको अमीर और समृद्ध खानदान के तौर-तरीके नहीं पता इसलिए वो इन सबसे दूर ही रहे। दिव्या अपने ही खोल में सिमटती जा रही थी वो तो ये अच्छा था कि अंश की सारी ज़िम्मेदारी उसको दे दी गई थी।

अंश के साथ वो अपना बचपन जीने की पूरी कोशिश करती। वैसे भी वो माता-पिता को खोने का गम समझती थी इसलिए उस बिन मां के बच्चे पर अपना पूरा प्यार उड़ेल देना चाहती थी। 

अगले साल जब अंश का स्कूल में एडमिशन हुआ तब बच्चे के माता-पिता को एक मीटिंग के लिए बुलाया गया पर उसमें दिव्या को जाने नहीं दिया गया। यहां पर भी उसको कम पढ़े-लिखे और बड़े घर के तौर-तरीके से अपरिचित होने का ताना देकर रोक लिया गया।

दिव्या ने अपने आपको किसी तरह समझाया पर आगे भी जब तक अंश स्कूल में गया तब तक दिव्या को उसकी मीटिंग में जाने की अनुमति नहीं थी। कई बार दिव्या इस तरह के व्यवहार से आहत होकर कई भागने की भी सोचती तो अंश का मासूम चेहरा उसकी आंखों के सामने घूम जाता।

अब तो अंश भी इन सब बातों को समझता था वो दिव्या की तरफ से बोलने की कोशिश भी करता तो उसकी बुआ,दादी और यहां तक कि आदित्य भी उसकी बातों को अनसुना कर देता। वो दिव्या को भी अपने लिए आवाज़ उठाने के लिए कहता तब वो उसको किसी तरह बहला-फुसला देती।

स्कूल के बाद जब अंश का इंजीनियरिंग में चयन हुआ तो उसको हॉस्टल में रहने जाना था। दिव्या का तो रो रोकर बुरा हाल था तब अंश ने उसके आंसू पूछते हुए बड़े प्यार से कहा था मां चिंता मत करना मैं आपको आपका हक दिलवाकर ही रहूंगा।

उसकी बात सुनकर दिव्या के रोते हुए चहेरे पर ना चाहते हुए भी मुस्कान आ गई। बाहर जाने के बाद भी अंश रोज़ाना दिव्या को वीडियो कॉल करना ना भूलता। दिन बीत रहे थे। अंश इंजीनियरिंग के बाद विदेश से एमबीए की डिग्री और दो साल आदित्य के बिज़नेस का एक बड़ा प्रोजेक्ट पूरा करके अभी पंद्रह दिन पहले ही वापस अपने देश लौटा है।

दिव्या और आदित्य की शादी की पच्चीसवीं वर्षगांठ मानने की भी सारी योजना अंश की ही थी। अंश की ज़िद के आगे किसी का नहीं चली थी।अब चूंकि घर कई दिन पहले ही रिश्तेदारों से भरना शुरू हो गया था।

रात को गप्पेबाजी की महफिल भी जमती। सब लोग अब अंश की शादी और उसके होने वाली पत्नि के लिए उसकी पसंद जानने को लेकर बड़े उत्सुक रहते। अंश बड़ी ही हाज़िरजवाबी से उनके सभी प्रश्नों के जवाब समय आने पर देने का कहकर टाल देता।

अंश की याद आते ही दिव्या के मन में उसके लिए ममता का सागर उमड़ आया वो अभी ये सब सोच ही रही थी कि अंश ने आकर दरवाज़ा खटखटाया। उसके पुकारने की आवाज़ सुनकर वो यादों से बाहर आई। अंश ने अंदर आते हुए दिव्या के हाथ में बहुत सुंदर सी साड़ी देते हुए बोला,मां जल्दी से मेरे साथ चलो।

मैंने आपको दुल्हन की तरह तैयार करवाने के लिए पार्लर में बुकिंग ली है। उसने दिव्या को कुछ बोलने का मौका नहीं दिया। जबरदस्ती पार्लर ले गया। खुद पार्लर के बाहर उसका इंतजार करने लगा। 

पार्लर से निकलने के बाद दिव्या बहुत सुंदर लग रही थी। अब अंश दिव्या को लेकर सीधे उस क्लब में पहुंचा जहां आदित्य और उसकी वर्षगांठ का आयोजन था। दिव्या के पहुंचने पर सबकी नजरें उसके चेहरे से हट ही नहीं रही थी खुद आदित्य भी उसकी तारीफ़ किए बिना नहीं रह पाया। ये शायद आदित्य की दिव्या के लिए पहली प्रशंसा थी। 

अब अंश ने पूरे कार्यक्रम की बागडोर अपने हाथ में ले ली। केक कटने के बाद उसने सभी रिश्तेदारों को दिव्या के लिए संबोधित करते हुए कहा कि सब कहते हैं कि ये मेरी दूसरी मां हैं पर मैंने तो होश संभालते इनको ही देखा।

पहली मां का तो पता नहीं पर जितना प्यार इन्होंने मेरे को दिया शायद ही कोई और मेरे को दे पाता। जितनी उपेक्षा और तानेपूर्ण व्यवहार का मेरी मां ने डटकर अपने बलबूते पर सामना किया उतना किसी के भी वश की बात नहीं।

आज में इन्हें अपनी तरफ से उपहार में कुछ देना चाहता हूं।फिर उसने दिव्या को अपने पास बुलाया और अपने हाथ में पकड़े उपहार को खोलने के लिए कहा। दिव्या ने जैसे ही उस उपहार को खोला तो उसमें एक किताब थी जिसके कवर पेज पर अनकही शीर्षक लिखा था और साथ में दिव्या का प्यारा सा छायाचित्र था।

लेखक के रूप में उस पर दिव्या का नाम था। दिव्या ने आश्चर्यचकित होकर अंश की तरफ देखा तब उसने राज़ पर से पर्दा उठाते हुए कहा कि मां माफ करना आपको डायरी लिखते हुए बचपन से देखा।lकाफ़ी समय से सोचा था जो आपके अनकहे जज़्बात हैं वो दुनिया के सामने लाऊंगा जिससे एक मां के साथ हुई उपेक्षा और उसके संघर्ष की गाथा सबके सामने आ सके। 

दिव्या के अधर पर मुस्कान आ गई उसने अंश के कान उमड़ते हुए कहा शैतान कही का, तभी मैं कहूं कि मेरी डायरी कहां चली गई। तब अंश ने बड़ी नज़ाकत से दिव्या से अपने कान छुड़ाते हुए कहा कि अभी तो आपको एक सप्राइज और भी देना है।

अभी तो आपको अपनी होने वाली बहू का भी पता बताना है। अब उसने सबके सामने बोला कि आप सब जानना चाहते थे कि मैं किस तरह की लड़की से शादी करूंगा? तो आप सबको बता दूं कि मैंने अपने लिए कोई लड़की पसंद नहीं की है।

मेरे लिए लड़की मेरी मां ही पसंद करेगी क्योंकि मेरे को मां जैसी ही मासूम और निश्चल सी लड़की चाहिए। उसकी ये बात सुनकर दिव्या की चारों ननद और सास के तन-बदन में आग लग गई। आज बेटे और दिव्या का ये प्यार देखकर आदित्य को भी अपने व्यवहार पर पछतावा हो रहा था।

ये सब बाते-बातें कहते हुए अंश ने बोला कि मेरी मां की एक खूबी ये भी है कि वो गाना बहुत अच्छा गाती हैं। ये कहकर माइक भी दिव्या को थमा दिया।

दिव्या मना करती रह गई पर अंश ने एक ना सुनी। दिव्या ने अपना पसंदीदा गीत तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई गाना शुरू किया पर अपने बेटे के दिए सम्मान से उसकी आंखें भर आई, उसकी आवाज़ थोड़ा कमज़ोर पड़ती उससे पहले आदित्य ने आकर उसको संभाल लिया।

अब आदित्य ने सबके सामने दिव्या को गले लगाते हुए कहा कि कुछ प्रेम कहानियां शादी के पच्चीस वर्ष बाद भी शुरू होती हैं। आज दिव्या अपने आपको दुनिया की सबसे भाग्यशाली मां समझ रही थी,जिसके बेटे ने आज उसके पूरे जीवन में मिली उपेक्षा की भरपाई कर दी थी।

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी? कई बार किसी किसी को जीवन में बहुत ज्यादा अधिक उपेक्षा झेलनी पड़ती है और उसके पास उस उपेक्षा का कोई हल भी नहीं होता तो ऐसे में अपनी बात को लिखकर सहेजना भी एक बहुत बड़े सहारे का काम करता है यहां तो फिर भी दिव्या के पास अंश जैसा बेटा था।

नोट: ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है। कृपा पढ़ने के बाद नायिका के अपने साथ हुई उपेक्षा पर कोई कदम ना उठाने पर कोई सवाल ना उठाएं क्योंकि कई बार परिस्थितियां हमारी सोच से उलट होती हैं।

#उपेक्षा

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

2 thoughts on “अनकही – डॉ. पारुल अग्रवाल : Moral stories in hindi”

  1. बहुत ही सुन्दर एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति। आम तौर पर बहुओं को ये सब झेलना पड़ता है पर दिव्य खुशनसीब है और यह कहानी है। कहानी हम सुखांत ही चाहते हैं पर वास्तविक जीवन इससे भिन्न भी हो सकता है। पर कहानी सरल होते हुए भी सुकून देती है।

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