अनकहा दर्द – वीणा सिंह : Moral Stories in Hindi

कितनी कोशिश करती हूं पर ये आंसू निकल हीं आते हैं…. पति की बेरूखी और सपाट व्यवहार को बर्दाश्त करती रही बच्चे मुझे समझेंगे पर बच्चे भी….

                      बचपन में मां मुझमें और छोटे भाई में फर्क करती थी तो मासूम मन रो उठता…. छोटे भाई राजन को बहला फुसला कर मलाई वाली दूध पिलाती, मेरे मांगने पर कहती थोड़ा सा दूध है बचा हुआ पापा के लिए रखा है… इतनी मेहनत करते हैं… हर त्योहार में राजन के लिए नए कपड़े आते पर मेरे लिए अगले महीने का आश्वाशन मिलते..पर वो अगला महीना कभी नहीं आता..बड़ी बुआ आती तो अपनी बेटी का कपड़ा  ला

कर मम्मी को पकड़ा देती और मम्मी उन्हीं कपड़ों में से निकाल कर समय समय पर मुझे देती…राजन का एडमिशन लोयला स्कूल में हुआ और मेरा सरकारी स्कूल में.. फिर भी मेरे नंबर अच्छे आते… न ट्यूशन ना हीं कोचिंग.. मां अक्सर कहती कौन सा तुझे नौकरी करनी है.. शादी के बाद चूल्हा चौका हीं संभालना है.. मन में अनगिनत झंझावात समेटे आसूं बहा कर रह जाती… मम्मी कहती बेटी पराया धन है.. बेटा बुढ़ापा की लाठी है..

      अठारह साल की उम्र में शादी कर मां पापा ने कन्यादान कर गंगा नहा लिया.. ना मेरी इच्छा पूछी ना आगे पढ़ोगी रीना ये पूछना भी आवश्यक नहीं समझा…

       जैसे मैं एक बोझ थी जिसे उतार कर दूसरे के हवाले कर दिया….

        ससुराल में भी उस लड़की को मान सम्मान नहीं मिलता जिस लड़की का मायका उसे मान नहीं देता.. सास जेठानी हमेशा ताने से बात करती.…पति का व्यवहार भी बेहद नीरस सपाट और बेरुखा था.. मतलब का रिश्ता रखा था मुझसे… 

         वक्त गुजरता रहा और मैं कुहू और आयुष की मां बन गई… मैं अपना सारा ध्यान बच्चों की परवरिश में लगा दिया.. उम्मीद की किरण यही थे.. मेरा #अनकहा दर्द #शायद ये समझे.. कुहू जब अपने नन्हे नन्हे हाथों से मेरे आंसू पोंछती तो दिल को तसल्ली मिलती… और देखते देखते दोनो बच्चे बड़े हो गए..

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धीरे धीरे अपने पिता की तरह वो भी मेरे प्रति लापरवाह हो रहे थे… घुटने के दर्द से कराहती रहती पर दोनो वही सोफे पर बैठे मोबाईल में लगे रहते बीच बीच में आवाज लगाते मां मुझे कॉफी चाहिए बढ़िया से फेंटना झाग वाली बनाओ.. बेटी कहती मुझे अदरक इलाइची वाली चाय और पकौड़े… सो कर उठते तो बिस्तर भी ठीक नहीं करते…

टोकने पर कहते पढ़ाई करती तब समझती.. इन फालतू कामों के लिए हमारे पास वक्त कहां है.. मैं खाना बहुत अच्छा बनाती थी पर मेरे खाने में बिना नुस्ख निकाले दोनो नहीं खाते थे… छी कितना गंदा खाना बनाई हो… तुरंत ऑर्डर कर खाना मंगा लेते… बाप बेटा बेटी की टीम बन गई थी.. मैं अपने दिल में #अनकहा दर्द #छुपाए जी रही थी.. कुहू और आयुष के दोस्त मेरे खाने की इतनी तारीफ करते थे… पर मेरे बच्चे…

         मैं अंदर से टूटती जा रही थी… कुहू का पुराना मोबाईल मै युज करने लगी जब उसका आई फोन आ गया तो… मैं दोनो से पूछती क्योंकि मुझे फोन चलाना नहीं आता था.. अब तक बटन वाला फोन हीं मेरे पास था… दोनों मेरा मजाक उड़ाने लगते बताना तो दूर की बात रही… कामवाली कमला की बेटी मुझे मोबाईल चलाना सिखाया…

           शहर की एक प्रतिष्ठित संस्था ने एक प्रतियोगिता आयोजित की थी जिसमें घरेलू महिलाओ को एक एक डिश बनाना था.. तीन राउंड की प्रतियोगिता थी… सुबह के अखबार के साथ एक पंपलेट था.. उसे मैने संभालकर रख लिया… बहुत सोच विचार कर अपना नाम भी दे दिया उस प्रतियोगिता में..

नियत समय पर पहुंच गई…

   पहले राउंड में अपने पसंद का कुछ बनाना था..

पहले राउंड में मै चुन ली गई.. घर में उल्लास से सबको बताने लगी पर बच्चों की ठंडी प्रतिक्रिया पा कर तड़प उठी.. ये मेरे कोखजाए हैं…

                दूसरा राउंड भी निकल गया… इस बार घर में कोई जिक्र नहीं किया.. अब तीसरे राउंड में कड़ी टक्कर थी… मन घबरा रहा था… सब के परिवार वाले हौसला बढ़ाने आए थे पर मैं अकेली… भगवान को याद किया और लग गई..

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           और इस बार मैं प्रथम स्थान पर आ गई…. चेयरमैन और संसद के अलावा शहर के गणमान्य नागरिक मौजूद थे क्योंकि संस्था अपनी स्थापना के 25 वर्ष मना रहा था… लोगों की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच जब स्टेज पर गई… पुरस्कार ग्रहण करने के बाद फोटोग्राफर और प्रेस वाले आ गए….

मुझे विश्वास नहीं हो रहा था…. नॉन स्टिक बर्तनों का सेट एक मैडल सर्टिफिकेट और बुके लिए घर पहुंची अति उत्साह से भरी…. ये भी नहीं सोचा सुबह में दोनों बच्चों से कितना आरजू मिन्नत किया था आज रविवार है चलो मेरे साथ.. सबके पति बच्चे और परिवार के लोग सम्मिलित होते हैं… प्रतियोगी का मनोबल बढ़ाते हैं पर.. कुहू की सहेलियां मूवी देखने जा रही थी और आयुष दोस्तों के साथ बार्बी क्यू जा रहा था.. पहले से प्रोग्राम तय था… पति से तो कोई उम्मीद हीं नहीं थी..

       घर में घुसते हीं पति बोले आ गई महारानी बड़ा तीर मार के.. जब मैने अपना पुरस्कार दिखाया तो तीनों हंसने लगे… छोलनी कड़ाही लेकर आई है… घर में कम था क्या… अरे इससे ज्यादा ये क्या कर सकती है… सम्मिलित ठहाका गूंज उठा.. पिता से मिले मुंहमांगे पॉकेट मनी ने इन्हें पिता की गलत सही हर बात में सहमति दिखाने की आदत हो गई है… आंखों में आंसू लिए अपने कमरे में आ गई.#अनकहे दर्द #से तड़प उठी…

सुबह उठकर अखबार लाने गई तो दूसरे पेज में अपनी तस्वीर और तारीफ देखकर फिर पैर तेजी से बढ़ने लगे सबको दिखाऊं पर.. मैने अपने जज्बात को काबू किया और रोज के कामकाज में लग गई… दोपहर तक कई लोग मुझे बधाई देने आ गए पर मेरे अपने बच्चे इतनी ठंडी प्रतिक्रिया देंगे उफ्फ… कुछ दर्द ऐसे होते हैं जिन्हें न छुपाना आसान है न हीं जताना.. अपनों के दिए दर्द को दिल छुपाए हम दुनिया से चले जाते हैं.. शायद यही #अनकहा दर्द #है…

लेखिका : वीणा सिंह

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