अनकहा एहसास – स्नेह ज्योति

चौधरी फतेह सिंह के आँगन में दस वर्ष बाद बच्चे की किलकारी गूंजी बच्चे की चाह में मत पूछो क्या-क्या किया?किस-किस कि चौखट पे गए ??और आज उन्हें उनके सब्र का फल एक बेटे के रूप में मिल ही गया। चौधरी साहब और उनकी पत्नी ने गाँव में एक बड़ा आयोजन किया ।जिसमे सबको बुलाया गया खूब दान किया गया । भोला के साथ वक्त कैसे बीत जाता दोनो को पता ही नही चलता । मानो उसकी शरारतों और अठखेलियों से परिवार में ख़ुशियों की लहर दौड़ गयी।लाड़ला होने के कारण उसका पढ़ाई से ज्यादा शरारतों में मन लगा रहता था ।इसी बात पे वो हमेशा डाँट भी खाता पर उस पर किसी बात का कोई असर नही हुआ।

जब वो दस वर्ष का हुआ तो उसे तेज बुख़ार हुआ और उसके दिमाग में चढ़ गया । कुछ समय में बुख़ार तो उतर गया ,पर अपनी छाप छोड़ गया । यानी कम अक़्ल और अल्हड़ बना गया ।उसका खूब इलाज करवाया लेकिन कोई आराम ना हुआ । इसी गम में चौधरी साहब भी चल बसे।

बिन बाप का बच्चा है ,इसलिए रमा जी उसके खूब लाड़ उठाने लगी । उसकी हर फ़रमाइश पूरी होती फिर चाहें वो वाजिब हो या ना । रमा जी को लगता शायद कोई चमत्कार ही हो जाए और भोला ठीक हो जाए। भोला इक्कीस वर्ष का हो गया पर कोई चमत्कार नहीं हुआ। एक तो बेटे का दुःख ! ऊपर से सारा काम काज देखना ! इसी परेशानी के चलते रमा बीमार रहने लगी । भोला भी जब उसका मन करता ,बिना बताए घर से भाग जाता और दो-तीन दिन में वापस आ जाता ।




लेकिन इस बार उसे गए एक सप्ताह बीत गया और वो वापस नही आया । यही सोच -सोच उसकी माँ का बुरा हाल हो गया ,तभी पुलिस को उसे ढूँढने भेजा गया ।हर तरफ़ उसकी खोज हो रही थी ,लेकिन कुछ पता नही चल पा रहा था ।

दूसरी तरफ़ भोला एक ट्रेन में सफर कर रहा था ,तभी एक लड़की भागती हुई आयी और भोला के बग़ल में बैठ गई

भोला उसे देख घूरने लगा अरे तूने !! ये मुँह क्यों ढाँक रखा है ! क्या तुम्हारे चेहरे पे मोटी-मोटी फुंसी हो रही है ??

तभी लड़की उसे पलट के बोली-परे हट कहाँ चले आ रहे हो भई,अग़ल-बगल कोई नही है तो कमजोर मत समझना….अपनी जगह पे जाकर के बैठो ।

भोला – मैं तो बैठ ही जाऊँगा । पहले तुम बताओ कौन हो?

लड़की आँखो तो टेरती हुई ग़ुस्से से देखती हुई..

भोला – भई कुछ तो है, अगर कोई ऐसे मुँह छुपा रहा है तो गड़बड़ होती है ।

पागल हो क्या समझ नहीं आता चुप रहो !

भोला – अच्छा तो तुम चोर हो …..लड़की को घूरते हुए ।

लड़की चेहरे से शाल हटाते हुए देखो चोर दिखती हूँ क्या????

हूं हूं ….शक्ल से चोर तो नहीं लगती। तो क्या तुम किसी लड़के के साथ भाग रही हो !




लड़की डरते हुए क्या कह रहे हो चुप करो ! और मुझे माफ़ करो !! थोड़ी देर में लड़की दूसरी सीट पे जा बैठी।

जैसे ही ट्रेन भोला के गाँव पहुँची उसे हवलदार ने देख लिया और अपने साथियों के साथ उसे ट्रेन से उतारने लगे । तभी भोला चिल्लाते हुए बोला अरे भाई ! मुझे ही क्यों ? इस लड़की को भी पकड़ो ।ये मुझे भगा के ले जा रही थी।

हवलदार लड़की को घूरते हुए चलो हमारे साथ चलों।

लड़की हड़बड़ाती हुई ! ये क्या कर रहे हो ?कह साथ में चल पड़ी ,शायद वो जिनसे छुप के भाग रही थी वो आस- पास ही थे।हवलदार दोनो को ले भोला के घर पहुँचे ।

घर पहुँच उसकी माँ लड़की को साथ देख हैरान हो गई ! आज तक तो जब भी वापस आया है अकेले ही आया है ,तो आज फिर ऐसा क्या हुआ….. जो ये लड़की के साथ आया है ?? वो लोग भोला को घर छोड़ चले गए। माँ ये मेरी दोस्त है तुम्हारा नाम क्या है दोस्त????

लड़की डरती हिचकिचाती हुई….मेरा नाम शामली है !

ठीक है बेटी ! अभी तुम जा के आराम करो ।सुबह बातें करेंगे।सुबह क्यों माँ मेरी दोस्त है क्या नाम शामी….अभी बात करते हैं।

नही भोला, अभी तुम चलो ! तुम जाओ बेटी बोल वो सोने चले गए।

अगले दिन शामली ने माँ से बात की और घर जाने का आग्रह किया । “माफ़ करना बेटी इसकी वजह से तुम्हें अपनी ट्रेन छोड़नी पड़ी “। लेकिन तेज बारिश के चलते उसका जाना कुछ दिनो के लिए मुल्तवी हो गया ,और इन कुछ दिनो में भोला और उसमें अच्छी समझ बुझ हो गयी ।वो शामली की सारी बातें मानने लगा । ये देख

माँ ने उसे अपने पास बुला पूछा तुम्हारे परिवार वाले कहाँ रहते है ??




माँ जी वो तो है नहीं,मैं एक अनाथ हूँ ! मेरा सारा जीवन अनाथ आश्रम में ही बीता है ।

ओह ! तो चलो तुम से ही पूछ लेती हूँ क्या तुम मेरे भोला से शादी करोगी ???

शादी ! आप क्या कह रही है ?

देखो ग़लत मत समझना मैं एक माँ हूँ और माँ अपने बेटे को खुश देखना चाहती है ।

नहीं माँ जी, ऐसा नहीं हो सकता…कह शामली चली गई …..और बाहर खड़े भोला ने ये सब बाते सुन ली और मुस्कुराने लगा ।अगले दिन शामली ने वहाँ से जाने की कोशिश की तो भोला अपना आपा खो बैठा “तुम नहीं जाओगी तुम यही रहोगी “बोलते हुए हिंसक हो गया।ये देख शामली घबरा गई और थोड़े दिन और रुकने का फ़ैसला किया। अगर भोला ऐसे ही करता रहा तो मैं यहाँ से कभी नहीं … तभी बिजली चली गई, जो अंधेरे से डरती थी ,आज उसे पहली बार अंधेरा अच्छा लग रहा था ।क्योंकि वो किसी से नज़र नहीं मिलना चाहती थी । तभी अंधेरे को चीरती हुई टोर्च की रोशनी में भोला मेरे पास आया और लाल रंग से मेरी माँग भरने लगा । मैंने तभी उसके हाथ को झटक, एक ज़ोर दार थप्पड़ रख दिया ।

ख़बरदार ! जो ये हरकत की …..

थप्पड़ की आवाज़ सुन माँ जी बाहर आयी और शामली को सुनाने लगी, तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे बेटे को हाथ लगाने की ।

आप जानती है ये क्या करने जा रहा था ?

क्या ?

मेरी माँग भरने जा रहा था….

भोला – “हाँ जा रहा था तो क्या करोगी”।माँ भी तो यही चाहती है और फिर तू मेरी सबसे अच्छी दोस्त भी है ,तो भई कोई बताए भोला ग़लत कैसे हुआ ???




शामली – मैं तुम से शादी नहीं कर सकती ,मैं एक शादी शुदा हूँ ……

माँ – क्या ?? तो तुमने बताया क्यों नहीं कौन है वो कहाँ है बोलो !!

भोला – क्या तुम्हारी शादी हो गई ! वो भी मेरे बग़ैर,ये कैसे हुआ !! माँ ये क्या कह रही हैं ??समझ नहीं आ रहा ….

माँ जी मैंने श्याम से भाग के शादी की है,क्योंकि उसके परिवार को ये रिश्ता क़बूल नहीं था ।

माँ जी – अब श्याम कहाँ है??

शामली -पता नहीं उसके पिता जी के आदमी हमारे पीछे पड़े हुए थे । उन्हें चकमा देने के लिए हम स्टेशन पर अलग हुए और मैं अलग गाड़ी में चढ़ गयी तभी मेरी मुलाक़ात भोला से हुई।मैंने कई बार उसे फ़ोन किया पर किसी ने कोई जवाब नहीं दिया ।

लेकिन मैं आज भी उसकी पत्नी हूँ ।उसने कहा था वो आएगा तो मैं इंतज़ार करूँगी…..

माफ़ करना बेटी मुझे ये सब पता नहीं था, वरना मैं ऐसा ना पूछती ।कोई नहीं माँ जी आप की गलती नहीं है।आप ने तो मुझ यतीम को जो प्यार और अपना पन दिया है , मैं तो उसका कर्ज भी नहीं उतार सकती ।

माँ जी – उनका पता मुझे दे दो, मैं पता करवाती हूँ ।

नहीं माँ जी ,आप यही भोला के पास रुको । मैं खुद जाकर देखती हूँ …”शायद मुझे आभास हो गया था कि श्याम ये रिश्ता नहीं निभा सकता ।”इसलिए मैं उन्हें कोई तकलीफ नहीं देना चाहती थी ।

माँ – जैसी तुम्हारी मर्ज़ी, लेकिन कोई भी बात हो तो बता देना।

ठीक है माँ जी !

भोला – मैं पागल हूँ ना इसलिए तुमने किसी और से शादी कर ली ।

शामली – नहीं भोला ऐसा कुछ नही है, उसे टालते हुए बस तुम बाद में आए हो ना तो …..

भोला- ओह ! अच्छा जैसे पुरस्कार भी पहले आने वाले को मिलता है वैसे ही ,कोई बात नहीं अगली बार मैं ही फर्स्ट आऊगा …..




शामली भोला की मासूमियत पे हंस सोने चली गयी ।

अगले दिन भोला माँ के साथ शामली को स्टेशन छोड़ने गया । ट्रेन चल पड़ी , तभी भोला भागते हुए ट्रेन में चढ़ा और शामली को फूल देते हुए बोला – “ये तुम्हारे लिए है ,इनकी ख़ुशबू बिलकुल तुम्हारी तरह हैं “तुम तो चली जाओगी पर तुम्हारी ख़ुशबू रह जाएगी …….मैं तंग नहीं करूँगा … यही रह जाओ शामी !

उसकी ये बातें और उसकी नज़र में घूमता वही सवाल जब भी देखती हूँ तो अपने आप को गुनहगार सा महसूस करती हूँ । भोला और माँ जी के साथ रहते हुए मैं ये जान गई थी कि रिश्तों के लिए कोई बंधन होना ज़रूरी नहीं , बस भावनाए मायने रखती है ।

जिससे रिश्ता जुड़ा था वो तो बस नाम मात्र का ही रह गया था । लेकिन मैं ये सब उन लोगों को बता कोई झूठी उम्मीद नहीं देना चाहती थी । भोला से ना तो प्यार है ,ना ही कोई रिश्ता पर फिर भी एक अनकहा सा एहसास है जिसने हमें एक डोर से जोड़ दिया है । यें एहसास सब रिश्तों से परे है ….शायद ये हमारी आखिरी मुलाक़ात थी , क्योंकि मैं तय कर चुकी थी कि अब मैं वापस नहीं आऊँगी ।सबको अलविदा कह ! आँखो में नमी लिए …हो सके तो माफ कर देना इस नादान शामी को….

अप्रैल मासिक

पहली स्वरचित रचना

स्नेह ज्योति

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