अनजाना डर – संगीता त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : “माँ तुम अब बदल गई, पहले जैसी नहीं रही…!!”बेटी कली बोली जो भाई की शादी के बाद कुछ दिनों के लिये मायके आई थी…। कनक बेटी की बात सुन सोच में डूब गई, फिर बोली “तुम्हे ऐसा क्यों लगा “…।

    “माँ, पहले जो हर गलत बात के लिये भिड़ जाती थी, अब देखती हूँ तुम बहुत कुछ अनदेखा, कुछ अनसुना करने लगी हो, तुम्हारे नियम -क़ानून कुछ बदल गये, कुछ लापरवाह सी हो गई हो..”कली ने माँ से कहा।

   “दो दिन में तुमने ऐसा क्या देख लिया जो तुम्हे अपनी माँ बदली लग रही, क्या तुम्हे मेरे प्यार या देखभाल में कमी लग रही, मै बदल गई ये इल्जाम तुम कैसे लगा सकती हो, मै तो आज भी तुम्हारी माँ हूँ….”कनक ने कली की तरफ देख कर बोला….।

    “नहीं माँ, प्यार में कमी नहीं, बस मुझे अब अपनी माँ में एक डर दिखाई देने लगा, एक सर्तकता दिखाई देने लगा, क्या ये सच नहीं है माँ…??”कली की बात सुन कनक चुप हो गई,..।

   “बताओ न माँ, मेरी बात सही है न,”कली ने कहा तो कनक अपने को रोक न पाई…।

    “ये डर है या कुछ और मै समझ नहीं पाई, पर हाँ जब से मेहुल की शादी हुई और पाखी घर आई, मुझे एक डर बना रहता कहीं मेरी किसी बात से पाखी को बुरा न लग जाये..मुझ पर बुरी सास का तमगा ना लग जाये… सास तो वैसे भी बुरी मानी जाती है, भले ही वो कितनी भी अच्छी क्यों ना हो…

“कनक की बात सुन कली बोली “इसी डर से कल तुम मेरे साथ अकेले शॉपिंग पर नहीं गई, कहीं पाखी ये इल्जाम ना लगा दें कि सासू माँ बेटी के साथ शॉपिंग कर रही, और मै रसोई में काम कर रही हूँ… यही बात है न माँ…”

    “तेरी बात सच है कली, पहले मै बहू थी तो सासू माँ के लिये डरती थी, हर समय उनके हिसाब से काम करके भी मै उनके पैमाने पर खरी नहीं उतरी, ये उनका घर रहा, मेरा नहीं बन पाया… सासू माँ जब तक जिन्दा थी अपना हुकुम चलाती रही….कभी कोई काम मै अपनी मर्जी से नहीं कर पाई….,

तुम्हारी बुआएं जब आती थी, सब मस्ती करते, मै रसोई में सबकी पसंद का खाना बनाते रह जाती थी, जबकि मेरा मन भी होता था, मै भी सबके साथ मस्ती करू….,अपने अनुभवों से सबक ले मैंने सोच लिया था मै अपनी बहू को उसके हिसाब से जीने दूंगी, साथ ही उसे कभी परायापन महसूस नहीं होने दूंगी…

इसलिये जब से तू आई, मै रसोई भी बराबर संभाल रही, जिससे पाखी तुमलोगो के साथ समय बीता सके और रिश्ते की डोर मजबूत हो.., रिश्ते औपचरिक नहीं दिल से बने…,।”

“पाखी अभी बच्ची है, घर के कामों में कच्ची है, पर मै उसे ताने देकर रिश्ता खराब नहीं करना चाहती इसलिये कुछ बातें उसकी भी अनदेखी करनी पड़ती, एक मजबूत रिश्ते की बुनियाद के लिये कुछ अनदेखा, कुछ अनसुना करना जरुरी है, तभी तो रिश्ता सशक्त बनेगा.अगर मै भी तेरी दादी की तरह ताने दूंगी तो उनमे और मुझमें अंतर ही क्या है….”कनक ने मन की बात कली से कही..।

      तभी पाखी अंदर आई बोली “माँ आपको डरने की जरूरत नहीं है, मुझे पता है सासु माँ के रूप में मुझे दूसरी माँ मिली है, आप निश्चिंत होकर दीदी के संग एन्जॉय करिये मै रसोई संभाल लूंगी ..”

    “नहीं पाखी… काम तुम अकेले नहीं करोगी “कनक बोली

    “क्यों माँ… आखिर आपने भी तो यही किया था, जब आप बहू थी, बहुओं को तो थोड़े समझौते और सामंजस्य करना पड़ता है..”पाखी बोली..।

       “तब मै बहू थी पाखी, इसलिये सासू माँ से दिल की बात नहीं कह पाती थी लेकिन अब मै सास हूँ और एक बहू की भावनाओं को बखूबी समझती हूँ क्योंकि कभी मै भी उस दौर से गुजरी थी पर तब अधिकार नहीं था आज अधिकार है…, तुम्हारे साथ मै दिल का रिश्ता चाहती हूँ, जैसे तुम अपनी माँ से जिद, फरमाइश या झगड़ा करती थी, वैसे ही सहज तुम मेरे साथ रहो ..”। कनक ने कहा तो पाखी दौड़ कर कनक के गले लग गई…।

      “तुम दोनों सास -बहू रोते ही रहोगे या बातों से ही पेट भरने का इरादा है …. बड़ी जोर की भूख लगी है,”कली ने वातावरण की गंभीरता कम करने के उद्देश्य से बोली..।

      “आपकी पसंद की दाल की कचौड़ी और आलू की सब्जी रेडी है दी… चलिये खाने की टेबल पर…”पाखी बोली..।

      “तुझे कैसे पता पाखी, मुझे कचौड़ी और आलू की सब्जी पसंद है “कली ने आश्चर्य से पूछा।

      “मै माँ की दूसरी बेटी हूँ, इसलिये मुझे सब पता है “शरारत से ऑंखें मटकाती पाखी बोली…।

       फिजाओं में रिश्तों की खूबसूरती की महक फ़ैल गई…। थोड़ी देर बाद तीनो देवीयां अपने पति का क्रेडिट कार्ड ले शॉपिंग करने चल दी….शॉपिंग की बात और क्रेडिट कार्ड के लिये नारी शक्ति एक हो जाती है…।

    एक हफ्ते रह कर जब कली ससुराल जाने लगी तो पाखी की आँखों में आँसू थे “दी अब कब आओगी…आपके रूप में मुझे एक बहन मिल गई, मुझे हमेशा लगता था काश मेरी कोई बहन होती… आपके साथ रिश्ते की डोर में बांध ईश्वर ने मेरी कामना पूरी कर दी…”

        सबकी आँखों में आँसू देख मेहुल बोला “हद है घर मेरा और मालकिन पाखी बन गई, जिसे देखो वही पाखी -पाखी कर रहा… खबरदार जो मेरी माँ -बहन छीना तुमने मुझसे…”

       “छीना नहीं छीन लिया, अब सब मेरे है “पाखी ने गर्व से कहा…।

        सही दोस्तों..तब और अब में कितना फर्क आ गया … सोच ने जहाँ विस्तार लिया वही पुरानी भ्रान्तियां भी टूटी “सास बुरी होती… “रिश्तों को समझने की समझ कहीं बढ़ी है तो कहीं घटी भी…, अब बहुओं को अपना मन नहीं मारना पड़ता, बाकी अपवाद तो सभी जगह होते, आप सब क्या कहती हो…मुझे कमैंट्स में जरूर बतायें ..।

                       —-संगीता त्रिपाठी..

   #इल्जाम

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