अन्याय कब तक रहेगा – नेकराम

आज से 45 वर्ष पहले की यह कहानी शुरू होती है सन 1992  दिल्ली कि एक छोटी सी पुनर्वास कॉलोनी गोकुलपुरी से –

मोहल्ले में एक छोटे से कारखाने में काम करते हुए एक नाबालिक बच्चा जो अपने नन्हे नन्हे हाथों से भारी भारी मशीनों पर काम करने को मगन था उसे एक धुन सवार थी बहुत पैसा कमाना है घर की गरीबी दूर करनी है लेकिन वह दुनिया के अन्याय से कोसों दूर था,  300  रुपये महीने की सैलरी उसके लिए दुनिया की सबसे बड़ी दौलत थी

उसे नहीं मालूम था उन दिनों फैक्ट्री मालिक नाबालिक बच्चे और महिलाओं से थोड़ी मजदूरी देकर मशीनों का कठिन काम करवाते थे,  25 जनवरी का दिन था रात के 9:00 बज चुके थे फैक्ट्री के मालिक ने सभी मजदूरों से कहा कल 26 जनवरी है कल सभी को ड्यूटी पर आना है कोई छुट्टी नहीं करेगा जो भी छुट्टी करेगा वह परसों से नौकरी पर नहीं आएगा

सब मजदूर आपस में खुसर फुसर करने लगे अधिकांश मजदूर तो किराए के मकानों में रहते थे जिनके अपने पास मकान थे वह बहुत जर्जर हो चुके थे जिंदा रहने के लिए यह नौकरी ही एकमात्र उनका साधन था इसलिए 26 जनवरी के दिन सभी मजदूरों को ड्यूटी पर आना पड़ा

26 जनवरी के दिन देश के अमीर घरानों के बच्चे अपने-अपने कमरों में टेलीविजन चलाकर 26 जनवरी गणतंत्र दिवस का आनंद उठा रहे थे और उसी दिन देश के गरीब इलाकों के गरीब बच्चे कारखानों में काम करके देश की उन्नति में सहायक की भूमिका निभा रहे थे

मोहन के कुछ और भी नाबालिग दोस्त थे जो कारखाने में घर की आर्थिक स्थिति को पूरा करने के लिए अपने बचपन को मारकर

हाथों में औजार लिए हमेशा तैयार रहते थे

देश आजाद हो चुका था किंतु गरीबों का शोषण नहीं रुक रहा था

मोहन ने अपने दोस्तों से कहा इस कारखाने में हो रहे अन्याय की बात क्या हम सरकार तक पहुंचा सकते हैं तब बाकी दोस्तों ने बताया किसी तरह हमारी बात देश के राजा तक पहुंच जाए तो शायद हमें कारखानों में मिलने वाली सभी सुविधाएं मिल सकती है



मोहन उत्साह भरते हुए बोला रोज रात को कारखाने से छुट्टी होने के बाद मैं फिर से पढ़ाई करूंगा लिखना सीखूंगा और अन्याय के खिलाफ बोलना सीखूंगा मोहन सारा दिन कारखाने में मजदूरी करता और रात को अपनी पढ़ाई करता कई महीने बीत चुके थे

मोहन ने भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ सन 2004 में कई सारी लेख और कविताएं लिखी दिल्ली में छपने वाले पंजाब केसरी अखबार के संपादक अश्वनी कुमार से जाकर मिले उन्होंने भ्रष्टाचारी लेख और कविताएं छपने से मना कर दिया और कहा तुम्हारी उम्र अभी बहुत कम है और तुम बहुत गरीब हो देश में अन्याय करने वाले लोगों की ताकत बहुत बड़ी है तुम उनसे अकेले मुकाबला नहीं कर पाओगे पहले अपने घर की गरीबी मिटाओ बच्चों के लिए कविताएं लिखो हम तुम्हारी कविताएं अवश्य छापेंगे अपने पंजाब केसरी अखबार में

मोहन समझ चुका था कि आखिर उन्हें भी अपनी प्रेस चलानी है अन्याय करने वाले लोग प्रेस चलाने वालों पर भी हमला कर सकते हैं इसलिए प्रेस वालो की भी अपनी मजबूरी होती होगी

मोहन ने कुछ देशभक्ति कविताएं लिखी और वह पंजाब केसरी अखबार में छप चुकी थी मोहन की मुलाकात धीरे-धीरे दिल्ली के प्रोफेसर राइटर और प्रकाशनों से होने लगी हर लेखक सिर्फ पैसा कमाना चाहते थे नाम चाहते थे शौहरत चाहते थे लेकिन अन्याय के लिए कोई आवाज नहीं उठाना चाहता था

मोहन देख रहा था हमारे देश के नौजवान नशे की चपेट में बुरी तरह आ चुके हैं नेता स्वयं उन्हें नशे के मुंह में धकेल रहे हैं

सबको अपनी अपनी फिक्र थी सबको अपनी अपनी चिंता थी

अपना परिवार बचाना सब की जिम्मेदारी थी लेकिन दूसरों के परिवार को बर्बाद होते हुए देखना सबको अच्छा लगता था

अखबार और मीडिया जनता को हमेशा सच बताने से डरती थी

जमीन पर हो रहे अत्याचार को एक कोने में रख कर अखबारों में मनोरंजन की कहानियां लेख और कविताएं छाप कर सिर्फ नौकरी करके अपना परिवार पाल रहे थे

अन्याय से लड़ने वाला ही सुपर हीरो होता है लेकिन मोहल्ले में तो सब जीरो थे जरा सी खटपट होते ही सबके कुंडी खिड़की दरवाजे अंदर से बंद हो जाते थे डर और दहशत के मारे सब अपने अपने घरों में पैक हो जाते थे

लेकिन मैं कैद नहीं होना चाहता था मैं अन्याय के खिलाफ लड़ना चाहता था आखिर अन्याय करने वाले कौन लोग हैं वह इस देश के हैं या पड़ोसी देश के उनकी जड़े कहां कहां तक फैली हुई है



उनकी खोज करना ही मेरा मकसद बन चुका था मैं मन ही मन में

उन्हें पकड़ने के लिए दुनिया के सामने उन्हें लाने के लिए कोशिश  प्रयास और तरकीबे ढूंढने लगा

घर पर रहकर मैं घर के बंधनों में बंधा हुआ था दुनिया के बुरे लोगों की पहचान मैं कैसे करूं उन्हें सजा कैसे दिलवाऊ यही सोच सोच कर मेरा दिमाग पका जा रहा था

1 दिन मैंने कहीं दूर अनजान जगह घर छोड़ कर जाने का फैसला ले लिया अब तक मैं 22 वर्ष का हो चुका था जिस उमर में लड़के लड़कियों के पीछे पीछे घूमते थे उस समय मुझे तलाश थी अन्याय करने वाले लोगों की

होली का दिन था सुबह-सुबह ही मैं घर पर बिना बताए अपने सफर के लिए चल पड़ा रास्ते में मुझे तमाम मोहल्ले नगर और कॉलोनी दिखी सभी लोग अपनी अपनी जिंदगी जी रहे थे

घर कब लोटूगा कुछ मालूम नहीं था –

जेब में पैसे नहीं थे पैदल ही यात्रा शुरू कर दी 2 दिन तक दिल्ली की सड़कों पर भूखे प्यासे भटकता रहा धूल मिट्टी से कपड़े मेले हो चुके थे

कई बार मन में विचार आया कि अपने घर वापस लौट चलूं

किंतु देश के छिपे गद्दारों का पता लगाना अब मेरे लिए एक मकसद बन चुका था स्वतंत्रता सेनानी जिन्होंने देश आजाद किया भले उन्हें ही स्वतंत्रता का जश्न देखने को ना मिला हो किंतु फिर भी वे खुश थे कि हमारी आने वाली पीढ़ी स्वतंत्र होकर जिएंगी

उसी प्रकार हम भी अन्याय के खिलाफ लड़ते-लड़ते कुर्बान हो जाएं तो हमें किसी भी बात का मलाल वह गम नहीं करना चाहिए

हमारे पूर्वजों ने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी तो आज हमें स्वतंत्रता देखने को मिली अब जो बुरे लोग स्वतंत्रता का गलत उपयोग करके देश को बर्बाद कर रहे हैं अगर हम उन्हें अपनी कलम के माध्यम से बेनकाब कर दे तो शायद हमारी आने वाली पीढ़ी एक खुशहाल जिंदगी जी सकती है

2 महीनों तक मैं शहरों के अनजान नगरों में भटकता रहा

छोटी मोटी मजदूरी करके दिन भर की रोटी का इंतजाम कर लेता था एक ताकतवर पुरुष कमजोर पुरुष का शोषण करता हुआ मुझे हमेशा हर गली चौराहे पर मिलता

कमजोर लोग डर के मारे उनकी शिकायत किसी से नहीं करते और अपने दिल के भीतर ही भीतर घुट घुट कर हर अन्याय को सहते रहते-



मोहल्ले के दुकानदार तराजू में घपला करके ग्राहकों को सामान कम तौल कर देते और पैसे पूरे लेते  ग्राहकों पर हो रहे अन्याय को देखकर मुझसे रहा नहीं जाता था

मोहल्ले के 90% ग्राहक चुप्पी साधकर शांत रहते थे क्योंकि अधिकांश दुकानें बनिया और सरकारी कार्य करने वाले लोगों की होती थी आखिर उनसे पंगा कौन ले

ग्राहकों के साथ यह अन्याय आज भी आपके मोहल्ले में हो रहा होगा

बसों में प्रतिदिन जेबें कटती यात्रियों की रोज कभी पर्स चोरी हो जाता कभी मोबाइल लेकिन लोग थाने में जाकर रिपोर्ट नहीं लिखवा पाते थे थोड़ी देर के लिए दुखी होते थे और कुछ दिनों में अपना गम भूल जाते थे

लेकिन थाने में जाकर उन झपटमार और जेब कतरों के खिलाफ कोई आगे नहीं बढ़ना चाहता था

सबको अपनी जान प्यारी थी जेब कतरों का क्या है जेबों में चाकू लेकर चलते हैं और ब्लेड वह किसी को भी मार सकते हैं ऐसा डर उन्होंने यात्रियों के दिलों में बिठा रखा था आज भी बसों में मेट्रो में रेल में सैकड़ों यात्रियों की जेबें कटती है किंतु वह इस अन्याय को सह रहे हैं

शायद आपने भी इस अन्याय को सहा होगा-

साइकिलें मोटरसाइकिलें स्कूटी कार ऑटो चोरी होने पर

गाड़ी के मालिकों ने थानों के कितने चक्कर काटे किंतु न्याय नहीं मिला अन्याय करने वालों ने हमेशा अपनी विजय पाई है

शहर और गांव में कितने सरकारी पार्कों में खाली पड़ी जमीनों पर मस्जिद और मंदिर खड़े करके जमीनों का सौदा करने वाले वहां धर्म के नाम पर अपने रहने के अड्डे बना लेते हैं लोग धर्म के नाम पर खूब दान करते हैं

लेकिन वह धार्मिक दिखने वाले लोग उन दान किए हुए पैसों का क्या करते हैं एक भिखारी मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकता है उसकी सजा है कि वह गरीब है कुछ दान नहीं कर सकता पेटी में वह गरीब भिखारी रोज अन्याय सहता है और हम मूक बनकर सिर्फ और सिर्फ तमाशा देखते हैं



हमारे मोहल्ले में गलियों में कुछ फटे पुराने कपड़े पहने नाबालिक बच्चे जिनके पैरों में शायद चप्पल भी ना हो कंधे पर प्लास्टिक की बोरी लटकाए कूड़ा कबाड़ा उठाते बीनते – मिल जाते हैं उनके पढ़ने की उम्र में वे अपने पेट भरने के लिए रोटी का इंतजाम करने के लिए सैकड़ों म मीलो तक रोज पैदल चलते हैं उन मासूम बच्चों पर क्या यह अन्याय नहीं है –

सर्दी के मौसम में सिर्फ एक बार रात 12:00 बजे के बाद अपने गांव या शहर का चक्कर लगाओ कितने बेघर लोग सर्दी में ठिठुरते हुए फुथपातों पर नजर आ जाएंगे क्या यह उन पर अन्याय नहीं है

बरसात के दिनों में छतों से पानी टपकने वाले परिवार की दुर्दशा के बारे में जानो उनकी तकलीफों को मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता हूं

दहेज न दे पाने के कारण आज भी लाखों बेटियां कुंवारी मर मर के अपना जीवन जी रही है उनके पिता और माताजी बच्चों की शादी करने के लिए कभी अपने खेत बेच देते हैं कभी अपनी जमीन कभी मकान तो कभी अपने मंगलसूत्र तक बेच देते हैं क्या यह उन पर अन्याय नहीं है

आज भी सड़कों पर हजारों लोगों के एक्सीडेंट हो जाते हैं लोगों की जान चली जाती है शराब पीने के बाद आज भी लोग अपनी गाड़ियां वाहन इत्यादि चलाते हैं लेकिन जिनका एक्सीडेंट हो जाता है जो घायल हो जाते हैं जो मर जाते हैं क्या यह उन पर अन्याय नहीं है-

सरकारी अस्पतालों में आज भी लंबी-लंबी लाइनों में लगने के बाद दवाइयां पूरी नहीं मिलती मजदूर आदमी गरीब आदमी दवाई का पर्चा लिए खिड़की पर निहारता है कि शायद आज दवाई पूरी मिल जाएगी लेकिन खिड़की के भीतर से आवाज आती है यह दो गोली दे रहे हैं इसे खा लो बाकी दवाई बाहर मेडिकल से खरीद लेना

उस समय उस गरीब बेबस मरीज पर यह अन्याय नहीं है

बेरोजगार पुरुष और युवतियों से नौकरी के नाम पर उनसे लाखों रुपए हजारों रुपए ऐंठ लिए जाते हैं क्या यह उन पर अन्याय नहीं है

ट्यूशन के नाम पर बच्चों के गरीब माता-पिता से महीने की भारी फीस वसूली जाती है क्या यह उन गरीब माता-पिताओ  पर अन्याय नहीं है

एक बिजोलिया पैसों की लालच में झूठ बोलकर पढ़ी-लिखी और सुंदर सुशील लड़कियों की शादी जल्लाद जैसे पुरुषों के साथ कर देते हैं क्या उन बेटियों पर यह अन्याय नहीं है

अन्याय हर जगह है हर गली नुक्कड़ चौराहे पर है

लेकिन अन्याय को रोकने की ताकत सिर्फ और सिर्फ सुपर हीरो में है

         ,, और वह सुपर हीरो हमारे दिल में है ,,

नेकराम

धीरपुर गांव दिल्ली से

5 जनवरी 2023

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