मम्मी सुनो तो मेरी शादी करवा दो ।हैं तू ये क्या बोल रहा है शादी कर दूं पर किससे ।
मम्मी लडकी से और किससे ।
कौनसी लड़की यहाँ कहाँ तुझे लडकी मिल गई। इतने दिनों से मैं जब कह रही थी तो हाथ नहीं रखने देता था अब यहां एक ही दिन में तेरे को लड़की मिल गई। असल में अंश अपनी मम्मी के साथ गांव में अपने मामा के लड़के की शादी में आया हुआ था। कल दोपहर को महिलायें शादी के शुभ अवसर पर नाच गाना कर रहीं थीं तभी उसने अनामिका को डांस करते देखा था तब से ही वह उसे पहली नजर में ही भा गई थी। गोरी चिट्टी, बड़ी बडी कजरारी आँखे, हिरनी सी चपलता डांस तो वह ऐसे कर रही थी मानो हवा में तैर रही हो।
नाज़ुक सी, मासूमियत भरा चेहरा एक लम्बी सी चोटी उसकी पीठ लहरा रही थी। बस वह तो उसका दीवाना हो गया। उसे ऐसी ही सीधी सादी मासूम सी लड़की की तलाश थी। वह शहरी लडकियों की चंट-चालाकी से बहुत घबराता था। उन के नखरे उठाना उसके बश की बात नहीं थी ।इसीलिए इतने फोटो मां द्वारा दिखाने पर भी वह किसी के लिए हां नहीं कर सका था। उसे ऐसा लगता था कि यहाँ आना सार्थक हो गया और उसे उसकी मंजिल मिल गई। मम्मी बोलो न कराओगी न अनामिका से मेरी शादी। बेटा सोचती हूं सब देखना पडता है ऐसे ही थोड़े न सम्बन्ध जोड़ा जाता है।
मम्मी मुझे अनामिका पंसद है इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं सोचना कह कर वह मामा के लड़के के साथ बाहर निकल गया।
दो दिन बरात निकलने की तैयारी शादी के अन्य रस्मों को पूरा करने में निकल गए बरात लौट कर भी आ गई । अंश मम्मी के उत्तर का इन्तजार करता रहा। अब जाने का दिन भी करीब आ गया तो उसने फिर मम्मी को बोला – मां आपने बात करी न अनामिका के घर वालों से।
मम्मी अंश की उतावली देख हतप्रभ थीं किसी लड़की को पंसद न करने वाला उनका बेटा इस लड़की के लिए इतना उतावला क्यों हो रहा था । अंश के अत्यधिक दबाब देने पर आखिर सरिता जी ने अपने भाई से बात की और उसके बारे में पता लगाने को कहा। वे बोले दीदी पता क्या लगाऊँ वह तो जाने पहचाने घर की बच्ची है। आपको याद होगा अपने वंशीधर चाचा जी की बेटी है। क्या यह वही बच्ची है जिसे छोटा सा छोड़कर मां चल बसी थी।;
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हां सही कहा आपने दीदी वही अभागन बच्ची है जिसने इतनी सी छोटी उम्र में ही न जाने कितने दुख झेल लिए, फिर भी सब गम दिल में समेटे सबसे हँसते बोलते रहती है। बड़ी ही होनहार बच्ची है किन्तु विमाता ने उसे पढ़ने तक नहीं दिया।
सरिता जी बोलीं बिट्टू जरा पूरी बात विस्तार से बता।
वह बोला दीदी अनामिका दो वर्ष की थी तभी एक जानलेवा बीमारी के कारण इसकी मां चल बसी। पहले तो वंशीधर चाचा जी ने खुद ही इसे सम्हालने की जिम्मेदारी उठाई सबके बहुत कहने पर भी शादी के लिए तैयार नहीं हुए। किन्तु दो साल के भीतर ही वे इतने छोटे बच्चे को सम्हालने, घर गृहस्थी का काम कर नौकरी करने में थक गए तब परेशान हो उन्होंने दूसरी शादी करने का फैसला किया और बिमला चाची से उन्होंंने शादी कर ली। उन्होंने सब हुछ बता कर शादी की थी।
किन्तु न जाने क्यों अनामिका के प्रति उनके मन में द्बेष भाव था।छोटी सी बच्ची उनमें अपनी माँ दूंढती, प्यार पाने को तरसती किन्तु अक्सर उसे झिडक देतीं। कलमुंही अपनी माँ को तो खा गई अब क्या मुझे भी खायेगी। वह अवोध बच्ची कुछ न समझती। टुकुर- टुकुर उनका मुंह देखती रहती। उसका मन मां की गोद में बैठने का होता वे डॉट कर भगा देती। धीरे-धीरे वह अपने में सिमटने लगी। चाचा जी के घर आते ही वह उनसे बुरी तरह चिपक जाती। वे सब समझ रहे थे,
विमला चाची को समझाते भी बिन माँ की बच्ची है विमला थोड़ा इसे प्यार से रख लोगी तो तुम्हारा क्या विगड जाएगा। पर वे एक न सुनती। फिर अपने बेटे होने के बाद वे इसके खाने पहनने का भी ध्यान नहीं रखतीं ।अब मात्र छः साल की उम्र में उससे घर का काम भी करवाना शुरू कर दिया । बच्ची की हालत देखी न जाति। आस पड़ोस की महिलाएं भी विमला चाची को समझातीं तो वे उन्हें टका सा जवाब दे देतीं इतनी ही चिन्ता है इस नास पिटी की तो ले जाओ अपने साथ और स्खो प्यार से।
तभी एक दिना नाना आए अनामिका की हालत देख वे दुःखी हो गए और अपने साथ ले गए। नानी तो देखकर दुःखी हुईं और उसकी सार सम्हाल में लग गई किन्तु मामी को उसका आना जरा भी न भाया। थे जब तब मौका पाकर उसे लताडती रहतीं। खाने में भी अपने बच्चों और उसके साथ भेदभाव करतीं। नाना नानी सब समझते किन्तु कुछ बोल नहीं पाते क्योंकि वे स्वयं बेटा बहू पर निर्भर थे। जैसे तैसे समय बीत रहा था। फिर एक एक करके नाना नानी भी साथ छोड़ गए अब तो,मामी को पूर्णकालिक फ्री की नौकरानी मिल गई।
उसकी हालत देख वंशीधर चाचा जी उसे बापस ले आए। सब काम करके भी पढ़ने में इतनी होशियार थी कि बारहवीं तक हमेशा अव्वल आती थी। फिर विमला चाची ने पढ़ाई छुडवा दी। अब चाचा जी उसकी शादी के लिए परेशान हैं कारण विमला चाची पैसे खर्च नहीं करना चाहती। वे चाहती हैं, किसी बूढे, दूजबर, जिसे आवश्यकता हो उसके साथ शादी कर दो जिससे वही खर्च भी उठाए। दूसरे उनका यह भी मानना है कि जैसे इसकी वजह से वह शादी करते ही मां बन गई वैसे ही इसे भी दो चार बच्चों की मां बनाकर ही भेजूंगी।’
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और चाचा जी यह कर नहीं पा रहे सो परेशान हैं।यह सब सुन सरिता जी का हृदय पसीज उठा। एक बिन माँ की बच्ची को क्या-क्या सहना पड़ता है सोच कर ही कांप उठीं। अब उन्होंने अंश को सब बात बताकर कहा बेटा तू अभी जोश में आकर तो यह निर्णय ले रहा है पर क्या तू उसे जीवन भर निबाह पायेगा। न वह पढ़ी लिखी है न आधुनिक जीवन के तौर तरीके जानती है तेरे स्तर की कहीं से भी नहीं है ऐसा न हो कि बाद में तुझे पछताना पड़े। और कहीं तू ऐसा निर्णय ले ले कि उसे छोड़ दे। उसका कोई नहीं है कहाँ जाएगी सोच ले बेटा ठीक से ।
हां मम्मी आप सही कह रही हो। पढ़ने लिखने की कोई उम्र नहीं होती। उसे मौका ही नहीं मिला कहाँ से पढती, किन्तु अब हमतो उसे पढ़ा सकते हैं हमारे साथ रहकर तौर तरीके भी सीख जायेगी। मम्मी कोई जन्म से नहीं सब सीख कर आता है सब यहीं सीखते हैं।
उसे अनुकूल वातावरण मिले तो वह पारंगत हो जाता नहीं तो अनभिज्ञ रहत है। मम्मी आपने मुझे भी तो सिखाया है क्या यदि मेरी बहन होती तो आप उसको नहीं सिखातीं । मां अनामिका की माँ बनकर आप उसे भी सब सिखा देंगी ना ।मुझे आप पर पूरा भरोसा है आप सब सम्हाल लेंगी। रही उसके परिवार के स्तर की बात तो हमें दहेज नहीं चाहिए खर्च भी हम उठा लेंगे। एक बेटी की जिन्दगी नर्क होने से बचा लो ।में पूरे होशो हवास में दिल और दिमाग से सोच कर फैसला ले रहा हूं। में अनामिका को छोड़ने का कभी स्वप्न में भी नहीं सोच सकता। मम्मी मान जाओ अनामिका के साथ ही जीवन बिताना चाहता हूं।
बेटे की जिद के आगे हार कर उन्होंने अपने भाई से बात करने को कहा और फोन पर अंश के पापा को भी पूरी बात बताई। उन्होंने तो तुंरत कह दिया अंश समझदार है वह जो निर्णय लेगा सोच समझ कर लेगा अतः उसकी खुशी में ही मैं खुश हूं, सो मुझे कोई एतराज नहीं है जो उचित लगे कर लो।
उधर जब अंश के मामा ने बंशीधर चाचा से बात करी तो वे असमंजस में पड गये। बोले कहां हम गरीब लोग और वे इतने अमीर लोग हमारी बिटिया कैसे निभेगी। वह तो उनके तौर तरीके कुछ नहीं जानती है न पढ़ी लिखी है। फिर हमारे पास इतना पैसा भी नहीं है कि सही ढंग से उनका आदर सत्कार कर सकें। तुम तो विट्टू भैया यहीं के हो हमारी सारी हालत जानते हो । कैसे हम हाँ कह दें। उसकी माँ तो चार पैसे भी खर्च करने को तैयार नहीं है।
चाचा आप एक बार मेरे घर चलो दीदी से मिल लो वहीं सब बात हो जाएगी। ठीक है अभी चलो।
सरिता जी ने सम्मानपूर्वक उन्हें विठाया सब बात समझाई कि उनका बेटा अनामिका बेटी को बहुत पसन्द करता है और उससे शादी करना चाहता है। आप किसी तरह थी चिन्ता न करें। शादी व्याह का सारा खर्च हम करेंगे आप तो केवल अपनी सहमति दे दें । बेफिक्र रहे आपकी बेटी हमारे घर में बहू नहीं , बेटी की तरह रहेगी। हम उसका पूरा ध्यान रखेंगे । भैया ने हमें बताया कि कैसे उसने अभी तक दुःख ही उठाये हैं। अब आप यह समझ लो फि उसके दुख के दिन गए और में उसे मां के रूप में मिल गई हूँ।
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पूर्ण रूप से आश्वस्त होने के बाद बंशीधर जी ने हां कर दी। विमला जी भी बहुत खुश हुईं कि पैसा नहीं लगेगा।
सरिता जी एवं सलील जी ने खूब धूमधाम से शादी करी । एकलौता बेटा जो था सो खूब मन के अरमान पूरे किये।
शादी के बाद अब धीरे-धीरे सरिता जी एवं अंश ने उसे समझाना शुरू किया। शहरी तौर तरिके समझाये। खाना बनाने में तो यह निपुण थी उसे जल्द ही समझ गई। समय का पहिया घूम रहा था देखते ही देखते एक बर्ष निकल गया। इसी बीच उसे अंग्रेजी बोलने लिखने का भी प्रशिक्षण दिया गया। अब उसका एडमिशन कालेज में करा दिया। ॻॆज्यूशन करने के बाद एम बी. ए. कराया और नौकरी करवा दी। वैसे नौकरी की कोई आवश्यकता नहीं थी फिर भी उसका आत्म- विश्वास बढाने हेतु नौकरी करवाई। कहते है न जहाँ चाह वहाँ राह। यदि पति एवं ससुराल वाले चाहें तो पत्नी के विकास में सहायक हो सकते हैं।यही सरिता जी और अंश ने किया।एक बार उसके पिता उससे मिलने आए तो बेटी का बदला रूप देखकर दंग रह गये, उनकी अनामिका सुख के सागर में हिलोरें ले रही थी।
तभी एक दिन मचलते हुए अंश ने अपनी मम्मी को छेडा मम्मी अब तो हो गई न अनामिका मेरे स्तर की आधुनिक पत्नी कहो तो अब छोड़ दूं।
सरिता जी हँसते हुए प्यार से उसके गाल पर चपत लगाते बोली- भूलकर भी मेरी बहू के बारे में यह मत सोचना नहीं तो——-।
नहीं तो क्या मम्मी । सभी हँसने लगते
शिव कुमारी शुक्ला
10-3-24
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित
छठा जन्मोत्सव के अन्तर्गत कहानी प्रतियोगिता
तृतीय कहानी