अम्मा – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

    भैया देख ना , फ्रिज में ताला लगा है…. पक्का मां मिठाई मंगवाई होगी…. मामा , मामी आने वाले होंगे…. तन्वी ने तरुण का हाथ पकड़ कर फ्रिज के सामने लाकर खड़ा कर दिया… तरुण ने भी फ्रिज का हैंडल अपनी ओर खींचते हुए कहा…. हां तन्वी ये तो बंद है….।

       बस फिर क्या था…. हर पांच- पांच मिनट के बाद मां कुछ खाने को है क्या …?  भूख लगी है…. कह कर तन्वी और तरुण ने मां (ममता) को परेशान करना शुरू कर दिया…!

    ये तुम लोगों की गर्मी की छुट्टियां भी ना….मेरी आफत बन जाती है ….दिन भर तुम लोगों को भूख ही लगी रहती है…. स्कूल के दिनों में ही ठीक रहता है , एक व्यवस्थित दिनचर्या तो बनी रहती है….. !

      हालांकि ममता अच्छे से जानती थी फ्रिज बंद है… तो फ्रिज में जरूर कुछ अच्छा वाला मिठाई होगा… इसीलिए बार-बार बच्चों को भूख लग रही है…. पर ममता ने फ्रिज में क्या रखा है , इसे सस्पेंस ही बने रहने दिया…।

    बरामदे में चारपाई पर लेटी अम्मा सुन रही थी….. दुलहीन ओ दुलहीन…

लल्ला को भूख लगी है , कुछ दे दो खाने को…. हां अम्मा , अब खाना बन रहा है ..सीधे खाना ही खा लेंगे…!

अम्मा सभी की अम्मा थी… मनोहर  ममता की तो अम्मा थीं ही….उनकी देखा देखी बच्चे दादी को अम्मा ही बोलते थे…!

     वाह ….भूख तो मुझे भी लगी थी… पर तुझे तो भैया के भूख की चिंता है ना अम्मा…. तू भी ना …अम्मा , मेरे और भैया में भेदभाव करती है…भैया को ज्यादा प्यार करती है… तन्वी ने शिकायती लहजे में अम्मा से कहा …

        अरे बिटिया, तू तो मेरी सहेली है ना …..फिर लल्ला तो इस बरस ( वर्ष ) बाहर चला ही जाएगा पढ़ने लिखने… वहां कहां मिलेगा घर का खाना ….चिंतित होते हुए अम्मा ने कहा ….और हां …फिर तो पूरे घर में तेरा ही राज रहेगा लल्ली …..प्यार से तन्वी के सिर पर हाथ फेरते हुए अम्मा  बोलीं…।

     कल ही तो लल्ला का रिजल्ट आने वाला है….

   ….अगले दिन…

    क्या रिजल्ट आ गया….. ममता साड़ी के पल्लू से हाथ पोछती हुई बरामदे में आई…. देख तो बेटा… जल्दी बता क्या हुआ…? तरुण का दोस्त एक पेपर लेकर आया था , नंबर मिलाया जा रहा था… तरुण ने झट मुस्कुरा कर सबसे पहले बहन तान्या को गले लगाया….प्रथम श्रेणी में 12 वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की थी तरुण ने…. अम्मा के पांव छुए… मां कहकर पैर छूने के बाद ममता के गले लग गया तरुण…।

     अम्मा की आंखों में खुशी के आंसू थे ….अम्मा ने झट अपने आंचल में बांधे हुए  मिचूड़े  मिचूड़े पचास बीस के कुछ नोट निकाले और तरुण को देते हुए कहा….. ले लल्ला जाकर टहरी (मिट्टी के बर्तन) में मिलने वाला रसगुल्ला ले आ…..मनोहर (तरुण के पापा)भी आता ही होगा…. अरे अम्मा अब मिट्टी के बर्तन में रसगुल्ला नहीं मिलते… मिट्टी के बर्तन की जगह , प्लास्टिक के डिब्बे ने ले लिया है…. ठीक है मैं रसगुल्ला लेकर आता हूं… कहकर तरुण और उसके दोस्त बाजार की ओर चल दिए…!

   वाह अम्मा , फिर आपने पक्षपात किया ना…. भैया पास हुआ तो पैसे दिए और रसगुल्ला मंगवाया …मैं पास हुई थी तो मेरे पास होने पर रसगुल्ला क्यों नहीं आया था ….मां की ओर शिकायत भरी नजरों से देखती हुई तान्या ने कहा…!

     कहां गए तुम्हारे लाडले….. घर में प्रवेश करते ही मनोहर जी ने ममता की ओर देखते हुए पूछा…. रिजल्ट आ गया ना….क्या हुआ तरुण का ….?अम्मा के खटिया में पैर की ओर बैठते हुए मनोहर जी ने कहा …ममता कुछ कहती इससे पहले ही अम्मा ने बताया फर्स्ट डिवीजन आया है मेरा लल्ला…

   तभी तरुण और उसका दोस्त हाथ में रसगुल्ला लेकर अंदर प्रवेश करते ही मनोहर को देख तरुण ने पैर छुए और कहा पापा मैं पास हो गया…..!

हां बेटा सुना मैंने …..अब अच्छे से अच्छे कॉलेज में दाखिला करा लो…. तभी ममता एक प्लेट में रसगुल्ला और फ्रिज खोलकर दूसरे प्लेट में बड़े-बड़े इमरती जो ड्राई फ्रूट से सजे हुए थे , लेकर आई …..और अम्मा के चारपाई के बगल में रखे टेबल पर रखकर बोली….. ले बेटा मुंह मीठा कर….।

     अब इमरती देखते ही फ्रिज बंद होने का कारण भी तरुण और तान्या को समझ में आ गया था…।

  सभी ने एक-एक रसगुल्ला उठाए…..अम्मा जो बड़े ध्यान से देख रही थी ….मनोहर जी ने ममता से कहा… सुनो जी , आज हमारा तरुण पास हुआ है  बहुत खुशी का दिन है….. आज अम्मा को एक रसगुल्ला दे ही दो…. शुगर नहीं बढ़ेगा….!

    ममता ने अम्मा के शुगर को  ध्यान में रखते हुए रसगुल्ला को थोड़ा सा निचोड़ कर देना चाहा…जैसे ही वो रसगुल्ला उठाकर रस निकालने के लिए दबाने ही वाली थी , अम्मा एकदम से झल्लाते हुए बोलीं …..दुल्हन पूरा रस निचोड़ ले ….देखना एक बूंद भी रह ना पाए ….एकदम रुई के समान फीका हो जाए तब देना ….ऐसा सीठा  सीठा रसगुल्ला खाने का क्या फायदा..?

अम्मा का गुस्सा साफ झलक रहा था…

   फिर अम्मा ने एक दूसरा रसगुल्ला उठाकर आज खा ही लिया… आखिर मन ही तो है….और फिर बुढ़ापे में दिल भी तो बच्चों का सा हो जाता है…. पोते का पास होना तो एक बहाना था…!

    अरे… तू चुप क्यों बैठी है तान्या…? इतनी खामोश …ले इमरती खा…

मां …तू भी मुझे कम प्यार करती है और भैया को ज्यादा…. जब मैं पास हुई थी तो बेसन के लड्डू मंगवाए थे , और भैया पास हुआ तो रसगुल्ला और इमरती आया….

 अच्छा तो ये बात है… तू इसलिए मुंह फुलाए बैठी है….!

   अरे बेटा… तू नवमी कक्षा पास की और भैया 12 वीं पास किया… और फिर खा तो हम सभी रहे हैं ना….।

   मिठाई खाते-खाते ही मनोहर जी ने कहा… अरे ये आजकल के चोचले हैं… हमारे जमाने में कहां ये सब…. मनोहर वाक्य पूरा कर पाते , बीच में ही अम्मा ने कहा ….

         हां हां …तेरे जमाने में तो हमने कुछ किया ही नहीं…. ऐसे ही तू बड़ा हो गया है….. जब तेरी क्लर्क की नौकरी लगी थी तो पूरे गांव में बालूशाही बांटी थी हमने…।

संयुक्त परिवार के एक खुशनुमा माहौल में खुशी दुगनी हो ही जाती है….!

    इस तरह के कुछ मीठे ,तीखे ,चटपटे नोक झोंक चल ही रहे थे ….तभी मनोहर जी उठकर अपने कमरे में चले गए …और तरुण के कोचिंग भेजने के लिए पैसे के जोड़-तोड़ व्यवस्था में व्यस्त हो गए…..जो एक साधारण मध्यम वर्गीय परिवार की प्रमुख समस्या होती है…!

     खैर… वो दिन भी आ ही गया जब तरुण को बाहर जाना था….

       देख बेटा…. इस थैली में ठेकुआ रखा है खा लिया करना… उसमें चूड़ा रख दी हूं अच्छे से खाना ….अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना…. पढ़ाई मन लगाकर करना …..जैसे न जाने कितने अनगिनत हिदायतों के बीच ऑटो रिक्शा में बैठते ही वाला था तरुण….तभी तान्या आंखों में आंसू भरकर धीरे से बोली…. सच में जा रहा है तू भैया ….?

   तरुण ने चोटी खींच कर हां तान्या बोलते हुए माहौल को हल्का करना चाहा…।

   अम्मा के पांव छुए… कांपते हाथों से अम्मा ने एक बार फिर आंचल से मुड़े चूडे नोट निकाले और तरुण को देते हुए कहा….. बेटा इसे एकदम अंदर रखना…. ये आपात स्थिति में काम आएंगे…!

     हां अम्मा …जानता हूं… इस पैसे में आपका प्यार , आशीर्वाद , संघर्षों से मुकाबला करने का हौसला , सब कुछ तो है….. फिर पैसे को पर्स में रखते हुए ऑटो में बैठकर तरुण निकल पड़ा घर से ……आकाश में उड़ने को ….अपने हौसलों को कामयाबी का पंख देने के लिए….. अपने सपनों को साकार करने के लिए….!

    समय बीतता गया…. काफी उतार-चढ़ाव के साथ कोचिंग भी पूरी हो गई ….अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी पूरी हो गई…. मल्टीनेशनल कंपनी में तरुण की एक मेट्रो सिटी में नौकरी लग गई… नामी गिरामी कंपनी थी ,अच्छी तनख्वाह भी थी…।

सब कुछ अच्छा चल रहा था बस कभी-कभी तरुण को घर की बातें… वो अपनापन …संयुक्त परिवार की एकता , प्यार एक दूसरे के लिए समर्पण , अपनापन इन सब की कमी बहुत अखरती थी…!

बीच-बीच में अम्मा पूछा भी करती थी जो नौकरी लल्ला वहां करता है.. वो यहां पर नहीं कर सकता….

अब अम्मा को कैसे समझाते की बड़ी-बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियां छोटे से कस्बे में थोड़ी ना होती हैं अम्मा…

    अचानक मनोहर जी की तबीयत बिगड़ी… उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया….नई-नई नौकरी थी तरुण परेशान ना हो इसलिए घर वालों ने तरुण को कुछ भी नहीं बताया था ….पर किसी ने फैमिली ग्रुप में मनोहर की फोटो ड्रिप चढ़ते हुए (अस्पताल का) डाल दिया जिसे देखकर तरुण तो एकदम से घबरा ही गया ….उसने तुरंत फोन कर हाल जानने की कोशिश की…!

ममता ने तरुण को आश्वासन दिया… कोई ज्यादा घबराने वाली बात नहीं है अड़ोसी पड़ोसी मदद कर रहे हैं..।

 तरुण सोचने पर मजबूर हो गया… जो फर्ज मेरा है , मजबूरी में उसे पड़ोसी निभा रहा है…

  अगले दिन तरुण ने अपने मैनेजर को छुट्टी का आवेदन देना चाहा… पिता की बीमारी, अपने इकलौते पुत्र होने और अपनी जिम्मेदारी का हवाला देते हुए छुट्टी मांगनी चाही..।  तब मैनेजर ने ये कह कर छुट्टी देने से इनकार कर दिया कि अभी ड्यूटी ज्वाइन किए हुए कुछ ही दिन हुए हैं…. आप प्रोवेजन पीरियड में है इसलिए आपको छुट्टी नहीं मिल सकती…!

 खुद को बेबस और लाचार महसूस करते हुए तरुण ने काफी सोच विचार के बाद एक फैसला लिया… अपनी नौकरी से इस्तीफा देने का फैसला….

हालांकि तरुण के फैसले से सभी परेशान थे….  नौकरी मिलना कोई आसान काम नहीं था… मनोहर जी ने कई दफे मना भी  किया… साफ-साफ शब्दों में कहा …अच्छे से सोच लो फिर फैसला लेना…

जवाब में तरुण कहता… पापा मैं सरकारी नौकरी करना चाहता हूं…. उन्हें विश्वास दिलाता… पापा ,बस एक बार मुझे मौका दीजिए… मैं पूरी कोशिश करूंगा.. मन लगाकर पढ़ाई करूंगा और मैं जरूर कामयाब होऊंगा…!

तरुण के हौसले को देखकर मनोहर जी व पूरा परिवार ने तरुण का साथ दिया..

इस्तीफा देकर तरुण घर लौटकर आ गया….अपने पिता की सेवा , देखभाल इलाज करवाने के साथ-साथ शासकीय नौकरी की तैयारी की ….!

कहते हैं ना मेहनत करने वाले की कभी हार नहीं होती….. आखिर तरुण को बैंक में मैनेजर की नौकरी मिल ही गई …!

पूरे घर में खुशी का माहौल… परिवार  मुहल्ले, पूरे कस्बे में तरुण की नौकरी और कामयाबी की बातें फैल गई..!

और फैले  भी क्यों ना ….अभी भी छोटी जगहों पर सरकारी नौकरी की अहमियत प्राइवेट नौकरी के बदले बहुत ज्यादा  होती है…!

    तरुण संयुक्त परिवार में अपने माता-पिता , अम्मा के साथ रहकर घर परिवार को साथ में लेकर… शासकीय सेवा भी कर पा रहा है …और मन में माता-पिता की सेवा न कर पाने की ग्लानि से उबर कर ….एक सुकून का अनुभव भी कर रहा था…!

तरुण इसी घर से साइकिल पर पढ़ाई करने के लिए स्कूल जाया करता था… अब मोटरसाइकिल से ऑफिस के लिए निकलता है…. अम्मा खुशी से फुले नहीं समाती…!

तरुण ने अपने विचारों से , अपने कामों से….विघटित होते हुए संयुक्त परिवार की नींव को मजबूती प्रदान कर के एक आदर्श स्थापित किया…!

(स्वरचित , मौलिक, सर्वाधिकार सुरक्षित और अप्रकाशित रचना )

साप्ताहिक विषय : # संयुक्त परिवार 

✍️ संध्या त्रिपाठी

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