डोर बेल बजी तो रेखा ‘ आई ‘ कहते हुए किचन से बाहर आई और दरवाजा खोलते ही देखा तो डाकिया खड़ा था।
उसे देख उसकी आंखें चौड़ी हो गई।जरूर बैंक का पासबुक आया होगा सोच ही रही थी कि डाकिए ने एक लिफाफा पकड़ाते हुए कहां ।
बहुरानी चिट्ठी आई है चिट्ठी ।
तो ये आश्चर्य से मुंह में बुदबुदाती हुई ,चिट्ठी इस ज़माने में चिट्ठी ,अब भली चिट्ठी कौन लिखता है जहां पल पल की खबर फोन से एक दूसरे को मिल जाती है वहां चिट्ठी तो बहुत पुरानी बात है फिर भी देखते हैं किसकी चिट्ठी आई है।
और हाथ में पकड़ते हुए डाकिया को विदा कर जैसे ही मुड़ी,कि बेटी ने आके सामने से ये कहते क्या है मां हाथ से लिफाफा ले लिया।इस पर उसने कहा अरे नानी की पाती आई है जाने क्यों भेजा जबकि अब तो हर बात फोन पे हो जाती है।
तो उसने कहा अच्छा नानी की चिट्ठी फिर तो पहले मैं पढ़ूंगी देखूं तो सही क्या लिखा है ।अच्छा ये बताओ मां नानी तो पढ़ी लिखी नही है फिर लिख कैसे लेती है।
तब उसने बताया कि नाना ने उन्हें घर में पढ़ना लिखना सिखाया था।
वो इसलिए कि वो अक्सर बाहर रहते थे तो नानी घबराती थी।
ऐसे में वो अपनी सारी बात चिट्ठी में लिखकर मन हल्का कर लेती थी।
फिर जब हम लोग बाहर रहने लगे तो भी हाल चाल का सहारा ये पाती ही थी।
अब तुम्हारा समय आया तब न फोन हो गया है पर वो कहती हैं कि जितनी बात हम चिट्ठी में सहेज लेते हैं उतना फोन पर नहीं ।
वो ऐसे कि जब चाहे जितनी बार चाहें अपनों के प्यार को पढ़कर दिनों नहीं सालों महसूस करें ।
पर फोन है कि बात खत्म अहसास खत्म।
इसी लिए नानी आज भी भले बात करती है पर चिट्ठी लिखती हैं उनका कहना है कि जब वो नहीं रहेगी तो लोग इसी के सहारे उन्हें याद करेंगे।
अच्छा सुन बातों में मत उलझा ला दे पढ़ूं तो सही क्या लिखा है।
इस पर इतराती हुई……… नहीं नहीं मैं पढ़ूंगी।
अच्छा चल यूंही पढ़ सुनूं तो सही मन बहुत अधीर हो रहा है सुनने को जल्दी सुना।
इस पर सुनैना ने खत खोल सुनाने लगी।
प्रिय बेटी
सदा सुहागन रहो।
कैसे हो तुम सब दामाद जी को मेरा स्नेह कहना और बच्चों को आशीर्वाद।
सावन लग गया है ।
बागों में झूले पड़ गए हैं।
आ जाओ कुछ दिन रह लो
तुम्हारा भी मन बहल जाए और घर भी भर जाए।
जौ बो कर बाप चाचा भाई के कानों में खोंसकर लम्बी उम्र की कामना कर लो , गुड़िया का त्योहार भी मना लो भाभी ने मेंहदी पीसी है लगा लो और बाह भर चूड़ी पहन सखियों संग घूम लो ,भाई की कलाई पर राखी बांधकर चली जाना आखिर बहन बेटियों का ही तो त्योहार है मना मत करना चली जाना। हम तुम्हारी बाट जोहे गे।
तुम्हारी अम्मा
पढ़ते पढ़ते सुनैना कि आंख डबडबा आईं।
खत अपने पन की खुशबू से महक रहा था जिसे मां बेटी दोनों ने महसूस किया।
और सुनैना बोली सच मां पाती में बड़ा प्यार होता है।
और रेखा तो मानों
अम्मा की पाती सुन आंसुओं में नहा ली। मानो पल भर में पूरे सावन को जी लिया हो ।
स्वरचित
कंचन श्रीवास्तव