अखंड सौभाग्यवती भव – भगवती सक्सेना : Moral Stories in Hindi

रवीना की जेठानी रमा का स्वर्गवास बीस दिन पहले हुआ था, और आज जेठ जी रात को ऐसे सोये कि सुबह उठे ही नहीं। उम्र भी पचहत्तर के करीब हो चली थी। शाम तक लोगो का आना जाना होता रहा, क्रिया कर्म के बाद जब रात को थक कर चूर हो बिस्तर पर पड़ी तो आज रवीना का मन अतीत के चार दशक पीछे भाग रहा था। बड़े शहर में रहने के बावजूद एक कस्बे के सरकारी ऑफीसर से ही उसकी शादी तय हुई और घर मे सबके कहने पर रवीना भी तैयार हो गयी। प्राचीन परंपराओं वाले ससुराल में विवाह हो गया।

रवीना दुल्हन बनकर कमरे में बैठी थी, तभी रमा जीजी, उसकी जिठानी आयी और बोली, “पल्लू सिर पर ठीक से रखो, और रिसेप्शन नही होगा, क्योंकि गांव में कोई दूर के रिश्ते के  चाचाजी नही रहे। कई मेहमान आएंगे, ठीक से चरण स्पर्श करना, शायद तुम्हारी अम्मा ने नही सिखाया, पैर सिर्फ छूना नही है, दबाते हुए आशीर्वाद लेना है, लिफाफा देंगे, बाद में मुझे दे देना, सब का नाम लिखना पड़ेगा।”

उसके बाद ही रवीना समझ गयी, इस घर में 

 इनका ही राज चलता है। गांव की प्राइमरी कक्षा पास रमा जीजी उस समय मुझे चतुर लगी। बड़े शहर से आयी रवीना मजबूर होकर कुछ महीने उनके बताए नियमो पर चलती रही, क्योंकि श्रीमान जी भी उनकी हां में हां मिलाते थे।

कुछ ही दिनों में उसने स्कूल में शिक्षिका की जॉब भी शुरू करी। घर मे नियम था, जैसे ही ससुर जी या जेठ जी आये, सब बहुएं सिर पर पल्लू रखती थी। खासकर रमा जीजी उसको देखकर इशारा करती और अपना पल्ला भी जल्दी से सिर में कुछ ज्यादा ही ढकती, चाहे साड़ी और कहीं से सरक जाए। कुछ ही महीनों में रवीना के मन मे कई सवाल उठने लगे, क्यों स्त्रियों को ही सिर ढकना पड़ता है। भीषण गर्मी में जब पुरुष बनियान में घूमते हैं,

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हमारे लिए रसोई में गर्मी में रोटी बनाते, परोसते समय भी सिर पर पल्लू रखना पड़ता है। रवीना हमेशा शहर में और मैगजीन्स में समाज को बदलते देख रही थी। अब उसके मन मे विरोध बढ़ने लगा और उसने धीरे से शालीनता से पर बिना सिर पर लिए काम करना शुरू किया। पहले रमा जीजी ने ही घूरा फिर कुछ दिनों में सबने मान लिया। इस बीच रवीना एक बेटे की माँ भी बनी, इस बार रमा जीजी ने घर और अस्पताल में पूरा रातदिन साथ दिया। अब रवीना के मन मे उनके प्रति सॉफ्ट कार्नर बन गया।

 सासु जी बहुत वृद्ध थी, जेठानी रमा ने ही घर संभाला हुआ था। छोटा सा कस्बा था, पर हर कोई रमा को जानता था कि सेवाभाव बहुत ज्यादा है। और सासु जी बाद में बिस्तर पर ही पड़ गयी, सारी सेवा रमा जीजी ने ही किया और सासु जी करीब सुबह से रात तक दस बार तो उनको आशीर्वाद दे ही देती थी, अखंड सौभाग्यवती भव !! उनके मुंह से बड़ा प्यारा लगता था, और उस समय रमा जीजी मुस्कुरा देती, फिर दूसरे काम मे लग जाती। घर मे सब हंसते, ये अम्मा लाखो बार, ये आशीर्वाद देती हैं, इसका कुछ तो असर होगा ही। रवीना अपनी सर्विस और रसोई संभालती, उसको बहुत ज्यादा आशीर्वाद नही मिलता।

अब कुछ दिनों की बीमारी में अम्मा चल बसी। समय बीतता गया, रमा जीजी की भी उम्र बढ़ चली थी, कई बीमारियों ने घेर लिया था। पर जेठ जी अधिक बीमार रहते थे, एक बार दिल का दौरा पड़ा, अस्पताल में एक महीने रहे। रमा जीजी हिम्मत हार चुकी थी, फिर भी रवीना से बोल देती, नहीं उन्हें कुछ नही हो सकता, अम्मा का आशीर्वाद बेकार नही जाएगा। उसी के कुछ दिन बाद दवाइयों ने काम किया और जेठ जी सकुशल वापस आ गए।

फिर कोरोना दैत्य के अवतार के समय भी बुरी तरह ऑक्सीजन की कमी हुई, सांस लेने में परेशानी हुई, एडमिट हुए, पर उस आशीर्वाद से ठीक होकर घर आये।

अभी एक महीने पहले घर मे ही गिर गयी, फिर बिस्तर से नही उठ पायी और इहलोक पहुँच गयी, उनको आशीर्वाद फल गया, सौभाग्यवती के साज श्रृंगार के साथ ही गयीं और आज जेठ जी भी उनके पास पहुँच गये।

जमाना बहुत आगे बढ़ चला, विज्ञान ने पुरानी मान्यताओं को बहुत पीछे छोड़ दिया। पर कई बार कुछ चीजें विश्वास करने पर मजबूर करती हैं।

स्वरचित

भगवती सक्सेना गौड़

बेंगलुरु

1 thought on “अखंड सौभाग्यवती भव – भगवती सक्सेना : Moral Stories in Hindi”

  1. मार्मिक और हृदय स्पर्शी कहानी है बड़ों की निस्वार्थ भाव से की गई सेवा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती है।

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