पति नारायण और पत्नी पदमा। दोनों सरल हृदय, निस्वार्थी, परोपकारी और मधुर व्यवहारवाले थे।उनका इकलौता पुत्र राघव बिल्कुल उन्ही पर गया था।
नारायण और पदमा दोनों को जब भी मौका मिलता, दूसरों की मदद करते, कभी गरीबों को भोजन करवाते कभी गरीब लड़कियों के विवाह में सहायता करते तो कभी किसी को मुफ्त में दवाइयां दिलवाते।
राघव भी बचपन से यही सब देखते हुए बड़ा हुआ था। वह स्त्रियों का बहुत आदर करता था। वह एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था और अब उसकी आयु विवाह योग्य हो गई थी।
एक सुंदर पढ़ी-लिखी, कन्या सौम्या से उसका विवाह संपन्न हुआ। सौम्या अपने नाम के अनुरूप सौम्य थी। उसने आते ही अपने मधुर व्यवहार से सास ससुर का दिल जीत लिया था।
प्रतिदिन वह जब सुबह उठकर अपने सास ससुर के चरण स्पर्श करती तो दोनों के मुख से आशीर्वाद निकलता, ” अखंड सौभाग्यवती रहो ”
विवाह के बाद जब भी वह मायके जाती, नारायण और पदमा को अपना घर खाली खाली लगने लगता और वह उसे फोन करते, उसका और उसके माता-पिता का हाल-चाल पूछते। सौम्या ज्यादा दिन तक मायके में नहीं रहती थी, जल्दी लौट आती थी।
राघव उसे बहुत चाहता था। उसने एक दिन सौम्या को बताया कि-” मैं यह कंपनी छोड़ना चाहता हूं। यहां जो बॉस है मैं उसे बिल्कुल पसंद नहीं करता हूं। मैं दूसरी नौकरी ढूंढ रहा हूं। वह एक बहुत ही बदतमीज और बेशर्म इंसान है, बल्कि कहना चाहिए कि इंसान है ही नहीं। ऑफिस में काम करने वाली औरतों को गंदी नजर से देखता है और मौका मिलते ही उन्हें स्पर्श करने की कोशिश करता है। मैं उसे दो बार बुरी तरह झिडक भी चुका हूं लेकिन कुत्ते की दुम टेढ़ी की टेढ़ी। उल्टा अब वह मुझसे चिढ़ने लगा है और मेरी आगे होने वाली तरक्की में टांग अडा रहा है और मुझसे कहता है कि अपने काम से काम रखो। “
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सौम्या -” आप परेशान मत होइए, अच्छी नौकरी ढूंढ कर, उसे छोड़ दीजिएगा।”
बॉस की पावरफुल पहुंच के कारण और अपनी नौकरी की खातिर औरतें भी उसके खिलाफ शिकायत नहीं करती थी।
शिकायत न होने के कारण वह बेखौफ होता जा रहा था। अब इस बार केतकी जब नौकरी करने आई, बॉस की बदतमीजी बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की। पहले तो उसने ऑफिस में सबके सामने बॉस को खरी खोटी सुनाई और फिर उसके खिलाफ एफ आर आई दर्ज करवा दी। पुलिस ने ऑफिस में आकर लोगों से पूछा तब कोई बॉस के खिलाफ नहीं बोला। सिर्फ राघव ने सच बताया। केतकी की नौकरी जा चुकी थी और राघव की नौकरी खतरे में थी।
राघव को सबक सिखाने के लिए बॉस ने उसकी गाड़ी को ट्रक से कुचलवा दिया। बेचारा राघव बुरी तरह घायल हो गया। कुछ लोगों ने उसे समय पर अस्पताल पहुंचा दिया और उसके घर के लोगों को खबर की।
डॉक्टर ने उसके माता-पिता से कहा कि राघव की हालत बेहद खराब है। कुछ कहा नहीं जा सकता। 24 घंटे बाद राघव को होश आया। माता-पिता के अच्छे कर्म और उनका सौम्या को बार-बार आशीर्वाद देना, अखंड सौभाग्यवती रहो, चमत्कार कर गया था। डॉक्टर खुद हैरान थे कि यह चमत्कार कैसे हो गया।
इतनी खतरनाक हादसे के बाद राघव बच गया था।
पुलिस ने सड़क पर लगे सीसीटीवी की मदद से ट्रक ड्राइवर को ढूंढ निकाला और उसे डंडे मार मार कर सच उगल वाया।
उसके बयान में बॉस का नाम आते ही राघव सब कुछ समझ गया। उसके माता-पिता ने और केतकी ने मिलकर राघव की हत्या और यौन उत्पीड़न का केस उसके ऊपर कर दिया।
4 साल तक केस चला और अंत में सत्य की जीत हुई। केतकी को बिना कारण नौकरी से निकाले जाने का मुआवजा मिला और राघव को भी। बॉस को उम्र कैद हुई। इन चार सालों में सौम्या ने पग पग पर राघव का साथ दिया, उसे समझा। उसके तनाव को अपनी बातों से दूर किया। नारायण और पदमा को सौम्या के सौभाग्यवती होने पर पूर्ण विश्वास था। उन्हें लगता था कि उसके सौभाग्य के कारण ही राघव को उसका जीवन दोबारा मिला है। वह उसे हर पल आशीर्वाद देते थे ” अखंड सौभाग्यवती रहो। ”
स्वरचित, अप्रकाशित, गीता वाधवानी दिल्ली
सौभाग्यवती