अजूबा – मुकुन्द लाल

  यह घटना उस समय की है, जब मैं बेरोजगार था। अपना परवरिश करने के लिए या यों समझिये कि अपना पेट पालने के लिए एक शुभचिंतक के घर में इस शर्त पर रह रहा था कि उसके लड़के को सबह और शाम दो घंटे पढ़ाना है, इसके एवज में रहने के लिए एक छोटे से कमरे, दो टाइम खाना व नास्ता और महीना में पाॅकेट खर्च के लिए सौ-पचास रुपये मिलेंगे।

  उसका लड़का मैट्रिक में पढ़ रहा था। वह गणित, विज्ञान और अंग्रेज़ी में बहुत कमजोर था।

  गर्मी का मौसम था। बेहद उमस भरी रात थी। घर के लगभग सभी लोग उस एक मंजिल वाले मकान की छत पर सोने के लिए पहुंँच गये थे। वैसे भी उस समय छत पर सोने का प्रचलन अत्यधिक था। मैं भी लम्बी-चौड़ी छत के एक हिस्से में यथेष्ट दूरी बनाकर सोने के लिए अपना बिछावन लगा दिया।

  घंटे-भर बाद ही सभी लोग गहरी निद्रा में सो गये। मुझे नींद नहीं आ रही थी। वैसे भी बेरोजगारी और अनिश्चित भविष्य का शिकार आदमी कितनी निश्चिंतता से सो सकता है। तरह-तरह की दुश्चिंताओं ने मेरी नींद मुझसे छीन ली थी। मैं ऐसे ही लेटा हुआ था। रात के एक बज चुके थे। चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था। कुत्ते भी जो रह-रहकर भौंक रहे थे। वे भी शायद गहरी नींद का आनंद ले रहे थे लेकिन मेरी नींद मुझसे बहुत दूर चली गई थी।

  अचानक मुझे किसी की पदचाप सुनाई पङी। मैंने अपना सिर थोड़ा उठाकर देखा तो हैरत से देखता ही रह गया। एक खूबसूरत लड़की कीमती परिधान में, सोलहों श्रृंँगार करके मकान के बाउंड्रीवाल पर इस प्रकार चलती हुई छत की तरफ बढ़ रही थी, मानो वह जमीन पर चल रही हो।

  मैंने अपना सिर शर्म से नीचे कर लिया और सोचने लगा कि हो न हो यह प्रेम-प्रसंग का मामला है। इस लड़की का अवश्य ही मेरे युवा विद्यार्थी से ही रोमांस चल रहा होगा क्योंकि उस परिवार के शेष सभी लोग शादीशुदा थे।

  मैं आंँखें खोलकर लेटा रहा। उसकी गतिविधियों का निरीक्षण करने लगा। वह नाज़ुक सी दिखने वाली लड़की बाउंड्रीवाल से छत पर पलक झपकते इतनी आसानी से पहुंँच गई कि मैं विस्फारित नेत्रों से देखता रह गया। मुझे लगा कि कोई पुरुष भी इस प्रकार शीघ्रता से छत पर नहीं चढ सकता है।


  खैर, मैं सोचने लगा कि अब वह निश्चित रूप से विद्यार्थी जो उससे दूर में सोया हुआ था, के पास जाएगी। ऐसी कल्पना करके मैंने अपनी आंँखें बन्द कर ली, फिर मैंने करवट बदल लिया दूसरी तरफ।

  किन्तु यह क्या? अचानक वह उधर न जाकर उसके कदम मेरे बिस्तर की ओर बढ़ने लगे। ऐसा कैसे हो सकता है? क्या माजरा है? यह तो मुझे बदनाम कर देगी। वह बिलकुल मेरे पास पहुंँच चुकी थी। वह मेरी तरफ अपना हाथ बढ़ाना ही चाह रही थी कि मैं उठकर बैठ गया और बिना विलंब किये हुए मैंने कड़ककर पूछा, ” कौन हो तुम?…. क्या बात है?”

  इतना कहना था कि वह तूफ़ान की गति से दौड़ पड़ी उस ओर जिधर से आई थी, फिर हैरतअंगेज तरीके से छत पर से बाउंड्रीवाल पर पहुंँचकर यों दौड़ने लगी जैसे उसके लिए दीवार पर दौड़ना मामूली बात हो।

  कुछ क्षण के बाद ही चाहरदीवारी के कोने के पास स्थित कुंँए से ऐसी आवाज सुनाई पड़ी, मानो कोई कुँआ में कोई कूद गया हो।

  तब तक घर के अन्य लोग भी हलचल और आवाज होने के कारण जाग गये थे।

  शुभचिंतक ने मुझसे पूछा, ” क्या बात है सर!”

  उसको मैंने पूरी दास्तान सुना दी

  वह समझ गये। दस-पंद्रह वर्ष पहले उसके परिवार में किसी लड़की ने शादी असफल होने के कारण उसी कुंँए में कूदकर आत्महत्या कर ली थी।

  घर के दो-तीन लोगों ने कुएंँ की जगत पर चढ़ कर उसे बहुत डाँटा फटकारा और उनलोगों ने चेतावनी देते हुए कहा कि ऐसा दुबारा नहीं होना चाहिए।

   स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित

                मुकुन्द लाल

               हजारीबाग(झारखंड) 

                 07-07-2022

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