अजन्मी आकांक्षाबाएँ* – सरला मेहता

मकरंद की पसंद थी मंदा। माँ पापा तो इस सम्बन्ध के पक्ष में ही नहीं थे। वे चाहते थे कि इकलौते बेटे के लिए बहू के परिवार की पूरी जानकारी हो। चाहे विजातीय हो किन्तु पत्रिका का मिलान ज़रूरी। मकरंद ने ऐलान ही कर दिया था कि ब्याह करेगा तो मंदा से वरना कुँवारा ही रहेगा। माँ को यह बात भी खलती थी आकि मंदा की माँ की कोख ने तीन तीन बेटियाँ ही दी। किन्तु करे क्या ? बेटे की ज़िद के आगे झुकना ही पड़ा।

मंदा व मकरंद दोनों ही नौकरीपेशा हैं। शादी के बाद मंदा ससुराल में अपनी जिम्मेदारियाँ बखूबी निभाती है। किसी को शिकायत का अवसर नहीं देती है। माँजी वैसे तो खुश है पर धुकधुकी लगी रहती है कि बहू को पहली संतान बेटा ना हुआ तो…। आजकल दूसरा बच्चा कौन चाहता है। बाबा को तो बस अपने साथ खेलने वाला चाहिए। फ़िर चाहे वो गुड्डा हो या गुड़िया।

माँजी बाबा की इच्छा के खातिर मंदा जैसे तैसे बच्चे के लिए पति को मना लेती है। दोनों सोचते हैं , ” इसी बहाने माँ बाबा को खुशियाँ दे पाएँगे। और बच्चे की देखभाल का दायित्व भी वे सहर्ष निभा लेंगे। “

नए मेहमान के स्वागत में पूरा परिवार जुट जाता है। हर कमरे में लड्डू गोपाल जी की तस्वीर या  मूर्ति विराजमान हो जाती है। पूजा-पाठ मान-मनौती से लेकर टोने-टोटके की भी कमी नहीं। साथ में केसर का दूध व पान बीड़ा माँजी भूलती नहीं। बेटा भी अपने पापा जैसा गोरा चिट्ठा होना चाहिए। मंदा का रंग थोड़ा दबा हुआ जो है।

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ईश्वर की मर्ज़ी के आगे किसी की कहाँ चलती है।  एक गुलाबी गुड़िया हुबहू परी जैसी आ जाती है और नाम भी परी ही रख देते हैं। घर में सिवा माँजी के सब खुशी के मारे बोराक रहे हैं।

वे फ़िर भी एक कतरा खुशी का ढूंढ ही लेती हैं, ” परी का चौड़ा कपाल उसका भाग्य दर्शाता है। वह अवश्य भाई लाएगी। “

    परी की किलकारियों में दादी की पोते की लालसा गुम नहीं हो पाती है। जब तब सबके सामने कहने से नहीं चूकती, ” देखो, बच्चे का विकास दूसरे बच्चे की संगत में ही अच्छे से होता है। पड़ोस के बच्चों को कब तक बुलाऊँ। फ़िर बहन को राखी बाँधने के लिए भाई तो चाहिए ही। “



परी के दिमाग़ में भी दादी ने बिठा दिया। वह यही रट लगाती रहती  है, ” पापा मम्मा मेरे भैया को कब लाओगे ? “

मंदा दूसरे बच्चे का प्लान करती है। उसे अनिच्छा से ही सही, लिंग परीक्षण की प्रताड़ना से गुज़रना पड़ता है। दूसरी बेटी की खबर से माँजी तो बीमार ही हो जाती है। घर में कोई भी गर्भपात के पक्ष में नहीं हैं सिवा माँजी के।

      उदास मंदा सोफ़े पर ही सिर टिका लेती है। उसे झपकी में कुछ कुलमुलाहट का अहसास होता है… दूर कहीं गहराई से भीख सी माँगती बच्ची की आवाज़ गूँजती है,  “मम्मा ! आप दीदी को इतना प्यार करती हो। मुझे भी दे दो ना थोड़ा सा, दीदी के हिस्से में से ही सही। मैं आपका काम नहीं बढ़ाऊँगी। रात को जगाऊँगी भी नहीं। मुझे तो दीदी ही पिला देगी बॉटल से दूध। सच्ची मम्मा, पढ़ाई भी अच्छे से करूँगी। जब मोती की पोती इंदु आई थी,

उसके दादा ने कहा था ना कि यह करोड़ो बेटों से बढ़कर होगी। एक साधारण मनु ही तो रानी लक्ष्मी बनी थी। मम्मा पी टी उषा, मेरीकॉम, सायना, सानिया, कल्पना, सुनीता आदि ये भी तो बेटियाँ ही थी ना। आप मुझे जो भी, जैसा भी बनाना चाहोगी मैं बन कर दिखाऊँगी। मम्मा! मैं दादी को भी सच्ची मना लूँगी। मैं बेटे वाले सारे काम भी कर लूँगी। पापा औऱ आपको छोड़कर समंदर पार कभी नहीं जाऊँगी।  आप मुझ पर ज़्यादा ख़र्चा भी मत करना। खूब मेहनत से पढ़ाई करूँगी तो स्कॉलरशिप मिल ही जाएगी।

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मेरी इच्छा है कि मैं कलेक्टर बनूँ। पापा नहीं बन पाए ना। मैं उनका सपना पूरा करूँगी। दीदी की उतरन से काम चला लूँगी। प्लीज़ मम्मा ! मुझे आपके पेट के अंदर ही खत्म मत करवाना। मुझे आपकी सेहत की चिंता ज़्यादा है। मम्मा ! दीदी और आप दोनों पापा को मनाओ ना। वो दादी के बहानों में ना आए। मुझे मेरी दीदी से मिलना है। उनके साथ खेलना है। मम्मा आ आ आ….।

सपने में सिसकती मंदा को परी झिंझोडती है, ” मम्मा आप क्या बड़बड़ा रही थी नहीं नहीं ऐसा नहीं होगा मेरी बच्ची। बोलो मम्मा क्या हुआ ? “



     मंदा पुचकारते हुए परी से कहती है, ” तुम्हारी छुट्टियाँ हैं। मैं भी ले लेती हूँ। चलो जल्दी से तैयारी करलो। हम नानी के यहॉं जा रहे हैं।पापा को कॉल करके बता देगें। “

” पर मम्मा ! दादा दादी प्रवचन सुनने गए हैं। “

और मंदा, बेटी को लिए मायके आ जाती है। मकरंद आते हैं लिवाने तो सीधा सा जवाब दे देती है, ” अब मैं अपनी छोटी बेटी को लेकर ही आऊँगी। परी का स्कूल है, इसे ले जाइए। “

वह समय बिताने के लिए पास वाले प्ले स्कूल में तीन घन्टे के लिए नौकरी कर लेती है।

स्कूल से थकी हारी आई  मंदा सीधे अपने कमरे में चली जाती है। चाय का कप लिए माँ प्यार से बेटी का माथा सहलाते बताती है, ” आज फ़िर दामाद जी का फ़ोन आया था। कह रहे थे तुम्हें समझाने का। अपनी माँ के कहने पर लिंग परीक्षण के लिए तुम्हें मजबूर किया। तुमने यहाँ आकर नौकरी भी जॉइन कर ली। वे यहॉं आने का कह रहे थे। “

मंदा सुबकती है, ” माँ ! आने दो उन्हें। मुझे यही शिकायत है कि उन्होंने अपनी माँ को क्यूँ नहीं समझाया। बच्चे का परीक्षण क्यों करवाया। इस गैरकानूनी कार्य के लिए मैंने कोई कदम नहीं उठाया, यह क्या कम है ? माँ ! आपने भी तो हम तीनों बहनों को कितने नाज़ों से पाला। “

माँ आगोश में लेते हुए बोली, ” तुम्हारे पापा को बेटियाँ ही चाहिए थी, मेरी लाड़ो। “

सरला मेहता

इंदौर म प्र

स्वरचित

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