झूले पर बेठे नीता जी एवं सोमेश जी ऐसे ही फुर्सत के क्षण व्यतीत कर रहे थे। तभी नीता जी बोली भगवान ने मेरी एक न सुनी क्या हो जाता यदि दो बेटों में से एक को बेटी बनाकर भेज देते। कम से कम मुझे समझने वाला कोई तो होता घर में। एक बेटी ही माँ की पीडा, दर्द समझ सकती है उसकी खुशी भी बाँटती है और पीडा भी। तुम तीनों बाप बेटों को तो अपनी-अपनी पड़ी रहती है ।
हां भाई अभी भी समय हाथ से नहीं निकला है अपनी यह इच्छा भी पूरी कर लेना अपनी बहुओं को बेटी बनाकर, फिर तो दोनों पक्ष बराबर हो जायेगें तीन तुम तीन हम । यह कह सोमेश जी हँसने लगते हैं ।
नीता जी भी कहाँ पीछे रहे वाली थी वे हंसी में उनका साथ देती है खूब कही। तुम भी न सोमेश कुछ भी कहते हो ,एकबारगी कि तो मैं डर ही गई कि क्या इरादा है तुम्हारा।
हां तो क्या गलत कहा मैंने ।
हाँ यह तो है बहू से ही घर अंगन की शोभा बढती है में तो उन्हें बेटीयों की तरह ही लाड लडाऊंगी। यदि वे दुःखी रहेंगी तो घर में बरकत कभी नहीं होगी। गृह लक्ष्मी आयेंगी मेरी उन्हें दुःखी कैसे देख सकती हूं। ।बात आई गई हो जाती।
पर बक्त कब किसके लिए ठहरा है वह तो अपनी निर्बाध यात्रा पर निकला रहता है सो चलता जा रहा था। कब बच्चे बड़े हो गये, पढ -लिख गये और अच्छे पद पर
बड़े बेटे की नियुक्ति हो गई ।
अब नीता जी को अपनी बहु कम बेटी का इंतजार था।सो उन्होंने लडकी तलाशना शुरू की। वे ज्यादा संपन्न परिवार से रिश्ता नहीं जोड़ना चाहती थी,सो ऐसे रिश्तों को नकारते वे एक ऐसे परिवार की खोज में थी जहाँ पारिवारिक मूल्यों को, अपने पुराने संस्कारों को तवज्जो दी जाती होऔर उन्हें नन्दिनी का परिवार और नन्दिनी भा गई।
बेटेअंशुल की भी स्वीकृति मिलने पर रिश्ता पक्का कर दिया। नन्दिनी एक पढ़ी-लिखी, योग्य, सुंदर ,सुशील कन्या थी। नीता जी अपनी बेटी की दबी आकांक्षा उसमें देख रहीं थी। साथ ही थोडी आशंकित भी थीं कि कहीं बहू ने उन्हें माँ के रुप में स्वीकार नहीं किया तो।
शादी हुई और नन्दिनी अंशुल की दुल्हन बन नीता जी के दरवाजे पर गृह प्रवेश के लिए खडी थी। नीताजी ने आरती उतार, अक्षत कलश ढुलकवा कर बेटे-बहू का गृह प्रवेश कराया और रस्मों रिवाजों में दोपहर हो गई। नन्दिनी रिश्ते की महिलाओं से घिरी बैठी थी हंसी ठिठोली चल रही थी। किसी को उसकी थकान का ध्यान नहीं था । तभी उसका देवर अंश आकर बोला- भाभी मम्मी ने कहा है कि आप थक गई होंगी सो में आपको आपके कमरे तक छोड़ दूं ताकि आप आराम कर सकें।
यह सुन वह मन ही मन चकीत हुई कि ससु मां को उसका कितना ख्याल है और उठ कर अंश के साथ चल पडी । कमरे में जाकर अंश बोला- भाभी मम्मी ने यह भी कहा कि आप ड्रेस चेन्ज कर हल्की ड्रेस पहन लें और वह बापस चला गया। नन्दिनी ने तुरंत दरवाजा बन्द किया और भारी साड़ी उतारने लगी ताकि कुछ हल्का-फुल्का पहन सके।
थोड़ी ही देर बाद फिर दरवाजे पर दस्तक हुई। जैसे ही उसने दरवाजा खोला अंश नाश्ता और ज्यूस लिए खडा था। भाभी ये ले लो आपको भूख लगी होगी मम्मी ने भेजा है। अब वह सोचने को मजबूर हो गई ऐसी भी सास होती है । उसकी सहेलियों ने जो किस्से सुनाए थे कि कैसे भूख से वे परेशान हो गईं थीं कोई ध्यान रखने वाला ही नहीं था।पर यहाँ
तो इतने मेहमानों और कामों के बीच मम्मी जी मेरा पूरा ध्यान रख रहीं हैं। कहते है फर्स्ट इम्प्रैशन का प्रभाव जीवनपर्यन्त नहीं भूलता वही हुआ नन्दिनी अपनी सास की मुरीद हो गई।सब मेहमानों के विदा होने के बाद नीता जी ने उसे अपने पास बिठाया और बोलीं नन्दिनी तुम्हें असुविधा तो हुई होगी चार लोग इकट्ठा होते है तो रूटीन सेट नहीं हो पाता ।
पर बेटा तुम अब इसे अपना ही घर समझो, तुम एक जन्मदायिनी मां को छोडकर आई हो मुझे भी अपनी माँ ही समझो। कोई भी परेशानी हो बेझिझक मुझ से कह देना परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है और जिन कपड़ों में तुम कम्फ़र्टेबल हो पहनो आराम से रहो। और हां सुबह बहुत जल्दी उठने की जरूरत नहीं है सब आराम से उठते हैं ।
कमला आकर सब सम्हाल लेती है वैसे भी अभी तुम इन्जॉय करो। बस केवल परिवार की प्रतिष्ठा का ध्यान रखना यह कह नीता जी प्यार से उसके सिर पर हाथ फिराकर चली गई वह सोच रही थी कि यह कुछ दिनों का दिखावा है ।क्या सास ऐसी भी हो सकती है। मेरी सहेलियों के अनुभवों ने तो मुझे भयभीत कर रखा था।
क्या कुछ समय बीत जाने के बाद इनका असली चेहरा सामने आयेगा। अभी जल्दी कुछ भी निर्णय नहीं लेना चाहिए। नन्दिनी जल्दी ही परिवार में घुलमिल गई क्योंकि यह स्वयं एक हंसमुख, संस्कारित बेटी थी ।मम्मीजी ,पापा जी कहते वह घर में हंसती-डोलती रहती और नीता जी उसे देख- देख कर खुश होती रहतीं
और उनकी इस खुशी पर कभी-कभी सोमेश जी हंसते हुये कटाक्ष करते भई हम तो अब दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल दिये गये हैं। कभी कहते मम्मी बेटी के बीच मजाल है कोई बोल जाए। नीता जी कहती देखो बहू के आने से कैसा घर आँगन महक रहा है।
दो बर्ष बाद उसके मां बनने की खुशी की आहट पाते ही उन्होंने नंदिनी का दिन रात ख्याल रखा और नन्हें वंश के आने के बाद तो घर में सबको एक खिलौना मिल गया।
कहते है बुरा समय बिना आहट किये कब आ जाये कह नहीं सकते। एक दिन वंश के साथ खेलते-खेलते नीता जी को हार्ट अटैक आया और इतना तीव्र था डाक्टर के पास जाने तक अवसर ही नहीं मिला और उनके प्राण पखेरू उड़ गये। परिवार पर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा। सारी खुशियां तिरोहित हो गई ।घर में तीन मर्द थे पापा जी, अंशुल, अंश और एक अकेली नंदिनी।
छोटे से वंश के साथ उसे नीता जी के साथ रहते कभी पता ही नहीं चला था कि काम कैसे हो जाता था। अब बहुत परेशान हो जाती।घर सास के बिना सूना-सूना लगता। उनके रहते वह बेफ्रिक रहती थी।काम तो करती थी किन्तु जिम्मेदारी नहीं थी। अब सारा बोझ उसके कंधों पर आन पड़ा ।उनके साथ बिताये मधुर दिनों को याद कर रोती।
कैसे त्यौहार पर वे उससे सजने संवारने को कहतीं अब कोई न था कहने वाला । सज लो तो इच्छा नहीं तो कैसे भी रहो। जब भी वह मायके जाती तो कितने उत्साह से वे उसकी तैयारी करवाती। कैसे भाई ,बहन ,
मां पापा के लिए गिफ्ट मंगवाती कहती अरे खाली हाथ जाएगी क्या। कुछ तो लेकर जा सबको अच्छा लगेगा ।घर के एक-एक कोने से उनकी उपस्थिति महसूस करती लगता अभी आकर कहेंगी नंदिनी चल आ चाय पीलें। चल नन्दिनी आज शपिंग पर चलें। पग-पग पर उनकी यादें बिखरी पड़ी थीं। सच ही है यदि बहू के आने से घर का आँगन सजता है तो ससुराल भी तो सास
के बिना फीका होता है।
शिव कुमारी शुक्ला
14-7-24
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित
वाक्य कहानी प्रतियोगिता
वाक्य****घर का आंगन बहू से सजता है तो ससुराल भी तो सास के बिना फीका होता है
दोस्तों यदि शादी के बाद बहू को कुछ समय दिया जाए परिवार के अनुसार ढलने के लिए तो वह धीरे-धीरे ढलने का प्रयास करती है और सामंजस्य बिठा लेती है किन्तु अधिकांश परिवारों में उससे एक दम बदलने की आशा रखी जाती है। यहीं से मनमुटाव की शुरुआत होने लगती है ।
ये मेरा अपना मत है आपके क्या विचार हैं कमेन्ट में जरूर बताएं।