घर में अशांति मची हुई थी।सबके अपने अपने बोल थे। रीमा बुआ अलग मुंह फुलाकर बैठी हुई थी। उधर बड़ी चाची का पारा वैसे भी चढ़ा हुआ था।
बाबाजी गुस्से में गर्म हुए जा रहे थे और अम्मा का तो कहना ही क्या!हाई बीपी की मरीज उसपर सबके तलवार उनके ही सिर पर लटक रहे थे।
कारण था शुभेंदु भैया ने पहले ही कंटेंप्ट में प्रशासनिक परीक्षा पास कर गए थे।
सबके आंखों में खटकने लगे थे।रीमा बुआ अपने देवर की लड़की से शादी कराने के लिए आस लगाए बैठी थी, उधर बड़ी चाची अपनी बहन की बेटी से शादी कराने के लिए जोर डाल रही थी।
बाबाजी अपनी पसंद का फरमान जारी कर चुके थे।अब इन सब के बीच शुभेंदु भैया ने अपना बम सबके ऊपर फोड़ दिया।
“मैंने लड़की पसंद कर लिया है। मुझे जूही बहुत पसंद है और मैं उसी से शादी करूंगा।”
“जूही!! यह कौन है?”
“ मेरी दोस्त है।”शुभेंदु भैया ने शांति से उत्तर दिया।
“ कब से है ?”
“कॉलेज टाइम से, मेरे साथ ही उसने भी यूपीएससी की परीक्षा पास की है। अब हम दोनों ने फैसला कर लिया कि हम शादी कर लेंगे।”
“ कैसी बातें कर रहे हो तुम।इस खानदान में ऐसी बातें नहीं होती है।अपनी मर्जी से कोई शादी करता है भला !यह सब फिल्मों में होता है।
लव मैरिज का चलन इस घर पर नहीं चलेगा।”
“मेरी ननद की बेटी तो सोना है सोना! लाजो भाभी अगर वह यहां आ गई ना तो आपके घर को स्वर्ग बना देगी।”
“कोई बात नहीं बुआ इस घर को स्वर्ग बनाने की जरूरत नहीं है और न ही हमें स्वर्गवासी बनने की।जो जैसा है वैसे ही रहने दो।”शुभेंदु भैया ने जवाब दिया तो बड़ी चाची बीच में कूद पड़ी “हां हां अब तो तुम्हारे मुंह से जुबान निकलेगी ही लल्ला। मैंने तो अपनी बहन की बेटी तुम्हारे लिए ही देख रखी थी।
वैसे तो उसके लिए रिश्तो की कोई कमी नहीं थी मगर मुझे यह लगा कि लाजो और अशोक के लिए यह अच्छा रहेगा। बुढ़ापे का सहारा बन जाएगी। कामकाज करेगी घर संभाल लेगी।”
“ बड़ी मां, मुझे काम का संभालने वाली लड़की नहीं चाहिए। मां को घर की नौकरानी नहीं चाहिए, मांको एक बहू चाहिए जो कि उन्हें खुश रख सके।अब उन्हें काम करने वाली नौकरानी की क्या जरूरत है। मैं अब पैसे कमा रहा हूं ना उनकी हर खुशी का ध्यान रख सकता हूं।”
घर पर लड़ाई झगड़ा और कोलाहल मचा हुआ था। सब अपनी अपनी फौज लेकर जुटे हुए थे।
सबने मिलकर बहुत समझाया लेकिन शुभेंदु भैया पर तो इश्क का जुनून चढ़ गया था।वह तैयार ही नहीं हो रहे थे।
आखिरकार सब चीजों का ठिकरा अम्मा के माथे फोड़ दिया गया।
“लाजो तुमने कोई संस्कार ही नहीं दिए हैं शुभेंदु को। भला बताओ एक इम्तिहान क्या निकाल लिया खुद से लड़की पसंद कर लिया।
ऐसा भी कहीं होता है क्या?”
जवाब में अम्मा मौन रह जाती थीं,आदत थी। लेकिन वह तेरी हाई ब्लड प्रेशर की मरीज। सब का टेंशन अपने दिमाग में लेकर एक दिन वह बिस्तर पर गिर पड़ी ।
उनका ब्लड प्रेशर हाई हो गया था। अस्पताल में एडमिट करने की जरूरत पड़ गई।
जब घर में कामकाज करने की नौबत आ गई तो धीरे-धीरे बड़ी चाची भी खिसक गई और रीमा बुआ तो पहले ही निकल गई।
“ अब कितने दिन ससुराल छोड़कर हम यहां रहें ।अपने बाल बच्चों को छोड़कर यहां थे। अब यहां से जाते हैं।”
घर खाली हो गया। शुभेंदु भैया को भी अब वापस लौटना था मगर अम्मा बीमार थी इसलिए वह जा नहीं सकते थे।
उनके चेहरे पर पछतावा दिख रहा था।
बाबा और पिताजी दोनों ने अम्मा की बीमारी का कारण भैया के ऊपर मढ़ दिया। “शुभेंदु तुम्हारे कारण ही अम्मा बीमार हुई है!अस्पताल में भर्ती हो गई है।”
शुभेंदु भइया नाराज हो गए ।
वह चिढ़ते हुए बोले “पापा आप भी बुआ और चाची के फेर में पड़ गए हैं वह दोनों अपना उल्लू सीधा करने के चक्कर में घर को अशांति का अखाड़ा बनाने कोई कसर नहीं छोड़ा और आप उन्हीं लोगों को सपोर्ट कर रहे हैं।यह ठीक बात नहीं है। मैं मां को घर वापस ले आऊंगा। आप चिंता मत करो ।”
उन्होंने अपनी गर्लफ्रेंड जूही को फोन किया और अस्पताल जाकर अम्मा से मिलने के लिए कहा।
जूही छुट्टी लेकर अस्पताल में शुभेंदु भैया का इंतजार कर रही थी। शुभेंदु भैया ने मुझसे कहा
“मोना तुम भी तैयार हो जाओ। आज जूही आ रही है। चलो तुम भी मिल लो। “मैं तैयार होकर भैया के साथ अस्पताल के लिए निकल गई।
अस्पताल के बाहर ही जूही हमारा इंतजार कर रही थी ।जूही भैया को देखकर मुस्कुराई और मुझे देखते ही गले लगा लिया।
“या मोना है ना !शुभेंदु बिल्कुल तुम्हारे ऊपर गई है ।”
हंसते हुए वह मां के वार्ड में गई। मां आंखें बंद कर लेटी हुई थीं ।शुभेंदु भैया ने धीरे से बोला “अम्मा आंखें खोलो!”
अम्मा ने अपनी आंखें खोली। सामने भैया और मेरे अलावा एक खूबसूरत परी सी लड़की खड़ी थी। अम्मा अवाक उसकी ओर देखती रही।
“ कौन है यह? कितनी सुंदर है? मां ने धीरे से पूछा।
“मां यह जूही है।”शुभेंदु भैया ने परिचय कराते हुए कहा।
“तभी तो इसने मेरे बेटे का दिल चुरा लिया!” मां ने धीरे से कहा तो जूही हंसने लगी।
“ अम्मा आपको क्या हुआ है ?”
“हाई ब्लड प्रेशर !डॉक्टर ने बताया।” मैंने बोला ।
“भला इसके लिए कोई अस्पताल में एडमिट हो जाता है।” वह अभी भी हंस रही थी।
उसने अम्मा का नब्ज टटोला फिर उसने कहा “थोड़ा ब्लड प्रेशर तो अभी भी बढ़ा हुआ है पर अम्मा आप चिंता मत कीजिए, मैं आपको ठीक कर दूंगी। “
“तुम डॉक्टर हो क्या?”
“ नहीं अम्मा मैं मैं भी तो प्रशासनिक परीक्षा अभी निकाली हूं शिवेंदु के साथ।”
“ पर तुम्हें इतना नॉलेज कैसे है बेटा?” मां ने पूछा।
“ मेरे पापा आयुर्वेद के डॉक्टर है , मां मुझे भी उनके साथ रहते हुए बहुत कुछ का बीमारी का ज्ञान हो गया है। मैं आपको बिल्कुल ठीक कर दूंगी।”
कुछ दिनों बाद अम्मा ठीक होकर घर आ गई।
“ मुझे यह शादी मंजूर है।” उन्होंने अपनी तरफ से रजामंदी देते हुए कहा।
“ क्या हो गया अचानक तुम्हें ?”पापा ने उन्हें टोका ।
“नहीं नहीं ,हम लोग ही गलत थे ।हर समय अपनी ही नहीं चलानी चाहिए। जब हमने बच्चों को बड़ा किया तो बच्चे का भी मन देखना चाहिए।
अगर उसे कोई लड़की पसंद है तो हमें पहले उसकी पसंद पर गौर करना चाहिए कि वह सही है या गलत ।अगर वह सही है तो सही है अगर वह गलत है तो गलत है। बेवजह अशांति को न्योता नहीं देना चाहिए ।अब यह शादी होकर रहेगी चाहे किसी को आना है तो आए नहीं आना है ना आए। मैं अपनी शुभेंदु की खुशी देखूंगी।
उसकी खुशी में ही मैं खुश हूं।” अम्मा ने अपना फरमान जारी कर दिया।
अब किसको हिम्मत थी कि अम्मा की बात काटे। उनकी बात सुनकर बाबा जी ने भी हां कर दिया और पापा के न करने का तो सवाल ही नहीं था।
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प्रेषिका -सीमा प्रियदर्शिनी सहाय
#अशांति
पूर्णतः मौलिक और अप्रकाशित रचना
सीमा जी
कंटेंप्ट नहीं अटेंप्ट होता है। कंटेप्ट का अर्थ अवज्ञा होता है। इसके स्थान पर प्रयास का उपयोग किया जा सकता था।