Moral Stories in Hindi : माँ के जाने के बाद वृंदा जी बस माँ की फ़िक्र में ही लगी रहती थी। जब बेटा ख़ुद आकर ले गया और माँ भी जाना ही चाह रही थी तो वृंदा जी चाहते हुए भी माँ को रख नही पा रही थी। वो अब हर वक़्त माँ के हालात के बारे में सोचती रहती थी।
ये देखकर एक दिन नैना ने कहा,‘‘ नानी से एक बार मिल ही आइए ….आपको भी तसल्ली हो जाएगी।”
दूसरे दिन मन ना माना और वो सुबह ही माँ को मिलने चली गईं। बोल कर गई थी शाम तक आ जाऊँगी पर दोपहर में ही वो घर आ गई।
वृन्दा जी के उदास और आँसुओं से भरे चेहरे को देखकर नैना घबरा गई।
“क्या हुआ मम्मी जी नानी ठीक तो है ना? आप तो शाम को आने वाली थी अभी ही आ गई?’’ नैना ने पूछा
“क्या बोलूँ नैना… मेरे जैसा मायका भगवान किसी को ना दे।’’ आज वहां गई तो पता चला छोटा भाई आया हुआ है वो माँ को लेकर जाने वाला है ….पता नही वो ऐसी हालत में कैसे जा पाएंगी??….और तो और …. कुछ देर को वृंदा जी चुप हो गई। तभी उनका बेटा चिंतन भी घर आ गया।
अपनी माँ को देखकर पूछने लगा ,”क्या हुआ? नानी से मिलने गई थी ना वो ठीक तो है?’’
‘‘ चितंन क्या बताऊँ बेटा….माँ को भी जाने कितना कष्ट लिखा है….दोनों मामा उस घर के लिए नानी को अपने अपने पास लेकर गए हैं….उनको कोई मतलब नही माँ से…..वो बस किसी तरह उसके हस्ताक्षर करवा कर घर जमीन सब अपने नाम करवाने की होड़ में लगे हैं….नानी शायद जानती होगी की उसके बेटे उसके घर के लिए किसी भी हद तक जा सकते इसलिए घर के पेपर अपने पास नही रखी थी….दोनों भाई घर के पेपर माँग रहे थे तो माँ बोल दी कि वो वृंदा के पास रखे हैं….दोनों भाई मुझे सुनाने लगे दीदी इसलिए माँ की सेवा कर रही थी कि वो घर उनको मिल जाए….मैं ऐसा सपने में भी सोच नही सकती थी जो इल्जाम मेरे भाई मुझ पर लगा दिए….दोनों कहने लगे दीदी को क्या कमी है फिर भी जमीन के कागजात अपने पास रखी हुई है लालच होगा तभी ना… ।
मैंने बहुत समझाया ऐसा कुछ भी नही है माँ ने ही रखने के लिए दिया था पर आज माँ भी मौन थी। बस आज मैं माँ से मिलने गई थी पर आज जो कुछ भी वहाँ पर हुआ उसके बाद तो सब रिश्ते ही खत्म हो गए बेटा खून के रिश्ते पर ज़मीन जायदाद और दौलत भारी पड़ गया….दोनों भाई आपस में ही झगड़ने लगे कि कागजात मैं रखूँगा….मैं रखूँगा…..
पर मैंने कह दिया बड़े को दे दूंगी फिर जो करना तुम दोनों का आपस का मामला है….जो ठीक लगे वो करना।
माँ बस मौन थी पता नही बेटों के मोहपाश में जकड़ कर चुप रही और फिर इसलिए कि बेटा उनको साथ लेकर जा रहा…छोटा भाई नाराज हो गया कि मैने बड़े को कागजात देने कह दिया।
उसने मुझे कहा,‘‘ आज से मेरा आपके साथ कोई रिश्ता नहीं रहेगा….वैसे भी आपको हमारी तकलीफ़ कहाँ दिखाई देती हैं।” दोनों भाई चाहते थे माँ उनके कहने पर घर के दो हिस्से कर दे और मैं भी उनकी हाँ मैं हाँ मिलाऊँ पर मैं ऐसा क्यों करती?
वो माँ कीं मर्ज़ी जो करना चाहे करे.. बस फिर तो दोनों भाइयों ने मुझे भला बुरा सुनाकर कहने लगे,”आपको तो हमारी हालत दिखती नहीं? ख़ुद तो मजे से रह रही है.!!
अब मैं ख़ुद तुम लोगों के साथ रहती हूँ मैं उनकी क्या मदद करूँगी? वैसे भी महीने का खर्च तो उनको ख़ुद उठाना होगा ना ….वो भी मुझसे उम्मीद करते हैं…..ये कैसे संभव हो सकता है?” आज तो दोनों ने बड़ी बहन का भी मान ना रखा। मैं आने लगी तो किसी ने रोका भी नहीं। आज मुझे अपने मायके में बहुत अजनबीपन का एहसास हो रहा था। शाम को बड़ा भाई आकर कागजात ले जाएगा। वैसे भी आज जो लाँछन उनलोगो ने लगाए है उसके बाद मेरा भी दिल उन दोनों से फट गया है।
( वृंदा जी की माँ का क्या हुआ जानने के लिए बने रहे अंतिम पड़ाव तक)
चौथा भागः~
बस मैं इस बात के लिए शुक्रगुजार हूँ कि माँ के लिए अपनी तरफ़ से फर्ज निभाने में किसी तरह की कोई कमी नहीं की।
शाम को भाई आकर कागजात ले गया।
वृंदा जी के लिए दोनों भाइयों के दिल में बेवजह की नफरत ने खून के रिश्तों को खोखला कर दिया था। वो सोचने लगी पता नहीं किसके पास काग़ज़ात रहेंगे कौन माँ को रखेगा?
एक माँ सबको भारी लग रही है पर उसका घर ज़मीन लेने के लिए दोनों बेचैन हो रहे हैं…आज अगर वो सब दे देगी तो सबसे पहले उसको ही अपने घर से निकाल देंगे…इसलिए तो वो नही दे रही है….अब माँ को पता नही कब देख पाऊँगी?
वृंदा जी अब माँ के बारे में सोच सोच कर परेशान रहने लगी थी क्योंकि दोनों भाइयों ने वृंदा जी से बात करनी बंद कर दी थी….इसलिए वो अब माँ से बात भी नहीं कर पाती थी क्योंकि माँ को फ़ोन चलाना ही नहीं आता था ना ही उनके पास कोई फ़ोन था….आख़िर माँ की खबर मिले तो मिले कैसे।
अचानक से एक दिन वृन्दा जी जोर जोर से चिल्लाने लगी ,‘‘ माँ तुम ठीक तो हो ना?”
नैना दौड़ती हुई आई और वृंदा जी को झकझोरती हुई बोली ,‘‘ क्या हुआ मम्मी जी कोई बुरा सपना देख रही थी क्या?’’ वृंदा जी घबराकर आँखे खोलते हुए बोली,‘‘ वो माँ के बारे में सोचते सोचते आँख लग गई थी….सपने में देख रही थी वो मुझे बुला रही है।”
“नानी जी ठीक होगी…. आप परेशान मत होइए….रूकिए मैं मामा जी को फोन कर के पूछ लेती हूँ….वो आपसे बात नही करेंगे ना.. पर मुझसे तो कर ही लेंगे।‘‘ कहते हुए नैना ने मामा को फोन कर दिया …नानी से भी स्पीकर पर बात की….वो बोली,”ठीक हूं बेटा बस प्रार्थना कर रही हूं भगवान तुम्हारे नाना के पास मुझे भी बुला लें….वृंदा कैसी है? उसको कहना माँ उसपर बोझ नहीं बनना चाहती थी और उसके पास मरना भी नहीं चाहती थी इसलिए उस दिन चुप रही….अपने बेटों और बेटी का व्यवहार जानती हूँ….अगर उसके पास कागजात रहते तो उसको सुना सुना कर परेशान कर देते और जो मुझे उधर कुछ हो जाता तो कहते बड़ा आगे बढ़ कर लें गई थी सेवा भी ना कर सकी.. जबकि मैं जानती हूं उससे बेहतर सेवा मेरी कोई नही कर सकता है….तेरी सास के जैसा मायका भगवान किसी को ना देवे…..माँ भाई के रहते ऐसे किसी का मायका ना खत्म हो!!” नानी की आवाज भारी हो गई थी और किसी ने उधर से फोन कट कर दिया।
आज वृंदा जी माँ की आवाज सुन खुश हो गई थी कि माँ ठीक है अभी भी जिन्दा है पर कल क्या होगा और उनको कोई बताएगा भी और नहीं ? ये सोच कर वो हमेशा रोती रहती थी एक ही शहर में होने के बावजूद बड़े भाई से कोई मतलब नहीं रह गया था… वो यहाँ रहने वाले सारे रिश्तेदारों में वृंदा जी को बुरा भला कहता रहता.. ये सब बातें जब उन्हें पता चलती उन्हें बहुत दुख होता कि कैसे ये भाई है जो अपने ही खून के रिश्ते को मजाक बना कर रख दिए है… भाभी तो वैसे भी कभी किसी का लिहाज़ नहीं करती थी…खुद को ज्ञानी समझती थी पर बात तक करने का शऊर नहीं था… ऐसे में वृंदा जी ने भी खुद मायके से एकदम से दूरी बना ली.. ये सोच कर कि वो अभी बस मेरे लिए बोलते हैं कल को बेटे बहू की बुराई करने लगे तो उन्हें बर्दाश्त नहीं होगा । साल बीतने को हुआ पर वृंदा जी की अपनी माँ से कोई बात ना हो पाई और वो बीतते पल के साथ उनकी सलामती की दुआ माँगती रही।
( अंतिम पड़ाव पर हम जानते हैं आख़िर वृंदा जी की माँ को छोटा बेटा साथ लेकर क्यों गया?)
अंतिम भागः~
दीवाली से ठीक दो दिन पहले की ही तो बात है सब लोग दीवाली और छठ की तैयारियों में व्यस्त थे तभी वृंदा जी को एक अंजान नम्बर से फ़ोन आया,“ मैं अनाथ हो गया…. माँ छोड़ कर चली गई ।” और सिसकियाँ सुनाई देने लगी ये आवाज़ सुन वृंदा जी के हाथ पाँव सुन्न हो गए, छोटे भाई की आवाज़ थी जो रो रहा था
वृंदा जी ये सुन कर दहाड़े मार कर रोने लगी….फोन हाथ में पकड़े हुए ही थी…
आवाज़ सुन कर नैना दौड़ती हुई आई और बोली,“ क्या हुआ मम्मी… आप ऐसे क्यों रो रही है… किसका फ़ोन आया था।” कह नैना फ़ोन ले ली पर शायद फोन कट गया था ।
“बताइए ना मम्मी क्या हुआ… आप ऐसे क्यों रो रही है ।” एक अनहोनी की आशंका नैना के मन में भी हो रही थी
“ नैना माँ चली गई बाबूजी के पास…. चली गई… मैं मिल भी नहीं पाई…. वो तो अच्छा हुआ कुछ दिन पहले बेटा उधर गया था तो नानी से मिल आया… विडियो कॉल पर मैं माँ को देख भी ली… पर वो अब किसी को पहचान भी नहीं रही थी बस एक ही रट लगा रही थी मुझे यहाँ से ले चलो… मेरे घर में ही मुझे रहने दो… पर ना वो आ सकी ना अब कभी यहाँ आ पाएगी ।” कह कर वृंदा जी नैना को पकड़ कर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी।
कहते हैं क़िस्मत में सब कुछ लिखा होता है कब किससे मिलना होगा और कब नहीं… वृंदा जी माँ से फिर कभी नहीं मिल पाई… और उनकी माँ उस यात्रा पर निकल गई जहाँ पर उन्हें इस जहाँ के स्वार्थी बेटों से मिल गया था ।
अब माँ के दाह संस्कार को लेकर भी बेटों में तन गई थी वृंदा जी के बड़े भाई ने छोटे से कहा,“ यहाँ लेकर आ जाओ जो करना होगा यहाँ करेंगे पर छोटे बेटे ने बात ना मानी… उनका दाह संस्कार वहीं किया जाएगा जहाँ वो रहता है और माँ का देहान्त हुआ है ।
बड़ा बेटा बहू किसी तरह अंतिम संस्कार के लिए पहुँच तो गए पर उसी दिन लौट आए..।
अंतिम यात्रा के दौरान बड़ी बहू सबसे यही कह रही थी ,“इन लोगों ने माँ का ध्यान नहीं रखा मार दिया उनको ..हमारे पास रहती तो इतनी जल्दी नहीं जाती ….ये सब बस ज़मीन के काग़ज़ात के लोभ में माँ को यहाँ ले आए ताकि माँ को मना कर काग़ज़ात पर साइन करवा सके पर हम इतनी आसानी से थोड़ी ना मान जाएँगे… ये सोचते हैं इन्हें माँ ज़्यादा दे देगी और हम होने देंगे।”
उस दौरान भी उसे सास के मरने का दुख नहीं था साथ चलने वाले एक पड़ोसी ने तो यहा तक कह दिया,”कैसी औरत है आप… सास चली गई पर आप लोगों का झगड़ा यहाँ भी चल रहा है ।”
बड़ी बहू मुँह बिचका कर रह गई ।
दस दिन बाद काम क्रिया होना था सबने यही कहाँ जहाँ अंतिम संस्कार हुए हैं वही सब काम कर दिया जाए… दोनों भाइयों की इस पर भी ना बनी… बड़े का कहना था जो करना है यहाँ आकर करो….पर सब नाते रिश्तेदार छोटे भाई के घर पहुँच गए।
जाने वाली तकलीफ़ सह कर चली गई पर पीछे से व्यवहार करने की रस्म कैसे बाकी रह जाती …. वृंदा जी भी गई… माँ तो रही नहीं पर माँ कीं पसंद की चीजों से वो उनकी विदाई करना चाहती थी ताकि उनकी आत्मा तृप्त हो सके… वो जानती थी पिताजी के जाने के बाद उनकी माँ कभी सुख शांति से नहीं रह सकी.. बेटी के पास आकर रहना भी वो कभी नहीं चाहती थी पर जब बेटा ही अपना नहीं रहे तो बहू कहाँ तक फ़र्ज़ निभाएगी… एक घर और ज़मीन के काग़ज़ात ने दो सगे खून के रिश्ते वाले भाइयों में दरार लाया सो लाया … वृंदा जी से भी उनका मायका हमेशा के लिए छूट गया… सबको जोड़ कर रखने वाली जो माँ थी ….वो भी चली गई ….अब काहे का मायका काहे के अपने कहे जाने वाले लोग… और कैसा ये खून का रिश्ता.।
अब जो बँटवारा होगा वो भाइयों में झगड़े से हो या फिर आसानी से हो… वृंदा जी ने अब उनसे आँखें मूँद लिया था….जिन रिश्तों पर ज़मीन जायदाद पैसे ज़्यादा असर दिखाते हो ऐसे रिश्ते कौड़ी के समान होते हैं …..उन दोनों के लिए खून की क़ीमत कुछ नहीं थी ….ऐसा रिश्ता रहे ना रहे सुख तो देगा नहीं .. देगा तो सिर्फ़ आँखों में आँसू…. और वृंदा जी के आँखों के आँसू शायद अब कभी ना सूख पाए…. क्योंकि ऐसा मायका और ऐसे लोग भगवान किसी को भी ना दे… अब वो भी यही कहने लगी थी ।
मेरी रचना पढ़ने के लिए आप सबका धन्यवाद ।
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रश्मि प्रकाश
#खून का रिश्ता
पहला भाग पढ़ें : ऐसों मायका किसी को ना दियो भगवन्
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