” सार्थक ये तुम्हारे और सिमरन के बीच क्या चल रहा है ?” बेटे के घर आते ही सुहासिनी जी ने पूछा।
” वो माँ मैं….मै सिमरन से शादी करना चाहता हूँ! ” सार्थक ने अपनी माँ मधु जी से कहा.
” क्या….. पर बेटा वो तो हमारी जाति की नही है.. कहाँ हम ब्राह्मण कहाँ वो कायस्थ.. हमारी जाति मे एक से एक लड़कियाँ है! ” मधु जी ने सार्थक से कहा.
” पर माँ मुझे सिमरन पसंद है.. वो एक संस्कारी पढ़ी लिखी लड़की है हमारे परिवार के लिए परफेक्ट बहु। जाति से क्या होता.. मैं जाति को नही मानता ” सार्थक बोला.
” नही मैं इस रिश्ते को मंजूरी नही दूँगी सारी बिरादरी मे नाक कट जाएगी हमारी ! ” मधु जी ने गुस्से मे कहा.
” ठीक है माँ मैं आपसे भी प्यार करता हूँ सिमरन से भी आपका मुझपर हक है वैसे भी आपको मैं छोड़ नही सकता पर सिमरन के सिवा किसी को अपना नही सकता इससे अच्छा है मैं शादी ही ना करूँ कभी! ” सार्थक ने शांत शब्दों मे कहा और बाहर चला गया.
” पागल हो गया ये लड़का एक लड़की के लिए सारी जिंदगी खराब कर लेगा… ” मधु जी गुस्से मे चिल्लाई.
” पागल तो तुम हो गई हो जो अपने बच्चे की ख़ुशी से ज्यादा तुम्हें जात पात की पड़ी है। खुशकिस्मत हो जो ऐसा बेटा मिला जो खुद से बता रहा.. वर्ना आजकल तो “हवा” ऐसी बह रही है कि बच्चे शादी करके बताते है माँ बाप को.” मधु जी के पति सुधीर जी जो इतनी देर से माँ बेटे की बात सुन रहे थे ने कहा.
” आप भी….. “
” क्या मैं भी.. सच बोल रहा हूँ मैं क्या तुम नही जानती.. खुद तुम्हारे भाई के बेटे ने प्रेम विवाह किया था घर से भाग कर.. ” सुधीर जी बोले।
” तो हम सबने यहाँ तक की उसके माँ बाप ने भी उससे रिश्ता तोड़ लिया ना यहाँ तक की जायदाद से भी बेदखल कर दिया! ” मधु जी बोली .
” क्या हुआ पर उससे.. घर बिखर गया ना झूठे अहंकार और जात पात की दीवार मे… तुम्हारा बेटा तो तुम्हे इतना प्यार करता है की तुम्हारे लिए सिमरन को छोड़ने को तैयार है…जबकि वो उससे इतना प्यार करता है कि उसके सिवा किसी और से शादी भी नही करेगा। ” सुधीर ने कहा.
” हम्म्…. “
” जमाने के साथ चलो मधु.. बच्चे जब अपने माँ बाप की खुशी के लिए सोचते है तो क्या माँ बाप का फर्ज नही के उनकी खुशी उन्हें दे…जमाने का क्या वो हर हाल बात बनाएगा ! “
” पर क्या सिमरन इस घर के लिए सही साबित होगी? ” मधु जी कुछ सोचते हुए बोली.
” कौन सही कौन गलत ये फैसला कोई नही कर सकता क्या तुम्हारी पसंद की लड़की सही होगी ये साबित कर सकती हो तुम? मेरी बात मानो बच्चों को उनकी खुशी सौंप दो…. ”
” ठीक है जब आप दोनो की यही राय तो मैं कौन होती हूँ । मेरा भी मन है मैं दादी बनूं अपने पोते पोती खिलाऊं पर सार्थक तो मुझसे ये हक ही छीन लेगा अगर मैं अपने अहंकार मे रही तो ….पर कल को कुछ भी होता है तो मैं चुप नही रहूंगी। . ” मधु जी ने कहा.
दोनों परिवारों की रज़ामंदी से शादी हो गई सार्थक और सिमरन की.. मधु जी कुछ दिन तो उखड़ी रही सिमरन से पर उसने अपने व्यवहार से सबके साथ मधु जी का दिल भी जीत लिया..
सच है दोस्तों हमे हवा के रुख के अनुसार खुद को मोड लेना चाहिए जिससे हम और हमारे बच्चे दोनो खुश रहे…अहंकार मे आ ना हम अपने बच्चों की जिंदगी खराब करते है बल्कि अपने लिए भी गड्ढा ही खोदते है।
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल