अब आगे…
प्रथम अपने बेड पर सोने के लिए जा ही रहा था…
कि तभी वह बालकनी से क्या देखता है…
कि नीचे निहारिका जमीन पर कुछ खोज रही है …
उसे देखकर प्रथम चुपचाप नीचे बैठ जाता है …
और निहारिका को गौर से देखता है…
वह क्या देखता है कि निहारिका अपने सर पर पल्लू किये जमीन पर लगातार कुल्हाड़ी से प्रहार कर रही थी …
खुदाई करते-करते वह हांफने लगी थी…
उसके माथे पर पसीना भी आ गया था…
गहरे गड्ढे में से वह कुछ निकालती है …
और उसे अपने सीने से लगाकर बहुत देर तक रोती रहती है…
फिर वापस से उसे जमीन में रख देती है….
और उस पर मिट्टी डाल देती है …
चुपचाप चारों तरफ देखती है निहारिका कोई उसे देख तो नहीं रहा…
और धीरे से अंदर की ओर चली जाती है…
यह दृश्य देखकर तो प्रथम की सिट्टी पिट्टी गुल हो जाती है….
बहुत घबरा जाता है वह…
उसे पूरी रात नींद नहीं आती…
अगले दिन सुबह उठ देवेश बोलता है…
कि चलो तुम लोग नाश्ता पानी कर लो …
मुझे एक कमरा बताया है मेरे फ्रेंड ने..
तुम लोगों को दिखा लाता हूं …
अगर तुम दोनों की बात बन जाए तो एक ही कमरे में रह लेना…
खर्चा भी कम आएगा तुम दोनों का…
क्यों …
क्या बोलते हो प्रथम…??
देवेश दोनों लड़कों की तरह देख कर बोला….
हां सर …
हम लोग रह लेंगे…
भाई ही तो है ये मेरा…
वह लड़का राजीव भी प्रथम को देखकर मुस्कुरा दिया…
तभी निहारिका नाश्ता लेकर आ गयी …
प्रथम निहारिका के चेहरे की ओर देख रहा था…
वो उसे पढ़ना चाहता था कि यह लड़की तो एक अनसुलझी हुई पहेली है …
यह रात में क्या कर रही थी वहां …
पता नहीं..
लेकिन मुझे क्या करना …
सबकी अपनी-अपनी जिंदगी…
मैं तो पढ़ने आया हूं …
और पढ़ाई पर ही ध्यान देना है…
मन ही मन में तरह तरह के प्रश्न और उसके जवाब दे रहा था प्रथम….
ठीक है सर….
चलिए…
हमें कमरा दिखा लाईये…
आज से क्लास में भी जाना है …
देवेश प्रथम और उस लड़के को लेकर बाहर की तरफ जाने लगा…
तभी निहारिका दौड़ती हुई आई ..
यह लीजिए…
आप लोगों के लिए खाना भी पैक कर दिया है…
अब क्या ही दोपहर को आप लोग बनाएंगे …
शाम से अपनी तैयारी कर लीजिएगा…
थैंक यू मैम…
आप मुझे मैम बोल रहे हैं…
अभी तक तो निहारिका जी बोलते थे…
वैसे तो निहारिका ही बोलिए ना मुझे…
प्यार से मुस्कुराती हुई बोली निहारिका…
पता नहीं किस तरह की लड़की है …
यह तो गिरगिट की तरह रंग बदलती है…
अभी तक समझ नहीं पा रहा हूं मैं …
तभी बाहर की ओर दोनों लोग आ गए…
निहारिका अभी भी प्रथम की ओर ही देख रही थी …
प्रथम भी बार बार पलटकर निहारिका को देखे जा रहा था…
देवेश उन्हे कमरे पर ले आया था …
रेंट भी ज्यादा नहीं था…
देवेश ने उन लोगों की व्यवस्था कर दी …
बोला …
किसी सामान की ज़रूरत हो तो मुझे बता देना…
अब मैं निकलता हूं अपने ऑफिस के लिए…
ठीक है सर …
थैंक यू सो मच …
आप लोगों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया…
इसका एहसान हम जीवन भर नहीं चुका पाएंगे …
अरे अभी एहसान हुए ही कहां है …
अभी तो तुम्हें इतने साल रहना है …
जब भी जरूरत हो बताना…
देवेश प्रथम और राजीव से हाथ मिलाकर चला गया…
कि तभी कुछ प्रथम को याद आया…
दौड़ता हुआ आया..
सर आपसे एक बात पूछनी थी…
हां पूछो प्रथम…
क्या बात है…??
सर..
निहारिकाजी…
आपकी क्या लगती हैं…??
प्रथम नहीं पूछता तो उसके मन में बहुत ही उलझन रहती…
प्रथम के मुंह से ऐसा प्रश्न सुन एक पल को तो देवेश शांत रहा…
फिर बोला …
वह मेरी सब कुछ है …
किसी दिन फुर्सत से बैठकर बताऊंगा…
ओके सर… इंतजार रहेगा…
यह बोल देवेश चला गया …
प्रथम और वह लड़का कॉलेज के पहले दिन आए हैं..
बहुत ही खुशनामा माहोल हैं कोलेज का….
इधर प्रथम के घर में बड़ी बहू ने हंगामा कर दिया था…
क्योंकि उसने अपनी ननद कविता को किसी लड़के के साथ बाइक पर जाते हुए देख लिया था …
उसने बाऊजी को बुलाया…
बाऊजी देख लो ..
जीजी..
क्या कर रही हैं …
और तुम हम पर ही पूरे दिन चिल्लाते रहते हो…
इन पर भी लगाम लगाये लिओ…
क्या कर रही ऐसो लाली…
बताये तो दे…
पटर पटर बोले जा रही …
तो सुनो बाऊजी…
छोरा के साथ यह बाइक पर जा रही थी …
मैंने अपनी आंखों से देखो…
ए री कविता …
जोर की आवाज में दीनानाथ जी चिल्लाए…
तेरी भाभी का कह रही….
क्या हुआ बाऊजी..??
कल तोये य़ाने एक छोरा के साथ बाइक पर देखो…
अच्छा वो प्रतीक …
वो लड़का तो मेरा कॉलेज का फ्रेंड है बाऊ जी…
मुझे ऑटो नहीं मिल रहा था …
बारिश हो रही थी …
तो इसलिए उसने मुझे बैठा लिया ….
क्या भाभी आप भी छोटी सी बात का बतंगड़ बनाती हैं….
क्यों झूठ बोलती है…??
तू चिपकी ना हुई थी उस छोरा से मधुमक्खी की तरह…
मुझे सब दिख रहा था…
कविता सकपका गई …
तो बाऊजी मैं झूठ ना बोल पाऊंगी अब ज्यादा दिन तक …
मैं आपको बताती हूं …
आप मेरे साथ चलिये…
बाऊजी का हाथ पकड़ कर कविता अंदर वाले कमरे में आ गई…
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अहमियत रिश्तों की (भाग-8) – मीनाक्षी सिंह : Moral stories in hindi
तब तक के लिए जय श्री राधे …
मीनाक्षी सिंह
आगरा