दादा जी-दादा जी,क्या हो गया है आपको?हे भगवान घर मे कोई है नहीं, कैसे दादा जी को संभालू?
अरे हाँ, माँ एक बार कह रही थी कि बच्चे और बुजुर्ग की देखभाल में अंतर नही होता।माँ ने भी दादा की ऐसा ही समझ कर सेवा की थी।अधिक सोच विचार न कर शालू तुरंत अपने पति रितेश के दादा बिहारी जी के पास पहुंच गयी।बेसुध बिस्तर से नीचे पड़े बिहारी जी को किसी प्रकार अपना सहारा देकर बिस्तर पर लिटाया,उनके कपड़े बदल कर, डॉक्टर को फोन भी कर दिया।
डॉक्टर ने बताया कि ब्लड प्रेशर कम होने के कारण उन्हें चक्कर आ गया था।दवाई लिख दी है,ठीक हो जायेंगे।डॉक्टर के जाते ही शालू ने फोन करके मेडिकल स्टोर से दवाइयां भी मंगवा ली और दादा जी को दवाई दे दी,उन्हें नींद आ गयी।तब शालू घर के काम मे लग गयी।
पिछले वर्ष ही रितेश और शालू की शादी हुई थी।शालू निम्न मध्यम परिवार से सम्बंधित थी जबकि रितेश का परिवार सम्पन्न था।शालू की सुंदरता के कारण यह शादी हो पायी।रितेश के परिवार में उसके अतिरिक्त उसकी बहन पिंकी,माँ-पिता तथा उसके दादा थे। 82 वर्षीय दादा बिहारी बीमार रहने लगे थे और अधिकतर बिस्तर पर ही रहते
।पिता किसी ट्रांसपोर्ट कम्पनी में जॉब करने के कारण दूसरे शहर में रहते थे महीने बीस दिन में ही उनका चक्कर लगता था,पिंकी कॉलेज में पढ़ रही थी।माँ पार्वती दबंग स्वभाव की थी और घर मे उनकी मर्जी के खिलाफ पत्ता तक नही हिल सकता था।रितेश वही अपने ही नगर में जॉब करता था।
रितेश और शालू की शादी होते ही रितेश की माँ ने पहले ही दिन शालू को उसकी मर्यादा समझा दी थी कि उनके कहे बिना अपनी मर्जी चलाने की सोचना भी मत।शालू को सुनकर धक्का सा लगा,वह कोई नासमझ तो थी नही,उनकी मंशा और व्यवहार को भाँप गयी थी,उसे लगा कि क्या एक सासू अपनी बहू से पहले ही दिन इस प्रकार भी बात कर सकती है?वह कोई उत्तर देने की स्थिति में थी भी नही। माँ ने समझाकर भेजा था बेटा सबके दिल मे जगह बना कर रहना।
शालू की परीक्षा शादी के पहले ही दिन से शुरू हो गयी थी।रितेश ने भी शालू को समझा दिया था कि शालू देखो माँ जरा तेज स्वभाव की है, उन्हें अपने आदेश की अवहेलना बर्दास्त नही होती है,इसलिये तुम उन्ही के अनुरूप चलना।शालू ने कोई उत्तर नही दिया।
घर मे सासू मां का तो आदेश सर्वोपरि होता ही था,पर ननद पिंकी भी बिल्कुल माँ पर ही गयी थी।भाभी के हर कामकाज ने मीनमेख निकाल कर माँ के कान भरना उसका रोज का काम हो गया था।सुबह से रात्रि तक घर में चकरघिन्नी बने रहने के बावजूद कभी अपने पन का अहसास ससुराल में शालू को हुआ ही नही।उसकी समझ से बाहर था कि वह और क्या करे?
शालू को जब पता चला कि पिंकी की दोस्ती किसी लड़के से है और वे घर से भागने की योजना बना रहे हैं तो शालू ने इस कृत्य को हर हाल में रोकने का इरादा कर लिया।घर की मेड ने ही ये बात शालू को बताई।
मेड ने ये भी बता दिया कि लड़का विधर्मी है।शालू ने उस लड़के के बारे में उसी मेड के माध्यम से और जानकारी प्राप्त की,अपने को डॉक्टर को दिखाने के बहाने घर से निकल कर खुद भी पता किया तो पता चला कि लड़का पहले से ही शादीशुदा है।
शालू ने पिंकी को आगाह किया तो वह बिफर पड़ी,और भाभी को ही अपने ऊपर इल्जाम लगाने का दोष माँ के सामने मढ दिया।नतीजा हुआ कि शालू माँ को समझाती रह गयी पर माँ ने बेटी की ही मानी।और शालू को ही चेतावनी दे दी।खिसियानी सी शालू सिर झुकाये वहां से हट गयी।
पर घर मे एक आश्चर्यजनक कार्य ये हुआ कि पिंकी की शादी एक अन्य लड़के विकास के साथ दो माह के अंदर कर दी गयी और मजे की बात ये कि पिंकी ने भी इस शादी को सहर्ष अनुमति दी थी।शालू ने चैन की सांस ली।
सासू माँ एक बार बाथरूम में फिसल कर गिर गयी और उनके पावँ में मोच आ गयी।सासू माँ को चलने फिरने में परेशानी आने लगी तो शालू ने ही उनका जिम्मा संभाल लिया।सब कुछ करने के बाद भी कभी सासू मां के मुँह से शालू के लिये दो शब्द प्यार के नही निकलते थे।
रितेश के मामा के बेटे की शादी में रितेश को अपनी माँ को लेकर वहां जाना पड़ा।शालू को दादा जी कारण घर पर ही छोड़ना पड़ा।उस दिन सबकी अनुपस्थिति में दादा जी ब्लड प्रेशर लो हो जाने के कारण अर्ध बेहोश हो गये तब शालू ने ही दादा जी को संभाला था।
ऐसे ही समय चक्र चल रहा था।पिंकी अपनी ससुराल से आयी हुई थी।पिछले दिनों वह अपने पति के साथ यूरोप घूमने गयी थी।घर मे चहल पहल थी,पिंकी के आने के कारण रितेश ने भी छुट्टी ले ली थी।शालू का काम बढ़ गया था।रितेश कुछ सामान लेने बाजार गये थे,दादा जी अपने कमरे में थे ही
,पिंकी और सासू माँ अलग कमरे में बतिया रहे थे।शालू किचन में थी,चाय देने वह सासू माँ के कमरे के पास पहुची तो सासू माँ पिंकी से कह रही थी,क्या करूँ पिंकी मेरी आदत,मेरा अहंकार या अहम मेरे आड़े आता है,मेरा मन करता है, शालू को अपने सीने से चिपका लूँ।इस घर के लिये क्या नही वह करती है
बिल्कुल चुप रहकर।तेरी जिंदगी तबाह होने से उसने बचायी, तेरी आंखे उसने खोली, मेरे मोच आने पर मेरी सेवा बिल्कुल मेरी माँ की तरह की और तो और तेरे दादा को तो उसने हमारे पीछे अकेले ही जीवन दान दे दिया।मैं ही निखद हूँ जो अपने अहंकार में डूबी उसे मान नही देती।सच कहूँ पिंकी शालू इस घर के लिये तुझसे भी बढ़कर है।
सच माँ ऐसी भाभी नसीब से मिलती है।सब सुन शालू की आंखे नम हो गयी साथ ही उसे अपने पर आज गर्व भी हुआ कि उसने परिवार का प्यार जीता है।कमरे में चाय रख जैसे ही शालू वापस जाने को मुड़ी तभी पिंकी ने आवाज देकर कहा भाभी जरा रुको तो,देखो मैं आपके लिये क्या लाई हूँ?
आश्चर्य से अपने लिये पहली बार प्यार भरा संबोधन सुन शालू के कदम ठिठक गये,पीछे से पिंकी ने एक बहुत ही सुंदर शाल शालू के कंधे पर डाल दिया।फिर बोली माँ देखो तो इस शाल में मेरी भाभी कैसी लग रही है?भौचक्की सी पार्वती अचकचा कर बोली,बहुत ही सुंदर,प्यारी सी।
शालू आज जमीन पर नही आसमान में उड़ रही थी।सही मायने में आज ही उसे असली घर मिला था।नम आंखों से उसने शालू को अपने मे समेट लिया।शालू ने देखा कि आज सासू मां की आंखों में आंसू थे।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवम अप्रकाशित
*#बहू चाहे कितना भी कर ले,वह बेटी नही बन सकती* वाक्य पर आधारित कहानी: