अहिल्या  – मिन्नी मिश्रा

माँ, कहानी सुनाओ ना |”

“अरे…सो जा , बहुत रात हो गई | सबेरे तुझे स्कूल भी जाना है |”

“स्कूल ? ओह ! कल रविवार है ! माँ, तुमको कुछ भी याद नहीं रहता ! ना मुझे कल पढाई की चिंता है और ना ही होमवर्क की ! तुम्हारे पास कहानी का खजाना है | रामायण, महाभारत, पुराण जैसे धार्मिक ग्रंथों में तुम हमेशा डूबी रहती हो | जल्दी से एक बढिया कहानी सुनाओ |”

“ बड़ा हठी है | कहानी सुने बिना तू सोयेगा नहीं ! ठीक है, अब  ध्यान लगा कर सुन ,

……प्राचीन काल की बात है, गौतम ऋषि न्याय दर्शन के महान विद्वान थे | मिथिला के ब्रह्मपुरी में उनका घर था | उस समय मिथिला के राजा ‘जनक’ , स्वयं एक प्रकांड विद्वान तथा बीतरागी थे | इसलिए तो गौतम को जनक ने अपना कुलगुरु बनाया था |

गौतम की पत्नी का नाम था ‘अहिल्या’ और पुत्र का नाम ‘सदानंद’ था | अहिल्या सुन्दर, व्यवहार कुशल और कर्मठ महिला थीं | दोनों पति-पत्नी सुखपूर्वक जीवन यापन कर रहे थे | गौतम की उत्कट इच्छा थी कि वह न्याय दर्शन की एक विद्यापीठ की स्थापना करें | जिसमें देश-विदेश के बच्चे आकर विद्या अध्ययन का लाभ उठा सके | अहिल्या की भी यही इच्छा थी… कि उसके पति का विद्यापीठ स्थापित हो जाय | और ऐसा ही हुआ | कुछ वर्षों बाद विद्यापीठ की स्थापना हुई |

एकदिन उस विद्यापीठ का उद्घाटन समारोह हो रहा था | राजा जनक और देवताओं के राजा, इन्द्र भी उसमें पधारे | अनेक गणमान्य लोगों के बीच वह समारोह सम्मानित हो रहा था | | अतिथिगण के ठहरने और खाने का भी उत्तम प्रबंध था | समारोह सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ |


रात हो गई थी | सभी लोग भोजन करने के बाद सोने चले गये | गौतम और अहिल्या भी थककर विश्राम करने लगें | लेकिन, देवराज इन्द्र को चैन नहीं था | देवता होने के उपरांत भी … वो कामुक विचार के थे | अहिल्या की सुंदरता और निश्छलता को देखकर वह मोहित हो गये | इसी मोहपाश में फंसकर… उन्होंने मेहमानवाजी का नाजायज फायदा उठाने का निश्चय किया और उसी रात्रि में इन्द्र ने छल पूर्वक अहिल्या का शीलहरण कर लिया |

बात,जंगल की आग की तरह फ़ैल गई और चारोंओर हल्ला मच गया | इसी बीच देवराज इन्द्र रातों-रात वहाँ से भाग निकले | लेकिन भागते-भागते उन्होंने उल्टे अहिल्या पर झूठा लांक्षण लगा दिया कि अहिल्या की सहमति से उसने ऐसा करने का साहस किया |

चूँकि, देवराज इन्द्र सर्व शक्तिमान थे, इसलिए उनसे प्रतिवाद और प्रतिरोध करने की हिम्मत किसी में नहीं हुई | यहाँ तक कि राजा जनक भी कुछ नहीं कर सके ! सब कुछ जानकर भी वो अनजान बने रहे ! ‘

“माँ, यह तो सरासर गलत हुआ ! धर्म की आड़ में गलत काम का बढाबा ?! सरासर अन्याय है | ऐसे धर्मात्मा या न्य्याविद कहलाने से क्या फायदा, जो विरोध न कर सके ! उनलोगों को खुलकर विरोध करना चाहिए था | न्यायपीठ के अंदर अन्याय हो रहा हो …और सभी गणमान्य चुप रहें ! ये कदापि उचित नहीं | “ किशोर वय बेटा झुंझलाकर बोला |

“अरे बेटा, आगे तो सुन | फिर तुझे सब सही से समझ में आ जाएगा |”

माँ फिर से बेटे को कहानी सुनाने लगी |उसकी चेहरे पर एक अलग ही आभा झलक रही थी | शांत भाव से वह कहने लगी “गौतम और अहिल्या के सपने पर कुठाराघात हो गया ! अहिल्या के कथित धर्म भ्रष्टता के कारण … गौतम समाज की नजरों में अब इस लायक नहीं समझे जाने लगे कि वह विद्यापीठ का नेतृत्व कर सके | इसलिय गौतम को अहिल्या का साथ देना, तत्कालीन समाज की नजरों में भीषण दोष माना जाने लगा !


अहिल्या उदास रहने लगी ! उसको अपना जीवन अब व्यर्थ लगने लगा ! उन्हें यह बात बहुत अधिक कचोटती थी कि उसके ही कारण, गौतम का न्यायपीठ बनाने और उसे स्थापित करने का सपना चूरचूर हो गया |

बेटा, ये सारे विचार अहिल्या की पतिव्रता और कर्तव्य निष्ठा के परिचायक हैं | अब, तू गौतम ऋषि के बारे में सुन | इतना होने के बावजूद भी …गौतम, अपनी पत्नी अहिल्या को निष्कलंक तथा निर्दोष समझते रहे | इसलिए सामाजिक बहिष्कार और प्रताड़ना के बाबजूद, गौतम ने अहिल्या का साथ देने का निश्चय किया और देवराज इन्द्र को उनके अपराध की सजा देने हेतु वो दृढ़प्रतिज्ञ हो गए |

इस बात की जानकारी होते ही अहिल्या वेचैन हो गई |तब जाकर अहिल्या ने निश्चय किया कि वह पति तथा पुत्र को सदा के लिए अपने से दूर, मिथिला की राजधानी भेज देगी| तथा स्वयं, वह तपस्या में लीन हो जायेगी | जिससे विद्यापीठ स्थापित होने में कोई सामाजिक अड़चन नहीं आएगी | तब जाकर विद्यापीठ का नेतृत्व करना गौतम के लिए संभव हो जायेगा और साथ-साथ उनके पुत्र की शिक्षा-दीक्षा भी पूरी हो जायेगी | अहिल्या ने ऐसा करने का प्रण ले लिया |

उसने विद्यापीठ और परिवार की शांति के लिए अपने शेष जीवन को तपस्या में व्यतीत करना उचित समझा | गौतम इस बात का पुरजोर विरोध करते रहे | अहिल्या से बारबार मनुहार करते रहे.. हमदोनों को इसतरह छोड़कर..तुम मत जाओ |

पर, गौतम के लाख विरोध करने के बाबजूद, अहिल्या ने इस बात……………….

‘गौतम राजधानी में विद्यापीठ का नेतृत्व करते हुए संचालन करेंगे और अहिल्या अकेले परित्यक्ता की तरह जीवन यापन करते हुए तपस्या करेगी ‘


……………..को गौतम से आखिर मना ही लिया | अहिल्या के दलील के आगे गौतम नतमस्तक हो गये | एक स्त्री जब कुछ ठान लेती है तो वह करके ही दिखाती है | अहिल्या परित्यक्ता की तरह समाज से अलग-थलग, शिलावत होकर अकेली भगवद भक्ति करते हुए जीवन व्यतीत करने लगी |

इधर गौतम ऋषि , मिथिला की राजधानी में न्यायविद्यापीठ का सञ्चालन करने लगे | उनके विद्यापीठ के प्रताप का डंका सम्पूर्ण भारत में बजने लगा | विद्वत परिषद् की बैठक में गौतम ने यह निर्णय किया कि अब से मिथिला में देवराज इन्द्र की पूजा नहीं होगी | उस समय मिथिला का ही व्यवहार सम्पूर्ण भारत में मान्य था | देवराज इन्द्र की पूजा सम्पूर्ण भारत में बंद हो गयी | भारत के सनातन धर्म में देवराज इन्द्र इस प्रकार बहिष्कृत हो गए |

अहिल्या के साथ किये गए अपराध के लिए देवराज इन्द्र को गौतम ने यह भीषण सजा दिलवाई |

इधर दिन, सप्ताह, महीने, बर्ष बीतते गए | अहिल्या को कुछ भी भान नहीं होता था | वह अपनी तपस्या और दिनचर्या में लीन होकर स्थितप्रज्ञ, पत्थर सामान हो गयी थी |

दीर्घ काल के बाद, राम..जब अपने भाई लक्ष्मण के साथ गुरु विश्वामित्र के निर्देशन में मिथिला जा रहे थे, तब अपने गुरु द्वारा अहिल्या के दुखद वृतांत को सुनकर राम उनके आश्रम में गए | अहिल्या का पैर छूकर उन्होंने आशीर्वाद लिया तथा उनके हाथ से जल लेकर श्रीराम ने पान किया |

भारत का सर्वश्रेष्ठ सूर्यवंशी महाप्रतापी राजा ‘दशरथ’ का ज्येष्ठ पुत्र ‘ श्रीराम’…. श्रेष्ठ्तम धनुर्धर तथा अनेक राक्षसों का संघारक…. ने अहिल्या को सम्मान और स्वीकार्यता प्रदान किया | इसतरह अहिल्या की तपस्या सफल हुई और राम के प्रयास से अहिल्या को अपने एकाकी जीवन से त्राण मिला | पति गौतम और पुत्र सदानंद के साथ फिर से रहने लगी | “

इतना कहते-कहते, माँ की आँखें नम हो गईं | उसने अपने बांहों में जकड़कर बेटे को छाती से लगा लिया और बुदबुदाई , “बेटा,जहाँ स्त्री का सम्मान होता है, वहीँ देवता का वास होता है |

बेटा , माँ के दैदीप्यमान चेहरे को अचरज भरी नजरों से निहारने लगा…जैसे सामने साक्षात दुर्गा-माँ खड़ी हों |


“  आज मैं अच्छी तरह से समझ पाया कि नारी को ‘शक्ति स्वरूपा’ क्यों कहा जाता है !”  बुदबुदाते हुए नन्हे शिशु की भांति माँ के छाती से बेटा  लिपट गया |

माँ की आँखों से अब झर- झर अमृत रस बरसने लगीं ।

मिन्नी मिश्रा, पटना

स्वरचित/ मौलिक

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