सुधा के दो बेटे है। पति राजेश सरकारी नौकरी में छोटे छोटे कस्बों, शहरों में अधिकतर तैनात रहे। बच्चों को अपने साथ ही रखा। दोनों ने बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए कोई कोर कसर नही रखी। यूँ तो दोनों पति पत्नी साधारण परिवारों से थे। परन्तु बेटों के बचपन से ही पढ़ाई में मेधावी होने से दोनों को धीरे धीरे अहंकार ने घेर लिया। वह अड़ोस पड़ोस के बच्चों को अपने बच्चों से तुलना करके उन्हें कमतर आंकने की कोशिश करते।
बच्चों में भी यह भावना घर करने लगी कि वह औरों से अलग हैं। औसत रिजल्ट वाले बच्चों से माता पिता के साथ ही बच्चे भी दूरी बनाने लगे। समय के साथ ही दोनों की स्कूली शिक्षा पूरी हुई। दोनों क्रमशः बड़ा आशुतोष इंजीनियर व छोटा चेतन डॉक्टर बन गये। फिर तो माता पिता के गर्व का पारावार न रहा। उन्हीं की तरह के पारिवारिक पृष्ठभूमि के पड़ोसी व रिश्तेदार अचानक दोयम दर्जे के हो गए। हर समय अपने बच्चों का गुणगान
करते हुए थकते नही थे।अपने रिटायरमेंट के पहले ही योग्य लड़कियों से उनकी शादी भी कर दी। Iइंजीनियर बेटे को अपने समकक्ष इंजीनियर और डॉक्टर को डॉक्टर बहु मिली। सुधा राजेश बच्चों की सफलता पर फूले न समाते। पड़ोसियों व रिश्तेदारों से उनकी दूरियाँ बढ़ गई। पर समय कहाँ एक सा रहता है। राजेशजी रिटायर हो गए। जैसा कि हर माता पिता का सपना होता है
कि वह अपना बुढ़ापा अपने बच्चों के साथ सुखपूर्वक बिताएँ। डॉक्टर बेटा बहु दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में कार्य कर रहे थे। सुधा राजेश की दिली इच्छा थी कि बच्चे अब उन्हें समय दें। उनके पास आते जाते रहें। अपने पास भी बुलाएं क्योंकि समाज पड़ोस में अपने बच्चों के स्टेटस के कारण दूरियाँ बनी हुई थी। अकेलापन हावी हो रहा था।
इस बार दीवाली पर सभी के इकठ्ठे मिलने पर दोनों ने बच्चों से इस बारे में बात करने का निर्णय लिया। उन्हें पूरा विश्वास था कि बच्चे उनके प्रस्ताव पर खुश होंगे।
दीवाली पर दोनों बेटे बहुएं घर आये तीन दिन का त्योहार पलक झपकते बीत गया।भैयादूज की शाम को ही दोनों का वापसी का कार्यक्रम बन गया। सुधा राजेश इस उम्मीद में थे कि वह उन्हें भी साथ चलने के लिए कहेंगे परंतु ऐसी कोई बात नही हुई। खैर भारी मन से सभी को बिदा कर पति पत्नी निढाल से सोफे पर बैठ गए। दोनों बेटों ने अपने सकुशल पहुँचने की खबर फोन पर दे दी।
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समय बीत रहा था बेटों का फोन कभी कभार कुशलक्षेम पूछने के लिए आता था। सुधा की जिद पर आखिरकार राजेश ने अपने डॉक्टर बेटे चेतन से कहा कि हम दोनों कुछ दिन के लिए तुम्हारे पास आना चाहते हैं। चेतन उस समय बिजी था इस बारे में घर पहुँचकर रात में बात करने की कहकर फोन रख दिया। वह शाम को फोन का इंतजार करने लगे।
रात लगभग साढ़े नौ बजे आशुतोष का फोन आया। साधारण कुशल क्षेम पूछने के बाद उसने उन दोनों को अपने पास बुलाने में असमर्थता ब्यक्त कर दी। दरअसल पत्नी श्वेता से सलाह मशवरे के बाद ही उसने यह फैसला सुनाया था। श्वेता का कहना था कि डॉक्टरी पेशे में हम उनको बिलकुल समय नही दे पायेंगे। वैसे भी वह दोनों श्वेता के डॉक्टर पिता के साथ ही काम कर रहे थे ।
राजेश व सुधा दोनों निराश हो गए। कुछ दिनों घर में उदासी का माहौल बना रहा। कुछ माह और बीते। इसी बीच इंजीनियर बेटे आशुतोष का फोन आया। राजेश ने उससे भी अपने साथ ले जाने की बात की। यह सुनते ही बोला -” अरे मम्मी मेरा विदेश जाना तय है मैं यह बात बताने वाला था। रही बात रिया (आशुतोष की पत्नी) की साल छह महीने बाद वह भी चली आयेगी मेरे पास। आपको साथ ले जाने का बाद में जरूर सोचेंगे “! ठीक है बेटा कहकर राजेश ने फोन रख दिया। सुधा फूट फूट कर रोने लगी राजेश उसे दिलासा देने लगे
-“बच्चों की अपनी जिंदगी है। क्यों उनकी जिंदगी में दखल देना है अपने बच्चे हैं। यही क्या कम है कि वह हमारा हाल चाल लेते रहते हैं! “परंतु सुधा की सिसकियां कम नहीं हुई। दोनों गुमसुम से रहने लगे। आस पड़ोस में उनका मिलना जुलना कम ही था तो किसी को उनसे कुछ खास लेना देना नही था। अचानक एक दिन राजेश को हार्ट अटैक आ गया। उनकी साँसे रुकने लगी सुधा घबराकर दौड़ते हुए पड़ोस में रहने वाले मिश्रा जी के यहाँ गई। उखड़ती सांसो से उसने जल्दी से उन्हें राजेश की तबीयत के बारे में बताया। मिश्रा जी ने जल्दी अपने बेटे सुदीप को गाड़ी निकालने को कहा स्वयं भी राजेश को लेकर गाड़ी में बैठ गए।
लगभग पंद्रह मिनट में वह हॉस्पिटल के अंदर थे। जल्दी ही सारी जांच होने पर माइनर हार्ट अटैक की पुष्टि हुई। बड़ा अटैक आने से पहले ही वह अस्पताल पहुँच गए और उनकी जान बच गई।
सुधा की आँखों से आंसू नही थम रहे थे सारे पड़ोसियों को,खबर हो गई थी। सभी लोग मतभेद भुलाकर अस्पताल पहुँच गए। मिश्रा जी बार बार सुधा को समझाते रहे कि अब राजेश खतरे से बाहर है। उनके बेटों को भी फोन कर दिया गया
जानकारी होने पर रिश्तेदार भी पहुँच गए।दोनों बेटे भी आये। कुछ दिन में वह ठीक होकर घर आ गए। अभी भी वह डॉक्टर की देखरेख में थे। उन्हें अस्पताल ले जाने का काम पड़ोसी बारी बारी से कर रहे थे क्योंकि बेटों के पास ज्यादा छुट्टियां न थी। यह वही लोग थे जिनकी कद्र सुधा राजेश को नही थी। दोनों को अपने ब्यवहार पर
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शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। उन दोनों को समझ में आ चुका था कि आज की पीढी के पास अपने माँ बाप के लिए बिलकुल समय नही है। मां बाप का दखल उनकी जिंदगी में मंजूर नही है। अपने नजदीकी रिश्तेदारों व पड़ोसियों से प्रेमपूर्ण ब्यवहार ही समझदारी है। दोनों ने सभी मददगारों का दिल से धन्यवाद किया और अपनी गलतियों की क्षमा मांगी।
दोस्तो फिर से सच्चा संस्मरण है। ।ऐसे लोग बहुत मिलते है जो थोड़ी सी सफलता पर ही आसमान में उड़ने लगते हैं किसी की इज्जत नही करते। बच्चों में भी वही संस्कार पड़ते हैं। जिंदगी छोटी है सभी से मिलजुलकर रहें।
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Champa Kothari