कितना अरमान था श्रुति को पढ़ लिख कर डॉक्टर बनेगी अपने मम्मी पापा का नाम रोशन करेंगी उनके जीवन में जो बेटे की कमी है वो पूरी करेगी। अपनी दोनों बहनों का सहारा बनेगी। कितना कुछ चाहता है इंसान पर चाहा हर बार पूरा हो ये ज़रूरी तो नहीं होता। क्योंकि जिंदगी का नाम ही कुछ खोना कुछ पाना है।
आइए आपको श्रुति की जिंदगी से रूबरू करवाते हैं….
“बेटा तेरा रिजल्ट आना था आज क्या हुआ?” आलोक जी ने घर आकर पूछा।
” हां पापा मैने पूरे स्कूल में टॉप किया है!” श्रुति खुश होते हुए बोली।
” वाह बेटा आज तो पार्टी होगी …वैसे अब आगे क्या करना है?” आलोक जी ने बेटी को गले लगाते पूछा।
” पापा मेरा सपना तो डॉक्टर बनने का ही है बचपन से आप तो जानते हैं!” श्रुति बोली।
” उसके लिए बहुत मेहनत करनी होगी!” आलोक जी बोले।
” पापा आपकी बेटी आपकी तरह है वो मेहनत से नहीं घबराती!” श्रुति बोली।
” पापा..पापा चलो ना बाहर चलो दीदी के रिजल्ट की खुशी में आइस क्रीम खाने!” तभी श्रुति की दोनों छोटी बहने आकर ज़िद्द करने लगी और सब घूमने निकल गए।
श्रुति ने ग्यारहवीं में विज्ञान विषय लिया और जुट गई अपने सपने को साकार करने के मिशन में।
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श्रुति ने अभी बारहवीं की परीक्षा दी ही थी के एक दिन उसकी बुआ का आगमन हुआ उसके घर।
” दीदी बुआ पापा मम्मी से अकेले में क्या बात कर रही हैं!” श्रुति की छोटी बहन चहक ने पूछा।
” होगी कोई जरूरी बात तुम पढ़ाई करो दोनो चलो!” श्रुति ने टाल दिया उसे पर उसके कान बन्द दरवाजे पर ही लगे थे।
” बेटा तुम्हारी बुआ कुछ दिन को तुम्हे अपने घर ले जाने आईं हैं!” दरवाजा खुलने पर मम्मी श्रुति से बोली।
” पर मम्मी मुझे तो मेडिकल एंट्रेंस की तैयारी करनी है!” श्रुति बोली।
” कुछ दिन की तो बात है इतने में कौन सा पहाड़ तोड़ लेगी!” बुआ बोली श्रुति बुआ की आदत जानती थी साथ ही ये भी की पापा बुआ के आगे कुछ नहीं बोलेंगे तो चुपचाप उसने बैग लगा लिया।
बुआ के यहां जाकर पता लगा उसके लिए लड़का देखा गया है और चार दिन बाद वो लोग देखने आने वाले उसे ।” मतलब उसको यहां लाने का मकसद ये था। पर पापा कैसे मान गए वो तो मेरे सपने के बारे में जानते हैं फिर क्यों?” श्रुति खुद से ही सवाल करने लगी रात भर रोती रही पर उसके आंसू देखने वाला वहां था कौन। उन दिनों फोन भी नहीं होते थे ज्यादातर घरों में जो पापा से शिकायत करती।
” देख छोरी लड़के वालों के सामने जुबान बन्द रखियो अपनी जितना पूछे उतना ही बोलना है बस वो भी धीमी आवाज़ में!” बुआ ने श्रुति को समझाया।
” पर बुआ मुझे अभी शादी नहीं करनी!” श्रुति रोते हुए बोली।
” मैं तेरी दुश्मन ना हूं पर तू आलोक की भी तो सोच तेरे बाद दो और है उसके बुढ़ापे का सहारा नहीं तुझे पढ़ाने में पूंजी लगा देगा तो शादी कहां से करेगा खुद के लिए क्या जोड़ेगा!” बुआ बोली।
” बुआ मैं बनूंगी ना पापा का सहारा !” श्रुति रोते हुए बोली।
” बेटियों को ससुराल जाना ही पड़ता है ये जीवन का सच है । बेटा तू अपने बाप के लिए ये ब्याह कर ले!” बुआ हाथ जोड़ते हुए बोली।
अब कहने सुनने की गुंजाइश नहीं थी। श्रुति ने इसी को अपनी नियति समझ शादी की हामी भर दी। तय समय पर लड़के वाले आए श्रुति के मम्मी पापा भी थे पर वो श्रुति से नजर नहीं मिला पा रहे थे। श्रुति को उनकी नज़रों में बेबसी साफ नजर आ रही थी।
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” क्या सच में बेटियों के मां बाप इतने बेबस होते हैं … नहीं मैं अपने मम्मी पापा की आंखों में बेबसी या शर्मिंदगी नहीं आने दूंगी अगर मेरे शादी करने से उनका बोझ उतरता है तो यही सही!” श्रुति ने मन ही मन सोचा। अपने मां पापा से वो ऐसे जाकर मिली जैसे वो खुश है जो हो रहा उससे। सच में ईश्वर ने बेटियों को ऐसा ही बनाया है। एक पल में अल्हड़ शोख सी नादान लड़की इतना समझदार हो जाती है कि अपने मां बाप की खुशी के लिए खुद के सपने भी पीछे छोड़ देती है।
लड़के वालों ने श्रुति को पसंद कर लिया। और रोका भी हाथ की हाथ कर दिया। और एक महीने बाद अठारह साल की मासूम श्रुति विवाह की वेदी में अपने सपने की आहुति दे मिसेज पुलकित बन गई। ससुराल में उसने सबको दिल से अपना लिया मानो जो खोया उसका गम नहीं उसे। पर जिंदगी में जो रीतापन था उसका क्या… बचपन से देखे सपने को पल में कैसे भूल सकती थी वो।
क्या अपने सपने को भूल श्रुति ससुराल में खुश रह पाई जानने के लिए पढ़िएगा दूसरा भाग जो जल्द आपके समक्ष हाजिर करूंगी।
श्रुति की शादी एक भरे पूरे घर में हुई दो ननदें, एक देवर , सास – ससुर सब थे उसके ससुराल में। एक ननद शादीशुदा थी पर एक गली में रहने के कारण रोज सुबह से शाम तक वहीं रहती थी।
” बहू अब घर की जिम्मेदारी तुम्हारी है मुझसे अब इस उम्र में काम नहीं होता!” सास शीला जी ने ये कह सारी जिम्मेदारी उसे सौंप दी।
” जी मम्मीजी!” इतना ही तो कह पाई थी श्रुति।
सुबह पांच बजे जो उठती रात को ग्यारह बज ही जाते थे। सारा दिन व्यस्त रहने के बावजूद अपना सपना याद आते ही आंख से आंसू निकल ही पड़ते थे।
” हे ईश्वर अगले जनम मुझे बिटिया ना कीजो!” दिन रात यही दुआ मांगती थी श्रुति।
अचानक शादी के चार महीने बाद श्रुति को पता लगा वो मां बनने वाली है। घर में सब खुश थे पर श्रुति…. हां श्रुति भी खुश थी मां बनने का एहसास ही ऐसा होता है। अब तो श्रुति अपने सपने को पीछे छोड़ अपने होने वाले बच्चे के सपने देखने लगी।
” बधाई हो आपको बेटी हुई है!” श्रुति को नर्स ने ये खबर सुनाई ।
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” क्या मेरी बेटी की नियति भी मेरी तरह होगी?” अचानक श्रुति के मन में ये विचार आया…” नहीं नहीं मैं अपनी बेटी के सपने नहीं मरने दूंगी पर मैं अपनी बेटी के सामने क्या उद्धारण रखूंगी एक हारी हुई नारी का…. नहीं इतनी कमजोर नहीं मैं मुझे कुछ करना होगा मुझे अपने जीवन के सच को बदलना होगा !” उसने खुद से कहा।
“पुलकित मुझे आगे पढ़ना है कुछ करना है मुझे!” बेटी के दो साल का होने पर श्रुति पति से बोली।
” इस उम्र में क्या भूत चढ़ा है ये अब बच्ची के पढ़ने की उम्र है हमारी तुम्हारी नहीं!” पुलकित हंसते हुए बोला।
” बच्ची को तभी पढ़ा पाऊंगी जब खुद पढ़ पाऊंगी उसके सपने तब पूरे कर पाऊंगी जब अपने सपनों को फिर से पंख दूंगी मैं! और प्लीज आप मना मत कीजियेगा ” श्रुति दृढ़ता से बोली।
” ठीक है तुम फॉर्म भर दो!” उसकी दृढ़ता देख शायद पुलकित मना नहीं कर पाया।
” मुझसे कोई उम्मीद मत रखना जो करना अपने बूते करना!” सास ने फरमान सुना दिया।
श्रुति ने एक तरफ बीए का प्राइवेट फॉर्म भरा दूसरी तरफ एनटीटी का…।
सुबह उठती जल्दी जल्दी काम निपटाती बेटी को संभालती उसे सुला पढ़ने बैठती शाम को दो घंटे एनटीटी क्लास के लिए जाती वापिस आकर बच्ची को देखती घर के काम करती और रात को फिर पढ़ाई करती यही नियम बन गया था उसका। वो टूटती, बिखरती पर खुद को समेट लेती क्योंकि सपने जो पूरे करने थे डॉक्टर नहीं बन सकती तो क्या हुआ टीचर बनेगी कम से कम कल को अपने पैरों पर तो खड़ी होगी जिससे उसकी बेटी के सपने पूरे करने को किसी का मुंह नहीं तकना होगा उसे।
बाकी घर वालों से कोई आस नहीं थी बस पुलकित से इतना सहारा था कि रात को वो बेटी को देख लेता था जिससे श्रुति को पढ़ाई का वक़्त मिल सके।
” पापा चहक को मेरे यहां भेज दो कुछ दिनों को मेरे पेपर हैं!” परीक्षा के दिनों में उसने पापा को फोन किया। और पापा बहन को छोड़ भी गए।
अच्छे से पूरी लगन के साथ एनटीटी की परीक्षा दी श्रुति ने पर अभी तो जिंदगी की परीक्षा इंतजार कर रही थी उसका।
” पुलकित मैं प्रेगनेंट हूं!” एक दिन श्रुति ने चिंतित हो कहा।
” वाउ! ये तो खुशी की बात है गुड़िया भी चार साल की हो गई अब तो बच्चा हो जाना चाहिए दूसरा!” पुलकित हंसते हुए बोला।
” पर मेरा तो अभी बीए का अंतिम वर्ष हैं!” श्रुति सिर पकड़ कर बैठ गई।
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सास ने सुना तो पोते की आस में उन्होंने तो श्रुति को पढ़ाई रोकने को बोल दिया अब।
” नहीं मम्मीजी आखिरी साल है मेरा अब मैं पीछे नहीं हटूंगी!” श्रुति आत्मविश्वास के साथ बोली।
” पर मेरे पोते को कुछ हुआ तो तुम इस घर में नहीं रह पाओगी फिर!” मम्मीजी ने भी फैसला सुना दिया।
” हे ईश्वर सब परीक्षा मेरी किस्मत में ही क्यों?” उसने जैसे ईश्वर से सवाल किया।
” मैं हर परीक्षा में पास होऊंगी… अपने सपने की तरफ बढ़ने वाली परीक्षा हो चाहे या ईश्वर की ली हुईं परीक्षा!” खुद से ही श्रुति ने जवाब भी ढूंढ़ लिए अपने सवालों के।
“चहक मेरी बहन तूने मेरे मुश्किल वक़्त में हर बार मेरा साथ दिया बस आखिरी बार संभाल ले सब!” फिर से एक बार बहन को बुला श्रुति ने घर की जिम्मेदारी उसे सौंप दी।
“चिंता ना करो दीदी पर ये बताओ आप छह महीने की प्रेगनेंट हो ऐसे में पेपर दे पाओगी?” चहक ने सवाल किया।
” चाहे कुछ हो जाए चहक पर मुझे बच्चे की देखभाल करते हुए पेपर देने हैं!” श्रुति ने कहा और जो कहा वो करके भी दिखाया। श्रुति की ग्रेजुएशन पूरी हुई एनटीटी पहले ही हो गई थी। अब श्रुति ने चैन की सांस ली।
” मुबारक हो आपको बेटा हुआ है!” सही समय पर उसने एक बेटे को जन्म दिया।
” श्रुति अपने पोते की सब जिम्मेदारी मेरी अब !” श्रुति की सास चहकते हुए बोली।
श्रुति रिश्ते का एक और नया रूप देख रही थी आज जिस सास के खुद से पानी लेने में घुटनों में दर्द होता था जिसने कभी उसकी मुश्किल वक़्त में मदद नहीं की आज लड़का होते ही मानो सब बीमारी ख़तम हो गई उनकी। पर इस वक़्त वो इन बातों को नहीं सोचना चाहती थी।
“बेटी स्कूल जाती ही है बेटे की तरफ से निश्चिंत हो मैं आगे भी अपनी पढ़ाई जारी रख सकती हूं साथ साथ नौकरी भी!” उसने खुद से सोचा।
” बेटा मुझे गर्व है तुझ पर तूने सभी रिश्तों को निभाया एक अच्छी बेटी बनी, बहू पत्नी सब बनी और एक मां भी पर तूने खुद को भी जीवित रखा अपने सपने को मरने नही दिया!” श्रुति के पापा आलोक जी श्रुति से बोले।
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हम सफर के साथ न होने का दर्द कोई नहीं बाँट सकता है – के कामेश्वरी
आज श्रुति को सब मिल गया था अब श्रुति इतनी काबिल है कि वो अपनी बेटी के हर सपने को पूरा कर सकती है। अब उसकी बेटी उसकी गुड़िया कभी नहीं कहेगी अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो।
बल्कि वो खुद कहती है
जो खोया अब उसका गम नहीं
क्योंकि जो पाया वो भी कम नहीं।।
आज श्रुति खुद एक काबिल अध्यापिका है ही साथ ही उसकी बेटी भी अपने हर सपने को पूरा कर रही है।
दोस्तो हौसला हो तो कोई रुकावट आपकी राह नहीं रोक सकती क्या हुआ जो एक सपना टूट गया उससे जीवन तो नहीं रुकता फिर किसने कहा की एक सपना टूट गया तो दुबारा सपने मत देखो जरूर देखो और उन्हें पूरा भी करो क्योकि सपनो के खत्म होने से इंसान खत्म होने लगता है यही जीवन का सच है ।
आप कहेंगे ये काल्पनिक कहानी है ऐसा कहानियों में होता है पर दोस्तों ये सच्ची कहानी है बस श्रुति की नहीं आपकी इस दोस्त संगीता की कहानी है। उम्मीद है आपको पसंद आई होगी।
खुद की कहानी को खुद के शब्दो में पात्र बदल कर ढाला है मैने इसलिए भूल वश हुई त्रुटियों को नजरंदाज कीजियेगा
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल
#ये जीवन का सच है