“अब शादी तो करनी है और सामने से रिश्ता आया है तो बात चलाने में क्या हर्ज है। घर खानदान तो अच्छा है।”- “करुणा जी अपने पोते की शादी के लिए बेटे मनीष से बोली”।
खुशी- भैया की शादी? अभी नहीं………….
करुणा जी- पागल हो गयी क्या? शादी नहीं होगी क्या उसकी?
खुशी- “देखो दादी……….. कितना अच्छा परिवार है हमारा…अच्छे से रहते हैं हम सब मिलकर। पता नहीं कैसी होंगी वो? सबसे प्यार करेंगी या नहीं। हमारे घर में घुल-मिल पाएगी या नहीं?कहीं आते ही रसोई अलग न करवा दें। मुझे बस ये डर सताता है।
करुणा जी- बिटिया रानी……. “अगर किसी से प्यार पाना है तो पहले उसे प्यार देना भी होगा” और देखना इतना प्यार मिलेगा तेरी भाभी को यहां कि वो यहां के रंग में कब रंग जाएगी उसे पता भी नहीं चलेगा।
चलिए मिलते हैं खुशी के परिवार से। खुशी एक संयुक्तपरिवार की बेटी है। दादा-दादी, चाचा-चाची उनके तीन बच्चे, मम्मी- पापा, उसके दो बड़े भाई-बहन। इस तरह पूरे बारह लोगों का संयुक्त परिवार था।
आपस में प्रेम इतना कि कोई भी बाहर वाला धोखा खा जाए देवरानी, जेठानी हैं या सगी बहनें। सब एक-दूसरे पे जैसे जान छिड़कते। इसीलिए खुशी नए रिश्ते के लिए तैयार ही नहीं थी।
लेकिन अब शादी तो करनी थी इसलिए 6 महीने के अंदर ही भैया मोहित की शादी हो जाती है और भाभी स्नेहा घर आ जाती है।
उनका जैसा नाम स्वभाव भी बिल्कुल वैसा……सबको स्नेह करने वाली। गोल चेहरा, भोली सूरत, प्यारी सी मुस्कान, ऊपर से सौम्य स्वभाव सबके दिलों में स्नेहा ने झट से जगह बना ली…… परिवार में ऐसे खुल गई जैसे पानी में शक्कर।
फिर एक दिन-
“नहीं मम्मी मेरे पेपर हैं तुम नानी के यहाँ मत जाओ। मना कर दो- खुशी ने नाराज़ होते हुए कहा।
खुशी की मम्मी- यहां सब तो हैं। चाची,दादी, तेरी भाभी मेरा जाना जरूरी है तेरी नानी सीढ़ियों से गिर गई है। इस उम्र में भगवान न करे कुछ हो गया तो………..पछतावा रह जायेगा।
स्नेहा- हाँ मम्मी जी आप जाइए और दीदी मैं हूँ न यहां।
स्नेहा ने अपनी ननद का बिल्कुल उसके माँ के जैसा ख्याल रखा। रात में जागना। परीक्षा की तैयारी करवाना। उन चार दिनों में स्नेहा खुशी के लिए भाभी से…..भाभी माँ कब बन गयी उसे पता ही नहीं चला।
कैसे एक नया रिश्ता इतना खास हो गया कि राज़ की सारी बाते वो एक- दूसरे से करने लगे। पक्के दोस्त भी बने। एक ही रिश्ते के कई नाम थे।
सच में दिल के रिश्ते कब खून के रिश्ते पर भारी पड़ जाते हैं….. पता ही नहीं चलता।
खुशी भी शादी करके एक नए घर में गयी। वहाँ भी उसने अपनी भाभी के जैसे सबको अपना बना लिया।
आज भी उसे अपनी दादी की कही वो बात बहुत याद आती है “किसी से प्यार चाहिए तो पहले प्यार देना भी होगा”।इसी से तो परिवारों में मिठास बनी रहती है।
दोस्तों ऐसा अक्सर होता है नए रिश्ते जोड़ने से पहले मन में डर बना रहता है लेकिन अगर हम खुले दिल से स्वीकारें तो इतना कुछ कठिन भी नहीं है।
कैसी लगी आपको मेरी कहानी? यह पूरी तरह से स्वरचित काल्पनिक कहानी है अगर आपके साथ भी कुछ ऐसा हुआ है तो आप कमेंट सेक्शन में मुझे जरूर बताएं।
#परिवार
आपकी ब्लॉगर दोस्त-
अनु अग्रवाल।