अफसोस – मोनिका रघुवंशी : Moral Stories in Hindi

दादी मां आप छोटे को ले आइए तब तक मैं घर के छोटे मोटे काम निपटा लेती हूं… गौरी ने दादी किशोरी देवी को कहा और काम मे लग गई।

काम से फ्री होकर सोचा मां से बात कर लूं शायद मां घर लौट आये। मां प्लीज इस बार लौट आइए न हम हम दोनो को आपकी जरूरत है गौरी गिड़गिड़ाते हुए फोन पर मां से बोल रही थी। 

नही, मैं नही आऊंगी देखती हूँ तेरे पापा कैसे संभालते है मेरे बिना सब कुछ…कहते हुए सुनैना ने गुस्से में फोन रख दिया।

पापा आप जाकर मां को ले आइए न हम दोनो मां के बिना नही रह सकते, अब गौरी ने अपने पिता सुरेश से कहा। मैंने एक बार कह दिया न तेरी मां अब इस घर मे नही आएगी। मैं भी देखता हूँ कब तक मायके में पड़ी रहती है। कहकर सुरेश भी निकल पड़ा खेतों की ओर निकल गया…।

कुछ घण्टों बाद… आनन फानन में गौरी को हॉस्पिटल में भर्ती किया गया और माता पिता आंखों में आंसू और अफसोस लिए बैठे थे।  भगवान हमारी भूल की सजा हमारी बच्ची को मत दीजिये, सुनैना अस्पताल में लगी

भगवान की मूर्ति के आगे ‘आंचल फैलाकर’ गिड़गिड़ा रही थी। डॉक्टर साहब आप पैसों की चिंता मत कीजिये, जो संभव हो वो बेहतर इलाज कीजिये सुरेश भी डॉक्टर्स के आगे हाथ जोड़े खड़ा था।

आप लोग रोना धोना बंद कीजिए और अपने आप को  पहले हमें पूरी बात बताइए कि हुआ क्या था

बच्ची 19 वर्ष की थी कंही कोई बॉयफ्रेंड का चक्कर… तो नही…  डॉक्टर ने टटोलने के अंदाज में  समझाते हुए पूछा तो सुनैना और गौरी एक दूसरे का मुंह ताकने लगे। अब किस मुंह से बताते क़ि बेटी की इस हालत के जिम्मेदार वे दोनो ही है

ठहरिए डॉक्टर साहब, मेरी गौरी ऐसी वैसी न थी वो तो बस अपने माता पिता को साथ देखना चाहती थी डॉक्टर्स से थोड़ी दूरी पर आई.सी.यु. रूम में अपनी पोती को गम्भीर हालत में देख दादी किशोरी देवी बिलख कर रोते हुए बोली।

कितना समझाया था मैंने इन लोगों को, कि बच्चे अब बड़े हो गए है अपनी अकड़ और अहम को भूलकर सुलह से रहो, बच्चों को समय और साथ दो। लेकिन ये दोनो अपनी ही जिद अड़े रहे, और वंहा मेरी गौरी ने अपनी जान दे दी। 

चार दिन पहले की बात है मेरी बहु बेटे से लड़ झगड़ कर मायके जाकर बैठ गयी, मैंने और गौरी ने बहुत समझाया इसने एक न सुनी। फिर गौरी अपने पिता से बहुत कहा कि-  मां को मनाकर घर ले आये लेकिन ये भी अपने अहम के आगे झुकने को तैयार नही हुआ। परेशान होकर गौरी ने घर मे रखी सल्फास की गोलियां खा ली।

उस समय घर पर कोई नही था मैं पोते को लेने स्कूल गयी हुई थी घर आई तो देखा गौरी फर्श पर पड़ी तड़प रही थी मोहल्ले वालों की मदद से हॉस्पिटल लेकर आई और यंही से इन दोनों को फोन भी किया। सुरेश और सुनैना बुत बने सर् झुकाए खड़े थे

अगर ये बात सच है तो बहुत बुरा हुआ मि.सुरेश,

बच्ची के पेट मे जहर फैल चुका है सारे ऑर्गन फैल हो चुके हैं तभी नर्स ने आकर गौरी के होश में आने की सूचना दी और सभी लोग कमरे की तरफ दौड़ पड़े।

डॉक्टर ने सिर्फ किशोरी देवी को मिलने की अनुमति दी

दादी आंसू पोछती हुई गौरी के पलंग के पास रखी टेबल पर बैठ गयी।

कैसी है बेटा,  बस तू एक बार अच्छी हो जा बेटी फिर मैं इन दोनों की खबर लेती हूं।

तभी गौरी ने दादी का हाथ अपने हाथ मे लिया और बोली – मुझे माफ़ कर दो दादी मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गयी। 

मुझे लग रहा था कि मेरे इस कदम से मम्मी पापा अपनी लड़ाई भूलकर मेरी देख रेख में लग जाएंगे और मुझे बचा लेंगे, लेकिन… शायद बहुत देर हो गयी,अब मैं… कहते हुए गौरी की सांसे उखड़ने लगी और हाथ दादी के हाथ से छूट गया। रह गया था बस…अफसोस।

आँचल फैलाना

मुहावरा लघुकथा प्रतियोगिता

मोनिका रघुवंशी 

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