“ए पापा! अबरियो आप हमलोग के साथ नहीं न चलिएगा? “न रे लल्ला! तू लोग सब घूमने चल जाना। काहे पापा, हर बार आप ऐसे ही करते हैं बाकि सब हमरा दोस्त लोग मम्मी-पापा दूनु के साथ घूमने जाता है, फेसबुक पर फोटू भी डालता है। बस हम ही आपके बिना हर जगह जाते हैं।
नहीं-नहीं इस बार नहीं पापा, हमको आप चाहिए। हमको त आपके ही साथ जाना है।” “हम बाप हैं तुम्हारा, अउ बाप का कर्तव्य होता है अपना बेटा को बेस्ट देना अउ बेस्ट कैसे देंगे, कमाएंगे तभे न? अभी दुर्गा पूजा का न समय है, एक दिन में पचास-पचास किलो का ढोसा निकल जाता है।
हम बाद में जायेंगे तुम्हारे साथ घूमने। देखो लल्ला! तुमको हमरे जैसा ढोसा नहीं बेचना है। तुमको शहर का सबसे टॉप विद्यालय (स्कूल) में भरती करवाए हैं। तुमको त बड़का बाबू, मने बड़का अफसर बनना है लल्ला!” “भक्क पापा हमको नहीं बनना है कोई अफसर-उफसर, नहीं जीना है वैसा जिंदगी जिसमें आप हैं ही नहीं। बाकी सबका पापा लोग उसके साथ में घूमने जाता है।” (बंसी का बेटा कान्हा झल्लाते हुए बोला।)
“अरे बात को समझो लल्ला ऊ सब लोग अफसर का बेटा होता है, नौकरी करता है इसलिए छुट्टी मिलता है। तभे न एतना मेहनत करके तुमको पढ़ा रहे हैं ताकि आगे चलके तुमको भी छुट्टी मिलेगा अउ तुम भी फटर-फटर अंग्रेजी बोलेगा।” (बंसी ने आपने ढोसे की ठेला गाड़ी को तैयार करते हुए कहा।)
“आप बाप नहीं सौतेला बाप हैं तभी आप हमसे प्यार नहीं करते हैं।” (कान्हा ने चिल्ला कर रोते हुए कहा।) “लल्ला…..” बंसी चित्कार के साथ अपने बेटे कान्हा के मन की भड़ास को बदतमीजी का नाम देते हुए उसके गालों पे कस के दो झापड़ जड़ते हुए अपने ढोसे की ठेला गाड़ी लेकर निकल गया।
आज आठ साल का कान्हा हर पूजा पंडाल में माता रानी की प्रतिमा के आगे बस एक ही गुहार लगा रहा था कि ए माई! हमको भी पापा संगे पूजा घूमना है। उधर बंसी का ठेला बहुत धाकड़ चल रहा था। वो बहुत खुश था पूजा में हर साल उसकी कमाई चरम सीमा पर पहुंच जाती है। उसे अपने बेटे की बात से दुःख तो पहुंचा था लेकिन उसने उसे नादानी समझ के क्षमा कर दिया। तवे पे ढोसा बनाते-बनाते बंसी पांच वर्ष पीछे आतीत के गलियारों में पहुँच गया जहाँ वो अपने गांव बक्सर में कर्जे के बोझ तले इस तरह दब चुका था
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जिसे चुकाते-चुकाते उसके खेत-खलिहान सब बिक गए थे और गुजर करने के लिए बस एक खपड़ैल छोटी सी झोपड़ी बच गयी थी। शहर में उसका एक दोस्त बल्ली चौमीन-चिल्ली बेचा करता था उसकी आमदनी इतनी अच्छी थी कि उसने तिनतल्ला मकान बना लिया था और अपने बच्चों को बहुत ही अच्छी शिक्षा और जीवन देने में सक्षम था। बहुत धाड़स करके उसने बल्ली का हाथ थामे ढोसे के ठेले के साथ नये जीवन का आरम्भ किया था और उसकी किस्मत ने भी कुछ ऐसे साथ दिया
कि बहुत ही कम समय में उसके ठेले पे चार-चार नौकर खटने लगे और वो बहुत अमीर बना गया लेकिन बल्ली हर तीज-त्योहार में काम के साथ-साथ परिवार के लिए भी समय जरुरत निकाल लेता था और बंसी को बल्ली की ये बात मूर्खता लगती थी। बंसी अक्सर बल्ली को ये बात कहता भी था तो बल्ली हँसते हुए कहता “भाई! कमा किसके लिए रहे हो, परिवारे के लिए न जब ऊ ही खुश नहीं रहेगा त का करेंगे वैसा कमाई का?” आज नौमी का दिन है। बल्ली ने अपना ठेला बंद रखा है। उसकी योजना दिन भर आराम के बाद रात को परिवार संग पूजा घूमने की थी।
रात के 11:00 बज रहे हैं कि तभी अचानक चार-पांच पुलिसकर्मीयों के आर्डर पाकर बंसी अतीत से वर्तमान में आ पहुंचा। उसने देखा कि सब पोलिस वाले अपने-अपने बच्चों और पत्नी के साथ वीडियो कॉल पे थे। ढोसा खाकर समय बिना बर्बाद किए वे सब वहाँ से जाने को हुए तभी बंसी ने कहा “हमारे घर में भी यही कहानी है साहब, का बताएं!” तभी एक पोलिसकर्मी ने हँसते हुए उत्तर दिया “हमलोग को तो हर तीज-त्योहार में मजबूरी में परिवार से दूर रहना पड़ता है। काश! हमलोग का भी आपकी तरह कुछ अपना व्यापार होता तो अपनी मर्जी से परिवार के लिए एक दिन छुट्टी कर पाते।” इस एक वाक्य ने बंसी को झंकझोर कर रख दिया।
उसे संट मार गया और वो मन-ही-मन सोचने लगा कि वो तो सोच रहा था कि नौकरी व्यापार से अच्छा है और नौकरी वाले सोच रहे हैं कि काश! वो व्यापारी होते तो अपनी मर्जी से जिंदगी जी लेते। मतलब इस निन्यानबे के चक्कर में सब-के-सब फंसे हुए हैं। बड़ी ख्वाहिश के साथ कमाने निकले थे कि परिवार के संग सुकून की जिंदगी बिताएंगे फिर वक्त गुजरता गया और कम्बख्त कमाने की लत ने परिवार की तरफ मुड़ के देखने का मौका तक न दिया। ऐसे ही बड़े-बुजुर्गों ने नहीं कहा है
कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। तो परिवार के साथ यादो की गुल्ल्क में खुशियाँ और मुस्कान भरने के लिए बंसी ने भी अपनी एक रात की कमाई के मोह को त्याग दिया और ठेला बंद करके अपनी पत्नी और बेटे के पास पहुँच गया। कान्हा खुशी से नाचने लगा और उसने मन-ही-मन माता रानी को बहुत धन्यवाद किया। आज बंसी उसे अपने कंधे पर बैठ कर पूजा घुमा रहा था और कान्हा इतरा रहा था उसकी पत्नी भी बहुत खुश थी आखिर उसने बंसी का ये रूप कई सालों बाद जो देखा था।
आज बंसी को आभास हो रहा था कि ये पल बहुत अनमोल हैं पचास किलो आलू के ढोसे की इसके सामने क्या औकात है। एक बार जो मेरा बेटा बड़ा हो जायेगा त हमको खोजेगा का अउ ऊ तो अपना दोस्त लोग के साथ पूजा घूमेगा तब हम भी उसको कहाँ फिर ऐसे कन्धा में घुमा पाएंगे।
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दोस्तों! जीवन में लक्ष्य अनंत हैं। बस यात्रा का आनंद ही जीवन को जीवंत बनाये रखता है। बंसी समझ चुका था कि पिता का अर्थ केवल वीर्य और अर्थ दान करना ही नहीं होता बल्कि पिता तो उस घने वट वृक्ष की भांति होता है जिसका हर सुख-दुःख में उपलब्ध होना ही बच्चों के लिए अपने आप में ही बहुत बड़ी उपलब्धी होती है। दोस्तों! माता रानी ने जिस प्रकार कान्हा की इच्छा पूर्ण की आपकी भी जरुर करेंगी तो एक बार जोर से बोलो दुर्गा माई की जय।
© लोकृती गुप्ता ‘अनोखी’
राँची (झारखण्ड)