अधूरी कहानी – अनिता मंदिलवार सपना : Moral Stories in Hindi

एक बड़ा सा महल जैसा घर । रहन सहन उच्च कोटि का । घर में बीसों नौकर चाकर । बेटा, बेटी, बहू और दामाद । सब हैं । घर पर कुछ शोर सुनाई देता है ।
यहाँ क्या शोर हो रहा है भई ! मिस्टर शर्मा घर के अंदर दाखिल होते ही कहते हैं ।
पूर्वा दादी के साथ घूमने जाने के लिए जिद कर रही है । मेरे लाख कहने के बाद भी मेरे साथ जाने को तैयार नहीं है पिताजी । दादी से बहुत लगाव है न पूर्वा को ।
बहू , बच्चे ज्यादा लाड़-प्यार से बिगड़ जाते हैं । मैं देखता हूँ । मि.शर्मा पूर्वा को जबरदस्ती अपने तरफ खींचते हुए ले जाना चाहते हैं । पूर्वा रोने लगती है । इतने में सरला आ जाती है और संध्या को व्यंग्य पूर्वक कहती है, तुम्हारे पिताजी ठीक कह रहें हैं, जरूरत से ज्यादा प्यार करने से भी बच्चे बिगड़ जाते हैं उनकी भलाई के लिए हमें छाती पर पत्थर रखना ही चाहिए ।
दूसरे दिन संध्या के हाथ में सितार देखकर सरला पूछती है । तुम्हारे हाथ में क्या है और क्या सोच रही हो । स्टोर रूम में क्या करने गयी थी बहू ।
” माँ जी ये सितार है जो गिर गया था उसे ही उठाकर ला रही हूँ ।  स्टोर रूम में रखा था ।  गिरने की कुछ आवाज आई थी तो देखने चली गयी थी । मीरा दीदी का सितार है । उन्हें दे देती हूँ , ले जायेंगी अपने साथ ।
सरला बहू के हाथ से सितार लेकर बजाने लगती है । सितार की आवाज सुनकर मीरा आ जाती है और कहती है -माँ तुम इतना सुन्दर सितार कैसे बजा लेती हो, मैं तो खो गई थी, कैसी छटपटाहट है मुक्ति की, इस संगीत में । तुम बजाया करो माँ । तुम्हें बहुत अच्छा लगेगा ।
तू अपना सितार क्यों नहीं ले गयी अपने साथ, पता नहीं स्टोर रूम में किसने रख दिया ।
मैं ही रख गई थी माँ, इन दिनों फुरसत ही कहाँ मिलती है । मैंने सोचा जब समय रहेगा तो ले जाऊंगी।
शादी के बाद लोगों का आना-जाना, कभी पार्टी में, कभी बाहर घूमने का प्रोग्राम रहता है और घूमना मुझे भी अच्छा लगता है ।
  और सितार बजाना तो सबसे प्रिय था तुम्हें, उसका क्या? अपना शौक छोड़ दोगी तुम ।
माँ, विनोद कहते हैं कि ये सबके लिए जीवन पड़ा है, अभी घूमने का आनंद लो । जीवन की नयी शुरूआत है तो कुछ नया होना चाहिए ।
ये सब सुनकर सरला अपनी ज़िन्दगी के पुराने दिनों को याद करती है और कहती है कि वही कहानी, वही स्वर,वही तर्क । शुरूआत में सब कहाँ समझ आता है ।
मीरा पूछती है कौन सी कहानी माँ, और कौन सा स्वर और कौन सा तर्क ।
सरला ने हँसकर कहा, बताऊंगी कभी, अभी तू अपना सितार संभाल कर रख । कमरे से स्टोर रूम और बाद में कबाड़ घर में जाते देर नहीं लगती और कबाड़ घर में दीमक……!
खैर छोड़ो, कुछ दिन बाद स्वयं जान लेगी । वही कहानी हमेशा दुहराई जाती है ।
मि. शर्मा घर को नया स्वरूप देना चाहते हैं और अपने बेटे अजय से विचार विमर्श करते हैं । कहने को तो विचार विमर्श पर घूम-फिर कर बात तो वही होनी है जो मि. शर्मा चाहते हैं , पर कहने के लिए पत्नी सरला से भी विचार विमर्श करने की बात करते हैं । इसी बात पर अजय व्यंग्यात्मक हँसी हँसते हुए कहता है कि पिताजी आप भी मजाक खूब कर लेते हैं । आप जो कुछ भी कहते होंगे, माँ मुस्कुराकर उस पर अपनी स्वीकृति दे देती होंगी ।
नहीं बेटा अपनी माँ के बारे में तुम लोगों ने गलत धारणा बना रखी है । जितनी सरल है उतनी ही बुद्धिमती भी हैं।
पिताजी इस बात में कोई संशय नहीं कि माँ बुद्धिमती है । मैं ये कहना चाह रहा था कि आपके विचार माँ के लिए वेद वाक्य हैं ।
इतने में संध्या चाय के साथ दाखिल होती है और उसने कहा कि माँ भी आ रहीं है, पर पिताजी न जाने कुछ दिनों से माँ को क्या हो गया है । बहुत उदास रहने लगी हैं । लगता है उनकी तबियत खराब है । न पहले की तरह हँसती है, न ही बातें करती है ।
हाँ तुमने सही कहा, मैंने भी यह बात नोट की है । घर के कामों में अब रूचि है । रात मे देर तक कुछ न कुछ करती रहती है । बात भी नहीं किया मुझसे बहुत दिनों से । उसे फर्क नहीं पड़ता कि कोई साथ है या नही ।
सरला के आते ही मि.शर्मा ने बैठने का इशारा किया और कहा कि तुमने मकान का नक्शा देखा ।
मुझे यह नक्शा एकदम पसंद नहीं है ।
मि.शर्मा को इस उत्तर की कतई उम्मीद न थी । हमेशा हाँ में हाँ मिलाने वाली सरला का ऐसा जबाब ?
  क्यों, क्या पसंद नहीं है तुम्हें इसमें ।
  सरला ने कहा- “यह नक्शा ही मुझे पसंद नहीं है” ।
  पर उस दिन तो तुमने सहमति प्रकट की थी ।
नक्शा ही नहीं, मुझे मकान का नाम भी पसंद नहीं ।
ओ हो, क्या कह रही हो अब मि.शर्मा झुंझला उठे थे ।
तुम्हारे नाम पर इस मकान का नाम ‘सरला सदन’ होगा । इसमें सबकी सहमति थी ।
  नहीं, मैंने कोई सहमति नहीं दी थी । आपने जबरदस्ती ले ली थी । आप मन पर हावी होने लगते हैं अपनी बात मनवाने ।
  किसने जबरदस्ती की ? मिस्टर शर्मा ने कहा ।
  आपने !
  अब तो मि.शर्मा चीख उठे-तुम क्या बच्ची हो जो मैं तुमसे जबरदस्ती करूँगा ।
  जबरदस्ती बच्चों के साथ नहीं, बड़ो के साथ भी की जा सकती है ।
मि.शर्मा उत्तेजित हो उठे थे – झूठ! एकदम झूठ है, मैने तुम्हारे साथ कभी कोई जबरदस्ती नहीं की ।
  तुमने सहमति प्रकट की थी और अब नाम भी वही होगा । अब नहीं बदल सकता । सुन रही हो न !
  बदलने को मैं कब कहती हूँ, पर यह सब मुझे पसंद नहीं है । आप समझते हैं क्रोध का प्रदर्शन करके आप मुझसे नक्शा पसंद करवा लेंगे, पर अब ये नहीं हो सकता । मैं जा रही हूँ ।
संध्या ने मि. शर्मा को आकर बताया कि माँ जी घर की सभी चाबियाँ मुझे दे दी है और कहा कि मैं मुक्ति चाहती हूँ । ये सुनकर मि.शर्मा परेशान है कि सरला को क्या हो गया है ।
  अजय ने कहा कि माँ को तनाव है और मन पर लगी चोट के कारण है ।
चोट कब और कैसे लगी, कहाँ लगी, मुझे पता नहीं चला । इतने में सितार बजने का स्वर सुनाई देता है ।
  ये सितार कौन बजा रहा है आज? मिस्टर शर्मा ने पूछा ।
  माँ बजा रही हैं मीरा का सितार है । कितना सुन्दर सितार बजाती हैं माँ ।
मैंने देखा है पूरे चौंतीस वर्ष पहले उन्हें सितार बजाते हुए । जब पहली बार बहू बनकर घर आयी थी ।
तब तुम्हारी दादी को ये सब पसंद न था और सितार को उन्होंने कबाड़ में रखवा दिया था । मुझे भी कहाँ पसंद था ये सब । और पुरानी यादों में खो जाते हैं ।
माँ कह रही थी तुम अवसर पाते ही सितार लेकर बैठ जाती हो ।
  जी—– वो—
  कहो, रूक क्यों गई ।
  क्यों बिना कहे मेरी बात नहीँ समझ सकते ।
  मैं ज्योतिषी हूं क्या ?
  जहाँ प्रेम है वहाँ सब समझ आ जाता है ।
  सच! प्रेम तो समझ आता है पर यहाँ सितार कहाँ से आ गया । प्रेम का अपना अलग संगीत होता है तुम सितार के पीछे क्यों भागती हो ।
वैसे भी हम अगले सप्ताह शिमला जाना है ।
यह फैसला भी अपने आप ले लिया आपने । सरला मन ही मन सोचती है ।
  अरे—मैं भी कहाँ खो गया था । माँ की मृत्यु पश्चात सरला के परिवार की पूरी जिम्मेदारी संभाली ।
  सच कहा पिताजी, और इन सब में माँ सब भूल गई -सितार, संगीत, चित्रांकन और कविता भी ।
हाँ बहू, मुझे लगता है सरला को पुरानी बातें याद आ गई है मीरा का सितार देखकर !
उसे इलाज की जरूरत है अब । क्या  कहते हो बेटा ।
पिताजी,  क्या माँ को सचमुच डाक्टर की जरूरत है ?
  संध्या अजय से कहती है डाक्टर नहीं मनोचिकित्सक के पास जाना चाहिए । माँ को नही पिताजी को —–!
ये तुम क्या कह रही हो संध्या ।
हाँ, अजय ! अभी तक कुछ कहा नहीं कि बाहर वाली हूँ, पर अब सब समझ गयी हूँ । पिताजी ने माँ की बात कभी मानी नहीं बस मनवायी है ।
तुम सच कह रही हो संध्या । पिताजी ने सचमुच हम सबके स्वतंत्र मन की हत्या की है ।यह संगीत इसी बात का प्रमाण है। कैसी छटपटाहट है इसमें, जैसे कोई बंधन तोड़ने के लिए जूझ रही हो ।
ये लो अजय पढ़ो, माँ के टेबल पर मिले हैं ।
अच्छा पिताजी को दिखाता हूँ ।
अजय ये तो कहानी है इस कहानी से मेरी पत्नी का क्या संबंध । मिस्टर शर्मा खींझकर कहते हैं —
माँ ने लिखा है पढ़कर सुनाता हूँ —-
मेरे नामकरण की बात आई या माँ की साड़ी पसंद करने की या मेरे द्वारा विषय पसंद करने की या शादी के लिए लड़की पसंद करने की । सबमें आप ही हावी रहे ।
पिताजी आज जो माँ की हालत है । अब भी कहेंगे की माँ को मनोचिकित्सक की जरूरत है । इतने में सरला वहाँ पहुँच जाती है और कहती है मनोचिकित्सक की जरूरत तुम्हारे पिताजी को है अजय ।
मैं स्वतंत्र मन से काम करती हूँ तो उसे पागलपन कहते हैं ।
अच्छा तो तुमलोगों ने मेरी अधूरी कहानी पढ़ ली । कहानी के बारे में क्या सोचा तुम सबने ।
बताओ कुछ गलत लिखा क्या मैंने – मै अब मुक्ति चाहती हूँ । अपने अधूरेपन के साथ ही जीना है बिल्कुल इसी कहानी की तरह, जो कभी पूरी नहीं होगी । मुझे मुक्ति चाहिए ।
हाँ, बस अब मुक्ति चाहिए ।

अनिता मंदिलवार “सपना “
अंबिकापुर सरगुजा छत्तीसगढ़

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