अधिकारी – कंचन श्रीवास्तव

चरण स्पर्श लिखते हुए निवेश के सामने अतीत का एक एक पन्ना स्वत: ही खुलने लगा।

आंसुओं की अविरल धारा आंखों से बहने लगी।

उसे अच्छे से याद है जब मां पिता जी साल के भीतर ही हम सबको तोड़के चले गए थे तो कैसे भाई ने हम सभी भाई बहनों को संभाला , सारी जिम्मेदारी इसके ऊपर ले ली ।

जबकि शादी भी नहीं हुई थी फिर भी चारों भाई बहिनों को प्रेम में बांध के रखा सबको बांधे रखा,

उसे अच्छे से याद है कि वो बेरोजगार थे और ट्यूशन करके हम सब की  पढ़ाई जारी रखी।

सभी भाई बहनों में मैं छोटा था इसलिए मैं जिद्दी भी बहुत था ।पर वो मेरी हर जिद पूरी करते इसे लेकर कभी कभी और भाई बहनों में कहा सुनी हो जाती तो वो छोटा है कहके टाल जाते ।और तो और  जवान हुआ तो चरित्र पर भी उंगली उठाने से लोग बाज नहीं आए । तो ये बोले देखो ये दुनिया है कुछ भी कहे ,कुछ भी करे इस पर ध्यान मत देना।वरना अपने उद्देश्य से भटक जाओगे। और हां रिया तुम इसकी मां नहीं हो पर मां समान भाभी तो हो लोगों की परवाह किए बगैर इसका ध्यान रखो और इसे अपने उद्देश्य में सफल होने दो।


क्योंकि यदि हमें विश्वास है तो तुम्हें अफवाहों पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है।

सच कैसे भाई ने रिश्ते और जिम्मेदारियों का दायित्व एक साथ निभाया की हमें पिता के खोने का अहसास ही नहीं हुआ ।

आज उसी की विश्वास और सहयोग के बदौलत मैं अपने पैरों पर खड़ा हो पाया।

इतने में खट्ट से आवाज़ हुई तो देखा कामवाली आई हुई थी।

और उसकी उंगली की पैड पर मानों ठहर गई हो।तो होश में आते हुए लिखा भाई मैं तुम्हारा आशीर्वाद लेने घर आ रहा हूं । मेरा चयन हो गया है आई ए एस अधिकारी बन गया हूं।

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