Moral Stories in Hindi : सेठ रामकिशोर जी एवं गायत्री के एक ही बेटा था।एकलौता होने के कारण रामकिशोर जी उसका नाम रखा था चिराग यानि परिवार का चिराग।माँ पिता चिराग को बेहद प्यार करते।एक बार चिराग को बुखार जो हुआ गायत्री तीन दिन तक सोयी ही नही बस चिराग को गोद मे लिये बैठी रही,रामकिशोर जी उसकी दवा दारू में लगे रहे,
पर गायत्री तो गुम सुम सी हो गयी थी।जब तक बेटा स्वस्थ नही हो गया तब तक चिराग को ही निहारती रही।रामकिशोर जी ने कहा भी गायत्री ऐसे ही मौसमी बुखार है एक दो दिन में उतर जायेगा, इतना तनाव लोगी तो बीमार पड़ जाओगी।पर माँ थी ना,कहाँ मानने वाली थी?
चिराग थोड़ा बड़ा हुआ तो उसका दाखिला भी एक बड़े स्कूल में कराया गया।घर मे खाना बनाने वाली रखी हुई थी,फिर भी गायत्री चिराग का लंच बॉक्स खुद तैयार करती,जब तक वह स्कूल से वापस नही आ जाता,बस दरवाजे की ओर देखती रहती।बेटे के प्रति आसक्ति की पराकाष्ठा थी ये।
समय पंख लगा उड़ रहा था,चिराग शादी योग्य हो गया था।चिराग अपने प्रति माँ की आसक्ति को समझता था सो उसने पिता को भी कह दिया था कि वह माँ की पसंद की लड़की के साथ ही शादी करेगा।जिसे भी माँ पसंद करे।चिराग की बात सुन गायत्री बड़े गर्व से अपनी पड़ौसन सुमन को बता रही थी कि मेरे चिराग ने कह दिया है कि वह शादी करेगा तो माँ की पसंद से।
गायत्री ने भी अपने चिराग के लिये लड़की चुनने में अपनी सारी प्रतिभा लगा दी।ढेर सारी लड़कियां देखी तब अपनी ही सहेली की बेटी नीलम को चिराग के लिये पसंद कर लिया।चिराग को मां की पसंद पर पूर्ण विश्वास था सो रिश्ता पक्का कर दिया गया।खूब धूम धाम से चिराग और नीलम की शादी सम्पन्न हो गयी।रामकिशोर जी के घर मे रौनक हो गयी।
नयी नवेली वधु नीलम ने जल्द ही घर की पूरी जिम्मेदारी संभाल ली।चिराग ने नीलम को पहली ही रात्रि में स्पष्ट रूप से नीलम को अपनी माँ और अपने भावनात्मक लगाव के बारे में बता दिया,साथ ही अपनी इच्छा बताते हुए आगाह भी कर दिया कि माँ को कभी शिकायत का अवसर मत देना।नीलम काफी समझदार और मैच्योर थी,
उसने कहा चिराग मैं माँ को कभी अलग नही समझूँगी, उनकी सेवा में कोई कोर कसर नही छोडूंगी, तुम निश्चिन्त रहो चिराग।
नीलम ने जो कहा, उसी अनुरूप किया।प्रातः उठकर पापा यानि रामकिशोर जी एवम चिराग का लंच बॉक्स लगा कर सबका नाश्ता बनवाना सब कुछ नीलम ने संभाल लिया था।अब गायत्री पर कुछ भी करने को नही रह गया था।नीलम सच मे एक सुगढ़ गृहणी साबित हुई थी।रामकिशोर जी एवम गायत्री फूले नही समाते थे।
अचानक ही गायत्री के व्यवहार में अजीब सा परिवर्तन आता जा रहा था।चिड़चिड़ा और रुखा सा स्वभाव बन गया था।गायत्री अब नीलम से भी ठीक बात नही कर रही थी।उसके कामो में मीनमेख निकालना या फिर कम बोलना शुरू कर दिया था।इस परिवर्तन का कारण न रामकिशोर जी समझ पा रहे थे और न ही चिराग।
परंतु चिराग महसूस कर रहा था कि माँ नीलम से खिंची खिंची रहने लगी है, आखिर क्यूँ, इस प्रश्न का उत्तर वह खोज नही पा रहा था।नीलम खुद कह रही थी कि पता नही माँ को क्या हो गया है?
कुछ दिनों जब ऐसे ही दूभर वातावरण घर मे चला तो चिराग ने सोच लिया कि जरूर ही नीलम द्वारा ही माँ की भावनाओं को चोट पहुंचाई गयी है।अपने मन मे आये इस भाव को चिराग ने नीलम से कह भी दिया।नीलम चिराग के इस इल्जाम को सुन भौचक्की रह गयी।क्या सफाई दे?आंखों में छलक आये आंसुओ को छुपा कर नीलम चिराग के सामने से हट गयी।
कुछ मौसम परिवर्तन और कुछ तनाव के कारण चिराग को बुखार हो गया।पसीने से लथपथ चिराग ने जैसे ही घर मे प्रवेश किया नीलम चौंक गयी, दौड़कर चिराग को संभाल लिया और बेडरूम में लिटा कर उसके कपड़े बदले।फैमिली डॉक्टर को फोन किया।इतने में गायत्री भी आ गयी,उसने भी चिराग का हाल देखा तो घबरा गयी।रामकिशोर जी भी नगर से बाहर गये हुए थे,
गायत्री सोच रही थी,कैसे होगा।इतने में ही डॉक्टर साहब भी आ गये, चेक कर बोले ,लगता है डेंगू है,दो तीन दिन हॉस्पिटल में रखना होगा,आप इन्हें हॉस्पिटल में एडमिट करा दे।गायत्री नरबस हो गयी,कैसे होगा।लेकिन नीलम बोली मां आप चिंता मत करो,आप अस्पताल में काम आने वाली चीजों को एकत्रित कर लो मैं बाहर दरवाजे पर गाड़ी लगाती हूँ।
कर्तव्यविमूढ़ गायत्री चुपचाप जैसे जैसे नीलम कहती जा रही थी करती जा रही थी।कार को दरवाजे पर लगा कर नीलम ने माँ की सहायता से चिराग को गाड़ी की पिछली सीट पर लिटा दिया और माँ को अपने पास बिठाकर कार ड्राइव कर हॉस्पिटल पहुंच गयी।चिराग को एडमिट करा दिया गया।उसका इलाज प्रारम्भ हो गया।देर रात्रि तक रामकिशोर जी भी आ गये।
तीन दिन बाद चिराग घर वापस आ गया।नीलम ने पूरा घर संभाल रखा था और माँ चिराग के पास बैठी रहती।दो दिन बाद चिराग को अपने कमरे में लेटे लेटे बराबर के कमरे से माँ की आवाज सुनाई दी,माँ नीलम से कह रही थी,बेटी मुझे माफ़ कर देना।मैं समझ रही थी तूने मेरे चिराग को मुझसे छीन लिया,मेरा उससे अधिकार ही समाप्त हो गया,
पर मैं अभागन भूल गयी कि शादी के बाद तो वो तेरा भी तो है और तू मेरी भी तो है।उम्र हो गयी है ना बेटी समझ ही नही पायी।अब समझ आया चिराग तो तेरे कारण ही घर आ पाया है।माँ आप क्या कह रही हैं, मैं आपसे अलग कहाँ हूँ।
बेड पर लेटे लेटे चिराग की आंखों के कोर से आँसुओ की कुछ बूंद टपक गयी,शायद प्रायश्चित की कि उसके द्वारा नीलम पर लगाये इल्जाम को नीलम ने ही झूठा साबित कर दिया था।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवं अप्रकाशित