इंगिता से उसका पति इंद्रेश- सुनो!! सात दिन छः रातों का नाईटस्टे फर्न्स रिसोर्ट एंड होटल में बुक कर दिया है। नए साल पर जब मम्मी पापा आयेंगे, अबकी बार उन्हें दुबई भी दिखा देता हूँ। वे खुद तो कभी कहीं जाते नही, और ना जाने की सोचते हैं।
इंगिता- ये तुमने अच्छा किया। उनका इसी बहाने विदेश भ्रमण भी हो जाएगा। अक्सर पोस्टिंग्स पर आसपास की जगहों पर ही उनको घुमा पाना संभव हो पाता है।
इंद्रेश- सही कहा। इस बार वे भी क्या याद करेंगे। उनके सभी संगी साथी अपने अपने विदेशों में बसे बच्चों के पास जाते हैं। वापस लौटकर वहाँ के वृतांत सुनाते हैं। मम्मी पापा को भी लगता होगा। काश!! हमारा भी कोई बच्चा विदेश में होता तो हम भी उसके पास जा पाते।
इंगिता- पता नही इंदीवर। कुछ कह नही सकती। स्त्रियों में ऐसे भाव ज़्यादा प्रबल होते हैं, बजाय पुरुषों के। उनके बीच ऐसे वार्तालाप सर्वसामान्य व सहज होते हैं। इसे प्रतिष्ठा/ वैभव संपन्नता का द्योतक माना जाता है।
** इतने में सुहागा, उन दोनों की चौदह वर्ष की पुत्री का प्रवेश होता है।**
सुहागा पिता से- वाओ पापा!! मैं सुन रही थी आप दोनों की बातें। दुबई will be a perfect getaway.. इस बार दादी दादू की लॉटरी लग गई।
इंगिता सुहागा से- लॉटरी उनकी नही हमारी लगी है। तेरे पापा, ना तेरे दादी दादू को घुमाने की सोचते, और ना हम कभी दुबई घूम पाते।
सुहागा- ये आपने बिल्कुल ठीक कहा मम्मा। आप के सुझाए गंतव्यों पर पापा कभी नही जाते। सिरे से मना कर देते हैं। बहाने बना देते हैं। आपको क्या अच्छा लगता है, यह नही सोचते।
पर जब उनका मन होता है, तो बस हुक्म दे देते हैं। यहाँ जाना है। वहाँ जाना है। ना ये देखते हैं। कब मेरी परीक्षा हैं, कब मेरी कक्षाएं। किसी की भी सारिणी से उनको कोई मतलब नही होता।
इंद्रेश- लो भाई!! माँ बेटी साथ आते ही। मुझ पर बरसने लगीं। सारी शिकायतों की सूची तुम दोनों को रटी हुई हैं। कुछ भी कर दो, पर तुम औरतों की ये आदत बहुत खराब है। तुम कभी खुश नही रह सकती। एक मेरी माँ हैं, देखो ज़रा!!
मेरी मंशा तुम लोगों को आनंदित करना होता है। फिर उसके पीछे मुझे कुछ नही सूझता। ये सब तुम्हारे लिए ही तो है।
सुहागा- पापा!! मैं बच्ची नही हूँ।
अपने जीवनसाथी के विचारों का संज्ञान ना लेना। उनसे सलाह मशविरा न करना। किसी भी तरह की जानकारी उनको ना देना। केवल अपने मातापिता या रिश्तेदारों के आगमन पर घूमने फिरने का कार्यक्रम बनाना।
आपका मम्मा और मेरे साथ गंतव्य स्थलों पर जाकर केवल मदिरापान करना, आराम करना। ये सब कैसे हमको आनंदित कर सकता है??
इंगिता- सुहागा!! जाओ बेटा, वरना देर हो जाएगी। तुम्हारी साइंस की ट्यूशन का समय हो गया है।
** सुहागा वहाँ से चली जाती है। तमाम प्रश्न इंद्रेश और इंगिता के मध्य छोड़ जाती है।**
**सुहागा जानती है। उसकी मम्मा इन ढाँचों में खुद ही सिमटी है। कोई जोरजबरदस्ती नही की गई उनके साथ। पर इस सबमें उसकी माता का आत्मविश्वास, दृढ़ता, हिम्मत। वह सभी व्यक्तिगत ख़ासियत जिसका जिक्र उसकी नानी करती हैं। और जिनको देखकर उसके पिता ने उसकी माता को पसन्द किया था। कहीं खो गया है।**
मौलिक और स्वरचित
कंचन शुक्ला- अहमदाबाद