पापा आज तो देर हो रहा हूं, कल पक्का शर्मा अंकल के यहां छोड़ता हुआ जाऊंगा..उत्सव अपने पापा दीनदयाल जी को कहता हुआ सभी को बाय बाय करता ऑफिस के लिए निकल गया।
पापा कल चलते हैं रूटीन चेकअप के लिए, आज एक मीटिंग में अर्जेंटली पहुंचना है। मां समझाना पापा को, समझते नहीं हैं नाराज हो जाते हैं…
पापा परसों ही तो खीर बनाई थी… अब रोज रोज.. वैसे भी आप शुगर के मरीज हैं…एक दो दिन बाद बना दूंगी… बहू श्यामा कहती है।
अनुसुईया दीनदयाल जी की उसी शहर में रह रही बेटी गर्मी की छुट्टियों में भाई भाभी के यहां आई थी, उसे भाई भाभी का ये व्यवहार अखर गया था।
अरे क्या करूं यार…मम्मी पापा यहां हैं सो टाइम ही नहीं मिलता है…ऑफिस से आकर इनकी जरूरतें पूरी करने में लग जाता हूं..उत्सव कॉल पर किसी से कह रहा था।
कितनी बार तो कहा है उत्सव से यहां की सड़कें..गलियां दिखा दे तो डेली के काम मैं ही कर लिया करूं…दीनदयाल जी जो उत्सव की बात सुन रहे थे, उनका मन दौड़ने लगा।
पापा अब रिटायर हो गए हैं, यहां का मोह छोड़िए…अब चलिए हमारे साथ आराम कीजिए।
अरे नहीं बिटवा कहां तुमलोग परेशान होओगे…यहां सब कुछ देखा सुना है, वहां फिर से एक सिरे से सब जानना समझना होगा…
परेशानी क्या मां…बस इस बार चल ही देना…देखना सुनना क्या मां…जो जरूरत होगी, मैं कर दूंगा…उत्सव मां उमा की बात सुनकर कहता है।
बहू बच्चे भी उन्हें देखकर खुश ही हुए थे। सब सहज ही थे, मानो सब उनके आने का ही इंतजार कर रहे थे। लेकिन उनकी जरूरतों का नंबर उनके बेटे के लिए सबसे अंत में आता था, इसलिए वो बेटे से कई बार यहां के रास्तों से परिचय करा देने कहते रहते थे। बेटा भी हां हूं आज कल, अब यही तो रहना है आपको, कह कर टालता जा रहा था।
भाई मैं सोच रही थी मम्मी पापा को यहां आए तीन चार महीने हो ही गए हैं, मैं चाहती हूं मेरे साथ ही रहे, अनुसुईया
भाई से कहती है।
पापा मम्मी समान पैक कर लीजिएगा.. अब आपलोग मेरे साथ रहेंगे…यहां देख रही हूं दिक्कत होती है…अनुसुईया कहती है…परसों निकलना है…
उन दोनों को बिना बताए ही अनुसुईया ने निर्णय सुना दिया… दोनों एक दूसरे का मुंह ताकते रह गए।
लेकिन बिटिया इसकी क्या जरूरत है…ठीक तो हैं यहां… उमा पति का चेहरा देखती हुई बेटी से कहती हैं।
क्यों मां बेटी के यहां रहने में शर्म आएगी क्या…अनुसुईया मां की साड़ियां लपेटती हुई पूछती है।
नहीं नहीं बेटा…कैसी बात कर रही हो तुम… दीनदयाल जी के चेहरे पर गर्व की रेखाएं दिख रही थी।
फिर भी एक बार दामाद जी से पूछ लेती बिटिया… उमा कुछ सोचती हुई कहती हैं।
क्यों मेरा भी घर है वो…वैसे भी रजत मना नहीं करेंगे…अनुसुईया माता पिता के कपड़े एक जगह करती हुई कहती है।
कहां बेटा के पास समय नहीं और कहां बेटी अपने साथ रहने के लिए इसरार कर रही है।
सच ही कहते हैं बेटियां बेटों को अपेक्षा माता पिता से ज्यादा प्यार करती हैं… दीनदयाल जी ने मन ही मन खुद को निर्णय भी सुना दिया था।
मांजी पापाजी की दवाइयां इस बैग में है, दीदी आजकल इनका शुगर बढ़ा हुआ है… बहू श्यामा कहती है।
अच्छा बड़ी फिक्र हो रही है। अब मेरे साथ रहेंगे दोनों तो कोई तकलीफ नहीं होगी…अनुसुईया की आवाज़ में अभिमान का मिला पुट देख एकबारगी दीनदयाल जी चौंक उठे।
फिर अपने मन का वहम समझ खुशी खुशी जाने की तैयारी करने लगे।
नाना जी, नानी…दोनों बच्चे, दामाद रजत ने उन दोनों को हाथों हाथ लिया। रविवार की छुट्टी होने के कारण सब घर पर ही थे।
तुम दोनों क्यूं नहीं आए मामा मामी के घर… उमा अपने अगल बगल बैठे नाती नातिन से पूछती है।
वहां से हमारा कोचिंग दूर हो जाता है ना इसीलिए…नातिन ने बताया।
अब अनुसुईया का रोज का काम हो गया, सोशल मीडिया पर मम्मी पापा की तरह तरह की फोटो डालना। कभी अपने हाथ से खाना खिलाते हुए, कभी गलबहियां करती हुई, कभी कुछ कभी कुछ और साथ में कैप्शन मेरे मम्मी पापा मेरे साथ रहते हैं। जो कि दीनदयाल जी और उमा जी को बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा था, वो समझ नहीं पा रहे थे इसमें ढिंढोरा पीटने वाली क्या बात थी। कोई मिलने वाला आ जाए, यहां तक की सब्जी भाजी वाले से भी ये जता आती वो बेटी होकर भी माता पिता को साथ रखती है।
इधर कुछ दिनों से दीनदयाल जी का शुगर बढ़ा हुआ था, डॉक्टर ने आराम की और तनाव से दूर रहने की सख्त ताकीद की थी।
आप चिंता न करें डॉक्टर साहब…मेरे पिता मेरे साथ रहते हैं, दिन भर इनका ध्यान रखती हूं…वहां भी अनुसुईया अपना गुणगान करा आई।
किस्मत वाले हैं आप , जो बेटी आपका ध्यान रखती है…डॉक्टर ने सुनते ही कहा था।
आज हम सब होटल चलेंगे…मम्मी पापा की एनिवर्सरी है…
नहीं बिटिया इनकी तबियत भी ठीक नहीं है और बाहर का खाना हजम नहीं होता है… उमा जी ने प्रतिकार किया।
क्या मां…मैंने सोचा वहां तुमदोनों के साथ नाचते हुए एक वीडियो बनाऊंगी…तुम कोई गीत सुनाओगी और मैं वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर डालूंगी…आखिर लोग भी तो देखे बेटी होकर मैं तुमदोनों को अपने साथ रखती हूं…अभिमान से अनुसुईया ने कहा।
लेकिन बिटिया तुम तो जानती ही हो हमें ये सब पसंद नहीं है… फिर क्यूं…
ओह हो मां पसंद नापसंद को छोड़ो…दुनिया न देखे तो फिर क्या मजा…
आखिर माता पिता का साथ रहना दुनिया को क्यों दिखाना। बेटे तो अभी भी नहीं दिखाते लेकिन बेटियां जरुर हर जगह ये बताती चलती हैं की मैं तो भई अपने माता पिता को साथ रखती हूं…
सच दुनिया पूरी तरह बदल गई….पहले बेटा देख लेता था, फिर समय आया बेटियों ने मोर्चा संभाला और अब बेटियां भी अपने अभिमान को तुष्ट करने के लिए, दिखावे की होड़ में लग गई… माता पिता की इच्छा अनिच्छा कोई मायने नहीं रखती है…अब माता पिता को भी अपना फर्ज बिना किसी उम्मीद के पूरे करने चाहिए और अपने आखिरी पड़ाव के बारे में पहले से जरूर सोच लेना चाहिए…बेटी के अभिमान के सामने दीनदयाल जी का अभिमान चूर चूर हो समाज के बदलते ढांचे को सोशल मीडिया में कैद होते देख हैरान हो कर रह गया था।
#अभिमान
आरती झा आद्या
दिल्ली