अभिमान जरूरी या अपनों का प्यार ..!! – अंजना ठाकुर 

पापा ये आपके लिए स्मार्ट मोबाइल लाया हूं इसमें आप

बहुत कुछ देख सकते हो नीरज अपने पापा बिपिन को मोबाइल देते हुए खुश था उसे लगा पापा खुश हो जायेंगे अपनी पहली कमाई से पापा के लिए मोबाइल लाया था

विपिन जी खुश होने की बजाय गुस्सा होते हुए बोले मुझे छोटा महसूस कराना चाहता है मेरी आय कम है पर मैं अपनी जिम्मेदारी अभी भी उठा सकता हूं इसे तुम अपने पास ही रखो नीरज उदास हो गया

अपनी मां सुनीता से बोला मां पापा हमेशा उलटा अर्थ क्यों निकालते हैं मैं क्यों उन्हे नीचा दिखाऊंगा

सुनीता क्या बोलती वो तो खुद जबसे शादी हो कर आई तब से परेशान थी विपिन की साधारण नौकरी में घर चलाना मुश्किल हो जाता उपर से दो बच्चों की जिम्मेदारी सुनीता हमेशा अपना मन मारकर जीती पर बच्चों का हमेशा मन नही मार पाती कभी मामा ,नानी बच्चों की जरूरत पूरी करते तो सुनीता को डांट पड़ती

की तुम मुझे अपमानित करती हो

सुनीता समझाती ये तो उनका बच्चों के लिए प्यार है मैं अपने लिए कभी कुछ नही मांगती पर उन्हे ये भी पसंद नही शुरू मैं तो सुनीता भी खुश थी की उन्हें स्वाभिमानी

पति मिला है लेकिन जब खुद के बच्चे ही मदद करना चाह रहे तब भी उन्हे बुरा लग रहा है मतलब ये झूठा घमंड है और इस से तो बच्चे भी दूर हो जायेंगे पर विपिन जी हमेशा चुप करा देते ज्यादा बोलने की सुनीता की भी हिम्मत नही थी

और धीरे धीरे यही हुआ बच्चे नौकरी करने दूसरे शहर मैं चले गए पापा के स्वभाव के कारण ज्यादा आना नही चाहते बच्चों की दूरी और अभाव मैं सुनीता को बीमारी लग गई विपिन अपने हिसाब से इलाज करवाता रहा

नीरज और अनुज ने बहुत जिद्द करी मां को शहर ले आओ यहां अच्छा इलाज हो जायेगा पर विपिन जी नही माने बोले मेरी हैसियत नहीं है वहां इलाज कराने की उनकी जिद्द मैं बीमारी बढ़ती गई अंतिम पल मैं बच्चों के सामने सुनीता बोली आप जिसे स्वाभिमान समझ रहे हो

ये आपका घमंड है अभी भी वक्त है बच्चों का प्यार अहसान मत समझना और सुनीता  दुनिया छोड़ गई

पर विपिन जी को इस बात का अफसोस नहीं था की उनकी गलती है अपने घमंड मैं उन्हे अपनी गलती नही दिख रही थी बच्चे शहर जा चुके थे अब उनको मिलाने वाली कड़ी भी टूट चुकी थी..!!

स्वरचित

अंजना ठाकुर 

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