अभी इतना भी बूढ़े नहीं हुए हैं कि बच्चों की उंगली पकड़कर चलें – अलका शर्मा : Moral Stories in Hindi

” पता नहीं मम्मी पापा को तो यहां आना इतना रास आ गया है कि यही बस गये है। सोचा था कि आठ दस दिन रहकर वापस अपने घर आगरा चले जाएंगे परंतु जाने का तो नाम ही नहीं ले रहें हैं।यार आजादी बिल्कुल खत्म हो गई है।” फोन पर अपनी सहेली से बात करती हुई बहू सौम्या ने सास को नहीं देखा और अपनी बातों में लगी रही। 

रचना अपनी बहू से कुछ बातें करने आई थी। सुनकर वही से वापस कमरे में लौट गयी।पति सुशील ने जब रचना का लटका हुआ चेहरा देखा तो पूछा ” क्या हुआ? तुम्हारा चेहरा क्यों फीका पड़ा हुआ है? रचना ने सब बातें सुशील जी को बता दी और वापस अपने घर आगरा लौट चलने के लिए कहा।

अपना सम्पूर्ण जीवन अपनी गृहस्थी मे न्यौछावर करने वाली रचना आज अपनी बहू की बात सुनकर स्तब्ध थी। पति और बच्चों के लिए अपने सपनों की तिलांजलि देकर उनके सपनों को पूरा करने मे ही अपनी खुशी मानने वाली रचना आज अपने बेटे और बहू की आजादी मे बाधक बन रही थी।

                कुछ दिन अपने बच्चों के साथ समय व्यतीत करने आई रचना अपने आप को ठगा महसूस कर रही थी। लेखन की अद्भुत क्षमता होने के बाद भी अपने अस्तित्व को कभी खोजने की कोशिश नहीं की।अपने पति और बच्चों के लिए ही जीवन जिया था। 

शाम को बेटे राहुल के वापस आने पर सुशील जी ने अपने बेटे से आगरा रेल के टिकट बुक करने के लिए कहा। पिता की बात सुनकर राहुल सकपका गया कि ” आपको यहां पर क्या कोई तकलीफ़ है पापा? यह आपका भी घर है। सम्पूर्ण जीवन आपने हम भाई बहन का जीवन संवारने में लगा दिया।अब आपको जीवन की संध्या में मैं अकेला नहीं छोड़ सकता। क्या सौम्या ने कहा कुछ? “

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” नहीं बेटा,घर की बहुत याद आ रही है। वहां पर भी सबकुछ बिखर रहा होगा। जबतक हाथ पैर चल रहे हैं पुरानी जान पहचान में समय गुजारते हैं।” इस बार उत्तर रचना ने दिया।वह नहीं चाहते थे कि उनकी वजह से बहु बेटे में कोई मतभेद बढ़े।” ठीक है पापा मैं आपको छोड़ने चलता हूं। मुम्बई से आगरा बहुत दूर है।” राहुल बोला

” नहीं बेटा अभी इतना भी बूढ़े नहीं हुए हैं कि बच्चों की उंगली पकड़कर चलें।हम दोनों चले जाएंगे।” सुशील जी ने उत्तर दिया। सौम्या को तो मुंहमांगी मुराद मिल गई। अन्दर की प्रसन्नता को छिपाते हुए बोली” मम्मी पापा आपको आए अभी एक महीना ही तो हुआ है और आप जाने को कहने लगे। अभी और रह लीजिए।” रचना के चेहरे पर व्यंग्यात्मक मुस्कान आ गई।

                अपने घर में पहुंचकर रचना और सुशील जी ने आनंद की सांस ली। जैसे वनवास काटकर अपने घर पहुंचे हो। दुनिया के साथ रचना भी अपने घर मे सिमट गई परन्तु आधुनिक तकनीक इन्टरनेट का उपयोग कर जीवन को सार्थक पहल दी।  वापस लौट कर अपने अकेलेपन को दूर करने और अपने सपनों को पूरा करने के लिए रचना ने लेखनी सँभाल ली

                     एकाकीपन को अपना हथियार बनाकर लेखन की दुनिया में एक चित परिचित नाम बन गई और उन महिलाओं के लिए मिसाल बनी जो बच्चों की परवरिश करने के पश्चात अपनी जिंदगी समाप्त हुई मान लेती हैं। बड़े बड़े सम्मान समारोह में रचना को बुलाया जाता और सम्मानित किया जाता। कभी चीफ गेस्ट के रूप में तो कभी सामाजिक कार्यों के लिए समाचारपत्रों में फोटो के साथ सुर्खियां बटोर रही होती।       

उन्होंने अपने बच्चों को दिखा दिया कि नारी यदि ममता की मूरत है तो अपने स्वाभिमान की रक्षा करने वाली सशक्त नारी भी है। एक दिन उनकी प्रसिद्धि को देखकर बेटा बहू मिलने आएं तो बहु अपने वयवहार के लिए  उनसे माफी मांगने लगी तो रचना ने कहा कि ” नहीं बहू तुम्हें माफी मांगने की आवश्यकता नहीं है। यदि तुम मेरा अपमान न करती तो जीवन की संध्या में मैं तो बेचारी बनकर रह रही होती। जीवन के खूबसूरत लम्हों का आनंद कैसे लेती?” इस प्रकार रचना के लिए अपमान भी वरदान बन गया।

स्वरचित एवं मौलिक 

अलका शर्मा, शामली, उत्तर प्रदेश 

#अपमान बना वरदान

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