आज उसके बेटे की हल्दी है ।घर में खूब जोर शोर से तैयारी चल रही है ।घर की औरतें सज धज रही है ।वह भी अपनी अलमारी खोल कर बैठी थी,” कौन सी साड़ी पहनूँ?यह सोचती हुई ।फिर अपनी माँ की दी हुई गुलाबी बनारसी निकाल लिया ।यही ठीक रहेगी ।उसे गुलाबी रंग बहुत पसंद था।माँ भी तो कहती थी “बिट्टी, तुम पर यह रंग बहुत सूट करता है ।
शाम का समय था।औरतें जुट गयी थी ।उसने भी गुलाबी बनारसी पहन लिया ।साथ में माँ का दिया हुआ झुमका भी ।हल्का सा मेकअप भी कर लिया ।और आइने में खुद को निहारती खुश होती रही ।काश,आज अतुल रहते।हल्दी कूटने का रस्म शुरू हो चुका था ।वह कमरे में बैठी इन्तजार करने लगी ” शायद मुझे भी बुलाया जायेगा “आखिर माँ हूँ उसकी।
एक माँ के कितने अरमान होते हैं अपने बच्चों को लेकर ।मायके से भाभी भी आई हुई है ।हल्दी कुटा गया ।बेटे को लग भी गया ।और अब आशीर्वाद का चुमावन शुरू हो गया ।बारी बारी से सारी औरतों ने आशीर्वाद का अक्षत भी दे दिया ।वह इन्तजार करती बैठी रही ।किसी ने उसे नहीं बुलाया ।”अभागन “थी न,वह ।आखों में आंसू आ गए ।
भाभी को भी पहले ही कह दिया था कि ठीक समय पर मुझे भी बुलाने के लिए अम्मा जी से कहियेगा ।पर पराए घर में भाभी कैसे दखल देती ।और उनकी बात कोई मानता भी क्यों।जिस घर में कभी मायके वालों की अहमियत ही नहीं रही थी ।वहां भला भाभी का क्या चलता ।पता नहीं, उसका नाम कुछ भी रहा हो, पर ससुराल में वह “अभागन “ही थी।
कुछ साल पहले उसने पति को जो खो दिया था ।वह सोचती, आखिर उसकी गलती कहाँ हो गई थी।शादी के दस साल भी नहीं बीते थे कि एक एक्सीडेंट में अतुल चले गये थे हमेशा के लिए ।तब बेटा आठ साल का था।टोकाटाकी तो ससुराल में हमेशा उसके साथ था।लेकिन पति की सहानुभूति साथ रहने से वह हमेशा हंस कर टाल देती।
लेकिन अतुल के जाते ही वह अभागन बन गई थी ।उसे याद है, सुबह उठते ही अम्मा जी के सामने अगर पड़ जाती तो अम्मा जी मुँह फिरा लेती और सिर झुकाए, नजर नीचे किए निकल जाती ।सुबह सुबह अभागन का मुँह पहले नहीं देखना चाहिए ऐसा उनका सोचना था।उसका तो नाम ही अभागन पड़ा था ।” अभागन कहाँ गई “अभागन को कोई शउर माँ ने सिखाया ही नहीं ।
वह सिर नीचे किये अपने काम में लगी रहती ।अब जाती भी कहाँ ।उसका ठिकाना तो यही था।मायके में पिता नहीं थे।माँ आर्थिक रूप से कमजोर थी।फिर किस बूते पर बेटी को रखती ।बेटे की परवरिश और शिक्षा की चिंता थी तो उसने घर में ही टयूशन पढ़ाना शुरू कर दिया और खाली समय में सिलाई करने लगी ।
सिलाई की ट्रेनिंग माँ ने शादी के पहले ही करा दी थी तो हाथ में सफाई था।और जब लोगों को मालूम हुआ तो आर्डर पर कपड़े मिलने लगे।घर में कुछ लड़की सिलाई सीखने भी आने लगी ।हाथ में पैसे आने से मजबूती आ गई ।घर में दो बड़ी जेठानी, जेठ,सास ससुर का भरा पूरा परिवार था।सबकी आज्ञा सिर माथे पर लिए रखती ।
माँ ने चुप रहने का संस्कार जो दिया था ।उसीका पालन कर रही थी।माँ को क्या पता कि यही संस्कार भारी पड़ने वाला है ।अच्छा बनने की कोशिश करती रही, पर किसी ने उसे कभी अच्छा नहीं समझा ।एक “लेबल “जो लग गया था ।फिर बेटा पढ़ लिख कर अच्छा सर्विस में लग गया ।एक माँ का अरमान पूरा होने जा रहा था ।
बेटे ने अपने ही सहकर्मी कन्या को पसंद कर लिया था ।बेटा भी बीटेक था।कन्या भी बीटेक थी।जोड़ी अच्छी थी।सुन्दर, शालीन लड़की देखकर माँ ने हामी भर दी ।बेटे की पसंद, अपनी पसंद ।अब उसके जीवन में बेटे के सिवा और है ही कौन ।शादी तय हो गयी ।बहुत खुश थी वह।बेटे का परछन खुद करेगी ।
बहु की आरती उतारेगी ।अब उसकी प्यारी सी दुलहन लाकर निश्चिन्त हो जायेगी ।उसकी जिम्मेदारी खत्म ।सुख चैन की जिंदगी जियेगी अपने बेटे के पास ।आज उसी की हल्दी है ।लेकिन किसी ने उसे बुलाया नहीं ।माँ होकर भी बेटे को आशीर्वाद के अक्षत नहीं दे पाई।सोचा जाने दो।
सबका अपना अपना भाग्य और कर्म है ।बच्चे सुखी रहें तो वह भी खुश रह लेगी।हल्दी लग गई ।किसी ने उसे नहीं बुलाया ।वह भीतर से सब देखती रही ।खाना भी शुरू हो गया ।किसी ने खाने के लिए पुकारा ।वह साड़ी बदल चुकी थी ।”आज खाने का मन नहीं है “कहकर किवाड़ बंद कर दिया सोने का उपक्रम करने लगी ।आँसू निकल कर तकिया भीगते रहा।”अभागन “की।
उमा वर्मा, राँची, झारखंड ।स्वरचित, मौलिक ।