अभागन… – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi

वट वृक्ष के नीचे महिलाओं की लंबी कतार लगी थी… सभी अपनी बारी का इंतजार करतीं… हाथों में पूजा की थाल लिए… आगे पीछे बैठी थीं… तभी एक छोटी सी डलिया हाथ में लिए… किसी के आते ही पूजा कर रही महिलाओं के बीच दबी जुबान में अलग-अलग बातें बनने शुरू हो गए… एक बोली…” देखो सुधा है ना…!”

” हां वही तो है… दुर्गेश साहू की बेटी…!”

” हां जी… पर इसका यहां क्या काम…!”

” जाने दो ना… आई तो हमें क्या…!”

” अरे पांच साल से ससुराल का मुंह नहीं देखा इसने पता है…!”

” हां हां यह बात किसे नहीं पता…!”

” फिर क्यों आती है…!”

” मतलब पति के घर नहीं जाना… पर उसके लिए पूजा करनी है… हद है…!”

 खुसफुसाहट के बीच एक अधेर महिला डांटने के लहजे में बोल पड़ी…” पूजा करने आई हो… सब अपनी पूजा पर ध्यान दो… यहां भी चैन नहीं है…!”

 इतना सुन सब की जुबां चुप हो गई… पर नज़रें अभी भी उसी पर टिकी हुई थी… खूबसूरत बनी संवरी साड़ी में… नाजुक सी दिखने वाली लड़की… सुधा ने जल्दी-जल्दी में अपनी पूजा समाप्त की और तेजी से निकल गई…

 उसके जाने के बाद उसकी मां आई तो महिलाएं पेड़ के नीचे घेरे लगाती कुछ पल को स्थिर हो गईं…” क्यों मिसेज साहू… बड़ी देर लगा दी…!”

” हां काम का बोझ कितना है… सुधा पूजा कर गई है… दोनों बच्चों को संभाला… तब कहीं मैं निकल पाई…!”

 कितने लाड़ से… बड़े खाते पीते घर में ब्याह किया था सुधा का मिसेज साहू ने… इकलौता बेटा… दो बहनों का भाई… बहनों का ब्याह हो गया कोई चिंता नहीं… मेन मार्केट में बड़ी सी अपने कपड़े की दुकान है… दो-तीन और दुकान खोलने वाले हैं… सब कारोबार तो बेटा ही संभालेगा… राज करेगी सुधा… पर ब्याह के साल भर होते-होते… सुधा की ससुराल वालों से अनबन शुरू हो गई… बड़ी ननद के पति गुजर गए… वह बच्चों को लेकर मायके आ गई… छोटी का ससुराल भी पास ही था… महीने के दस दिन मायके में निकालती थी…

 सुधा ने भी एक साथ जुड़वा बच्चों को जन्म दिया… अपने बच्चों की जिम्मेदारी… सास ससुर की जिम्मेदारी… साथ ही ननद उसके बच्चे… फिर छोटी ननद का बार बार आना…उसे बहुत अखर रहा था…उसके बच्चों का और उसका सब कितना ध्यान रखते थे…सास ने तो लाड़ में उसे मायके नहीं भेजा… डिलीवरी के समय…पर बच्चों के जन्म के दो महीने बाद जो मायके आई… तो फिर उसने पलट कर जाने का नाम ही नहीं लिया… 

पति बेचारा कई बार लेने को आया… पर हर बार कोई ना कोई बहाना बनाकर टालती गई… दो साल तो बहाने बनाते निकल गए… अब इधर 3 सालों से रट लगाए थी… ” नया घर ले लो हमारे लिए… तो मैं वापस आ जाऊंगी… इतनी भीड़ भाड़ में मुझसे नहीं रहा जाएगा… प्राइवेसी नाम की कोई चीज ही नहीं रहती वहां… जब नया घर ले लो तभी बुलाना…!”

 अब तो कई महीनों से सोमेश ने यहां आना भी छोड़ दिया था… दिन भर लड़का काम में लगा रहता और फिर घर में चार बच्चे तो हमेशा रहते ही… बहनें दिल खोलकर भाई की खातिर करतीं… मां का लाडला तो शुरू से ही था… अभी पिछले हफ्ते ही तो मिसेज साहू को फोन किया था सोमेश की मां ने…” यह क्या तमाशा है आप लोगों का… बताइए कैसी अभागन है यह लड़की… सब सुख होते हुए भी मायके में पड़ी है… किस चीज की कमी है यहां… काम करने को नौकर चाकर सब भरे पड़े हैं… क्यों वापस नहीं आना चाहती…!”

 सुधा की मां तो अब खुद ही अपनी बेटी के रवैए से बहुत परेशान थी… कुछ ना बोल पाई इतना ही कहा कि…” मैं क्या कर सकती हूं भाभी जी… जब तक वह जाना ना चाहे… जबरदस्ती तो नहीं भेज दूंगी…!”

सुधा की शादी के समय उसका भाई रंजन छोटा था… पर अब उसकी भी उम्र शादी लायक हो गई थी… कई जगह रिश्तों की खोज जारी थी… पर कहीं बात नहीं बन पाती थी… और इसका सबसे बड़ा कारण थी सुधा… अपना ससुराल छोड़े मायके में पड़ी ननद किसी को नहीं चाहिए होती है ससुराल में…

 सुधा की जिद में साल भर और निकल गए… न सुमित लेने आया… ना उसने दूसरा घर लिया… और ना ही रंजन का ब्याह हुआ… पूरे इलाके में दुर्गेश साहू की बदनामी हो गई थी… इतने अच्छे घर परिवार को छोड़ घर बैठी सुधा की सोच ने… उसे अभागन बना दिया था…

 आजकल तो रंजन कभी भी उससे सीधे मुंह बात नहीं करता था… पिता ने तो कभी लाडली को कुछ कहा नहीं… पर मां के तेवर भी काफी सख्त हो गए थे…

 एक दिन तो रंजन चीख ही पड़ा…” क्या दीदी… तुम्हारे कारण मेरी शादी नहीं हो रही… मेरा घर नहीं आगे बढ़ पा रहा… तुम क्यों फालतू जिद धरे बैठी हो… अगर जीजा जी अपनी मां बहनों के साथ रहना चाहते हैं… तो इसमें तुम्हें क्या दिक्कत है… अगर तुम अपनी सास ननद के साथ नहीं रह सकती तो मेरी शादी के बाद जो लड़की आएगी… वह तुम्हारे साथ कैसे रहेगी… वह भी मुझे यही कहेगी कि मैं अलग घर ले लूं……एक काम करता हूं… तुम तो अपनी जिद छोड़ोगी नहीं… मैं ही अलग घर ले लेता हूं… तुम रहो मां के साथ……!”

 मिसेज साहू बोल पड़ीं…”ठीक ही कहा तेरी सास ने… कैसी अभागन है रे तू सुधा… कैसी सोच है तेरी… अपनी जिद के कारण… अब अपने मायके का घर तोड़ने पर तुली है…!”

 इतने सालों से सुधा जिस आधार पर इतरा रही थी… आज एक ही झटके में वह आधार उसके पैरों के नीचे से खिसक गया… यह तो वह जान गई थी कि उसकी मां को अब उसका वहां रहना पसंद नहीं… पर रंजन की इस बात ने उसकी सोच को हिला दिया…

” ठीक ही तो कह रहा है मेरा भाई… यही तो मैं कर रही हूं… अपने सुख के लिए सोमेश को अपनी मां बहनों से अलग करना चाहती हूं… अगर इसी तरह कोई लड़की आकर रंजन को हमसे दूर कर दे… तो क्या होगा…!”

 उस दिन झगड़ा तो वहीं खत्म हो गया… पर सुधा की आंखें खुल गईं… आज कई सालों बाद उसने खुद से सोमेश को फोन लगाया… फोन एक बार में ही उठ गया… सुधा ने छूटते ही कहा…” कब आ रहे हो मुझे लेने… बच्चे जिद कर रहे हैं… मुझे अब यहां नहीं रहना… ले चलो ना अपने घर मुझे…!”

 सोमेश बहुत सुलझा इंसान था… उसने जरा भी देर नहीं की… ना कोई बात की खींचतान की… चुपचाप अगले दिन सुधा को लेने ससुराल पहुंच गया… सुधा और बच्चों को साथ लेकर घर आ गया… देर से ही सही पर सुधा की समझ में आ गया था… वह सिर्फ पत्नी ही नहीं…बहू… भाभी… और साथ ही साथ कुछ दिनों में ननद भी होने वाली है… 

स्वलिखित 

रश्मि झा मिश्रा 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!