आरती का पोर पोर दुख रहा था। आंसू बहाते बहाते आंखे लाल होकर सूज आयीं थीं। उसने एक नजर सोती हुई डेढ़ वर्षीय बेटी परी पर डाली,जो भूख से बिलख बिलख कर सो गई थी और आंसू गालों पर सूख
कर निशान छोड़ गए थे। कहने को तो वो एक प्रोफेसर की पत्नी थी,लेकिन खुद को वो अपने मायके की कामवाली के समकक्ष पा रही थी,जिसका आदमी रोज उसे दारू पी कर पीटता था। उस की भी तो यही कहानी थी,फर्क बस पढ़े लिखे ओर अनपढ़ होने का था। वहां तो वो कामवाली फिर भी आत्मनिर्भर थी,यहां तो उस के पास उच्च शिक्षा की डिग्रियां होते हुए भी वो कुछ नहीं थी।
आज वो उस दिन को कोस रही थी,जब उस ने जतिन की प्रोफेसर की नौकरी और गंभीर व्यक्तित्व को देख कर शादी के लिए हां कर दी थी। आरती माता पिता की इकलौती संतान,जो बड़ी मन्नतों के बाद हुई थी। उस के पिता सरकारी कर्मचारी थे, उनका बड़ा सा अपना घर था,गांव में खेती बाड़ी थी। अब रिटायर होने को थे, और आरती के विवाह चिंता उनको साल रही थी। इधर आरती जिद किये बैठी थी कि आत्मनिर्भर बन माता पिता की सेवा करनी है बस।
इसी दौरान किसी रिश्तेदार ने जतिन का रिश्ता सुझाया। जतिन अनाथ थे, अपनी मेहनत के बलबूते पर आज प्रोफेसर हैं,अपना घर मकान भी बनवा लिया है। आरती ने माता पिता की देखभाल की बात रखी,जिसे जतीन ने स्वीकार कर लिया,लेकिन इसी घर में रहने को नहीं राजी थे। आरती ने भी सोचा, चलो एक ही शहर में हैं, तो जब चाहे आ सकती है।
लेकिन विवाहोपरान्त जतिन का जो चेहरा सामने आया…. उससे तो वो नितांत अनभिज्ञ थी। पहली रात को ही आरती पर ऐसे टूट पड़ा, मानों वो हाड़ मांस की न होकर, रबर की गुड़िया हो। आरती तन और मन दोनों से ही बुरी तरह घायल हो गयी। जतिन ने कामवाली को भी काम से हटा दिया,कि दिन भर घर में रहकर करोगी क्या। शाम गहराते ही आरती का मन कांपने लगता। जिस जतिन ने रोज मायके जाने देने का वायदा किया था,उसी ने एक घंटे को भी मायके नहीं जाने दिया। पगफेरे के लिए खुद ले कर गया और दो घंटे बाद ही साथ लेकर वापिस आ गया।
जब परी के आने की आहट हुई,तो उसने सोचा कि अब जतिन के शारीरिक अत्याचारों से उसे मुक्ति मिल जाएगी….लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बस उस ने कामवाली को वापिस रख लिया था।
परी का जन्म हुआ,तो वो उखड़ गया। उसे बेटे की चाहत थी। दोबारा अस्पताल ही नहीं गया। आरती की माँ को खबर कर दी,वो ही अस्पताल से लेकर घर में, जब तक परी डेढ़ महीने की नहीं हो गयी, दोनों की देखभाल करती रहीं। फिर बड़ी रुखाई से जतिन उन से बोला,”आपका काम खत्म..अब आप अपने घर जा कर आराम करिये”
एक दिन कामवाली ने जो कुछ आरती को बताया,उसे सुन कर वो जड़ हो गयी। उसने बताया कि जब आरती अस्पताल में थी,जतिन ने उस के साथ जबरदस्ती की,कुछ पैसे थमाए और किसी से कुछ भी न कहने की धमकी दी। आरती ने जतिन से पूछा तो उस दिन उसने आरती पर हाथ उठा दिया,और अब ये रोज का ही क्रम हो गया,क्योंकि आरती ने कामवाली को हटा दिया था।
अब वो घर में राशन पानी,सब्जी, दूध आदि लाने में भी कोताही करने लगा। आरती को खर्चा भी नहीं देता। जबकि छोटा बच्चा घर में था। आज भी आरती ने दूध और राशन लाने को कहा था,इसी बात पर उसने आरती को बहुत पीटा था,और घर से बाहर चला गया। घर मे इतना भी कुछ नहीं था कि आरती परी को खिचड़ी या दलिया ही बना के खिला सके। उसका बिलखना आरती को बुरी तरह मथ रहा था।
तभी जतिन लौटा, उस के साथ उसकी एक पुरानी छात्रा थी। उसे लेकर वो सीधे बैडरूम में ही आ गया,और आरती से परी को बेड पर से हटाने को कहा। आरती ने चुपचाप परी को उठाया और आंगन में आकर खड़ी हो कर कुछ सोचने लगी। तभी बेडरूम का दरवाजा भड़ाक से बंद हुआ…..और आरती का स्वाभिमान जाग उठा।
“बस,बहुत हुआ अब।अभी तक मैं माता पिता को इज्जत बचाने के लिए सब सहती रही। लेकिन आज मर्यादा की सभी हद लांघ डाली हैं इस निकृष्ट व्यक्ति ने”
ये सोचते हुए,उसने परी को कस के चिपटाया और घर से बाहर निकल आयी। रात के एक बजे रहे थे,सड़क बिल्कुल सुनसान थी,लेकिन उसके निडर कदम दृढ़ता से बढ़ चले। इस घर से….. पिता के घर तक पहुँचने के बीच आरती जतिन से तलाक ले,आत्मनिर्भर हो परी की सुसंस्कारी परवरिश करने,वृद्धता की ओर कदम बढ़ाते माता पिता की देखभाल करने का दृढ़ संकल्प ले चुकी थी।
समाज और रिश्तेदारों के कटाक्षों और तानों, जतिन की धमकियों का दृढ़ता से सामना करते हुए आरती अपने स्वाभिमान के साथ डटी रही। और इसी स्वाभिमान को उसने परी ले आत्मा तक कूट कूट कर भर दिया। ताकि कोई दूसरे जतिन की यंत्रणाएं सहने से पहले ही वो अपने भविष्य का निर्णय,बिना किसी उहापोह या भय के ले सके।
#स्वाभिमान
स्वरचित,मौलिक
सुनीता तिवारी, लखनऊ