अब और नहीं – अंकिता सिंह : Moral Stories in Hindi

सपना एक समझदार, मेहनती लड़की थी। माँ के गुज़रने के बाद घर की सारी ज़िम्मेदारी उसी पर आ गई। घर के छोटे भाई-बहनों की पढ़ाई, खाना, सिलाई—हर काम में वह निखरती गई, लेकिन खुद को पीछे छोड़ती गई।

उसका सपना था एक दिन शिक्षिका बनने का, लेकिन हालातों ने उसकी ज़ुबान को चुप करा दिया। जब कॉलेज में दाखिले की बात आई, पिताजी ने साफ कह दिया, “घर की ज़िम्मेदारियाँ ज़्यादा ज़रूरी हैं।”

सपना मुस्कुराई, लेकिन दिल रो पड़ा।

आँसू पीकर रह गई।

शादी हुई—पति बेरोज़गार, सास-ससुर रोज ताने देते। हर रात वो अकेले रोती, लेकिन सुबह फिर मुस्कुराते हुए उठती।

हर दिन, हर रात…

वो बस आँसू पीती रही।

लेकिन एक दिन सब बदल गया। उसकी छोटी बहन ने शिक्षक बनकर पहला वेतन उसे लाकर दिया और कहा,

“दीदी, आपकी कुर्बानी का फल है ये। लेकिन अब आपकी बारी है—आप पढ़ने जाएँगी।”

सपना चौंकी। “मैं… अब?”

“हाँ दीदी, अब आप अपने सपनों को नहीं रोकेंगी। आपने सबके लिए सब कुछ किया, अब खुद के लिए कुछ कीजिए।”

वो पहली बार खुलकर रोई—इस बार आँसू पीने के लिए नहीं, छलकाने के लिए।

और फिर, 35 की उम्र में, सपना ने बीए में दाखिला लिया। कुछ लोगों ने ताना मारा, कुछ ने मज़ाक उड़ाया, पर इस बार वो चुप नहीं रही।

अब वो हर दिन पढ़ती है, हर दिन सीखती है, और हर दिन अपने आँसुओं को उम्मीद में बदलती है।

संदेश: आँसू पीते रहना ताक़त नहीं है, लेकिन सही समय पर खुद के लिए खड़ा होना—वो असली हिम्मत है।

नई लघुकथा: आँसू पीकर रह गई… लेकिन हमेशा नहीं

अंकिता सिंह 

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