“चलो भाई टाईम हो गया आफिस का निकलो कि यहीं बसेरा डालना “
हमारे साथी ने साढ़े पाँच किलो वजनी हाथ हमारे नाजुक से कंधो के सारे तंतू हिलाते हुए कहा ,इधर हमारा कंधा पीसा की मीनार से चार अक्षांश पर झुका और हमारे चेहरे अंदर के क्रोध को बाहर आने से रोकने के लिये भरसक प्रयास किये लेकिन हमारे होंठ और आवाज बग़ावत कर गयी।
“अबे कितनी बार कहा यूँ अचानक से यह भाले जैसा साथ मत मारा कर “
इससे आगे हमारे ह्रदय भेदी बाण निकलते वह तुरन्त नतमस्तक होकर क्षमा याचना साथ बोला
“अरे वो बारिश आने वाली है तो निकल लो यही कह रहे थे “
मैने विस्तार ह्रदय का परिचय देते हुए भाई को क्षमा किया और पोटली बांधनी शुरू कर दी मदारी की तरह लैपटॉप और चार्जर ठूंसा बैग में चल दिये ।
जैसे कदम गेट के बाहर रखा घनघोर घटा घात लगाये हमारा ही इंतजार कर रहें हो अपनी सेना लिये, उनकी सेना में कालमृदंगा ,भुजंगा, कालियामर्दना जैसे बादल थे ।हमें देखते ही भुजंगा ने जो बौछार मारी हमारे ऊपर ऐसा लगा ओले के पितामह गिरा दिये हों ,कई किलोमीटर की रफ्तार से बारिश बाण हमें डुबोते चले गये हमें अपनी चिंता नही थी
उतनी जितनी ,रोटी पानी दाता लैपटॉप और श्वांस दाता मोबाइल की थी ,हमने गजब चीते जैसी फुर्ती दिखाते हुए आफिस की तरफ दौड़ लगायी और अपने अस्त्र शस्त्र छाँव में डाले जब तक तीन चार बादल हमारी गर्दन बूंदो से मार मार कर लाल कर चुके थे ।
जैसे तैसे पहुंचे भैया छाँव में ,सबसे पहले लैपटॉप और मोबाइल को देखा फिर लैपटॉप आफिस में छोड़कर और एक पालीथीन में मोबाइल डाल ही रहे थे कि एनजीटी का आदेश कौंध गया पालीथीन बैन वाला ,हमने कहा
“लास्ट टाईम गाड प्रोमिस”
खैर चल पडें बाईक स्टार्ट करके घर की ओर क्योंकि धर्मपत्नी जी का दे दना दन फोन आ रहा था चिंतित थी ।
जैसे ही घर की रोड पकड़ी तो देखा यहाँ तो नदी बनी थी हमने साथ वाले से पूछा भैया यहाँ तो सुबह सड़क छोड़कर आये रहे हम तो और तो और इस सड़क का उद्घाटन महीने भर पहले बहुत ढोल तारे के साथ विधायक जी करके गये थे यह बोल कर
“अबकी बार नाव नही चलानी पड़ेगी जाने को पार,बन गई है मजबूत सड़क इस बार ।”
बारिश ने वेग बढ़ा दिया ,हमारे आंखो के आगे सिल्वर फोईल सी लग गयी ,अरे भाई चश्मा धारी जो हैं हम ,तब लगा काश वाईपर वाला चश्मा होता ,मै हूँ ना पिक्चर दिमाग में दौड़ गयी ।बाईक हमने साइड में लगाई किसी टीन शेड में।
इतने में हमारे साथी ने विधायक जी को फोन लगा दिया ,लेकिन चुनाव से से पहले जैसे रिंग जाने से पहले ही फोन रिसीव होता अब तो कई रिंग आत्महत्या कर गयीं थी ,अंगूठा भी साथ छोड़कर जाने वाला था वो तो बमुश्किल पीए ने फोन उठाया और कहा विधायक जी मीटिंग में हैं आप मैसेज छोड़ दीजिये ,हमारा दोस्त पोपट की तरह शुरू हो गया एक साँस में जो बोला वो आप भी सुनो
“ऐसा है पीऐ साहब विधायक जी से कहना अबकी बार नाव ना भिजवायें पानी का जहाज भिजवायें क्योंकि पहली वाली सड़क से नदी बनती थी और जो अब सड़क चिपका के गये हो ,समुद्र बना है समुद्र सुन रहा हो ना ,हम खड़े यही भेजो अभी भेजो”
फिर उधर से कोई रिप्लाई ना आया क्योंकि फोन तो आधे भाषण में ही कट चुका था ।
मैनें साथी को गर्व भरी निगाहों से देखा मुझे उसमें क्रांतिवीर का नाना पाटेकर नजर आने लगा मैं सैल्यूट ठोकने ही वाला था कि हमारी बाईक पानी के बहाव में ऐसी बही कि फिर तो हम लोग तैराक बनकर ही बमुश्किल बचा पाये,और हमारे कपडों में दुनिया का कोई ऐसा कूड़ा नही था जो ना चिपका हो।सारा सड़क स्वच्छ अभियान के ब्रांड एंबेसडर लग रहे थे।
हमें उसकी भी चिंता नही थी चिंता थी ऐसी हालत लेकर घर कैसे जायें ,जैसे तैसे बाईक बचाकर हम दोनों भीगे कबूतर से पानी कम होते ही बाईक पैदल लेकर घरकी ओर चल दिये ,रास्ते में ही नल दिखा हम दोनों की आँखे चमक उठी एक साथ लपक लिये उस नल पर जैसे ही टोंटी खोली वैसे ही तेज हवा की आवाज आयी टोंटी में से और छक छक कर बंद हो गयी ,फिर पड़ोस में खड़े ताऊ बोले
“तीन दिन से ससुर पानी ना आ रिया है,ससुरे बिल तो हलक में डालकर निकाल लें “
अब हमें काटो तो खून ना ,आसमान से गिरे खजूर में अटके अब ऊपर वाले की तरफ देखा हमने आशा भरी निगाहों से
,ऊपर वाले ने सुनी और अपनी टोंटी दोबारा तेज खोल दी और हम सबकुछ भूले बाईक साईड में लगाये भीगने लगे यह गाकर कि
“आया सावन झूम के “
#बरसात
-अनुज सारस्वत की भीगी हुई कलम से
(स्वरचित एवं मौलिक)