आत्मग्लानि – मधु वशिष्ठ : Moral Stories in Hindi

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बेटा इतने जतनो से पाला पोसा और इस कल की आई के लिए तू हम सब को छोड़कर जा रहा है?

    जतिन ने पीछे मुड़कर अपनी मां की तरफ देखा, भाभी भी भतीजे को गोद में उठा निर्विकार रूप से जतिन की ओर देख रही थी और पिताजी को पूरी उम्मीद थी की हमेशा के जैसे मां का रोते हुए इमोशनल अत्याचार अब सफल हो जाएगा लेकिन जतिन अबके किसी भी मोह पाश में बंथने नहीं आया था

इसके विपरीत उसने शायद पहली बार ही पलट कर मां को जवाब दिया था कि मां बेशक वह कल की आई है परंतु वह मेरे भरोसे पर ही आई है और मैं उसकी जिम्मेदारी पूरी तरह से निभाऊंगा। गुस्साते हुए मां ने कहा तो क्या तू हमें छोड़ देगा? नहीं मां, मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा पर तुम्हें याद है कि कल रात को जब आपने मानसी को घर से निकलने को कह दिया था

मेरे लाख विनती करने पर भी आप मुझे तो घर के अंदर बुलाती रही और मानसी को घर से बाहर निकाल दिया तो मैं उसे क्या सड़क पर छोड़ देता? आपको मालूम है कि कल की रात हमने रेलवे स्टेशन पर काटी है

क्योंकि इतनी रात में मैं किसी होटल में भी उसे नहीं ले जाना चाहता था। अब वह फिर से अपने मायके गई है जहां पर कि हम नजदीकी कोई किराए का मकान लेंगे और वहां ही रहेंगे। आपके प्रति अपनी जिम्मेदारी मैं समझता हूं और जितनी हो सकेगा पूरी भी करूंगा। 

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   अभी मानसी नहीं है तो मैं आपसे स्पष्ट कह पा रहा हूं पिछले दो सालों से जब से मेरा उसके साथ विवाह हुआ है शायद ही कोई रात ऐसी होगी जबकि उसने अपनी आंखों में आंसू ना छुपाए हो हालांकि उसने मुझे कुछ नहीं बतलाया परंतु क्या मुझे आपका व्यवहार दिखता नहीं था। माना वह किसी गरीब की लड़की है

जिसके साथ दादी के उनके परिवार को वचन देने के कारण मेरे साथ मजबूरी में आपको शादी करनी पड़ी। आपको दहेज की लंबी गाड़ी की इतनी चाहत थी कि आपने उसका चैन से एक दिन भी जीना दूभर कर दिया। भाभी के मुन्ना होने तक उसने भाभी की और आपकी कितनी सेवा करी है आपको नहीं दिखी?

आपको खूब मालूम था कि आपकी अलमारी में रखे हुए पैसे मानसी ने नहीं निकाले हैं। आपके पैसे पहली बार नहीं निकले आपको पता है कि पिताजी ही जरूरत पड़ने पर आपकी अलमारी में से पैसे निकाल लेते हैं।

आपने मानसी पर चोरी का इल्जाम तक लगा दिया। मैं सिर्फ इसलिए चुप था क्योंकि मुझे संस्कार आपने नहीं दादी मां ने दिए थे। आपने तो मुझे बचपन से ही गांव में छोड़ दिया था दादी मां के पास ही मैं पड़ा और अब जब मेरी नौकरी दिल्ली में लगी और दादी मां की मृत्यु के बाद ही मैं आपके पास आया हूं। 

       यदि मेरे पास दादी मां के दिए हुए संस्कार नहीं होते तो मैं आपको एक दिन भी मानसी से कुछ भी बुरा नहीं बोलते देता परंतु मुझे यह लगता था कि हम दोनों का व्यवहार आपको बदल देगा। आपकी अलमारी में से पैसे पापा के सिवा कोई नहीं निकाल सकता और मानसी तो कभी आपके कमरे में आपकी अलमारी की तरफ गई भी नहीं

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,परंतु आपने मानसी पर झूठा इल्जाम लगाते हुए यहां तक कहां कि उसके भूखे मां-बाप को पैसा देने के लिए वह अपने मायके चुरा कर ले गई होगी। इतना बड़ा दुख मानसी नहीं झेल पा रही थी इसलिए ही मैं उसे उसके मायके कुछ दिन के लिए छोड़ आया था। मेरा ख्याल था कि मैं आप सबको समझाऊंगा।

परंतु उस दिन जब मैंने देखा की भाभी तो अपने बच्चों के साथ व्यस्त थी आप अपनी सहेलियों के साथ मैंने शाम तक कुछ नहीं खाया और मेरे खाना मांगने पर आपने ही तो कहा था  कि तू शादीशुदा है अपनी बहू को ले आ और उससे खाना बनवा ले ,यहां कौन तेरा नौकर बैठा है? जब मेरा ख्याल मानसी ने ही रखना है

तो मानसी का ख्याल भी तो मुझे ही रखना है ना। हमें आपसे कुछ भी नहीं चाहिए कल जब मैं मानसी को उसके मायके से उसकी माता जी को उसका ख्याल रखने का विश्वास दिलाकर घर लाया तो आपने तो हद ही कर दी कितना बुरा बुरा बोला और रात में ही कह दिया कि इस मानसी को घर से निकाल दे वह अकेली कहां और कैसे जा सकती थी?

अब मैं मानसी के साथ हूं और उसी के ही साथ रहूंगा।वह भले ही कल की आई है या आज की ,वह मेरी जिम्मेदारी पर आई है और मैं अपनी जिम्मेदारी पूर्ण रूप से निभाऊंगा।

ऐसा कहकर जतिन ने अपनी माता-पिता और भाभी के पैर छुए और घर से बाहर निकल गया सब उसकी ओर देख रहे थे और शायद सबको आत्मग्लानि भी हो रही हो। परंतु यह तो निश्चित था कि उनका बेटा अब फिर से पहले के जैसे उनके साथ रहने तो नहीं आएगा।।

मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा

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