मधु ! सामान बाँधने की तैयारी करो …. ट्रांसफ़र रूकने की अब कोई उम्मीद नहीं बची, आज पता चला है कि मेरी जगह आने वाले डॉक्टर सोमवार को ज्वाइन कर लेंगे ।
हाय राम ! बताओ …. तंग हो गई मैं तो….. एक साल पहले मेरा ट्रांसफ़र यहाँ हुआ तो अब आपका हो गया ….
क्या कर सकते हैं… ट्रांसफ़रेबल जॉब में तो ऐसा ही होता है । बस दिक़्क़त यह है कि यह सरकारी मकान जल्दी ही ख़ाली करना पड़ेगा…. ऐसा करते हैं कि आज शाम संजय के घर चलते हैं । उसके घर का ऊपर वाला हिस्सा काफ़ी समय से ख़ाली पड़ा है । एक दिन कह भी रहा था कि कोई किराएदार बताओ…. अब कम से कम दो साल तो तुम्हें इसी जगह रहना पड़ेगा । उसके बाद ही ट्रांसफ़र की सोच सकते हैं ।
उसी शाम चेतन और मधु अपने कॉलेज फ़्रेंड संजय के घर चले गए । चेतन एक डॉक्टर था और मधु बैंक में कार्यरत थी । विवाह के समय तो दोनों की पोस्टिंग बड़े शहर में थी , उसके बाद चेतन का मेडिकल सुपरेटेंडेंट के रूप में प्रमोशन हुआ और एक क़स्बे में ट्रांसफ़र हो गया । प्रमोशन के कारण, यह सोचकर वह चला गया कि तीन साल की बात है पर पाँच साल इसी स्थान पर हो गए तो मधु ने यहीं के लिए आवेदन कर दिया और आसानी से उसका ट्रांसफ़र भी हो गया ।
संयोग की बात है कि जिस स्थान से जाने के लिए चेतन दो सालों से हाथ- पैर मार रहा था अब दोनों पति- पत्नी उसी स्थान पर रूकने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रहे थे ।
काम बनता न देखकर चेतन और मधु ने तय कर लिया कि मधु दो साल किराए के मकान में काट लेगी , उसके बाद तो ट्रांसफ़र तय ही होता है । यही सोचकर उन्होंने संजय का मकान किराए पर ले लिया कि मधु को अकेलापन भी नहीं लगेगा और दो साल आराम से गुजर जाएँगे । मधु ने गुज़ारे लायक़ सामान अपने पास रखा बाक़ी सारा सामान चेतन के साथ भेज दिया क्योंकि उसे तो बड़ा सरकारी मकान मिला था।
शुरू में मधु ने दो हफ़्तों की छुट्टी ली और नए घर में सामान सेट करने के बाद वापस आ गई । धीरे-धीरे ज़िंदगी नए रंग- रूप में ढलने लगी । जहाँ शुरू- शुरू में ना तो चेतन का मन लगा और ना ही मधु का , अब दोनों काम में व्यस्त हो गए । दोनों को इंतज़ार था कि किसी तरह ये दो साल बीत जाएँ । चेतन को तो छुट्टियाँ कम ही मिलती थी क्योंकि अस्पताल में पहले से ही डॉक्टरों की कमी थी , हाँ बीच-बीच में मधु अवश्य चेतन के पास जाकर कुछ दिन रह आती ।
एक दिन हर रोज़ की तरह चेतन का फ़ोन आया——
मधु ! एक बात बताऊँ….कई दिनों से इस बारे में बताना चाहता था पर तुमसे बात करते समय यह बात दिमाग़ से निकल जाती थी …
अच्छा……….. ऐसी कौन सी बात है …….मेरी गैरहाजिरी में किसी को घर तो नहीं ले आए ?
तुम भी यार… क्या अनाप-शनाप सोचती और बोलती हो…. मज़ाक़ छोड़ो……सुनो … तुम्हें याद है कि एक बार मैंने अपनी कमलेश बुआ के बारे में बताया था …….
हाँ… याद है पर आज …. तुम्हें उनकी याद कैसे आ गई ? तुम तो उनके लाड़ले थे …. क्या तुम उन्हें मिस कर रहे हो ? वहीं जो पापाजी को राखी बाँधती थी…… जिन्हें दहेज की बलि चढ़ा दिया गया था…….
हाँ-हाँ….. ठीक पहचाना । क़रीब तीन हफ़्ते पहले फूफाजी से मुलाक़ात हो गई….. वो भी मरणासन्न स्थिति में….
फूफाजी????? पर कैसे …. तुमने कैसे पहचाना …. वो काफ़ी पुरानी बात हो गई । तब तो तुम शायद टैंथ में थे ना …
एकदम सही….. मैं हमेशा की तरह मंगलवार को मंदिर गया सुबह के समय….. काफ़ी भीड़ थी ….. तभी बाहर शोरगुल सुनकर, मेरा ध्यान उधर गया तो एक व्यक्ति बेहोश होकर गिर पड़ा था । मैंने उसकी हालत देखकर मंदिर के सेवकों से कहा कि उसे अस्पताल में ले आएँ ….. मैं अस्पताल तो जा ही रहा था….. अपनी गाड़ी में ही बैठा लिया ।
तीन- चार दिन के बाद उनकी हालत थोड़ी संभली तो उनसे कहा कि घरवालों का नंबर दें ताकि उनकी जानकारी उनके परिजनों को दी जा सके । पहले तो उन्होंने कहा कि उनका कोई नहीं है….. फिर एक सिस्टर ने धीरे-धीरे बात निकलवाने की कोशिश की क्योंकि उनको देखभाल और उपचार की ज़रूरत थी ।
फिर….. चेतन , कहानी कुछ फ़िल्मी सी हो गई है…. फिर क्या हुआ?
अरे, मज़ाक़ की बात नहीं…. सच में….. वैसे तो चौबीस घंटे मरीज़ों के साथ रहते आदत पड़ जाती है पर उन्हें देखकर बड़ी दया सी आती थी मानो उनमें जीने की इच्छा ही ख़त्म हो चुकी थी । ख़ैर……उन्होंने सिस्टर को बताया —-
सिस्टर ! मैं अपने कर्मों से कब तक बचूँगा । स्वर्ग- नरक सब यहीं है । अगर मैं अपनी माँ की बात का विरोध करता तो मेरी पत्नी कमलेश को यूँ ना जाना पड़ता ….. बस एक बार करनाल जाकर उसके घरवालों से माफ़ी माँगना चाहता हूँ…..
और जब सिस्टर ने करनाल का ज़िक्र किया तो ज़ाहिर सी बात थी कि अपनी जगह का नाम सुनकर जिज्ञासा हुई कि पूछूँ तो सही ….. किस मोहल्ले के….. किस परिवार से ताल्लुक़ है उनका ? मैं उनके पास गया और पूछा——
आप सिस्टर से कह रहे थे कि करनाल जाना चाहते हैं, बताइए कब चलेंगे….
अब किस मुँह से जाऊँ डॉक्टर साहब….. जिस घर की लड़की को पत्नी बनाकर लाया था , उसे सँभाल नहीं पाया ….. वैसे ठीक ही हुआ मेरे साथ……….उसके परिवार के लोगों ने , हमारे ऊपर दहेज का झूठा मुक़दमा दायर कर दिया था…..
दहेज का मुक़दमा ? क्या तुमने अपनी पत्नी को दहेज के चक्कर में मा…..
नहीं-नहीं डॉक्टर साहब! शादी के दस साल तक जब संतान नहीं हुई तो मेरी माँ कमलेश…….
कमलेश? क्या आपकी पत्नी का नाम कमलेश था ? क्या वो करनाल की रहने वाली थी?
हाँ डॉक्टर साहब, वो बेचारी माँ के तानों के कारण, इतने मानसिक तनाव में रहने लगी कि एक दिन भावनाओं में बहकर या मानसिक तनाव में, उसने गेहूं में रखने वाली दवाई खाकर अपना जीवन ही ख़त्म कर दिया…..
और उसके घरवालों ने हमारे ऊपर दहेज का केस बनवाकर मुझे और मेरी माँ को जेल भिजवा दिया ….. मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि वे मेरे साथ ऐसा व्यवहार करेंगे ….जिस दामाद ने कभी उनकी बेटी को यहाँ से वहाँ बैठने तक को नहीं कहा ….. उसके ऊपर इतना लांछन ……
कहीं आप ज़मींदार सूरजभान सिंह की बेटी कमलेश की बात तो नहीं कर रहे …….पर हमारे तो सारे मोहल्ले में यही पता है कि कमलेश बुआ को उनके पति और सास ने दहेज के लालच में जलाकर मार ……
आपको ….. डॉक्टर साहब …. आप कैसे जानते हैं उन्हें ?
फिर मैंने उन्हें अपने बारे में बताया …. कमलेश बुआ के परिवार और अपने परिवार के संबंधों के बारे में बताया….. मधु! सुन रही हो ?
हाँ चेतन , मैं सुन रही हूँ…… अब आपके दिमाग़ में क्या चल रहा है ? क्या आप उन्हें अपने साथ करनाल ले जाना चाहते हैं? दबी बात को दबी रहने दो , हमें क्या पता ….. कौन सच्चा और कौन झूठा…. फिर होगा भी क्या अब ?
हाँ…. होगा तो कुछ नहीं….. बस उनकी इच्छा है कि…..
कमलेश बुआ के माँ- बाप तो रहे नहीं होंगे ….. बाक़ी किसे फ़र्क़ पड़ता है….. चाहे उन्हें कुछ याद भी ना हो । मम्मी- पापाजी वहाँ रहते हैं, कहीं बैठे-बिठाए कोई मुसीबत आ जाए।
मधु की बात सुनकर चेतन को उसकी बात सही लगी और उसने उस मरीज़ की तरफ़ जाना बंद कर दिया । एक बार सिस्टर से वैसे ही हल्के- फुल्के अंदाज में चेतन ने कहा——
सिस्टर, वो मरीज़, जिनको टयूबरक्लोसिस है , करनाल जाने की बात करते थे , डिस्चार्ज हो गए?
जी डॉक्टर साहब, पिछले हफ़्ते चले गए …..वैसे आपके बारे में पूछ रहे थे ।
चेतन ने बात अनसुनी कर दी और अपने काम में लग गए । उसके बाद अगले हफ़्ते ही हमेशा की तरह चेतन मंगलवार को मंदिर गया तो गाड़ी रोकते ही मंदिर के मुख्य गेट पर कमलेश बुआ के पति पर नज़र पड़ी—
एक बार तो सोचा, वापस चला जाता हूँ…. शाम को आ जाऊँगा पर मन नहीं माना और गाड़ी से उतर गया । फूफाजी पर नज़र पड़ते ही हाथ जोड़कर नमस्कार किया हालाँकि चेतन उन्हें नमस्ते करना नहीं चाहता था पर बड़ों के सामने स्वयं ही उसके मुँह से नमस्ते निकल जाता है । औपचारिकतावश पूछा—-
कैसे हैं आप ? दवाइयाँ खा रहे हैं ना …. ख़त्म हो गई हों तो ले जाना ….. आपको अच्छी खुराक की ज़रूरत है ।
हाँ…. डॉक्टर साहब! आज भगवान के मंदिर में मुझे भिखारी जानकर इतना सा मान दे दो कि मुझे एक बार कमलेश के घर चलो ……
पर बाबाजी और दादी तो कई साल पहले गुजर चुके हैं….. बड़े ताऊजी और उनका परिवार रहता है, छोटे ताऊजी की मृत्यु हो चुकी और ताईजी अपने बेटों के साथ बेंगलोर में रहती हैं ।
कोई बात नहीं बेटा ! मैं उस घर की दहलीज़ छूकर अपने मन को संतुष्ट करना चाहता हूँ, चाहे वे कुछ भी सोचें । आज तक मलाल है कि अपनी माँ के सामने नहीं बोला पर अब अपने मन की बात दबाऊँगा नहीं……. क्या पता , फिर मौक़ा मिले , ना मिले ……केवल इंसानियत के नाते ……
जी , अभी तो अस्पताल में मरीज़ इंतज़ार कर रहे होंगे….. कल मिलिए तब बात करेंगे ।
मंदिर में भगवान के दर्शन के बाद , चेतन अस्पताल में पहुँच गया पर उसका ध्यान फूफाजी की तरफ़ लगा था—-
क्या करूँ….. वैसे मधु ठीक कह रही है….. इतने सालों बाद , क्या अर्थ है…. गड़े मुर्दे उखाड़ने का …. मम्मी- पापा अकेले रहते हैं….. अड़ी- भीड़ में पड़ोसी ही सबसे पहले काम आते हैं ….. हाँ, ये तो ठीक है पर वो बेचारे ….. दिल और दिमाग़ में.. कितनी परेशानी झेल रहे हैं….. थोड़ी सी सहायता माँग रहे हैं ।
चेतन दिल और दिमाग़ की बातों में उलझा हुआ था । सोचते-सोचते सिर में दर्द हो गया । किसी तरह एक बजाया और घर आकर लेट गया । मन में ख़्याल आया , क्यों न एक बार मम्मी- पापा से पूछ लूँ ।
—— चरण स्पर्श पापाजी! आप दोनों आराम कर रहे होंगे ? वो आपको कमलेश बुआ याद है ना ………..
और चेतन ने सारी कहानी माता-पिता को सुना दी ।
मैं आज शाम को सुशीला बहनजी से बात करके देखूँगी, तब बताऊँगी । वे बहुत समझदार हैं, मेरी किसी बात का बुरा नहीं मानेंगी और सही सलाह देंगी, अभी रुक जा ।
माँ- बाप से बात करके चेतन को थोड़ी चैन पड़ी । उसने तय किया कि अगर कल फूफाजी आए तो वह कोई बहाना बना देगा पर मम्मी के फ़ोन से पहले , उनसे मिलेगा नहीं ।
दो दिन बाद मम्मी का खुद फ़ोन आ गया ——
चेतन , तेरी सुशीला ताई से बात हो गई है मेरी पर उन्होंने तो कुछ दूसरी ही कहानी बताई——
सावित्री …हमें तो घर में सबको पता है, कमलेश बहनजी ने खुद आत्महत्या की थी , वो तो बाऊ जी अपनी ज़मींदारी की हेकड़ी में आकर , माँ- बेटे को फँसवा बैठे । कमलेश की गलती थी , तानों से दुखी हो जान दे बैठी ….. अरे , अपने पति को तो देखती ….बेचारा , उसका मुँह देखकर जीता था । अपने मायके आ जाती …… सास से अलग रहने की ज़िद पकड़ लेती …… पर इस तरह जान देना , ईश्वर का अपमान करना होता है ।
बेटा …. तू ले आ एक बार उन्हें यहाँ…… कम से कम , चैन से मर तो सकेंगे ।
और शनिवार को फूफाजी को लेकर चेतन करनाल चला गया। चेतन शाम पाँच बजे के बाद चंडीगढ़ से करनाल के लिए निकला था , उस रात उसने फूफाजी को अपने घर में ही ठहरा लिया । चेतन के मम्मी – पापा ने उनसे वैसा ही व्यवहार किया जैसा उन्हें अपनी धर्मबहन के पति के साथ करना चाहिए था।
अगले दिन सुबह कमलेश बुआ के बड़े भाई रतनपाल ताऊजी और सुशीला ताई जी स्वयं उन्हें लेने चेतन के घर आए और परिवार ने सामान्य ढंग से उनसे मुलाक़ात की। इस दौरान पिछली बातों का किसी ने भी ज़िक्र नहीं किया ।
भोजन के बाद, जब चेतन और फूफाजी चलने लगे तो ताऊजी ने बहनोई को मान के रूप में पाँच सौ रूपये देते हुए कहा—-
बीती बात को भूलना ही ठीक रहता है । कमलेश की उतनी ही साँसें दी थी रामजी ने । हमारे दिल में तुम्हारी तरफ़ से कोई मैल नहीं है, वर्मा जी ! समय ही ख़राब था , नहीं तो , किस घर में ……
मुझे माफ़ कर देना , भाईजी! मैं मानता हूँ कि माँ ज़बान की कड़वी ज़रूर थी , काश ! मैं माँ का खुले तरीक़े से विरोध करता। पर मैंने ऐसा ना सोचा था……
इससे पहले की फूफाजी की आँखों का पानी बह निकले , चेतन ने उन्हें गाड़ी में बैठाया और चंडीगढ़ की तरफ़ , यह सोचकर चल पड़ा कि कुछ महीने अपने अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती करेगा क्योंकि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के बाद ही , फूफाजी अपने आगे के जीवन के बारें में कुछ सोच सकते थे ।
करुणा मालिक
#तुम मेरे साथ ऐसा व्यवहार करोगे कभी सोचा भी न था।
Best story I have read so far.