आशीष से गुलज़ार घरबार – सरोज माहेश्वरी : Moral Stories in Hindi

शांति देवी प्रातःक़ालीन पूजा अर्चना करके मंदिर से घर वापस आईं… तभी टेलीफोन की घण्टी बज उठी  हेलो! अरे दिव्या तू!… आज सुबह सुबह कैसे फोन किया?…माँ! तुमसे बहुत जरूरी बात करनी थी… “हाँ! बोल बेटा”.. माँ!… जैसा की तुमको पता हैं घर का काम पूरा हो गया है आज सुबह गृहप्रवेश का शुभ मुहूर्त निकालने के लिए पंडित को बुलाया था

इसी महीने की २२ तारीख को मुहूर्त निकला है… तुम और पापा एक सप्ताह पहले आ जाना… आप लोगों का आशीर्वाद लेकर ही शुभ कार्य करेंगे।
      कुछ क्षण मौन रहने के बाद शांति देवी ने दिव्या से पूछा- बेटा! तुमने अपनी सासू माँ जेठ जी जेठानी जी को तो खबर कर दी होंगी… मम्मी मुझे उन लोगों क़ो बुलाने का मन नहीं है…

सासू माँ ने अपने दो बेटों के बीच भेदभाव किया है, तभीं तो उन्होंने जेठ जी को बना बनाया पुश्तैनी मकान दे दिया… हमें जमीन का टुकड़ा और कुछ पैसे ही दिए… वे लोग तो मजे से बने बनाए मकान में रह रहें हैं और हमें कितऩी मेहनत से मकान बनवाना पड़ा ऐसे पक्षपाती लोगों की हमें जरूरत नहीं..पर मेरे पति उन्हें बुलाने की जिद्द कर रहे हैं

परन्तु मेरा मन उन लोगों से खट्टा हो गया हैं।        चश्मा आखों पर चढ़ाते हुए शांतिदेवी बोली -दिव्या बेटा! ऐसा नहीं कहते तुम्हारे जेठ जी ने ही तो अपनी छोटी सी नौकरी में  पिता की मृत्यु के बाद अपने छोटे भाई अर्थात् दामाद जी को पढ़ाया लिखाया और शादी विवाह किया…

दिव्या बोली- मम्मी कुछ वर्ष पूर्व दुर्भाग्यवश जब से एक दुर्घटना में  जेठ जी अपना दायां हाथ खो बैठे हैं और उन्हें गैरसरकारी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा है तब से  माँजी  केवल उनका  ही ख्याल रखतीं हैं..

जेठानी जी स्कूल में नौकरी और ससुर जी की जमा पूंजी से घर चलता है… शांतिदेवी बेटी को समझाते हुए  बोली – बेटा! जब तुम्हारे जेठ जी की नौकरी थी, तब उन दिनों उन्होंने ही तुम्हारे पति की हर छोटी बड़ी इच्छाओं क़ो पूरा किया है” …बेटा दिव्या! मांबाप के लिए सभी संतानें एक़ समान होती हैं परन्तु जब शरीर का कोई एक हिस्सा कमजोर या दर्द में होता है तो उस हिस्से की थोड़ी ज्यादा हिफाज़त करती पड़ती हैं यह किसी के प्रति पक्षपात नहीं हैं।

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      शांतिदेवी भूतकाल में गोते लगाते हुए बेटी को याद दिलाते हुए बोली ..दिव्या ! तुम्हें यह याद ही होगा कि जब तुम कॉलेज में जाने वाली थीं तब तुम्हारे  पिता जी को दिल का दौरा पड़ा था… दिव्या बोली- हाँ मां मुझे सब कुछ याद हैं …. व्यापार  में मैनेजर ने घोटाला करके  पापा को लाखों के कर्ज में डूबो दिया था…. उन दिनों मेरे कॉलेज की फीस भरने के भी पैसे नहीं थे…

हां बेटा! और तुम्हें यह भी ज्ञात होगा कि तुम्हारे ताऊजी ने ही तुम्हारे पिता के लाख़ों के कर्ज़ को चुकाया था , तुम्हारे कॉलेज की चार साल की फीस भी अदा थी … अपने बड़े भाई होने के फर्ज़ पूरा किया है अन्यथा न तो तुम पढ़ पातीं… न हम घर में रह पाते , हमारा मकान भी नीलाम हो जाता और हम आज सड़क पर होते।

ईश्वर न करे तुम्हारे ताऊ जी को यदि जीवन में कुछ कठिनाई का सामना करना पड़े तो क्या हमारा और  तुम्हारे दादा दादी का कर्तव्य नहीं कि हम सब मिलकर उनकी मदद करें।
      बेटा दिव्या! इन खून के रिश्तों को दौलत से मत तोलो….

जिस भाई ने अपनी छोटी सी नौकरी में अपने छोटे भाई को अर्थात दामाद जी काबिल बनाया शादी ब्याह किया इसके लिए उन्हें अपनी कितनी छोटी छोटी इच्छाओं का भी दमन करना पड़ा होगा… यदि शारीरिक रूप से कमजोर एक बेटे को माँ ने थोड़ा कुछ ज्यादा भी कर दिया , तो यह पक्षपात नहीं है.. तुम और दामाद जी दोनों पढ़े-लिखे हो दोऩों नौकरी करते हो… धन दौलत जोड़ लोगे… बिखरे और टूटे रिश्ते समेटना मुश्किल है..

तुम्हारी जैसी सोच ही परिवार रूपी बगिया को सुखा देती… बेटी दिव्या! ऐसे भाई भाभी और सासू मां के आशीर्वाद के बिना तुम्हारे घर की पूजा अधूरी है…. उनके बिना तुम्हें ईश्वर का भी आशीर्वाद कैसे प्राप्त होगा? शांतिदेवी  द्रवित  हो उठीं  और बोली -आज मुझे तुम्हारी छोटी सोच और अपने संस्क़ारों पर शर्म महसूस हो रही है….

तुम्हें तो ऐसे ईश्वर तुल्य उन लोगों क़े चरण पकड़ लेने चाहिए यदि तुम उन्हें नहीं बुलाती हो तो तुम्हारी खुशी में हमारा भी शरीक होने का कोई औचित्य नहीं है।
      अचानक दिव्या की आँखों से पश्चाताप की अश्रुधारा बह निकली …

माँ शांतिदेवी के द्वारा यर्थाथ से परिचय कराने पर उसे अपनी  सोच पर ग्लानि होने लगी… दिव्या ने तुरंत ही अपने पति को फोन लगाया और बोली-  रोहित ! मैं आज अपने व्यवहार से बहुत शर्मिन्दा हूँं  हम आज ही माँजी, जेठजी भाभी जी को लेने अपने पुराने घर चलेंगे…

हम सब साथ रहेंगे… बड़ों के आशीर्वाद के बिना हमारे नए घर की खुशियाँ निरर्थक और  अधूरी होगीं…  बड़ों का आशीर्वाद लेकर ही हम सब अपने नए घर में पर्दापण करेग़ें  … दूसरी तरफ से फोन पर रोहित की आवाज़ आ रही थी – हां दिव्या! तुमने सही कहा… अब बड़ों के आशीष से हमारा घर रूपी गुलिस्तां गुलज़ार रहेगा…

स्वरचित मौलिक रचना
सरोज माहेश्वरी पुणे ( महाराष्ट्र)
# साप्ताहिक प्रतियोगिता “आशीर्वाद”

 

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