आशंका – करुणा मलिक : Moral Stories in Hindi

मानसी , कल विदाई के समय पता नहीं …जी भरके गले लगा पाऊँ या नहीं; अपना ध्यान रखना बहन । अब तो न जाने कब मिलना होगा?

देवेश ने अपनी छोटी बहन मानसी के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देते हुए कहा ।

पर क्यों मिलना नहीं होगा  भैया ? आप दीदी के पास भी तो जाते हो और मेरी ससुराल तो दीदी के घर से पहले ही पड़ेगी । मैं भी आया करूँगी । 

देवेश ने कोई उत्तर नहीं दिया । बस बहन के सिर पर हाथ रखके बाहर चला । उसने आँखों में आया पानी  मानसी से तो बड़ी कुशलता से छिपा लिया था पर  बाहर पिता को देखते ही मन फिर से भर आया —-

पापा , पता नहीं वे लोग कैसे होंगे । मानसी की ख़ुशी देखकर हम विवाह कर तो रहे हैं पर आज तो दिल में अजीब सी बेचैनी है । 

सब अच्छा ही होगा बेटा , बाक़ी मानसी की क़िस्मत । चल , खाने की व्यवस्था देख ले ।

दो महीने पहले मानसी अपनी एक सहेली की शादी में मुरादाबाद गई थी । वहीं पर शिवांश के माता-पिता ने उसे देखा और मन ही मन अपने बेटे के लिए पसंद कर लिया । फेरों के समय सहेली की बुआ ने मानसी से कहा —-

तुम तो बहुत ही बढ़िया डांस करती हो , बेटा ! मानसी नाम है ना तुम्हारा ? यहीं रहती हो क्या?

जी आँटी , मेरा नाम मानसी ही है । पहले यहीं रहते थे पर अब पापा का ट्रांसफ़र हो गया है इसलिए हम मुरादाबाद चले गए । 

मुरादाबाद तो हमारा आना-जाना लगा रहता है । भारत पेट्रोल पंप है ना , मेरे ननदोई का है । 

इस बार आओ तो हमारे यहाँ भी आना आँटी ……पास में ही है हमारा घर ।

हाँ- हाँ, क्यों नहीं ? अपना नंबर तो दो मानसी ।

अवनि की शादी के चार दिन बाद ही उसकी बुआ का फ़ोन आ गया —

हाँ मानसी बेटा ! मैं तुम्हारी सहेली अवनि की बुआ…. याद है ना , मुज़फ़्फ़रनगर में मिले थे….आज मुरादाबाद आना हुआ था तो सोचा कि तुमसे भी मिलते चलें ।

मानसी ने जल्दी से अपने घर में पूरी बात बताते हुए कहा—-

मुझे थोड़े ही पता था कि आँटी सच में आ जाएँगी, वो तो मैंने वैसे ही कह दिया था । 

भाई साहब, मैं तो पल्ला पसार कर आपकी मानसी  को अपने इकलौते बेटे शिवांश के लिए माँगने आई हूँ, मैं इसे अपने घर की रौनक़ बनाकर ले जाना चाहती हूँ। किसी ने सोचा भी नहीं था कि मानसी के लिए इतने बड़े घर का रिश्ता और यूँ अचानक….. मानसी के माता-पिता को कोई जवाब नहीं सूझा । बस उन्होंने इतना ही कहा —-

जी , कहाँ आप और कहाँ हम साधारण मध्यम वर्गीय परिवार के लोग ….

आप ऐसा क्यों कह रहे हैं ? इसमें वर्गों में अंतर की बात कहाँ से आ गई? 

बड़ों से यही सुना है कि रिश्ता बराबर वालों में ही होना चाहिए। 

ज़माना बदल चुका है भाई साहब । वैसे हमने अपनी इच्छा प्रकट की है । बाक़ी आप देखिए, लड़के से मिल लीजिए और अपनी पूरी तसल्ली करने के बाद ही अपना फ़ैसला कीजिए ।अवनि से पता चला था कि आप मानसी के लिए लड़का देख रहे हैं । आपकी बेटी मन में उतर गई । बस इसलिए क़िस्मत आज़माने आ गए थे ।

शाम को देवेश के आने पर माता-पिता ने उसे पूरी बात बताई

—- वो तो सब ठीक है पापा पर क्या हमेशा वे लोग मानसी को यूँ ही सिर- आँखों पर रखेंगे? कहीं कुछ सालों बाद हमसे और मानसी से शर्मिंदगी होने लगे ?  नौकरी पेशा वालों और बिज़नेसमैन के रहन- सहन में ज़मीन- आसमान का अंतर होता है ।

देख ले बेटा , भरी- पूरी थाली को ठोकर मारना भी सही नहीं है। ज़रूरी नहीं कि हर अमीर आदमी बुरे स्वभाव का हो , या उसे पैसे का गुरुर हो ….

हाँ… ये तो है पापा । एक बार अवनि के माता-पिता से मिल लेते हैं । उसके बाद सोचेंगे । 

इधर अवनि और मानसी की फ़ोन पर बातचीत हुई और सहेली की सारी बातें सुनकर मानसी ने अपनी माँ से कहा —-

अवनि कह रही है कि शिवांश बहुत ही अच्छा और समझदार लड़का है । जर्मनी आता-जाता रहता है ….मम्मी! आजकल भी जर्मनी गया हुआ है । आँटी- अंकल को केवल उसके लिए सुंदर लड़की चाहिए । बाक़ी कोई माँग नहीं है उनकी….

बेटा , तेरे पापा और भाई जो फ़ैसला लेंगे…तेरे हक में लेंगे, उतावली मत दिखा । 

आप एकबार उनको बता तो दें कि मुझे अवनि ने बताया है और वो मुझसे कभी झूठ नहीं बोलेगी । 

मम्मी ने शायद पापा और भाई को मानसी की इच्छा बता दी थी इसलिए वे अगले ही दिन सुबह अवनि के घर चले गए । शाम को लौटने पर मम्मी को इतना ही कहा कि देखती आँखों तो सब कुछ ठीक है । अब अगर मानसी की भी इच्छा है तो ठीक है हम रिश्ते की हाँ कर देते हैं । 

और इस प्रकार मानसी की शिवांश से शादी हो गई ।जब भी मानसी का फ़ोन आता ,  देवेश को यही डर रहता था कि शायद मानसी ने कोई शिकायत करने के लिए फ़ोन किया है । धीरे-धीरे साल गुजर गया और वह एक बेटी की माँ बन गई । अक्सर देवेश मानसी से पूछता—-

मानसी , तू कुछ छिपा तो नहीं रही ? आख़िर शिवांश तुम्हारे साथ यहाँ क्यों नहीं आता ? क्या उसे यहाँ आने में शर्म आती है? 

नहीं भैया… शिवांश कहीं भी नहीं जाता । यहाँ तो फिर भी तीन/ चार बार आया है…. उसकी पहले से ही आदत है । टेंशन ना लें भैया ।

पर देवेश को यही लगता था कि वह घमंडी है और वह हमें अपने बराबर नहीं समझता । 

मानसी के विवाह को दस साल बीत गए । वह दो बच्चों की माँ बन कर सुखद जीवन व्यतीत कर रही थी पर देवेश के मन में यही आशंका रहती थी कि शिवांश बेहद घमंडी है । यही सोचकर देवेश इन बीते सालों में कभी भी मानसी के घर नहीं गया और इधर मानसी हमेशा तीज- त्योहार पर यह सोचकर खुद ड्राइवर के साथ मायके आ जाती कि पूरे परिवार से मिल लेगी , भाई को बस में धक्के खाने पड़ेंगे ।

एक दिन आधी रात को देवेश ने मानसी को फ़ोन किया—-

मानसी, पापा को अस्पताल ले जा रहा हूँ । जल्दी आ जा , दीदी भी पहुँच रही हैं ।

क्या…..मैं पहुँच रही हूँ भैया, चिंता मत करना ।

और शिवांश के साथ मानसी एक घंटे में अस्पताल पहुँच गई ।

भैया-भाभी और दीदी- जीजाजी बाहर ही बैठे थे । देवेश को देखते ही मानसी का जी भर आया ।

मानसी , खुद को सँभालो । अगर तुम इस तरह बच्चों की तरह व्यवहार करोगी तो भैया के तो हाथ- पाँव फूल जाएँगे ।

मानसी को भावुक होता देख शिवांश उसके कान में फुसफुसाया। 

ठीक-ठाक सोए थे पापा कि रात में बेचैनी महसूस हुई और पसीने से सराबोर हो गए । बस हम तुरंत अस्पताल ले आए ,ज़बरदस्त  हार्ट-अटैक है ।

कोई बात नहीं भैया, पापाजी ठीक हो जाएँगे । मम्मीजी के पास केवल बच्चे ही होंगे? मैं एकबार कोशिश करता हूँ, अगर पापाजी से मिलने दिया तो …..

शिवांश के इतना कहते ही देवेश, उसकी पत्नी, बहन और जीजा जी की आँखें फटी की फटी रह गईं । शायद उन्होंने पहली बार शिवांश की आवाज़ सुनी थी । 

भैया, मैं पापाजी से मिलकर आ रहा हूँ , डॉक्टर भी वहीं थे । कम से कम तीन दिन बहुत सावधानी के हैं । पर डॉक्टर काफ़ी कॉन्फ़िडेंट हैं कि पापाजी बिल्कुल ठीक हो जाएँगे । भैया, अगर आप कहो तो मैं भाभी, दीदी और मानसी को मम्मी जी के पास छोड़ आता हूँ । वैसे भी डॉक्टर कह रहे हैं कि बार-बार यहाँ आकर दख़लंदाज़ी ना करें । 

हाँ…. यही ठीक रहेगा…. छोड़ आओ । अगर चाहो तो तुम वहीं रुक जाना । मैं और जीजाजी तो हैं ही ।

शिवांश बिना कुछ कहे तीनों को लेकर चला गया और पंद्रह मिनट बाद लौट आया । अगले दिन सुबह पापाजी की हालत में काफ़ी सुधार था पर अब भी उन्हें डॉक्टर की देखरेख में ही रहने की ज़रूरत थी । 

भैया, चलिए मैं आपको घर छोड़ आता हूँ तब तक जीजाजी हैं । आपको आराम की ज़रूरत है ।

और देवेश के मना करने के बावजूद भी शिवांश उन्हें लेकर चला गया । तीन दिन तक शिवांश ने देवेश का एक छोटे भाई की तरह ख़्याल रखा । जिस दिन पापाजी को अस्पताल से छुट्टी मिली उसी दिन शिवांश  को आधे घंटे बाद अपने घर लौटता देखकर देवेश बोला —-

शिवांश , सॉरी इतने सालों बाद तुम्हें पहचान पाया हूँ । मुझे हमेशा यही लगता रहा कि तुम्हें पैसे  का गुरुर है इसलिए तुम यहाँ आते- जाते नहीं, फ़ोन नहीं करते । पर जब हमें तुम्हारी ज़रूरत थी तुम मेरी ढाल बनकर मेरे साथ खड़े थे । कभी-कभी आदमी को परखने में  हमसे चूक हो जाती है । 

देखा भैया, मैं कहती थी ना कि अवनि मुझसे कभी झूठ नहीं बोलेगी और आप हमेशा शंका करते रहे । 

बहन की बात सुनकर देवेश धीरे से मुस्करा दिया ।

करुणा मलिक 

पैसे का गुरुर

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