आज रीना अन्यमनस्क सी बैठी थी, उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे।अपनी परेशानी किससे कहें चारों तरफ अंधेरा नजर आ रहा था, लग रहा था कि उसके सारे सपने बिखर गए हैं।कितना अरमान था उसका कि पढ़ लिखकर आत्मनिर्भर बनेगी। लेकिन बी.ए.द्वितीय वर्ष के बाद ही ऐसी स्थिति निर्मित हुई कि उसे लगने लगा था कि अब वह आगे पढ़ाई नहीं कर पाएगी।
पिता का असमय निधन, उसके स्वास्थ में आई गड़बड़ी, डबल टाइफाइड के कारण शरीर में आई कमजोरी और फिर कुसुम जी का कर्कश स्वभाव।उन्होंने साफ कह दिया था कि ‘अगर परीक्षा में पास नहीं हुई तो पढ़ाई छोड़ कर घर का काम सम्हालो, उनकी सामर्थ्य नहीं है कि वे कॉलेज का खर्चा उठा सके।उन्हें अपने बेटे सूरज को भी तो पढ़ाना है।’
वे तो हमेशा से रीना की पढ़ाई के खिलाफ थी। घर में काम की कमी नहीं थी, खेती बाड़ी का काम था, और वे चाहती थी कि रीना काम में उनका हाथ बटाए।वह तो मोहन बाबू की जिद थी कि रीना पढाई करेगी। पिता की लाड़ली थी रीना। समझदार,सुशील और आज्ञाकारी थी। माँ जानकी ने मरते समय मोहन बाबू से वचन लिया था, कि वे रीना को पढ़ालिखा कर काबिल बनाऐंगे।
और मोहन बाबू भी उस वचन को निभा रहैं थे। उनके रहते कुसुम जी की हिम्मत नहीं हुई कि वे कुछ कह सके। मगर उनके निधन के बाद तो वह और भी कठोर हो गई थी। उन्हें बस उनके सूरज की चिन्ता थी, कि वह पढ़ लिख कर बड़ा अफसर बन जाए। रीना के प्रति उनका रवैया कठोर हो गया था। समय का चक्र रीना परीक्षा में फैल हो गई और उन्हें मौका मिल गया, उसकी पढ़ाई छुड़वाने का।
रीना पढ़ने में होशियार थी मगर,समय की मार वह परीक्षा ठीक से नहीं दे पाई और फैल हो गई। वह सोच रही थी कि ‘अब क्या करे?’तभी उसके कानों में कुसुम जी की आवाज आई-‘क्या अब ऐसे ही बैठी रहैगी, पढ़ने के समय पढ़ाई की नहीं,अब पछताने से क्या फायदा। उठकर पिताजी के कमरें की सफाई कर कितने जाले जम गए हैं।’ रीना का ध्यान भंग हुआ,उसे गुस्सा तो बहुत आ रहा था।
सोच रही थी चिल्ला- चिल्लाकर कहैं, कि आपने समय कब दिया मुझे पढ़ने के लिए।बिमारी हालत में भी आप मुझसे बरतन मंजवाने, पानी भरवाने और कपड़े धोने का काम करवाती रही। रोटी बनाकर खिलाती थी, वह भी शायद बहुत बड़ा एहसान समझती थी मेरे ऊपर। मगर वह कुछ नहीं बोली, उसके संस्कार उसे इस बात की गवाही नहीं देते थे। कुसुम जी चाहे जो समझे, मगर रीना ने तो उन्हें मॉं का ही दर्जा दिया था। वह चुपचाप झाड़ू लेकर पापा के कमरे की सफाई करने के लिए गई।
कमरे कि हर वस्तु से जुड़ी पापा की यादें…..अनेक नन्हीं नन्हीं बूंदे बनकर आँखों से बरसने लगी। मुश्किल से उन्हें सहेज कर वह कमरे की सफाई में जुट गई।उनकी आलमारी की सफाई करते समय उसे उनकी डायरी मिली जो वे अक्सर लिखा करते थे। उसने उसे प्रणाम किया और अपने पास रख ली। रात को सब काम खत्म होने के बाद सोते समय उसने डायरी को पढ़ा। बहुत अच्छी शिक्षाप्रद बातें लिखी थी।
एक पेज पर उसकी निगाह ठहर गई, उसने उसे दौबारा पढ़ा, उसमें लिखा था -“समय की रफ्तार बहुत तेज है, यह किसी के लिए नहीं ठहरता। यह हमेशा एक सा नहीं रहता बदलना इसकी फितरत है, हमें हमेशा इसके साथ सामंजस्य स्थापित करना पड़ता है, हमें हर परिस्थिति में अपना धैर्य बनाए रखना चाहिए। खुशियों में इतना उत्तेजित न हो कि तुम घमण्डी हो जाओ, न दु:ख में इतना निराश हो कि तुम्हें रास्ता समझ में ही नहीं आए कि तुम्हें क्या करना है। न राहें खत्म होती है न मंजिल की कमी है।
एक राह अगर बंद हो जाती है तो दूसरी खुल जाती है। अपने अन्दर झांको, ईश्वर ने तुम्हें शक्ति दी है, कई संभावनाएं शेष है, बस तुम्हें ईमानदारी की राह चुननी है। राह की लम्बाई से ना घबराओ, मेहनत से जी न चुराओ आगे बढ़ो आज नहीं तो कल मंजिल मिलेगी। समय परिवर्तन शील है, सुख दुःख का आवर्तन है। जीवन में कई उतार चढ़ाव आते हैं। जीवन में आए उतार कई अनुभव को तुम्हारी झोली में डाल देते हैं और ये अनुभव आगे सीढ़ियां चढ़ने में तुम्हारे सहायक होते हैं।”
उसे नींद आ गई। सुबह जल्दी उठी, उठकर अपनी माँ के साथ काम में लग गई। हर काम मन लगाकर करती और अपने भाई सूरज जो आठवीं में पढ़ता था, को पढ़ाई में भी मदद करती। कुसुम जी भी खुश थी। बी.ए.द्वितीय वर्ष की पुस्तकें तो उसके पास थी ही ,वह रात को और जब भी समय मिलता पढ़ाई करती उसने सोच रखा था कि जब फार्म भरने का समय होगा वह प्राइवेट फार्म भर देगी और इसबार अच्छे अंको से पास होगी। इसके लिए उसने सूरज को भी अपनी तरफ मिला लिया था, कि वह फार्म भरने के लिए माँ की स्वीकृति दिलाने में उसकी मदद करे। प्राइवेट फार्म भरने का समय आ गया था, रीना ने कुसुम जी से कहा तो वे ना नुकूर करती रही, कि ‘क्या करेगी अब पढ़कर? ‘
सूरज ने कहा माँ अगर दीदी आगे नहीं पढ़ेगी तो मुझे पढ़ाएंगी कैसे? मेरी ट्यूशन लगानी पढ़ेगी। मुझे तो बस दीदी से ही समझ में आता है, वे कितने अच्छे से समझाती है। कुसुम जी ने फार्म भरने के लिए हॉं कह दिया। रीना ने तैयारी तो कर ही रखी थी, इस बार वह बहुत अच्छे नंबरों से पास हुई। रीना ने प्राइवेट बी.ए. की परीक्षा पास की। और फिर बी.एड भी किया। वह माँ का बराबर ध्यान रखती और उनके हर कार्य में मदद करती।वह सूरज को बराबर पढ़ाती थी। उसने साइंस बायलॉजी विषय लिया और बारहवीं में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ।
बड़ी कक्षा में सूरज की पढा़ई का खर्चा भी बड़ गया। अब कुसुम जी को खर्चे की चिन्ता हो रही थी। रीना ने कहा ‘मॉं आप चिन्ता न करें मैं नौकरी करूँगी और मेरे भाई को डॉक्टर बनाऊँगी। रीना ने प्रतियोगी परीक्षा पास की और उसकी सरकारी माध्यमिक विद्यालय में नौकरी लग गई। कुसुम को उसका नौकरी करना पसंद नहीं था, पर सूरज के भविष्य का सवाल था। वह सूरज को बराबर पढ़ाती थी। सूरज ने साइंस बाॉयलाजी विषय लिया और बारहवीं में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ।
उसने पी.एमटी की परीक्षा दी और मन लगाकर मेहनत की रीना भी उसके साथ जागती और उसे पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित करती। परिणाम अच्छा रहा उसका सिलेक्शन हो गया। उसे शहर में मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिल गया। कुसुम जी का व्यवहार अब रीना के प्रति बहुत अच्छा था। कभी-कभी वे सोचती कि रीना की शादी की उमर है और वह उनके बेटे के खातिर नौकरी कर रही है,तो उनका मन परेशान हो जाता। एक दिन उन्होंने मन की बात रीना से कही तो वह बोली, ‘माँ सूरज मेरा प्यारा भाई है, वह डॉक्टर बन जाए, यह हमारे लिए गर्व की बात है।
‘ सूरज डॉक्टर बन गया। रीना के एक सहकर्मी शिक्षक प्रताप को रीना का सहज, सरल व्यक्तित्व बहुत प्रभावित करता था। मन ही मन वह उससे विवाह के सपने देखता था। एक दिन उसने अपने मन की बात रीना से कही। उसने संक्षिप्त उत्तर दिया, वह अभी इस बारे में नहीं सोच सकती ,उसे अपने भाई को डॉक्टर बनाना है। समय अपनी गति से आगे बढ़ता है। वह दिन भी आया जब सूरज डॉक्टर बन गया।प्रताप के मन में रीना को पाने की चाहत प्रबल थी। उसने फिर अपने मन की बात दौहराई, प्रताप भी गम्भीर स्वभाव का प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति था, उसके घर में वृद्ध माता पिता थे।
इस बार रीना ने कहा कि वह, उसकी माँ से बात करें। कुसुम जी भी प्रताप की बातों से बहुत प्रभावित हुई, उन्हें रीना के लिए घर बैठे योग्य वर मिल गया था। सूरज भी खुश था। धूमधाम से रीना और प्रताप का विवाह हो गया। यह है समय चक्र एक दिन ऐसा था जब रीना को अपने चारों और अंधकार नजर आ रहा था और आज वह दिन है जब उसके चारों और प्रकाश हैं, खुशियाँ ही खुशियाँ है। मोहन बाबू की डॉयरी को पढ़कर रीना को एक नन्हीं आशा की किरण मिली, और उसके जीवन में खुशियाँ आ गई।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित