प्रि्या के जीवन में नन्हे कदमों की आहट क्या आई पति देव की पोस्टिंग, फिर ट्रेनिंग आ गई।
सेलेक्शन का रिजल्ट तो पहले ही आ गया था!
तब उत्तर प्रदेश का बंटवारा नहीं हुआ था, तो एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट नैनीताल में ट्रेनिंग के लिए जाना था.. तीन महीने के लिए.. ट्रेनिंग से वापस आकर अनंत ने प्रिया को घर पहुंचा दिया, जहां माता पिता के संरक्षण में बच्चे का जन्म हो!
और इंतजार के बाद आखिर वो ( शुभ घड़ी) आ गई जब प्रिया ने फूल सी नन्ही गुड़िया ( अंबिका) को जन्म दिया!
पति देव अपनी तैनाती स्थल पर ही थे… उन्हें फोन से सूचना दी गई।
रात्रि के ढलते पहर.. या कह लो सुबह होने में अभी कुछ समय था.. तभी बिटिया रानी का जन्म हुआ।
गुड़िया रानी ने जब आंखें खोली तभी से अपने आप को ढेर सारे परिवार के सदस्यों दादा जी, दादी मां,बड़ी मम्मी, बड़े पापा, बड़े भाई बहनों से घिरा पाया!
बहुत भरे पूरे परिवार में जन्म लिया था!😊
मतलब गोद में खिलाने वालों की कोई कमी ना थी!
बल्कि यूं कह लें … सभी गोद में लेने को आतुर रहते थे
मगर ( सासू) मां का सख्त निर्देश था कि सोते हुए बच्चे को गोद नहीं लिया जाता।
तो सभी बच्चे, उसे घेर कर जाग जाने का इंतजार करते रहते… जिससे उठने पर गोद लिया जा सके।
परंतु बिटिया रानी भी पूरा दिन डट कर सोने में बिताती… सभी बच्चे मायूस हो कर सोने चले जाते…. दिन भर के अपने काम निपटा कर बड़े,.. निद्रा देवी की गोद में समा जाते तो प्रिया की बिटिया ( अंबिका) दिन भर नींद पूरी करके फुल टू चार्ज होकर खेलने को तैयार रहती…… मगर अब कोई उसे गोद में खिलाने वाला जाग नहीं रहा होता 😔
प्रिया अपनी बेटी के पास बैठ कर.. उसे गोदी में लेकर थपकी देकर…. कमरे में घूम घूम कर सुलाने की कोशिश करती
मगर वो अपनी गोल मटोल आंखें फाड़कर सब कुछ देख रही होती…. नींद का तो कहीं नामोनिशान नहीं 🙃
और उसे बिस्तर पर लिटाते ही … ज़रा सी झपकी आते ही, हाथ पैर पटक कर… रो रो कर बता देती.. कि अगर उसे नींद नहीं आ रही है… तो किसी और को भी सोने नहीं देगी….
मातृत्व के पहले चालीस दिन लगता था कि.. वो कब से ( चैन की नींद) नहीं सोई है
कब बिटिया रानी का रूटीन सही होगा?
कब दिन को रात और रात को दिन समझना बंद करेगी?
मतलब कब दिन में जागना और खेलना,.. और रात में सोना शुरू करेगी?
पति देव अपनी पोस्टिंग से घर आते तो… उनके कैमरे में रील तो हमेशा ही डली होती ( तब वही जमाना था), अपनी बिटिया की ढेर सारी फोटो खींचते…. गोदी में खूब खिलाते… घर भर में घुमाते….. फिर कुछ समय पश्चात उन्हें वापस जाना होता..
अपनी बेटी की मासूम चेहरे और मोहक मुस्कान को देखकर प्रिया.. सारी थकान.. सुख दुःख.. तकलीफ सब भूल जाती..
ईश्वर ने स्त्री को ही शक्ति दी है… सृजन की.. नव निर्माण की… उसे दर्द के सागर से गुजर कर धरती पर लाने की… और ढेर सारा धैर्य और संयम,रख कर पालन पोषण करने की.. तभी तो मां अपनी संतान के लिए कोई भी दर्द, त्याग करने को तैयार रहती है… और दर्द में सबके मुंह से भी ओ मां यानि कि मां का ही नाम निकलता है।
ऐसे ही नहीं कहा गया है
……. बांझ का जाने प्रसव की पीड़ा
( कृपया इसे मात्र उद्धरण की तरह लें, अन्यथा नहीं 🙏🏻)
क्योंकि हर पल.. यह एहसास रहता है कि दर्द तकलीफ से रक्षा करने का काम मां ही कर सकती है☺️
ईश्वर से भी पहले निकलता है मां का नाम!
सच भी है!
इतनी बड़ी दुनिया में ( शायद) ईश्वर ने अपनी उपस्थिति से पहले मां बना कर भेज दिया!
क्योंकि वो हमारे साथ हमेशा होती है!( और ईश्वर हमेशा हर जगह नहीं हो सकते🙏🏻🙏🏻)
सामने दिखाई पड़े या ना पड़े.. हर तकलीफ को हम तक पहुंचने के लिए इस मां नाम के बैरियर को पार करना होता है
एक नाज़ुक, अपने काम स्वयं करने में असमर्थ नन्ही सी जान को ना सिर्फ शारीरिक रूप से वरन् मानसिक और भावनात्मक रूप से मजबूत इंसान बना कर दुनिया के सामने खड़ा करने का काम करने वाली मां की भी नींव पड़ जाती…. संतान को गोद में लेते ही!!
यानि कि संतान के जन्म के साथ एक मां का भी जन्म हो जाता है!!
जो बिस्तर के गीले वाले हिस्से को स्वयं के लिए रख कर अपनी संतान को सूखे हिस्से में सुलाती है.. वो होती है मां
जो अधखुली ,नींद में डूबी आंखों से भी अपने बच्चे को गहरी रातों में चेक करती रहती है कि, उसने कंबल ओढ़ा हुआ है या कंबल पैरों से मारकर फेंक दिया है…
लो भई.. लिखते – लिखते मुझे भी अपनी मां की याद आ गई 😪
तो क्या मिलता है एक स्त्री को मां बन कर?
और मां बनकर ही मां का त्याग और तपस्या समझ में आता है
एक नारी इतनी धैर्य वान ना हो तो इस धरती / संसार का यह सृष्टि क्रम आगे कौन ले जाए?
ढेर सारी नींद उड़ी रातें… रातों को जग जग कर नैपी बदलना?…. बच्चे की क्षुधा शांत करना…. और जब सब अपनी नींद के आगोश में हों तो.. अपने बच्चे को कंधे पर थपकी देकर लोरी गुनगुनाना… जिसके शब्दों को वो नन्ही सी जान भी समझने में असमर्थ होती है…. मगर मां और बच्चे के बीच एक मजबूत बांड की शुरुआत हो जाती है…. और गोदी में झपकी भी शुरू हो जाती है😃
नहीं.. ये सब तो उस कायांतरण ( transformation) की प्रक्रिया की राह के पड़ाव मात्र हैं
उसके बाद एक युवती सही मायने में परिपूर्ण स्त्री बन जाती है… अपने से पहले और आगे ,अपने बच्चे के लिए सोचने लगती है…. जिसके बाद पता ही नहीं चलता… कि अपने माता पिता की लाडली राजकुमारी… कब ममतामई, त्याग से भरी मां में बदल गई
बस बस …. अब रुलाओगे भी क्या?😌
तो मां बनने की यात्रा में जो दर्द के आंसू बहते हैं वो कालांतर में मोती बन कर आपके जीवन में चमकते हैं
और अनमोल मोती के रूप में अपनी संतान को पाने में इतना कष्ट ( या मातृत्व सुख) तो उठाना ही पड़ेगा… ऐसे ही नही संतान सुख को सभी सुखों से ऊपर रखा गया है!
तो कैसा लगा आपको प्रिया के इस मातृत्व की यात्रा के प्रारंभिक पड़ाव में… उसकी यादों का हिस्सा बनकर…
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आपकी सखि
पूर्णिमा सोनी 🌷
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