आप टेंशन मत लीजिए वैसे भी मुझे आदत हो गई है इस सबकी। : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :   मानसी के पति की मृत्यु बहुत पहले ही एक दुर्घटना में हो गई थी, जब उसके तीनों बच्चे एकांशी, पायल और देवांश छोटे थे। एकांशी तीनों में सबसे बड़ी थी। 

उसके पति एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे। 

 ऐसे दुखद मौकों पर कंपनी से अनुकम्पा के रूप में मिलने वाली  धनराशि और छोटे-मोटे घरेलू रोजगार के द्वारा होने वाली आय से उसने अपने बच्चों को पढ़ाया-लिखाया व उनका पालन-पोषण किया। उसके कामों में एकांशी अपनी क्षमता के अनुसार हाथ बंटाती थी। और पढ़ती भी थी।

   जब एकांशी पढ़-लिखकर बड़ी हो गई तो मानसी को उसकी मदद से कामों में उसको बहुत सहूलियत मिलने लगी। पायल और देवांश भी उस समय स्कूल में पढ़ रहे थे।

   प्रकृति के नियम के अनुरूप ही वक्त के पहिया के घूमने के साथ-साथ उसकी माँ की उम्र भी बढ़ती जा रही थी। 

   वह घर पर सिलाई का काम करती थी और एकांशी घर में ही कुछ खाद्य-पदार्थ के स्वादिष्ट आइटम बनाकर उसे बाजारों में दुकानदारों के हाथों बेच दिया करती थी। मांँ-बेटी मिलकर घर-बार की गाड़ी को कड़ी मेहनत और मशक्कत के बल पर खीच रही थी। ऐसी परिस्थिति में भी उसकी पढ़ाई जारी थी।

   कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि और पढ़ाई में दिलचस्पी नहीं होने के कारण देवांश की पढ़ाई मैट्रिकुलेशन के बाद आगे नहीं हो सकी। तब एकांशी ने देवांश को अपने घर के पास ही किराने की एक छोटी सी दुकान खुलवा दी।

  शिक्षक प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद एकांशी को भी शिक्षिका की नौकरी लग गई। 

   अब एकांशी पर ही घर का सारा दारोमदार था। उसका छोटा भाई तो दुकानदारी कर ही रहा था। वह पायल को भी आगे पढ़ा रही थी। वह भी स्नातक कर रही थी। 

  दशकों तक जद्दोजहद करने के बाद मानसी का कुनबा पढ़-लिखकर समाज में एक जिम्मेवार परिवार के रूप में स्थापित हो गया था। लोग-बाग उनको जानने लगे थे।

   कालांतर में मानसी बीमार रहने लगी। अब एकांशी ही उस परिवार की सर्वेसर्वा थी। उसके वेतन और छोटी सी दुकान से छोटी सी आमदनी के सहारे ही उस परिवार का भरण-पोषण, पायल की शिक्षा और मानसी का इलाज चल रहा था।

   इस संघर्ष के दौर में एकांशी की उम्र कैसे बढ़ती गई कुछ पता नहीं चला, जब उसे होश आया तो उस समय तक बहुत देर हो चुकी थी। उसके सिर के बालों में कहीं-कहीं से सफेदी झांकने लगी। जब दर्पण में अपने चेहरे और बालों को देखती तो उसका अंतर्मन हाहाकार कर उठता था। 

  एक तरह से एकांशी अपनी छोटी बहन और छोटे भाई को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए मांँ-बाप दोनों का फर्ज निभा रही थी। उनकी शादी की भी उम्र हो गई थी। उनके विवाह करने की चिन्ता भी एकांशी को सता रही थी। इस बाबत जब उसने मांँ से बातें की थी तो क्रोध भरी दृष्टि से उसको देखती रह गई थी।

   ऐसी ही परिस्थितियों में उसने अपनी अस्वस्थ मांँ को कई बार सफल व कारगर इलाज करवाकर उसे मौत के मुंह में जाने से बचाया भी। 

इस दरम्यान न तो उसने अपने जीवन के बारे में  कभी सोचा और न अपनी कोई निजी चाहत की ओर ध्यान दिया। उसने कभी भी फैशनपरस्त बनकर विलासी जीवन जीने की आकांक्षा को अपने दिल में स्थान नहीं दिया 

   पायल के मोबाइल पर कई लड़कों के फोन आने लगे थे। कभी-कभी उसके मोबाइल पर वीडियो काॅल भी आने लगे। कई युवकों से एकांत में मोबाइल के माध्यम से बात-चीत भी होने लगी।

  छोटा भाई देवांश भी जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही सतरंगी सपने देखने लगा। उसके व्हाट्सऐप पर खूबसूरत युवतियों की तस्वीरें  भी आने लगी। पसंदीदा लड़कियों के साथ छुप-छुपकर वह वाद-संवाद करने लगा शादी की प्रत्याशा में। कभी-कभार पार्कों और प्राकृतिक रमणीय स्थलों पर भी उसको यवती के साथ देखा जाने लगा। 

   उस दिन जब उसकी बीमार मांँ चारपाई पर पड़ी हुई थी और एकांशी उसकी सेवा में लगी हुई थी तो उसकी माँ ने उसे भींगी आंखों से देखते हुए कहा, “बेटी!… क्यों तुम अपनी जिन्दगी को बर्बाद करने पर तुली हुई हो।… पहले अपना घर बसा लो किसी तरह भी, पूरी बूढ़ी हो जाओगी तो कौन तुमसे शादी करना चाहेगा।… पायल की पहले शादी करके तुम अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी मार लोगी।” 

   अपनी माँ की बातों को सुनने के बाद भी वह उसकी सेवा में मौन होकर लगी रही, कोई जवाब नहीं दिया मानो वह कुछ सुन ही नहीं रही हो। 

   अपनी मांँ की सलाह व परामर्श सुनते ही उसकी आंखों के सामने बीते हुए लम्हों के दृश्यों के गुजरने का सिलसिला चलचित्र की तरह शुरू हो गया जो कुछ माह पूर्व घटी थी। 

   अपनी शादी के मकसद से उसने कई हमउम्र युवकों की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया था। इसके लिए उसने सोशल मीडिया का भी सहारा लिया था। किन्तु किसी ने भी उसे प्रोत्साहित नहीं किया और न किसी ने उसका हाथ थामा। 

   सर्विस करने के क्रम में भी अनेक ऐसे मौके मिले जब उसने अपने सहकर्मियों के सर्किल में कई युवकों से संबंध जोड़ने का प्रयास किया परन्तु सभी ने शायद बढ़ती उम्र होने और आकर्षक रंग-रूप, अंग-उपांग और फेस-कटिंग नहीं होने के कारण उनलोगों ने उसके आगे घास नहीं डाला। अंततोगत्वा उसने उदास और निराश होकर निश्चय कर लिया कि वह अब इस डगर पर आगे कभी भी कदम नहीं बढ़ाएगी। 

                           फिर जब उसकी माँ ने कहा, 

“क्यों एकांशी तुमने कोई जवाब नहीं दिया!… कुछ सोचो!… इस घर की तुम्हीं सर्वेसर्वा हो। सारे ही अधिकार तुम्हारे ही हाथ में है, कोई लड़का देखो!… तुम्हारी छोटी बहन और छोटा भाई तुम्हारे खिलाफ नहीं हैं। दोनों तुमको पूजते हैं। वे दोनों तो चाहते हैं कि पहले बड़ी दीदी की शादी हो जाए तब ही वे लोग भी अपनी शादी के बाबत विचार-विमर्श करेंगे। “

   मानसी के संवादों से उसके दिमागी पटल पर से अतीत के दृश्य एक झटके से गायब हो गए। 

   उसने तल्ख आवाज में खिसियाकर कहा,” चुप भी रहो मांँ!… क्या शादी जरूरी है?… समाज में कितने ऐसे स्त्री-पुरुष हैं जो अविवाहित हैं, तो क्या उनका जीवन, जीवन नहीं है? “

  ” बात समझने की कोशिश करो बेटी!..” 

   “आप टेंशन मत लीजिए, वैसे भी मुझे आदत हो गई है रंगहीन व उदास भरी नीरस जिन्दगी जीने की।… मुझे शादी शब्द से ही नफरत हो गई है।… क्या बिना शादी किये हुए आदमी जिन्दा नहीं रह सकता है? ” कहते-कहते उसकी आंखों में आंसू छलछला आए, जिसको अपनी ओढ़नी से पोंछते हुए अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। कमरे में वह कटे हुए वृक्ष की तरह बिस्तर पर गिर पड़ी। 

   पल-भर बाद ही कमरे से उसके सिसकने की आवाजें आने लगी। 

    स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित 

                  मुकुन्द लाल 

                हजारीबाग(झारखंड)

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