एक बार मैं जिंदगी से परेशान होकर शहर से भाग कर गांव आ गया।
शहर की भागम भाग से और काम के तनाव से एवं शांति की कमी की वजह से मै थक चुका था।
रोज की बेजान दिनचर्या से ऊब चुका था मैं….
अभी दो वर्ष पहले ही माता पिता के मना करने के बावजूद मैं नौकरी करने शहर आया था।
पिताजी की किराने की छोटी सी दुकान थी ठीकठाक चल जाती थी। क्योंकि गांव में और कोई किराने की दुकान नहीं थी।
मां घर के काम में व्यस्त रहती समय मिलता तो पिताजी का हाथ बंटाने दुकान आ जाती।
दुकान के पिछले हिस्से में ही मकान था।
हम दो भाई बहन थे तीन साल पहले बहन की शादी पड़ोस के गांव में हुई थीं। समधी अच्छे खानदानी और रईस थे।
बहन ने भी अच्छी पढ़ाई की थी तो वो शहर में नौकरी करना चाहती थी।उसको अच्छी नौकरी मिल भी रही थी।
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पर उसकी शादी कर दी लड़का सुंदर व सुशील था तो जीजी ने भी ज्यादा नहीं सोचा और शादी के लिए हां करदी।
पर जीजाजी बहुत सुलझे हुए और खुली सोच वाले थे तो उन्हीं के गांव में स्कूल में जीजी को अध्यापिका की नौकरी के लिए इजाजत दे दी। वो दो वर्ष से स्कूल में बच्चों को पढ़ा रही है।
मै पिताजी के साथ अक्सर शहर दुकान के सामान की खरीदी के लिए जाता रहता था इसलिए वहां की चकाचौंध देख कर बचपन से ही शहर में बसने का सपना पाल लिया था।
जैसे ही डिग्री हाथ में आई तो बिना माता पिता को पूछे अच्छी बड़ी कंपनी में नौकरी का आवेदन कर दिया और जल्द ही अच्छी पगार के साथ मुझे काम मिल भी गया।
जब पिताजी से इस बारे में बात की तो वो बहुत नाराज़ हुए उन्होंने बहुत समझाया तू मेरा इकलौता बेटा है। हमारी दुकान भी अच्छी चल रही इसीमें और व्यापार बढ़ा लेंगे।
तू चला जायेगा तो इसे कौन संभालेगा। पर दिमाग में तो शहर का भूत चढ़ा हुआ था।
तो मैने माता पिता की एक न सुनी। जीजी ने भी बहुत मना किया था पर मैं नहीं माना और चला आया शहर। शुरू शुरू में तो बहुत अच्छा लग रहा था।
पर मैं गांव में आराम मौज मस्ती में रहने वाला इतने काम का प्रेसर नहीं सम्भल पा रहा था।
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इसलिए तनाव में रहने लगा, बीमार पड़ों तो कोई पूछने वाला नहीं वो ही रोज भोजनशाला का खाना, मन उदासीन रहने लगा, परेशान इतना रहने लगा कि कंपनी में बिना बताए भाग आया था।
यहां आने पर देखा तो मां और पिताजी उम्र से ज्यादा बूढ़े दिखने लगे थे, मेरे ऐसे चले जाने से उनकी जिंदगी में जैसे कुछ बचा ही नहीं था। उनकी हालत देख मुझे खुद पे खूब गुस्सा आ रहा था।
मुझे अचानक देख मां की तो जान में जान आ गई।
पिताजी ज्यादा खुश नहीं लग रहे थे उन्हें लगा मै दो चार दिन की छुट्टी पर आया हूं।
अगले दिन मैने कंपनी में मेंल कर दिया और इस्तीफा भेज दिया।
दो दिन बाद कंपनी ने मेरा इस्तीफा मंजूर कर दिया और मेरी बकाया पगार मेरे खाते में भेज दी।
मां रोज कुछ न कुछ मेरे पसंद का बना कर अपने हाथ से मुझे खिलाती।
गांव में मैं सब दोस्तों से मिल आया और एक दिन हम सब दोस्त नदी किनारे बैठे थे तो मैने सबको बता दिया कि मैं सब छोड़ सदा के लिए गांव आगया हूं।
जब में हफ्ते भर से भी जाने का नाम नहीं ले रहा था तो एक दिन शाम के खाने के वक्त पिताजी ने पूछा कब जा रहा है तू।
तो मैं एकदम स्तब्ध रह गया पिताजी के दर्द भरे लब्ज़ सुन कर, उन्हें मैने जब बताया ही नहीं उनसे बात की ही नहीं तो उन्हें कैसे पता होगा कि मैं सब छोड़ सदा के लिए यहां आगया हु उनके पास।
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मैने हिम्मत जुटाई और पिताजी से कहा में बहुत शर्मिंदा हूं आपके मना करने के बाद भी मैं चला गया, आपकी इस बिगड़ी हुई सेहत का जिम्मेदार मैं हूं।
अब आप दोनों को छोड़ कभी कहीं नहीं जाऊंगा।
मेरे ये शब्द सुन उनकी आंखों से आंसू की धारा बह निकली और मुझे गले लगा लिया। पहली बार मुझे गले लगाया तो में भी अपने आप को नहीं रोक सका और मेरी आंखों से भी आंसू बहने लगे।
मां ने कभी अपने जीवन में शायद ऐसा दृश्य नहीं देखा था।
तो उनकी भी आंखे नम हो गई।
आज ये आंसू मोती बन कर बह रहे थे।
सुबह पिताजी जल्दी उठ के मुझसे कहा तू दुकान संभालना हम शाम से पहले वापस आ जाएंगे। पिताजी के चेहरे पर इतनी चमक मैने पहले जब मैं डिग्री लेके आया तब देखी थी।
आज उनके चेहरे पे वो खुशी वाले भाव देख मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा था।
शाम को जब पिताजी आए तो साथ में जीजी और जीजाजी भी थे।
जीजी और जीजाजी से मिलके खूब प्रसन्नता हो रही थी।
पिताजी ने कहा चलो सब जल्दी तैयार हो जाओ हम शाम माताजी के मंदिर दर्शन आरती कर आते है।
सब मंदिर के दर्शन एवं आरती कर के आते वक्त गांव के एकमात्र ढाबे पे सब ने खाना खाया और घर आ गए।
आधी रात तक हम बाते करते रहे। जीजी और जीजाजी ने बताए मेरे जाने के बाद पिताजी एकदम टूट से गए थे दो दिन तो उन्होंने दुकान भी नहीं खोली थी।
मैने भी अपनी सब बातें उनसे की। उन्हें भी बताया कि शहर की 10से 5, की नौकरी,घर आने के बाद भी खत्म नहीं होती।
जितनी पगार देते है उससे कई गुणा ज्यादा ये मल्टीनेशनल कंपनियां काम लेती है।
हमारी बातें सुन कर मां कमरे से बाहर आई और डांटने लगी अरे देखो दो बज रहे है अब सो जाओ।
तभी जीजाजी ने फरमाइश कर दी मम्मीजी आपके हाथ की चाय पीने का मन कर रहा है।
मां शर्माते हुए बोली अभी बनाती हूं जमाईसा, और मां रसोई में चली गई जाने से पहले कमरे में पिताजी से पूछने चली गई कि बच्चों के लिए चाय बना रही हूं आप भी पियेंगे क्या।
शायद पिताजी ने भी हामी भर दी थी। इसलिए वो भी बाहर आ गए।
सब मिलकर चाय के साथ मठरी और बिस्किट खा रहे थे, की जीजी ने देखा पिताजी की आंखों से आंसू बह रहे थे। खुशी के आंसू बहुत दिनों बाद पिताजी को ऐसे देखा तो जीजी की आँखें भी भर आई।
ये आंसू खुशी के तो थे ही पर इसमें कहीं अतीत का दर्द भी था जो मुझे दिख रहा था।
“मै एक बात कहना चाहता हूं सबसे मां बाप का दिल दुखा के कभी कोई निर्णय मत लो, कोई भी कभी खुश नहीं रह सकता, दो पैसे कम कमाओ चलेगा, जिन्होंने तुम्हारे लिए जिंदगी खपा दी उनको दुखी करके तुम दुनिया के किसी भी कोने में सुखी नहीं रह सकते हो।”
समाप्त
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राजेश इसरानी
26/03/2025
#आंसू बन गए मोती#