अरे …… सुशीला तुम रोज रोज इतनी देर से क्यों आती हो….? तुम तो जानती हो मुझे ऑफिस जाना है। सुशीला की मालकिन दिव्या ने कहा…
सुशीला बिना कुछ कहे … जल्दी जल्दी काम में लग गई। दिव्या को लगा सुशीला कुछ परेशान हैं। दिव्या ने किचन में जाकर सुशीला से कहा…. क्या बात है सुशीला …?
तुम बहुत परेशान दिख रही हो। सुशीला के आंखों में आंसू आ गए ।क्या कहें मैम साहब…! अब तो रोज का रोना है। जब से मेरे आदमी को फालिस हुआ है
तब से बिस्तर पर ही टट्टी पेशाब खाना-पीना सब उनका करना पड़ता है। दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। पति प्राईवेट कंपनी में काम करते थे। वहा से कुछ मिला नहीं,
नौकरी भी चली गई पति की।आमदनी का कोई साधन नहीं है। हम को ही सब करना है। आप सब की दया से किसी तरह जीवन काट रहे हैं। कह कर सुशीला रोने लगी ।
दिव्या ने किसी तरह उसको चुप कराया। सुशीला का मायका अच्छे घर में था परंतु सुशीला ने कभी मदद नहीं मांगी। सुशीला चार-पांच घरों में खाना बनाने का काम करती थी ।
इसी से दवाई और घर का खर्च चलाती। सुशीला देखने में सुंदर थी जब वो काम पर जाती तो….. मोहल्ले वाले तरह-तरह की बातें बनाते। अरे……
देखो आदमी खटिया पर पड़ा है। ये पता नहीं कहां घूमती रहती है पर सुशीला इस पर ध्यान नहीं देती। जब बुरा समय चलता है तो साया भी साथ छोड़ देता
ये मोहल्ले वाले तो ऐसे ही बातें करते रहते हैं। इतने अभाव में भी सुशीला बच्चों को भी पढ़ा रही थी सुशीला दिन रात काम करते-करते कभी दुखी होकर अकेले में बैठकर रोने लगती
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मन ही मन सोचती कब संघर्ष के दिन खत्म होंगे या हम ही संघर्ष करते-करते खत्म हो जाएंगे। पति को बिस्तर पर पड़े हुए 5 वर्ष बीत गए थे
और 5 वर्षों में पति की सेवा सुशीला ने तन मन से की। एक दिन अचानक पति की मृत्यु ने सुशीला को मन से भी तोड़ दिया ।अभी तक सुशीला उम्मीद बनाए बैठी थी
कभी न कभी उसका पति ठीक हो जाएगा। मगर उसे क्या मालूम था कि वह हमेशा के लिए साथ छोड़ कर चला जाएगा ।दोनों बच्चों को सीने से लगाकर दहाड़ मार कर सुशीला रो रही थी
अब किसके लिए जीयेंगे…. सभी की आंखें नम थी । सांत्वना के सारे बोल झूठे प्रतीत हो रहे थे। सभी के सहयोग से उसके पति का अंतिम संस्कार किया गया।
सुशीला बच्चों का मुंह देखकर कुछ दिनों बाद पुनः काम पर लौट आई ।काम नहीं करेगी तो बच्चों को कैसे पढ़ायेंगी और क्या खिलाएंगी…..?
पति के जाने का दुख दिल में दबा कर अब बच्चों के लिए उसे काम करना था। सुशीला रात दिन काम करके बच्चों को पढ़ा रही थी।बड़ा बेटा सुशीला से कभी कभी कहता…..
मॉं में भी छोटी मोटी नौकरी कर लेता हूं। आप का सहयोग हो जायेगा परंतु सुशीला डांट देती ।तुम्हें पढ़ाई करनी है और सरकारी नौकरी करनी है।
सुशीला का बड़ा बेटा बीए बीएड करके मास्टरी की तैयारी कर रहा था ।वो सुशीला से कभी कभी कहता …. मां जब हम नौकरी करेंगे तब तुमको काम नहीं करने देंगे
और सुशीला मुस्कुरा देती ,ठीक है… मेहनत से पढ़ाई कर पहले। सुशीला के जीवन में वो दिन भी आ गया जब बड़े बेटे का मास्टरी में चयन हो गया
जो मोहल्ले वाले उंगली उठाते थे ।वो सब बधाई दे रहे थे। आज भी सुशीला की आंखों में आंसू थे परन्तु वो गम के नहीं खुशी के थे।
सच में आज ऑंसू मोती बन गए थे। सुशीला का संघर्ष खत्म हो गया था ।बेटा खुशी से मॉं को गोद में लेकर घूम रहा था।
स्वरचित एवं मौलिक
विनीता महक गोण्डवी